तलाश - 1 Sarvesh Saxena द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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तलाश - 1

भाग -1

रात के लगभग ढाईं बजे......

कमरे की खिड़की खुली थी जिससे ठंडी हवा का झोंका बार बार कमरे के अन्दर आकर कानों में अजीब सी खुसफुसाहट पैदा कर रहा था कि तभी बड़ी तेज कैलेंडर के फड़फड़ाने की आवाज आई तो बिस्तर पर लेटी दामिनी की आंख खुली, उसने जल्दी से उठकर देखा तो खिड़की के बाहर का नजारा देखकर थर्रा गई, उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आईं और फिर भी वो उठकर खिड़की की तरफ जाने लगी |

खिड़की के बाहर कई सारे लोग खड़े थे, उनके सबके चेहरे बिल्कुल सफेद थे, जैसे वो मर चुके हों, सारे के सारे दामिनी को घूर रहे थे, मानो वो चाहते नही कि दामिनी उनके बीच जिन्दा कैसे खड़ी है |

“ कौन हो तुम लोग? और यहां.....यहां मेरे घर के बाहर क्युं खड़े हो”? दामिनी ने डरते हुये कहा |

“ हम खो चुके हैं, हम खो चुके हैं..........” | ये कहकर वो सारे लोग जोर जोर से चिल्लाने लगे कि तभी उनमें से एक ने दामिनी का हांथ पकड़ा और बोला, “ चलो......मेरे साथ चलो” | इतना कहकर वो दामिनी को अपनी तरफ खींचने लगा, दामिनी अपना हांथ छुड़ाने के लिये जोर से चिल्ला पड़ी |

“दामिनी........दामिनी...... कब से आवाज दे रही हूं क्या कर रही थी” | यह कहते हुए मां दामिनी के कमरे में आई और दामिनी से बोली, “ लो मैं यहां आवाज लगा लगा कर मरी जा रही हूं और तुम शाम के समय सो रही थी, तबियत तो ठीक है ना तेरी” |

“ हां.... मां...मैं ठीक हूं...” | दामिनी ने बड़े ठंडे मन से जवाब दिया, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि वो ऐसा अजीब सपना देख रही थी, वो बिस्तर पर पड़े अखबार को पढ़ने लगी, जिसे पढ़ते पढ़ते उसे नींद आ गई थी|

“ इन्हें देखो.... अखबार में खोई हुई है, अरे ऐसा भी क्या अखबार में पढ़ रही है, चाय बनाती तो है नहीं तो कम से कम जब मैं बुला रही हूं पीने के लिए तो आवाज ही सुन लिया कर, जब ससुराल जाएगी न जाने कैसे इसका कटेगा” |

इतना कहते हुए दामिनी की मां शांति ने चाय मेज पर रखी लेकिन दामिनी अभी भी पेपर में खोई हुई थी, जिसे देखकर शांति कुछ उदास आवाज में बोली, “ हे भगवान.... क्या करूं मैं इस लड़की का मां” ?

वो कुछ और कहती कि इससे पहले दामिनी ने पेपर से अपना सिर हटाकर मां की ओर देखते हुए कहा, “ देखो ना मां....बेचारा ये बच्चा छह दिनों से लापता है, इसकी फोटो देख कर क्या आपको दुख नहीं लगता” |

मां ने दामिनी से अखबार लेते हुए कहा, “ बेचारा....... बात तो तू सही कह रही है, ना जाने किसका बच्चा होगा? कहां भटक रहा होगा? जिंदा होगा भी या नहीं? लेकिन होनी को कौन टाल सकता है”?

दामिनी बोली, “ ऐसा नहीं है मां.... होनी भी टाली जा सकती है बस कोशिश करने की जरूरत है” |

मां ने थोड़ा खीझते हुए कहा, “ अब ना तू अपना ज्ञान मत दे, तू क्यों इतनी परेशान होती है, मरने.. चोरी, डकैती और ना जाने कैसी कैसी खबरें के अलावा कोई अच्छी खबर आती भी है अखबार में, कोई नही पढ़ता, बस न जाने क्युं तू ही इस अखबार से तिलचट्टे की तरह चिपकी रहती है, अरे कोई फिल्म देख लिया कर, कुछ अच्छे गाने सुन लिया, कर कहीं घुम आया कर, खोई खोई रहती है, ला दे ये अखबार” |

यह कहते हुए मां ने अखबार उसके हाथ से छीन कर बेड के नीचे फेंक दिया | दामिनी ने गहरी सांस लेते हुए चाय पीना शुरु कर दिया और मां वापस किचेन में चली गईं |

वो अभी भी उस खोए हुए लड़के के बारे में सोच रही थी, “ हर रोज इतने लोग खो जाते हैं, मैं उनका चेहरा देखती रहती हूं, ये सोचकर कि क्या पता मुझे इनमें से कोई मिल जाये तो मैं उन्हें उनके घर पहुंचा दूं, लेकिन कभी ऐसा क्यों नहीं होता कि कोई खोया हुआ व्यक्ति कहीं आस-पास मिल जाए” |

यही सोच सोच कर दामिनी उदास होने लगी | चौबीस साल की दामिनी कुछ ऐसी ही थी, खामोश रहना, कमरे में अकेला रहना, समस्याओं और दुख भरी बातों को कुरेद कुरेद कर सोचना और लोगों के दुख को अपना समझ लेना उसकी खासियत थी और इस बात से उसकी मां शांति बहुत परेशान थी लेकिन फिर भी जिंदगी जैसे-तैसे चल रही थी |

कई बार उसके लिए मां बाप ने लड़के देखे लेकिन उसे कोई पसंद नहीं आया, उसे ऐसा लगता था जैसे ये सब शादी करके उसकी शांति छीन लेंगे, वो किसी के साथ खुश नहीं रह पाएगी, उसे ऐसा लड़का चाहिए था जो उसकी भावनाओं को समझे पर आज तक ऐसा लड़का उसे नही मिला |

तभी दरवाजे की घंटी बजी शांति ने जाकर दरवाजा खोला तो देखा दामिनी की सहेली कोमल सामने खड़ी थी |

मां ने खुश होते हुये कहा, “ अरे कोमल तुम.... चलो शुक्र है, तुम आ गई, वरना आज का दिन भी इसका ऐसे ही जाने वाला था और बताओ घर पर सब लोग ठीक हैं”?

कोमल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “ हां जी सब कुछ ठीक है” |

यह कहती हुई वह दामिनी के कमरे में चली गई |

कोमल जैसे ही कमरे में घुसी उसने खुशी से दामिनी को गले लगा दिया तो दामिनी भी मुस्कुराते हुए बोली, “ अरे..... अरे बस कर, ऐसी कौन सी लॉटरी हाथ में लग गई जो आज इतनी खुश है” |

कोमल मुस्कुराते हुए बोली, “ अरे.....लॉटरी लगने से भी बड़ी खुशी हाथ लगी है, पता है... मम्मी पापा आधार से शादी करने के लिए राजी हो गए और कल हम लोग आधार के घर जा रहे हैं, कितनी खुशी की बात है ना” |

कोमल की बात सुनकर दामिनी के चेहरे पर भी खुशी आ गई और उसने कहा, “ चल शुक्र है, तेरी लाइफ तो सेट हो जाएगी, वर्ना कहां आजकल किसी को चाहने वाला मिलता है” |

कोमल ने कहा, “ वह सब छोड़ और जल्दी से मेरे साथ चल, मुझे बहुत ढेर सारी शॉपिंग करनी है” |

दामिनी कुछ बहानेबाजी करती हुई बोली, “ यार.....”, लेकिन उसकी बात पूरी होती कि कोमल ने उसकी बात काटते हुए कहा, “ देख तेरा बहाना कोई नहीं चलेगा, यह बकवास चीजें न जाने कैसी किताबें, कैसी कहानियां और क्या-क्या पढ़ती रहती है, उसके लिए तो तेरे पास समय है लेकिन मेरे लिए नहीं, चलती है या........” |

उसकी बात पूरी हो पाती कि तभी कमरे में मां आई और बोली,

“ क्या.... तेरा रिश्ता तय हो गया, सच में भगवान बड़ी अच्छी खबर है, ना जाने भगवान मुझे ऐसा दिन कब दिखाएगा, तेरे मां बाप कितने खुश होंगे” |

“ बस भी करो मां, इसकी लव मैरिज हो रही है” | दामिनी ने कोमल की टांग खींचते हुये कहा |

“ हां तो क्या हुआ, नया जमाना है, तुझे किसने रोका है, शादी हो रही है बस, चलो तुम लोग बाजार जाओ” | मां ने नाराज होते हुये कहा |

कोमल और दामिनी बाजार चली गईं | कोमल के चेहरे पर मुस्कुराहट रुक ही नहीं रही थी लेकिन दामिनी के चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी, वह बस की खिड़की से बाहर लोगों को आते जाते देख रही थी तभी कोमल बोली, “ क्या बात है दामिनी? तू कुछ ठीक नही लग रही है, वैसे तेरी तो शक्ल ही ऐसी है” |

ये सुनकर दामिनी मुस्कुराते हुये बोली, “ तू बकवास बंद कर, चुप चाप बैठी रह” |

दोनों ने बाजार जाकर काफी सामान लिया जिसके बाद कोमल एक चूड़ी की दुकान पर चूड़ियां लेने लगी, उसने अपने हांथों में चूड़ियां पहनते हुये कहा, “ ये चूड़ियां कैसी रहेगीं दामिनी” |

जब पीछे से उसे कोई जवाब नही मिला तो उसने पीछे मुड़ के देखा तो दामिनी वहां नहीं थी | उसने यहां वहां हर जगह देखा लेकिन दामिनी का कहीं पता नहीं था | वह परेशान हो गई, उसने दामिनी को आवाज दी, उसका फोन लगाया लेकिन दामिनी फोन नहीं उठा रही थी | अब कोमल और परेशान हो रही थी |

करीब एक घंटे तक उसने दामिनी को ढूंढ़ा और फिर परेशान होकर उसके घर चली आई | जब मां ने यह बात सुनी तो वह और परेशान हो गई और जोर-जोर से रोने लगी |

“ पता नहीं उसको क्या हो गया है, आज तीसरी बार ऐसा हुआ है, जब यह बिना बताए कहीं चली गई, मुझे तो लगता है किसी ने इस पर कुछ झाड़-फूंक करवाई है, वरना बिना बताए लड़की अचानक कैसे यहां वहां चली जाती है” |

जब कोमल ने ये बात जानी तो काफी परेशान होकर बोली, “ ये क्या कह रही हैं आंटी जी, ऐसा दो बार पहले भी हो चुका है और फिर भी आप लोगों ने उसे डॉक्टर को नही दिखाया” |

कोमल ने दामिनी के पापा को फोन किया तो वह दौड़े-दौड़े ऑफिस से घर आए और दोनों लोग दामिनी को ढूंढने निकल गए| पूरा दिन हो गया लेकिन दामिनी का कोई अता पता नहीं था |

दोपहर से अब शाम हो चली थी, थक हार के जब वह लोग वापस घर आए तो देखा दामिनी अपने कमरे में थी | कमरे में पड़ी मेज पर अखबार खुला हुआ पड़ा था और वह एक गुमशुदा बच्चे की फोटो को एकटक देखे जा रही थी |

दामिनी के पिताजी चिल्लाते हुए बोले, “ क्या बदतमीजी है ये? दोपहर से हम तुम्हे ढूंढ के परेशान हो रहे हैं और तू यहां बैठी है, कम से कम एक फोन तो कर देती” |

उनकी बात पूरी होती कि तभी मां गुस्से में बोली, “ हम सबको परेशान देख कर इसे खुशी मिलती है, तू मार डाल हमें बस छुट्टी हो, कोई बात मानती नही और दुख अलग से देती है” |

मां कुछ और कहती इससे पहले दामिनी रोते हुये बोली, “ ऐसा कुछ भी नहीं है मां, मैं जब कोमल के साथ सामान खरीद रही थी तो मुझे यह बच्चा दिखा था और इसीलिए मैं उसके पीछे पीछे चली गई लेकिन.......” | वो कुछ आगे कहती कि पापा ने चिल्लाते हुये कहा

“ लेकिन क्या दामिनी.... हमेशा की तरह खाली हाथ ही लौटी ना, वह बच्चा नहीं मिला या फिर उसके पीछे भागते भागते वो बच्चा अचानक से गायब हो गया, न जाने कब तक यही मन गड़ंत कहानियां बताओगी तुम” |

“ बस करिये पापा..... जैसा आप सोच रहे हैं वैसा नहीं है, मैं सच कहती हूं मैनें उस बच्चे को देखा था लेकिन पता नहीं क्यों वो मुझसे डर कर भाग रहा था जबकि मैं तो उसको उसके घर पहुंचा देती” |

वो कुछ और कहती कि तभी मां ने मेज से वो अखबार उठाया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए और चिल्लाते हुए कहा, “ आज से इस घर में अखबार नहीं आएगा, मैं भी देखती हूं यह हमें कैसे परेशान करेगी” |

कोमल भी उसे दो चार बातें सुनाकर जाने लगी और जाते-जाते दामिनी के पापा से बोली, “ अंकल..... मैं दामिनी को कितने सालों से जानती हूं, कुछ तो गड़बड़ है, प्लीज उसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाइए, कहीं ऐसा न हो कि बात बहुत ज्यादा बढ़ जाये |

कोमल की बात दामिनी के मां पापा को ठीक लगी |

दामिनी अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर उससे ऐसा क्यों हो जाता है, वह हमेशा ही अपने परिवार को अनजाने में ही इतनी परेशानी दे देती है और जो लोग उसे दिखते हैं, वह आखिर उसके पास क्यों नहीं आते, उससे दूर क्यों भागते हैं, वह तो उन सबका भला चाहती थी लेकिन फिर भी यही सब सोचते सोचते दामिनी ने खाना भी नहीं खाया और सो गई लेकिन उसके मां-बाप को नींद नहीं आई |