इंडियन कपल - 2 PARIKH MAULIK द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इंडियन कपल - 2

Volume 2

अब ये तो पता नहीं कि आपने सोचा होगा कि नहीं? और अगर सोचा भी होगा! तो क्या सोचा होगा? वह आयेगा या नहीं? चलिए देखते हैं, कि पिछले भाग मे जो प्रश्न उत्पन हुए थे जिनके उतर अपने सोचे है वह है कि नहीं।


अब ये सब पता चलते ही वह वहा से अपने घर की और निकल पड़ा, वह लड़की जेनी भी अपने घर की ओर चलने लगी, फिर एसे ही कुछ समय बाद एक रोज़ खुशी का कॉल आता है वह सूरज से मिलने की मिन्नत करती है। सूरज माना करताहै, पर फिर वह उसे मिलने के लिए राजी कर ही देती है। और सूरज भी हाँ बोल देता है, उस रोज खुशी यानिकी जेनी सूरज के घर पर आती हैं, सूरज के पास आ कर माफी मांगने लगी अब सूरज को पता था! कि वह खुशी कोन है। तो उसने उसे माफ कर दिया फिर उसका यहा आना जाना शुरू हो गया। एसे ही समय बीतता गया दोनों एक दूसरे से खुल कर बात करने लगे थे और एक दिन दोनों बाते कर रहे थे कि तभी खुशी पूछती है, कि तुम इन्डिया से यहा केसे पहुचे? थोड़ी देर सूरज शांत रहता है और सोचने लगता है।


सोचता है कि अपने से आधे साल की अपनी लड़की जेनी के साथ बात कर रहा हूं और उसे पता नहीं है कि मुजे पता है कि जेनी सुनीता की बेटी है मगर जेनी को ये नहीं पता कि मे उसको जानता हूं वह तो मुझको को अपना दोस्त ही मानती हैं।

अब लगातार जेनी के पूछने पर और दबाव करने पर सूरज अपने बारेमे बताता है, कहता है कि मेरा बचपन इन्डिया मे गुज़रा और वहीं बड़ा हुआ बड़ा होते ही अपने पिता की बेकरी की शॉप मे हाथ बटाने लगा, कुछ ही समय में मे बेकरी को अच्छी तरह से सम्भाल ने लगा और पिता जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना था! तो उन्होंने मेरी शादी पड़ोस के गाव मे तय करदी, मेरी उससे शादी हुई और मे बहुत खुश था। हम दोनों ने परदेश गुम ने का तय किया और एक माह के लिए सब तैय्यार हो कर निकल पड़े और आ गए अमेरीका।


कुछ दिन तो सब हमारे हिसाब से चल रहा था, पर एक दिन कुछ एसा हुआ जो पूर्ण रूप से दिल दहला देने वाला था। वहा के गोरे लोग श्याम वर्ण के लोगों को परेशान कर रहे थे, हम भी वहीं पास मे नदी के किनारे पर स्थित पार्क में अपना समय व्यतित कर रहे थे। कि तभी वहा कुछ आवारा लोग आ पहुचे, अभी शाम होने को आ रही थी। और वहा बहुत कम लोग थे, कोई ना दिखने पर वो लोग हम दोनों को परेशान करने लगे, हमने उनसे जाने का अनुरोध किया मगर वह गोरे लोग हमारी एक नहीं सुनते और हम से पैसे और क़ीमती सामान मांगने लगे, हम कुछ करते उससे पहले उनमे से दो लोगों ने हम पर हमला करके हमारे पर्स और गहने ले कर वहा से फरार हो गए, हम एकदम अंजान देश मे बहुत अंजान, बहुत बेबस और बहुत लाचार हो कर रह गए थे। बस वहीं से हमारा संघर्ष आरंभ हुआ।

अब तक आपने देखा अब क्या हुआ था? एसा जिसको वह संघर्ष का नाम दे रहा है। वह खुद की बेकरी चलाता है, सोचिए एसी कौनसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा था? उसके यहां रुकने तक का सफ़र जानना है? तो मिलते हैं अगले भाग में।।