पिया बसंती रे! - 2 Saroj Prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

पिया बसंती रे! - 2

भाग-2

5 घंटे के लंबे ऑपरेशन के बाद आखिर खुशी को इस बीमारी से निजात दिलाने में उन्होंने सफलता पाई।

खुशी के मां-बाप की तो मानो खोई हुई सांसे वापस आ गई हो। वह दोनों हाथ जोड़ डॉक्टर्स का धन्यवाद करते ना थक रहे थे।

डॉक्टर ने कहा "यह सब आपकी दुआओं का फल है हमने तो बस अपना काम किया। हां देखिए, ऑपरेशन बड़ा था। जिसके कारण इसके पेट पर काफी टांके आए हैं और हां अब दर्द तो नहीं लेकिन भविष्य में कभी कभार थोड़ा बहुत दर्द हो सकता है। इसलिए आप आगे कोई लापरवाही ना करें। इसकी दवाइयों व खानपान का विशेष ध्यान रखें।

खुशी ने दर्द से तो निजात पा ली लेकिन अपने पेट का हाल देख एक बार तो वह खुद भी डर गई। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने पेट को बड़ी बेरहमी से सुई से सिल दिया हो।

डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा "देखे समय के साथ यह निशान कुछ कम हो जाएंगे लेकिन हां ,पूरी तरह कभी नहीं जा सकते।"

खुशी जब अपने पेट की हालत देख रोती तो उसकी मम्मी उसे समझाते हुए "यही कहती बेटा, तेरी बीमारी कट गई यह बहुत बड़ी बात है। अरे, यह निशान किस को दिख रहे हैं। ढके ही तो रहेंगे।"

"कैसी बात कर रही है खुशी की मां! अभी तो ठीक है लेकिन शादी के बाद! हे भगवान लड़की की जात और यह सब। पता नहीं शादी के बाद लड़के वाले देख कर क्या क्या बात बनाए। हमारे ख्याल से तो जब भी तुम इसका रिश्ता करो। पहले ही लड़के वालों को यह सब बता देना। कहीं ऐसा ना हो बाद में पछताना पड़े।" रिश्तेदार व पड़ोसी जो भी उसे देखने आता। इस तरह की बातें कर उसका दिल दुखा कर चलता बनता।

लेकिन एक बात खुशी के मन में घर कर गई थी कि वह अपने इन निशानों को किसी से नहीं छुपाएगी।

"पागल हो गई है क्या तू! जो बात ढकी है, उसे क्यों तू सबके सामने लाना चाहती है। अरे, लोग तो रिश्ता करते समय पता नहीं कौन-कौन सी बातें छुपाते हैं। यह तो कोई बड़ी बात नहीं। अरे, हारी बीमारी सभी के साथ लगी रहती है। फिर तू क्यों सच्चाई का पुतला बनी हुई है।" उसकी मम्मी थोड़ा नाराज होती हुई बोली।

"मम्मी , अगर यह निशान कोई मुद्दा ही नहीं तो दिखाने या बताने में क्या हर्ज है। जो बातें बाद में खुले, अच्छा है ना पहले ही वह सारी बातें साफ साफ हो जाए। मैं किसी भी रिश्ते की नींव झूठ पर नहीं रखना चाहूंगी। आप मेरी यह बात साफ-साफ सुन लो।" खुशी अपना फैसला सुनाते हुए बोली।

उसके मां-बाप ने कितना उसे समझाना चाहा लेकिन उसकी जिद के सामने दोनों को हार माननी पड़ी।

और जिसका डर था, वही हुआ। जिसको भी ऑपरेशन की बात पता चलती है या निशान दिखते वह तुरंत मना कर देते।

खुशी ने कितनी बार अपने माता-पिता को समझाना चाहा ‌ कि वह शादी नहीं करना चाहती लेकिन हर बार वह उसे यह कहते हुए चुप करा देते " बेटा तेरी शादी हम दोनों का जीवन भर का सपना है। क्या तू हमारी इच्छा पूरी नहीं करेगी। तू चाहती है कि तेरे मां-बाप यही तमन्ना लिए दुनिया से चल बसे।" और उन दोनों के इस तर्क के आगे वह कुछ ना कह पाती।

तभी बसंती हवा का एक झोंका चला और फूलों की भीनी खुशबू के साथ रहे वर्तमान में लौट आई। खुशी ने अपने पौधों पर एक प्यार भरी नजर डाली। सभी कितने खुश लग रहे थे। बसंत के आगमन के साथ। एक वह है कि 8 साल से उसके जीवन से जो बसंत गया वह फिर लौटा ही नहीं!

क्या उसके जीवन में कोई नहीं आएगा! उसके जीवन का खोया हुआ बसंत लौटेगा कभी! कोई उसे भी ऐसी प्यार भरी नजर से देखेगा कभी!

खुशी को देखते ही लड़के वालों ने हां कर दी। करते भी क्यों ना! देखने में जितनी वह सुंदर थी, उतनी ही प्रतिभावान भी तो थी। अनेक गुणों की खान घर के कामकाज के अलावा कितने ही हुनर उसे आते थे

लड़के के माता-पिता ने दो-चार सवाल जवाब के बाद, हां करते हुए कहा "भाई साहब हमें आपकी बेटी पसंद है।

सुनते ही खुशी के पापा की आंखें चमक उठी । अभी वह कुछ कहते, उससे पहले ही खुशी ने अपने पापा की ओर देखा ।

खुशी की आंखें पढ़, उनकी आंखों की चमक गायब हो गई और चेहरे पर फिर से चिंता की लकीरें खिंच गई।

उन्हें चिंतित देखकर लड़की के पिता ने पूछा

"क्या बात है भाई साहब! क्या आपको हमारा लड़का पसंद नहीं!"

"नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं! भाई साहब हमें तो रिश्ता मंजूर है । मेरा मानना है जिंदगी इन दोनों को साथ गुजारनी है तो मेरे ख्याल से अगर यह दोनों आपस में एक दूसरे को समझ, फैसला लेते तो ज्यादा अच्छा था!" खुशी के पापा थोड़ा हिचकते हुए बोले।

"अरे हां हां क्यों नहीं भई ! नया जमाना है। हमें भी समय इनके साथ ही चलना चाहिए!

हां बेटा, तुम दोनों आपस में बातें करो। जब तक हम बुजुर्ग जरा अपने समय के किस्से सुने सुनाए।" लड़के का पिता हंसते हुए बोला।

खुशी और वह लड़का अब उस कमरे में अकेले ही थे।

कुछ देर की चुप्पी के बाद वह लड़का बोला "मैं, इतनी देर से देख रहा था कि आप कुछ परेशान सी हो। क्या मैं, आपकी परेशानी का कारण जान सकता हूं!"

खुशी फिर से ना सुनने की उसी तकलीफ के लिए साहस जोड़ते हुए बोली "अच्छा लगा कि आपने मेरे चेहरे से मेरे मन के भावों को जाना वरना आज तक जो भी आया वह मेरे चेहरे की खूबसूरती में ही उलझा रहा।"

"देखिए, इसमें तो दो राय नहीं। आप हो ही इतनी खूबसूरत।" वह लड़का मुस्कुराते हुए बोला।

"क्या आपको पता है, खूबसूरती कभी भी बेदाग नहीं होती। चाहे वह चीजों की हो, प्रकृति की या इंसान की!"

"मैं समझा नहीं! आप क्या कहना चाहती हो!" लड़का हैरानी से उसकी ओर देखते हुए बोला।

"मेरी खूबसूरती भी एक दाग लिए हुए हैं। जिसके कारण मुझे आज तक अनेक लोग ठुकरा चुके हैं और आप भी उन्हीं में से एक होने वाले हो!"

क्रमशः

सरोज ✍️