पिया बसंती रे! - 4 - अंतिम भाग Saroj Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पिया बसंती रे! - 4 - अंतिम भाग

भाग-4

" ऐसे कैसे चल दिए भाईसाहब! मुंह तो मीठा कराइए। आज से आपकी बेटी हमारी हुई। हमें यह रिश्ता मंजूर है!!" यह वाक्य सुनते हैं, खुशी के पापा के कदम वही ठिठक गए!!

"क्या ! क्या कहा आपने!!"

"जी, हम सबको आपकी बेटी बहुत पसंद है और हम जल्द से जल्द आपकी बेटी को बहू बनाकर अपने घर ले जाना चाहते हैं!" सिद्धार्थ के पापा हंसते हुए बोले।

"सच! सच कह रहे हो भाई साहब आप! सब कुछ जानते हुए भी! !!!!

आप नहीं जानते, आपने कितना बड़ा उपकार किया है हम पर। " खुशी के पापा उनके सामने हाथ जोड़ते हुए बोले।

"भाई साहब! उपकार हम नहीं , आप करेंगे हम पर। अपनी बेटी देकर। आपकी बेटी लाखों में एक है। जहां लोग झूठ का मुखौटा लिए फिरते हैं। वहीं यह इतनी छोटी सी उम्र में सच बोलने का साहस रखती है। इस संसार में ऐसे इंसान विरले ही होंगे, जो अपनी कमी को बेहिचक दूसरों के सामने रख सके। शायद मैं भी यह ना कर पाता।

मुझे खुशी है कि खुशी जैसी लड़की मेरे बेटे की जीवनसंगिनी बनेगी । सुख में तो सभी साथ निभाते हैं लेकिन मुझे व मेरे परिवार को पूरा विश्वास है, दुख में भी यह मेरे बेटे की ढाल बन उसके साथ खड़ी रहेगी।"

"हां अंकल जी, पापा सही कह रहे हैं। खुशी जैसी पत्नी पाना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। मैं, आपकी बेटी का रिश्ता आपसे मांगता हूं और आशा करता हूं कि वह भी मुझे स्वीकार करेंगी!" सिद्धार्थ, खुशी की ओर देखते हुए बोला।

" सिद्धार्थ जी, आप व अंकल जी भावनाओं में बहकर या जल्दबाजी में कोई फैसला ना ले। अच्छे से इस बारे में सोच विचार कर ले। ऐसा ना हो बाद में!!!!" कहते कहते खुशी का गला रूंध सा गया।

किसी तरह अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए वह फिर बोली "मैं तो कहती हूं कि अभी सिर्फ आपने सुना है। एक बार अगर आंटी जी या आप मेरे उन टांकों के निशानों को देख लेते तो मुझे तसल्ली हो जाती।"

सिद्धार्थ ने यह सुनकर एक बार अपने पापा की ओर देखा उसके पापा ने आंखों से इशारा कर उसे अपनी बात रखने के लिए कहा " खुशी जी, हमें किसी साक्ष्य की जरूरत नहीं है। आप की सच्चाई ही हमारे लिए सब कुछ है। हमने जल्दबाजी या भावनाओं में बहकर फैसला नहीं लिया। यह हम सबका सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय है।

शायद दुनिया से मिले कड़वे अनुभवों के कारण, आपको हमारी बातों पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है लेकिन एक बार उन सब बातों को दरकिनार कर, हमारी बातों पर विश्वास करें। तब आप सही सही देख समझ पाएंगी।

आपकी तरह मैं भी कहता हूं, हमें कोई जल्दबाजी नहीं। जब आपका दिल करे, हां कर देना। अगर आपके मन में किसी भी तरह की शंका है तो !!!!!

आगे मैं क्या कहूं। आप खुद ही बहुत समझदार हैं। "

कुछ देर कमरे में चुप्पी छाई रही। सभी को खुशी के फैसले का इंतजार था। खुशी ने अपने माता-पिता की ओर देखा उनके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। उन्हें इंतजार था, बस खुशी की हां का।

खुशी ने जब उनकी आंखों में देखा तो उसे ऐसा लगा मानो दोनों कहना चाहते हो 'बेटा हां कर दे। इससे अच्छा जीवनसाथी और परिवार तुझे और कहीं नहीं मिलेगा। जो तेरी भावनाओं की इतनी कद्र करें।'

खुशी ने खुशी से अपने माता-पिता की ओर देख सहमति में सिर हिलाते हुए धीरे से कहा "हां मुझे भी रिश्ता मंजूर है।"

उसकी सहमति मिलते ही सबके चेहरे खुशी से खिल उठे। खुशी के माता-पिता ने आगे बढ़ उसे गले से लगा लिया और उसे भावी जीवन के लिए ढेरों आशीर्वाद दिए।

खुशी ने अपने होने वाले सास ससुर के पैर छुए तो उन्होंने भी आशीर्वाद रूपी हाथ उसके सर पर रख दिया।

और फिर खुशी के पापा के गले मिलते हुए बोले "मुबारक हो भाई साहब, अब तो हम समधी बन गए।"

यह सुनकर खुशी के पापा बोले "बिल्कुल, चलिए इसी बात पर मुंह मीठा कीजिए!"

"मुंह मीठा करने से ही काम ना चलेगा। अब तो हम खाना खाकर ही जाएंगे।"

"बिल्कुल जी बिल्कुल!"

खुशी की मम्मी खाना बनाने अंदर जाने लगी। यह देखकर सिद्धार्थ की मम्मी बोली "बहन जी, मैं भी आपके साथ ही चलती हूं। दोनों समधन मिलकर खाना बनाते हुए खूब सारी बातें करेंगी।"

"तो हम क्यों पीछे रहे। चलिए समधी जी, हम भी बालकनी में बैठ मौसम का मजा लेते हुए गपशप करते हैं। खुशी तुम सिद्धार्थ जी को ऊपर ले जाकर जरा अपना टेरेस गार्डन तो दिखाओ।"

"जी पापा!"

थोड़ी देर बाद दोनों छत पर थे। कुछ देर पहले यह बसंती मौसम जहां उसे नीरस जान पड़ता था। सिद्धार्थ का साथ पाकर कितना सुहाना लग रहा था।  मंद मंद बहने वाली शीतल बयार और फूलों की खुशबू मौसम को और रुमानी बना रही थीं।

आज समझ आ रहा था कि लोग सही कहते हैं कि बसंत का ये खुशगवार मौसम प्यार करने वालों के जीवन में और रूमानियत भर देता है।

खुशी, सिद्धार्थ से बहुत कुछ कहना चाहती थी लेकिन उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था। आंखें लाज से झुकी जा रही थी।

सिद्धार्थ उसके मनोभाव समझ गया था। आगे बढ़ उसने खुशी के हाथों को अपने हाथ में थाम लिया।

इस सुखद स्पर्श को पा खुशी की आंखों में आंसू छलक आए।

जिन्हें पोंछते हुए सिद्धार्थ ने कहा " खुशी, अब और नहीं!!!

अब तुम्हारे जीवन में इनकी कोई जगह नहीं। मैं वादा करता हूं, तुम्हारे नाम की तरह मैं तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर दूंगा। बस तुम मेरा साथ देना!" सुन खुशी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और उसने सहमति में सिर हिला दिया।

सिद्धार्थ के शब्द उसके जीवन के रेगिस्तान में बसंती हवा के ठंडे झोंके की तरह थे। आज उसे महसूस हो रहा था कि उसके जीवन का खोया हुआ बसंत, फिर से लौट आया है।

उसकी नजर छत पर रखे अपने रंग बिरंगे पौधों पर गई तो

उसे ऐसा लगा मानो वह खुशी से झूम झूम उसे नवजीवन की बधाई दे रहे हो। मुंडेर पर बैठी कोयल की कूक सुन उसका मन मयूर नाच उठा। सिद्धार्थ और खुशी की नजरें आपस में मिली । आंखों ही आंखों में दोनों ने एक दूसरे से प्यार का इजहार कर उम्र भर साथ रहने का वादा किया।

होंठ चुप थे लेकिन दोनों के प्रेमी दिल झूम झूमकर गा रहे थे पिया बसंती रे!

समाप्त

सरोज ✍️