उस दिन जबरदस्त शराब के नशे में मैं अपनी मोटरसाइकिल को तेजी से दौड़ाते हुए अपने किराये के कमरे की तरफ जा रहा था ।
मेरा नशा अपने चरम पर था, सर झन्ना रहा था, हाथ पैर भी झन्नाहट में और में ..मदहोश पर इतना होश था कि जल्द अपने कमरे पर जाऊ और कुछ नही ।
तभी अचानक ही मुझे यह समझ आया कि सड़कों पर लगातार लोगो का निकलना आम दिनों से ज्यादा और हड़बड़ाहट वाला होने लगा था ।
पता नही क्या हुआ था कि लोग कारो में ट्रको में रिक्शे में और तो और मोटरसाइकिल पर भी शहर से बाहर हाइवे पर निकलने की होड़ में लगने लगे थे ।
जिससे ट्रैफिक जाम की स्थितियों का मैं सामना करने पर मजबूर एक नशेड़ी बन गया था ।
मैंने होश संभालते हुए अपनी मोटरसाइकिल को रोका और बगल में ही एक परिवार जो कार में बैठा था उससे यू ही उत्सुकता से पूछ लिया ।
"अरे भाई साहब क्या हुआ आज इतने लोग कहा निकल रहे है?? कही कोई रैली - वेली है क्या ... ?"
पर गज़ब यह कि उसने अच्छे से सुनने के बाद भी जवाब नही दिया बल्कि आगे देख देख कर हॉर्न बजाए जा रहा था ।
तो मुझे भी उसका बर्ताव अलग समझ आया मेने यहां वहां देखा तो एक ऑटो वाला भी दूसरी साइड पर आ कर खड़ा था अब मेरी दूसरी बार भी इच्छा हो गई पूछने की मेने इसबार आटो वाले ड्रायवर को पूछा ।
""अबे क्या हो गया है ...इतना क्यो भगा जा रहा है और आगे कोई रैली है क्या ..क्यो ट्रैफिक लगा है ??
उस आटो ड्रायवर ने मुझे देखा और बड़े अजीब से झुंझलाहट में जवाब दिया
"" तुमको पता नही है क्या बे... ?
"मेने पूछा क्या?"उसने फिर बोलना शुरू किया ।
" अबे ...भाई अभी अभी सब जगह हर घर मे टीवी पर लाइव समाचारो में बोल रहेलाय कि साला अभी पिने के पानी की कमी के कारण दुनिया भर में लड़ाई शुरू हो गई है और अब चीन ने हमारे देश पर भी हमले शुरू कर दिए है जल्द ही मिसाइल यहां गिरने की संभावना से शहरी इलाके खाली करने का अनाउंस हो गया है ...।
आगे देखते हुए उसने फिर मुझे पलट कर कहा ।
"अगर जान बचानी है भिडु तो दूर दराज के जगह ढूंढ लो नही तो कभी भी इस जंग में मारे जाओगे समझे. जल्दी दे निकल ले ....""
उसकी बातों को सुनकर शरीर मे दौड़ता रम का नशा उतरता हुआ महसूस होने लगा।
पर यकीन अब भी नही हो रहा था कि एक घंटे पहले मैं आराम से इसी शहर से घूम फिर कर आया हूं और सिर्फ एक घंटे में यह क्या सुन लिया ।
खैर फिर यह वहां नजर दौड़ाई महामेहनत के बाद सड़क पर जहां तहां लोगो मे अफरा तफरी देख ।
उस आटो वाले कि बातो पर थोड़ा भरोसा होने लगा था ।
पर फिर भी अपने ऑफिस के एक मित्र राजेश को फोन लगाने की सोचकर मोबाइल जेब से निकला तो मोबाइल में नेटवर्क काफी कमजोर दिखाई दिया।
जिसे अनदेखा कर फोन लगाया दिया । सामने रिंग गई और कॉल उठाया मेरे मित्र राजेश ने
""हा भाई ऋषि तुम कहा हो?..
मेने उसको पूछ लिया ।
"ये जंग वाला क्या है सब शहर के ...लोग।
मेरी बात काटते हुए उसने तुरंत जवाब दिया ।
"हा हा सही बात है अभी में भी शहर से काफी दूर आ गया हूं जंग छिड़ी गई है ...तुम भी जल्दी सेफ जगह जाओ या इधर मेरे पास आ जाओ….बड्डामममममममगद्दामम्मम्म...।
में उसकी बात नही सुन पाया आगे पर जोरदार आवाज के बाद कनेक्शन कट गया ।
अब मुझे यककिन हो गया कि वाकई जंग छिड़ी गई है और अब यह 3सरा विश्वयुद्ध हो सकता है ।
मेने आगे पीछे देखा अब तक मेरी शराब का नशा भी मुझसे गायब हो गया था ।
आखो के सामने अपनी जान बचाने के अलावा कोई रास्ता समझ नही आ रहा था कि ट्रैफिक तभी हल्का हो गया और मुझे एक साइड खाली सड़क दिखी पर यह शोर्टकट था मेरे लिए भले यह कच्चा रास्ता था मेने इसिपर अपनी मोटरसाइकिल मोड़ दी और एक्सीलेटर को पूरी ताकत से घुमादिया था ।
काफी देर इस कच्चे सड़क पर यहां वहां घूमने के बाद में शहर के बाहर तो निकला पर अब भी अपने कमरे से दूर था कि तभी मेरा दिमाग़ काम कर गया मेने सीधे वह रास्ता ढूढना शुरू किया कि जो सुनसान हो और जल्द मुझे मिल गया ।
कुछ मिनट में ही में अपने किराये के कमरे वाली बिल्डिंग के पास था और फिर एक तेज आवाज कानो से टकराती हुई आई ..आवाज इतनी कर्कश थी कि मैने अपनी मोटरसाइकिल रोक अपने दोनों कानो को हाथों से जोर लगाकर दबाया और आसमान की तरफ सर उठा कर आँखे खोली तो एक फाइटर प्लेन को तबाही का एक मिसाइल मेरी नजरो के सामने ही सर के ऊपर से गुजरता देखा ।
वह मिसाइल करीब मुझसे आधा किलोमीटर दूर कही गिरा और धमाके की तेज आवाज फिर से गूंजने लगी । मोटरसाइकिल छोड़ अब में अपनी बिल्डिंग की तरफ दौड़ लगा दी पर अचानक ही मेरे कानों में धमाके की आवाज आई और फिर कान सुन्न हो गए ।
आखो ने बड़ी आग की लपटें देखी और फिर अंधेरा छाने लगा था।
मुझे कुछ भी समझ नही आया मै दौड़ना चाहता था ।
पर अपने शरीर के किसी भी अंग को हिला तक नही सका बस अब कानो में शांत की सु सु सु की आवाज और आखो के सामने अंधेरा छाने लगा मुझे एहसास हो रहा था कि शायद में भी किसी ब्लास्ट के चपेट में आया था ।
और अगल बगल बची खुची आखो की रोशनी में दिवलो का मलबा गिरने के साथ मेरी आँखें भी बंद हो गई थी ।
ना जाने कब तक मैं ऐसे रहा मुझे नही पता।
मैं जिंदा हु या नही यह भी अहसास नही हो पा रहा था । तभी किसी ने मुझे जगाया धीरे धीरे मेने आँखे खोलने की कोशिश की मुझे अब जाकर यक़ीन हो गया मैं जिंदा हु पर अब भी यह नही पता कहा था की मेरे शरीर का कौन सा हिस्सा सही है।
या अब में अपंग ,लूला लंगड़ा तो नही हो गया था ,?
ढेर सारे शक़ दिमाग मे भयानक विचार कुलबुलाने लगे थे।
आँखे खुलने लगी यह अंधेरे से भरी एक जगह दिखाई दी थी।
शायद शहर का कोई हिस्सा है जहां किसी ने मुझे बचा लिया था ।
फिलहाल आँखे खोलने के बाद इस जगह मुझे अहसास हो गया था कि यह एक कमरा था जो अभी कुछ बचा हुआ था।
रात ढल गई थी और अंधेरा हावी हो गया था ।
पर आसमान में उड़ते फाइटर प्लेन की आवजे लगातार आ रही थी शहर के इमर्जन्सी के सायरन भी बजने की आवाज कानो में हल्की सी सुनाई दे रहे थे ।
तभी मेने देखा कि दीवार में एक जगह के पीछे से खिड़की थी।
जिसपर कपड़ा लगाकर उसे बंद किया गया था ।
मुझे बाहर देखना था पर शरीर अब भी मैं हिला नही पा रहा था ।कि सामने से एक 27 से 28उम्र की युवती अपने हाथ मे एक ग्लास ले आते दिखाई दी उसने मुझे देखा और मैने भी उसने मुझे आते हुए धीरे आवाज में उस समय कहा ।
" तुम अभी ठीक हो ..पर अब हम यहां फस गए है और बाहर मौत है बाहर निकलते ही शायद हम मारे जाएंगे …
उसकी तरफ देख मेने उसे गर्दन हिलाकर सिर्फ इतना कहा " हा.. कौन हो तुम ?..
उसने मुझे देखा और अपना ग्लास का हाथ मेरी तरफ करते हुए बड़े धीरे से कहा ।
"लो पानी पी लो..तुमको अच्छा लगेगा ।
मुझे प्यास तो लगी थी पर मैं अपना कोई भी शरीर का हिस्सा हिला ही नही पा रहा था जिसे उसने समझ लिया और नजदीक आ कर मुझे पानी पिलाने लग गई ..मैं साफ देख सकता था शायद वह बहौत रोई थी और उदास चेहरा उसकी हकीकत बयान कर रहा था । मैंने थोड़ी हिम्मत कर अपनी गर्दन उठाई और पानी पीने के बाद उसको पूछ लिया ।"तुम्हारा नाम क्या है?..
उसने ग्लास वही साइड में रखकर दीवाल पर पीठ लगाकर बैठ गई और मुझे जवाब दिया ।
"सिम्मी..सिम्मी ।
उसका नाम सुनकर मेने उसको फिर बात करने की कोशिश की तब उसने बिना पूछे ही बताना शुरू किया ।
"तुम मुझे बिल्डिंग के मलबे के नीचे फसे हुए बेहोशी में दिखाई दिए थे तुम्हारे अंदर जान बाकी थी इस लिए तुमको जैसे तैसे वहां से निकलकर में यहां लाई हु ..पर अफसोस इस शहर के हिस्से में अब कोई जिंदा इंसान तुम्हारे बाद मुझे नही मिला है ...तुम्हे यहां मेने तीन दिनों पहले ही लाया था और आज में तुमको भी छोड़कर जाने वाली थी कही सुरक्षित जगह पर पर तुमको होश आ गया और तुम्हारे लिए मेने पानी लाया ..अब इसके आगे तुम होश में आ गए थे.।
खैर सिम्मी दिखने में ठीक थी 5 फुट से ज्यादा उची भी उसकी ड्रेस जो उसने पहन रखी थी वह डॉक्टर जैसी थी शायद उसने किसी की पहनी हो ,जिसपर अब धूल मिट्टी के धब्बो के निशान थे मतलब यह कि यह जगह अब भी तीन दिनों के बाद भी सेफ नही थी ।
मैं हैरान था कि इस लड़की ने मेरी जान क्यो बचाई जबकि मैं इसे नही जानता और यह मुझे नही जानती । बस इतना समझ आया कि सिम्मी में इंसानियत ही थी बस अब मुझे कैसे भी अपने शरीर को चलने फिरने लायक जल्द करना था।
पर पता नही क्या हुआ था और कहा चोट लगी थी जो अब में होश में आ रहा था ।
तो पूरा शरीर दर्द के मारे भर गया था शायद बेहोशी का यह इफेक्ट था । सिम्मी चुपचाप मेरे हावभाव को देख रही थी कि कैसे क्या में कर रहा हु पर एकदम चुप चाप । दर्द को सहन करने की कोशिश करते हुए मैं जैसे तैसे दीवाल का सहारा लेकर लेटे हुए बैठ गया और सिम्मी से कहने लगा ।
मेरा नाम ऋषि है में यहां एक एडिटिंग कंपनी में काम करता था पर उस दिन अचानक ही….। और मुझे इतना कहने के बाद दर्द होने लगा तो मेरी बात आधी ही रह गई जिसको सुनकर सिम्मी ने कहा ।
किसी को पता नही था यह अचानक ही जंग का एलान हो गया था ..मैं बस में बैठी थी अपने गाँव जाने के लिए ...पर आधे रास्ते मे ही फाइटर प्लेन उड़ने लगे और बस पलट गई ..में जान बचाने के लिए यहां इस बिल्डिंग में आ गई पर इस बिल्डिग से सभी लोग पहले ही खाली कर निकल गए थे और उसके थोड़ी देर बाद ही यहां नजदीक ब्लास्ट हुआ जिसमे इस बिल्डिंग के ऊपरी हिस्से में काफी नुकसान हुआ है ..मेने देखा तुमको तुम दीवाल के मलबे में थे पर जिंदा ..
उसकी बात सुनकर मैं डर गया था जिस बिल्डिंग में अभी मैं था उसका ऊपरी हिस्सा भी गिर गया था यह सोचकर मेने सिम्मी को कहा ।
" तो चलो इस बिल्डिंग से दूर कही यह गिर ना जाए हमारे ऊपर...।
सिम्मी ने मुझे बड़े ही दयनीय भाव से देखा और कहा ।
""गिर तो सकती थी …. नही ऋषी यह पर बिल्डिंग गिर चुकी है ….और हम इस वक्त इस बिल्डिंग के अंडरग्राउंड पार्किंग के एक हिस्से में है ।..बस दुआ करो सुबह 4 बजे तक जिंदा रह जाए तो यहां से निकल सकते है अभी निकले तो कोई गेरेन्टी नही की आधा किलोमीटर भी जिंदा पहुँच जाए कही..।
इतना कहते हुए सिम्मी ने गहरी सांस खिंची और शांत हो गई थी ।
उसकी बातें सुनते ही मुझे अहसास होने लगा कि भाई यार बेहोशी में जाने की बजाय मारा गया होता तो शायद अच्छा था । इतना सोचकर ही पूरे शरीर के दर्द के आलम में भी सिहरन होने लगी दिमाग मे जिंदा कैसे बचूं इसकी तिकड़म लगाने की सूझने लगी थी ।इसी उधेड़बुन में मैने सिम्मी से टाइम पूछा ।
"सिम्मी क्या तुमको पता है अभी कितना बजा है ?..
सिम्मी ने उठकर मेरे पीठ के पीछे हाथ डाला और एक मोबाइल बाहर निकल कर उसे देखते हुए कहा।
"10 बजा है ।"..
मै उसे देख रहा था तब उसने मोबाइल दिखाते हुए कहा ।
"यह तुम्हारा ही मोबाइल है..तुम्हारी जेब से मेने निकाला था कि किसी को फोन करू पर मोबाइल टावर भी इस हमले के चपेट में आने से जल्दी टावर नही मिल रहा है ।..और इसको तुमने लोक भी किया है इस लिए तुमको होश आने का इंतज़ार कर रही थी …."।
अब सिम्मी भले मोबाइल पर किसी से कॉन्टेक्ट करने के लिए या यूं कहें मोबाइल का पासवर्ड के लिए मुझे बचाया था
यह बात मेरे खोपड़ी में उतर गई पर हकीकत तो यह थी कि जिंदा बचा था बस उसकी वजह से यह सत्य था ।
सिम्मी ने मेरा मोबाइल मुझे दिया और मैने उसका पासवर्ड डालकर उसे खोल दिया था मोबाइल खुलने पर सिम्मी ने तुरंत के तुरंत इमर्जन्सी नबर डायल किए एक बार दो बार पर नेटवर्क ही नही था थक हार कर फिर मोबाइल मेने उठाया ओर वही किसी को कॉन्टेक्ट करने की कोशिश सब नाकामियाब रही ।
अब मुझे होश में आये तकरीबन 3 घंटे बित चुके थे रात के 1 बज गए अब आकाश में फाइटर प्लेन की आवजे भी काफी देर बाद और दूर आने लगी शायद इस जगह को बर्बाद देख अब कोई दूसरी जगह टारगेट की जा रही थी और यह हमारे लिए एक मौका था ।
जगह बदलने का और किसी सेफ साइड जाने का मौका देख सिम्मी दीवाल में बनी खिड़की का कपड़ा जरा सा हटाकर बाहर कुछ देख रही थी कि उसने मुझे हाथ से इशारा कर नजदीक बुलाया मै लडख़ड़ाता हुआ अपने शरीर के दर्द को लेकर जैसे तैसे वहां पहुचा और बाहर देखने के लिए हल्का कपड़ा खिंचा अब बाहर का वह बर्बाद नजारा देख बची हुई शक्ति भी मेरी जवाब देने लगी पर जीना जरूरी था ।
कुछ देर यू ही हम दोनों बाहर चुपचाप देख रहे थे कि मेरी नजर कुछ दूर एक दो मंजिला बिल्डिंग पर गई ।
हालांकि मलबे के वजह से और लाइट नही होने से पहचानना मुश्किल ही था।
पर मैं अपने मकान को कैसे नही पहचानता वह मेरा वही किराये का मकान था जो 3 दिन पहले शाम को में शराब के नशे में जल्द पहुचने को आतुर था ।
मेरी आँखों मे अब चमक आ गई मेने सिम्मी को धीरे से कहा ।
"सिम्मी ..हमको सेफ साइड मिल गई..
और अपने कमरे की उसी बिल्डिंग की तरफ उंगली से इशारा करते हुए उसे दिखकर कहा ।
यह..य मेरी बिल्डिंग है..मेरा घर इसमें ही है ...दो मंजिला है और अंदर एक जनरेटर भी है ...इसे ज्यादा नुकसान नही हुआ है ।
और बाजू की बिल्डिंग का मलबे का कचरा उसपर गिरने से उसकी जगह पर कोई बिल्डिंग है ऐसा किसी को पता नही चल सकेगा….।
मेरी बात सुनकर सिम्मी ने सोचते हुए कहा ।
"नही वहां जाना अपने आप मे खतरनाक है देखो कैसे आजूबाजू की बिल्डिंग का टूटा कचरा उसपर गिरा है ...।
उसे शायद डर लग रहा था पर अब 3 दिनों बाद मुझे होश आया था और मैने इन 3 दिनों में सिर्फ अभी एक ग्लास पानी पिया था ।
मुझे भूख भी लग रही थी और मुझे पता था कि अगर मैं अपने कमरे में चला जाऊं तो कुछ काम बन जाएगा ,कमसकम खाना और आराम के लिए ।
औऱ तभी बाजूवाली बिल्डिंग की एक्साइड की दीवार भरभराकर मेरे मकान की बिल्डिंग के पास ढहने लगी जिसे देख सिम्मी मुझे देखकर बोली ।
"अच्छा हुआ तुम्हारी बात में आकर वहां नही गए ..नही तो अभी दोनो के ...।
उसकी बात सुनकर मैं बस चुप रहा ।
दोनो फिर अपनी जगह पर बैठ गए समय गुजर रहा था और अब मेरा शरीर भी में हिला डुला सकता था और एक दो कदम यहां वहां चल पा रहा था ।
मुझे देखकर सिम्मी ने भी खामोशी में ही सही ऊपर वाले का धन्यवाद किया ।
जिसे में बखूभी समझ भी गया था ।
अब मेने सिम्मी से बात करनी शुरू की ।
"यहां तुम भी 3 दिनों से हो भूखी सिर्फ पानी पर तीन दिन कैसे बिताए मै तो बेहोश था सो मुझे कोई भूख नही लगी पर तुम ने कैसे किया…
सिम्मी ने कहा ।
" जब मैं इस बिल्डिंग में आई थी तब यह से सब लोग घर जैसे तैसे छोड़ कर भागे थे मेने सब घरो में देखा कही कुछ मिला कही ब्रेड के पैकेट तो कही सिंग,कही नमकीन मेने सब जमा कर लिया पर तभी यह ब्लास्ट होने लगे मै समय रहते सब समान लेकर नीचे आ गई और इस बिल्डिंग के पानी का एक नल यहां पार्किंग में भी है उसी से काम चला रही हु...।
मुझे जितना लगा कि सिम्मी सीधी सिम्पल थी बाह उतनी ही बुद्धिशाली भी निकली ।
पर अब इन 3 दिनों में उसके पास भी खाना खत्म था बस पानी ही एक जीने के लिए सहारा था ।
ऐसे परिस्थितियों में मुझे कुछ समझ नही आ रहा था क्या करूँ कैसे करूँ ।
बात तो यह भी थी कि हमको पता ही नही चल रहा था कि जंग कौन लड़ कर जीत रहा था या कौन पीछे हट रहा है ।
केसी स्थिति है और क्या अब सामान्य होंगे हालात ।
मेरी हालत तो ऐसी की अभी भी मुझे सामने 300 फुट पर अपना घर दिखाई दे रहा था और सिम्मी को यही घर खतरा लग रहा था ।
अब लागातार टाइम भी ज्यादा हो रहा था और मुझे घर जाने की इच्छा भी ।
कुछ देर मै और सिम्मी एक दूसरे के साथ यू ही दूरी बनाकर चुप बैठे रहे और मैने महसूस किया कि सिम्मी शांत हो कर नीद में जा रही थी ।
दीवाल से सटकर दिनों बैठे थे इस लिए बैठे बैठे सिम्मी सोने लगी थी ।
उसे देख उसपर मुझे अपने ही किसी परिवार के सदस्य की तरह दया आने लगी थी ।
मैं यह सोचने लगा कि बेचारी कैसे मुझे वहां से यहां तक लाई होगी मै 80 किलो का 6 फुट ऊँचा तगड़ा इंसान ओर यह बेचारी एक युवती खैर उसे बहौत बहौत शुक्रिया आभार देने का मन था ।
वह नींद में थी इस लिए आँखे बंद कर शांत हो गई थी यह देख में भी ज्यादा आवाज ना करते हुए चुप चाप अपने मोबाइल को देखने लगा तब पता चला कि इस सब सोच विचार करते करते यह पता ही नही चला बाहर बिल्कुल शांत माहौल हो गया ना किसी ब्लास्ट की आवाज और नही किसी फाइटर प्लेन की आवाज़। बस मैं और सिम्मी इस बिल्डिंग के अंडरग्राउंड पार्किंग के इस बचे हुए हिस्से में थे हालांकि अब मोबाइल से अँधेरे में थोड़ी लाइट थी मेने मोबाइल की टार्च आन कर दी अब सिम्मी सोई थी ।
और टार्च की लाइट से मैने थोड़ा उजाला कर दिया जिसमें सिम्मी को भी देख रहा था।
कि तभी मेरे राइट साइड में जहां कुछ दूरी पर सिम्मी बैठी थी वहां से कुछ गीलेपन का अहसास होने पर मैने अपने हाथ से वहां जमीन पर छुआ और हाथ मोबाइल की टार्च की रोशनी पर ले गया ओह्ह मेरे हाथ को जैसे टार्च की रोशनी में ले गया वैसे ही मेरी कुछ उंगलियों पर खून के लगे होने से काफी घबराया ।
और जल्द अपने आप को चेक करने लगा था पर जल्द ही पता चल गया वह मेरा खून नही था।
दरसल टार्च की रोशनी में देखने के बाद पता चला कि सिम्मी जहां बैठी है वही से वह खून बहकर आया था ।
जिसको देख मेने तुरन्त ही सिम्मी को धीरे से नींद से जागने के लिए आवाज लगाई ।
"सिम्मी.."
उसे अब जरा हिलाकर देखा पर उसका कोई जवाब नही आया ।
अब मेने दुबारा उसे हिलाया तब मुझे पता चला कि वह तो बेहोश हो चुकी है ।
और अब तक मैं यही सोच रहा था कि वह शांत नीद में है । मेरे सामने अब वह थी जिसने मुझे बचाया ,औऱ अब मेरी बारी थी ।
कि कैसे भी कर के उसे बचाओ जिसने मुझे बेहोश होने के बाद 3 दिन तक सुरक्षित जगह लाकर मेरी जान बचाई ।
सर दर्द से फटने लगा था क्या करूँ क्या नही कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर कैसे इसको बचाऊ मै ।
मुझे याद आया कि सिम्मी ने कहा था कि पार्किंग में एक नल है पानी का और में वहां जिस ग्लास से मेने पानी पिया था वह ग्लास ढूढ़ने लगा जल्द वह मिल गया और में मोबाइल के टार्च की रोशनी में पार्किंग के अंदर नल ढूंढने निकल गया ।
घुप्प अंधेरे में काफी देर बाद नल मिला मेने वहां से ग्लास भरा पानी का और जल्दी जल्दी चलने की भरचक कौशिक कर सिम्मी के पास पहुँच गया और उसके चेहरे पर पानी की कुछ बूंदे छिड़कने लगा पर कोई फायदा नही हुआ ।
अब ग्लास साइड में रखकर सिम्मी को देख अपनी पूरी जिंदगी में कभी इतना असहाय ,और दुखी महसूस नही हुआ था जैसा सिम्मी को देख मुझे हो रहा था ।
पता नही कब आखो से आंसू आ गए और कब बहने लगे पर मेरे मुह से आवाज नही निकल राही थी ।
हिम्मत कर एक बार फिर सिम्मी का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा हो उसे उठाने की कोशिश करने लगा था ।
इस बार मेरी मेहनत रंग लाई सिम्मी ने सांस खिंची और होश में आ गई थी मेने तुरन्त पानी का ग्लास उठाया और उसके होठो पर सटाकर उसे पीने के लिए इशारा किया ।
सिम्मी ने धीरे धीरे दो घुट पिए थे अब वह होश में तो आ रही थी पर मुझे लागरहा था कि वह कमजोर भी हो रही थी ।
इस लिए जबरन उसे पानी के कुछ घुट पिलाकर होश में लाने की कोशिश करने लगा था कुछ ही देर बाद सिम्मी मुझे बात करने लगी ।
जिसको देख में अब खुश हो गया । अब सिम्मी को मैने कहा ।
"सिम्मी तुम्हे कुछ चोट लगी है जिसमे से खून बह रहा है ...देखो मेरी बात सुनो ...इसका इलाज करना होगा पर उसके लिए मुझे वहां मेरे बिल्डिंग तक जाना होगा ….और मेरे घर मे काफी बैंडेज पट्टियां और घाव पर लगाने के लिए दवाइयां है जिन्हें में अक्सर रखता हूं ..।
बस तुम सोना मत ..में अभी जा कर ले आता हूं ।
जब यह बात में सिम्मी को बता रहा था तब भी सिम्मी आधी बेहोशी में जा रही थी और यह मुझे दुख हो रहा था ।
पता नही कैसे इस समय मुझे अपने खुद की लगी चोट और शरीर के दर्द का मानो असर ही नही हो रहा था ।
मुझे नही पता कि केसी ताकत थी वह पर में एक पैर से लगड़ाते हुए उस पार्किंग से बाहर आया और आगे तबाही का मंजर देख हिम्मत खत्म होने लगी थी ।
ठीक इस समय पीछे पलट कर देखा तो वह पार्किंग वाली बिल्डिंग और सिम्मी का उम्मीद से भरा चेहरा भी सामने आने लगा था ।
मेने भी अब यह पक्का कर लिया जो होगा सो देखा जाएगा । सिम्मी ने मेरी जान बचाई है तो में भी उसकी जान किसी भी कीमत पर बचाऊंगा ।
और बड़ी मेहनत से लंगड़ाते पैर से आगे बढ़ने लगा था । बाहर का नजारा ऐसा की किसी भूकंप के बाद उजड़े बिल्डिंगों में खाली सुना अंधेरे के वह पल मुझे आज भी याद है जो सीधे नर्क का दर्शन करवाने को आतुर थे ।
पूरे इलाके में ही नही शहर भर अंधेरा और दूर फायरिंग की आवजो के बीच मे लगातार 300 मीटर के इस अंतर को हजारों किलोमीटर का अंतर के समान ही काट रहा था ।
यह 300 मीटर कभी सोचा नही था कि इतने भयानक होंगे । लगड़ाते हु अब मैं इस 300 मीटर की लगभग आधी दूरी तय कर चुका था कि अचानक ही आसमान में फाइटर प्लेन की आवाज ओर आवाज के बाद सिर्फ 70 फुट ऊपर से तेज प्लेन गुजरा था ।
इसकी वजह से अब मेरा पूरा शरीर ही ठंडा पड़ गया था मानो की मौत पक्की हो गई पर शायद मैं नजर ही नही आया उस प्लेन में बैठे स्नाइपर को इसी लिए वह तेजी से निकल गया ।
उबड़ खाबड़ मलबे से निकलकर आखिरकार मेरी बिल्डिंग मेरे सामने थी जो दो मंजिल की थी और अब में जल्द अपने कमरे में जाना चाहता था इसी हड़बड़ी में तेज चलने के चक्कर मे पैर फिसल गया औऱ गिरी हुई दीवाल के मलबे के अंदर एक सलिया जो लोखड़ का था ऊपर मेरा लेफ्ट बांया हाथ जा पड़ा जिससे सलिया हाथ की हथेली में अंदर तक धंस गया था ।
और यह इतना ज्यादा दर्द था कि मै सहन नही कर सका हालांकि में आवाज नही करना चाहता था पर फिर भी मेरे मुँह से घुटी -घुटी सी चीख निकल गई थी और हाथ से सलिया निकलते समय भी यही हालत हो गई थी ।
पर जल्द मुझे अपने घर की सीढ़ियां दिखाई दी और यह दर्द में भूल गया ।
मेरा कमरा नीचे ही था 4 सीढियो के बाद में पहुच ही गया था आखिरकार अपने कमरे तक जहां आने मै आज से 3 दिनों पहले निकला था औऱ अब पहुँचा था ।
घर का दरवाजा बंद था मेने ही इसिपर ताला लटकाया था जिसकी अब चाबी मेरे पास नही थी ।
मेरे हाथ मे चोट भी अब लग गई थी इस लिए एक हाथ से वही पड़े एक ईंट को उठाकर मैने अपनी पूरी ताकत से ताले पर दे मारी और ताला टूटा घर मे अंदर जाते ही आश्चर्य मेरा कमरा जैसा छोड़ा था वैसा ही साफ सुथरा था सबसे पहले में किचन में गया और जी भर कर पानी पीने लगा मेने अपने मुह पर भी पानी मारा बहौत सकूँन आया था ।
पर जल्द मुझे सिम्मी की याद आई और में अपने आलमारी को खोलकर मेडिसीन बॉक्स को ही उठा लिया और फिर से 300 मीटर दूर उस पार्किंग की तरफ निकल गया था जहां सिम्मी थी ।
इस बार मैं जोश में था ,मेरे पास दवाइयां थी और में अपने घर भी गया था मुझे उम्मीद हो गई थी कि अब सिम्मी को भी में बचा सकता हु और इसी उम्मीद और जोश में मैं यह भी भूल गया कि कैसे आते समय एक फायटर प्लेन सर के ऊपर तक आ गया था और मै बालबाल मरते बचा था ।
अब यह 300 मीटर भी 3 मिनट में कब खत्म हो गया कब मै अपने लगड़ाते हुए पैर और घायल हाथ के साथ अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुँचा यह समय का अंदाजा नही लगा सकता पर पता ही नही चला था ।
शायद मेरे अंदर के डर को कही ना कही मेरे उत्साह ने दबा दिया था । अंदर जाते ही मोबाइल की टार्च के उजाले में मैने सिम्मी को देखा जो लगभग अब अपनी आँखें बंद ही करने वाली थी ।
और मैं पहुँचा ।
"सिम्मी मै आगया हु मेने दवाइयां लाई है और कुछ खाने को ब्रेड भी….सिम्मी….बस 5 मिनट हिम्मत रखो...जल्दी ठिख हो जाओगी ...।
मै अपनी घुनकी में सिम्मी को बात कर रहा था और साथ ही एक ब्रेड का टुकड़ा उसके मुह में देते हुए उसे खिलाने लगा इस समय सिम्मी भी उस टुकड़े को हल्के से चबाने लगी और दो घुट ग्लास से पानी मेने उसे पिलाया ।
जल्दी जल्दी मेडिसीन बॉक्स से एक पेनकिलर निकली उसे मेने खिला दी और डेटोल से उसके कमर पर लगे घाव पर लगाने के लिये जैसे ही उसकी ड्रेस के अंदर हाथ डाला था इतनी बेहोशी में भी सिम्मी ने जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था लेफ्ट गाल पर ।
हाय रे किस्मत बस ऐसा ही लगा अब लेफ्ट हाथ घायल राइट लेग घायल अब बस लेफ्ट का यह गाल भी गया ।
कुछ सेकंड सब सुन्न हो गया पर तभी सिम्मी बेहोश हो गई जिसके बाद मेने उसके ड्रेस का वह हिस्सा ऊपर किया और अच्छे से साफ कर वहां दवाई लगाकर पट्टी कर दी ।
औऱ उसके बाद मुझे अपने हाथ की याद आई अपने बांये हाथ को भी मेने फिर साफ किया और पट्टी करने के बाद कुछ मिनट शांत वही दीवाल पर टेका लगाकर बैठ गया और सिम्मी को बस एक तक देखता रह गया था ।
रात आगे बढ़ रही थी अब 3 बज चुके थे और में भी थक गया था ।
पर अपने कमरे में जाकर आया था मेरा घर कमरा अभी भी काफी अच्छा था ।
कुछ देर यही सोचने में लगा दिए कि सिम्मी को यही छोड़ मै अपने बिल्डिंग की तरफ चला जाऊं सकूँन से रात बिताऊँ और सुबह वापस सिम्मी के पास उसकी तबियत देखने आ जाऊंगा यह मेरा फैसला था ।
अब मेने कर लिया था इस लिए में उठा अपना मेडिसीन का बॉक्स उठाया और दो कदम ही आगे चला कि जिस दीवार के सामने की दीवार जहां पीठ सटाकर में बैठा था वह अचानक ही आधी टूट गई पर सिम्मी बेहोश थी वह हिली तक नही नसीब से बच गई थी ।
उसकी हालत देख मैं दुविधा में फस गया क्या करूँ और कैसे करूँ ।
गौर से सिम्मी को देखा वह माध्यम शरीर की थी अब उसके वजन का अंदाजा लगने लगा सोचा कमसे कम 50 किलो की होगी ।
अब दिल कहता था उसे मत छोड़ दिमाग कहता था तो अकेला निकल मेडिसिन बॉक्स नीचे रखा औऱ सिम्मी जहां बेहोश थी उसे मेने अपने कंधे पर उठा लिया एक हाथ ही काम कर रहा था इस लिए ओर अब एक हाथ से मेडिसिन बॉक्स ले लिया बायां हाथ से सिर्फ सिम्मी को अपने कंधे पर बने रहने के लिए स्पोर्ट दिया औऱ फिर क्या लगड़ाते हुए अपने 300 मीटर दूर बिल्डिंग के लिए निकल पड़ा था ।
जैसे तैसे हांफते हुए घर के दरवाजे पर पहुचकर दरवाजा खोल दिया और सीधे अपने बेडरूम की दिशा में अंदाजे लगाकर चलने लगा यहां भी लाइट नही थी बस अंदाजा ही लगा रहा था ।बेड पर सिम्मी को सुलाकर अब में वही निचे साइट पर बैठ गया था ।
इस 300 मीटर ने मुझे हद से ज्यादा थका दिया था पर सकूँन यह था कि सिम्मी भी मेरे कमरे में थी और में भी । कितना समय बिता नही पता आँख खुली तब जब एक सायरन की हल्की आवाज कानो में गूंजने लगी थी ।
हड़बड़ाहट में मोबाइल तलाश करने लगा शायद कही रह गया था पर यहां वहां देखने पर भी नही मिला ।
फिर से ढूंढ़ना शुरू किया तब एक बार मेडिसिन बॉक्स में हाथ डाला और मोबाइल मिल गया था ।
लोक खोला तो सुबह 4 बजे थे और सिम्मी ने कहा था कि सुबह 4 बजे तक शायद जंग रुक जाएगी ।
अगर रुक गई तो विश्वयुद्ध 3 भी नही होगा और लाखों करोड़ों निर्दोष लोगों की जान बच जाएगी ।
यह मुझे याद था सिम्मी ने मुझे होश में आने के बाद यह कहा था ।
मेरी इस बिल्डिंग में एक जनरेटर था जो पावर कट होने पर हम इस्तेमाल करते थे यह मेरे दिमाग मे आया और अब जब 4 बज गए है तो जनरेटर चलुंकरने में कोई हर्ज नही इस तरह सोचकर मै उठ खड़ा हुआ और कमरे से बाहर सीढियो के साइट में जनरेटर का वायर का बटन ढूंढने निकल गया था जल्द ही वह मुझे मिल गया था और उसे चालू करते ही मेरी पूरी बिल्डिंग में लाइट शुरू हो गई थी जिससे मैं घबरा गया और तुरंत उसे बंद किया अब यह समझ आया कि पहले सभी दूसरे घरो का कनेक्शन काटना होगा ।
मेरा कमरा नीचे था और ऊपर जानेवाले वायरस मेरे ही कमरे के पास से थे इस लिए अब मैने किचन से छुरा लेकर वायर काट दिए और घर की लाइट बंद कर दी अब दोबारा जनरेटर का बटन दबाया था और बिजली अब मेरे कमरे में आ गई थी ।
दरवाजा बंद कर मेने बस सुरक्षा के लिए मेने लाइट आफ कर दी पर अंदर बेडरूम में सिम्मी जहां बेहोश थी वहां सीलिंग फैंन चालू कर दिया नसीब से सीलिंग फेन आवाज नही कर रहा था तो अब अपने मोबाइल को भी चार्जिंग पर लगाकर मे किचन में कुछ खाना बनाने जुट गया अंडे काफी ले रखे थे मेने और ब्रेड के दो पैकेट भी बस बिना आवाज धीरे धीरे आज मेने आमलेट बनाये और कुछ खुद कहा लिए कुछ रख दिए ।
पेट भरने के बाद अब ना जाने कब में नीद में आ गया मुझे नही पता पर आँख खुली जब सिम्मी ने उठाया था ।
वह होश में आ गई थी और उसने नहा लिया था । काफी स्वस्थ दिखाई दे रही थी ।
उसने पूरे कमरे को देखा और मुझे देखकर पूछा ।
"तो यह तुम्हारा घर है…" और कल रात तुम यहाँ से मेडिसिन बॉक्स ले कर आये और मेरी पट्टी की उसके बाद मुझे लेकर फिर यह आ गए ...।
उसको देखकर मेने साधरण कहा ।
"हा…"
फिर उसने कहा ।
"औऱ यह सब करते हुए तुम्हारे हाथ मे भी चोट आई और …".
मेने सिम्मी को जवाब दिया ।
" हा मै डर गया था ..कही तुम ..वो..मर ना जाओ इसके लिए जल्दी बाजी के चक्कर मे..गिर गया था ..।
सिम्मी ने सुनकर हाथ देखते हुए कहा ।
"अच्छा ...आपका शुक्रिया । पर क्या कुछ खाने को हे यहां..
मेने जवाब दिया ।
"हा मेने आमलेट बनाया है अगर तुम खाती हो तो कुछ दूसरा नही था आमलेट ब्रेड है ...।
सिम्मी ने अपनी बौहे ऊपर उठाते हुए आश्चर्य से देखा और कहा ।
" क्या ? तुमने बनाया ? ..एक हाथ से ..।
इसके बाद सिम्मी उठी किचन में गई हालांकि उसे दर्द होने लगा पर वह आमलेट ले कर बेड पर आई और उसने खाना खत्म किया उसको ठिख होतेहुए देखने के बाद अब मुझे भी अच्छा लगने लगा था ।
मानो मेरे सर से कोई बोझ हल्का हो रहा हो ।
अब जबकि में पूरी रात जागता रहा था मुझे नींद आने लगी थी इस लिए में वही बेड के साइड में लेट गया ।
आज 4था दिन था जंग का आज इतने दिनों बाद मेने सकूँन की नीद ली थी ।
मेरी नीद इसबार मोबाइल पर इंटरनेट चलु कर लाइव न्यूज प्रसारण में जंग के खत्म होने के समाचारो को देखते हुए सिम्मी ने तोड़ी थी ।
वह बहौत खुश थी ।
अपने घर जाने के लिए बेताब थी । उसने बड़ी खशी से मुझसे कहा ।
" है ऋषि अब नेटवर्क आ गया है जंग खत्म हो गई है । में भी मेरे घरपर अभी फोन करती हूं और मेरे भाई भाभी को बताती हु में यहां हु ...अररर्रे वाह।
मुझे भी खुशी हो रही थी ।
कि अब सब पहले जैसा सामान्य हो जाएगा ।
सरकार अपने लोगो से अपील कर रही थी कि सब पुनः वापस आ जाए अपने अपने घरों में ।
जिनका नुकसान हुआ है उसकी भरपाई होगी सरकार मद्दत भी करेगी ।
मै यह सब सुन रहा था सिम्मी के चेहरे पर खुशी थी वह अब वाकई में मुझे अच्छी लगने लगी थी ।
मैं चाहता था जल्द ही उसे भी अपने घर जाकर सबसे मिलकर खुश रहे आखिर उसने ही मेरी जान बचाई है । उसका में कर्जदार था ।
वह दिन वाकई लागरहा था कि नया जन्म हो गया जीवन का नई शुरुवात हो गई बस जो बीते 3 दिन हमारे साथ गुजरा वो एक भयानक सपना था ।
इस जंग में देश के अलग अलग हिस्सों से हजारों नागरिक मारे जवानों ने शहादत दी ।
पर फिर भी जल्द ही जंग खत्म कर दी गई पानी के लिए छिड़ी जंग में देशो ने समझौते कर लिए है ।
मै यही सोच में डूबा था मुझे पता ही नही कब सिम्मी ने अपने घर फोन पर बात कर ली और कब वह जाएगी ।
तभी सिम्मी मेरे नजदीक आकर मझसे कहा था कि।
"अरे यार अभी तो नहा लो बदबू आ रही है तुमसे …
इतना सुनने के बाद मुझे होश आया कि इतने दिनों से नहाया ही नही हु ।
और में उठा आने दुखते हाथ और एक पैर के साथ बाथरूम में फ्रेश होने के लिए ।
नहाधोकर जब मैं निकला कपड़े पहने तो हाथ का जख्म खुला रह गया जो शर्ट पहनते समय काफी तकलीफ दे रहा था ।
उसे सिम्मी भी देख रही थी और वह कुछ बोली नही पर चुप यही मेने शर्ट पहनी जिसके बाद सिम्मी ने मुझे बुलाया ।
" ऋषि ...आओ तुम्हारे हाथ मे मै बैंडेज कर देती हूं ..।
मैं भी उसके पास मेडिसिन बॉक्स ले गया और उसने हाथ मे दवाई लागकर पट्टी कर दी ।
हालांकि उसकी कमर में घाव भी अभी ताजा ही था पर दर्द से उसे राहत थी ।पट्टी बढ़ने के बाद मेने अपने कपड़ों से कुछ टी शर्ट निकाल कर उसको दिए और कहा ।
" अरे यार सिम्मी नहा तो लिया पर यह कपड़े...चाहो तो पहन सकती हो "...।
और हम दोनो पहली बार एकदूसरे को देखकर खिलखिला के हसने लगे थे ।
इनसभी घटनाओ में आसपास भी दोपहर होते होते कुछ लोग जो अपने घर छोड़ गए थे वापस आने लगे थे जिनके बिल्डिंग में नुकसान कम था वह साफसफाई कर रहे थे ।
लोग एक दूसरे की मद्दत करने लगे थे ।
वाकई एक जंग कितनी भयानक होती है यह मैं इन 4 दिनों में समझने लगा था ।
गनीमत हमारे आसपास किसी की जान नही गई पर नुकसान काफी हो गया था ।
सिम्मी के परिवार वालो का भी नुकसान हुआ था ।
मेरा आफिस का मित्र भी अब वापस शहर आ गया था अपने परिवार के साथ ।
पर अब भी नेशनल हाइवे मलबे से ट्रैफिक की समस्याएं थी इस लिए सिम्मी के परिवार के लोगो ने उसे अभी दो दिन यही रुकने के लिए कहा था ।
मुझे यह अच्छा लगा था कि सिम्मी ने भी मेरी बहौत तारीफ उसके परिवार में कर दी थी ।
हमारा एक दिन बस एकदूसरे से बाते करने के गुजरा और दोनों की जंग के बाद कि पहली रात भी शांत और आरामदायक नींद से भरी थी ।
6 ट्वे दिन सुबह मै जल्दी ही उठ गया अब हाथ का घाव भी भर गया था ।
सिम्मी को बिना बताए ही मैं कुछ एक दो दुकान खुल गए थे वहां गया और ऊके लिए दो जीन्स टीशर्ट के साथ ही कुछ राशन ले कर लौटा था ।
जैसे ही बिल्डिंग के पास पहुचा वैसे ही देखा सिम्मी सीढ़ियों पर बैठी गुस्से में मुझे घूर रही थी मैं कुछ समझ ही नही पाया कि उसने जबरदस्त फायरिंग की अपने गुस्से की ।
" अर्रे यह कोई बात है...अचानक आदमी गायब हो गया ...आँखे खोलने के बाद घर मे मै अकेली...हां ..कही जाना है तो उठाकर बोल भी सकते थे ना...वाह तुम्हारे यहां हु इस लिए...नई बाबा ...जल्दी जाऊंगी अपने घर ..यहां बोझ हो गई क्या मैं…"
उसने मुझे कुछ बोलने ही नही दिया बस अपना गुस्सा उतारा और अंदर घर मे चली गई थी ।
अब मै सप्राइज देने के मूड में था वो क्या करता अब । मैं भी जिद्दी चुपचाप अंदर जाकर किचन में राशन निकाला और कपड़ो का बैग बेड पर रख कर वापस किचन में आ गया था ।
अभी कमसकम 10 से 20 दिन आफिस भी बंद रहना था तो बन गए किचन मास्टर और क्या था ।
थोड़ी देर बाद सिम्मी बाहर आई हाथ मे वही मेने लाये कपड़ो का प्लास्टिक बैग दिखाते हुए कहने लगी ।
" हो हेलो ये किसका उठा लाये लेडीज है जीन्स और टी शर्ट"..कहकर खूब हसने लगी फिर बोली ।
"कपड़े तक पता नही चलते तुमको जेन्ट्स है या लेडीज…"
मै प्लेट साफ कर रहा था और वही से धीरे से बोल पड़ा ।
" मेने सोचा तुम्हारे लिए ले लेता हूं जब से वही ड्रेस पहनती हो ...।
यह सुनकर उसने तुरंत टोक दिया।
" क्या क्या यह मेरे लिए है...।
मेने बड़े शांति से जवाब दिया।
"हा इसको ही लेने गया था बिना उठाये तुमको ..सरप्राइज करना था पर तुमने क्लास लगा दी...।
इतना कहकर मेने पीछे पलटकर देखा तो सिम्मी गायब थी और फिर पाँच मिनट बाद फिर बाहर आई वही कपड़े पहनकर और मुझको बात करना शुरू किया ।
"" जबरदस्त ह न ऋषि तुमको कैसे पता चला मेरा कमर का नाप सब एकदम फिट आ गया ….नई।
अब उसने ऐसे पूछा तो मेरे मुह से निकल गया ।
"अरे उसमे क्या उसदिन तुम्हारी पट्टी की...।
और इतना कहते ही में रुक गया ,अपनी गलती समझ आ गई ।बस पलट कर उसे देखा तो वह मुझे चुप चाप देख रही थी ।अचानक बात पलट कर बोलने लगी ।
" अच्छा है वैसे आज क्या खाना है ...सही बनाने आता है ना ..।
मै हा में गर्दन हिलाकर फिर प्लेट धोने लगा था और मामला शांत हो गया ।
अब वो दिन भी आगया जब सिम्मी के परिवार के लोग घर आ गए मै बाहर पड़ोसियों की मद्दत कर रहा था और सिम्मी भी ।तभी सिम्मी ने मुझे बुलाया ।
" ऋषि ...।
पता नही परिवार आने पर क्यो सिम्मी के चेहरे पर खुशी नही थी मुझे बुलाते समय पर उसके बुलाने से में गया ।
सिम्मी ने पहचान कराई।
"भैया यह है ऋषि …
और ऋषि यह है मेरे भैया भाभी …
सिम्मी के भाई ने कुछ कहा नही बल्कि हाथ जोड़कर प्रणाम किया वही उसकी भाभी ने भी ज्यादा कुछ कहा नही बस बाहर आकर खड़े हो गए ।
और सिम्मी को उसका समान लाने कहा सिम्मी भी अंदर घर मे मेने देखा कुछ सहमते हुए जा रही थी । कही कुछ तो बात गड़बड़ी वाली थी यहां ।
पर इनका परिवार का मामला समझ कर में कुछ बोला नही पर आखिरकार सिम्मी के भाई को मैने पूछ ही लिया ।
" भाई साहब यू तुरन्त जा रहे है ..आइए चाय तो पीजिए..।
मेरी बात सुनकर उसके भाई ने कहा ।
" जी ..पर कभी बाद में पी लेंगे ...कहा हम बहौत दूर रहते है ..अक्सर मिल जाएंगे ।
अब सिम्मी के भाई की बात सुनकर में हैरान था रोज कैसे मिलेंगे सिम्मी ने कहा था कि यहां स्व 200 कि.मि दूर है उसका परिवार।
जिसपर मेने फिर से पूछा।
"मतलब...में समझा नही...।
उसके भाभी ने जवाब दिया ।
" मतलब यही इसी शहर में ...रहते है हम.. आपको सिम्मी ने नही बताया क्या….? दरसल उसकी शादी थी ओर वह शादी के मंडप से हमारी नाक कटवाकर भाग गई थी...यह तो शुक्र है कि जंग हो गई और बात दब गई...।
लड़का पसंद नही तो क्या ...अमीर घर का था ..दो दो कंपनियों का मालिक था ...उम्र का क्या है 50 साल कोई बड़ा नही होता ...हम्म..अब तो हमको शर्म आ रही है ...क्या बताऊंगी किसी अनजान मर्द के साथ थी यह हफ्ते भर से ।
उसकी बात सुनकर उसका भाई बीच मे बोल पड़ा शायद उसे घर की बात कहना अच्छा नही लगा था ।
" अर्रे यही बोलना है ...ढिंढ़ोरा पिट दो...कही भी शुरू हो जाती है….।
अभी यह बात चल ही रही थी कि अंदर से सिम्मी बाहर आई कुछ प्लास्टिक बैग के साथ जिसमे मेने उसे कपड़े दिए थे ।
मै अब समझ गया था सिम्मी घरवालो से भागी थी जैसा उसने पहले मुझे झूठ बोला था कि वह आफिस से छुट्टी ले कर गाव बस में नही बल्कि अपनी ही शादी से भाग रही थी ।
और अब सिम्मी को भी पता चल गया था कि उसकी पूरी बात मुझे पता चल गई है इस लिए वह मेरे सामने आई और कुछ कहने को जैसे आगे बढ़ी मेने देखा उसकी आँखों से आँसू आ गए थे ।
मुझे भी बुरा लग रहा था पर यहां परिवार के सामने मै कुछ नही बोल सका ।
देखते देखते सिम्मी अपने भाई के कार में बैठ गई और कार जल्द ही हमारे बिल्डिंग के आगे से निकल गई ।
पर सिम्मी के जाने के बाद अचानक ही मेरा मन उदास हो गया था ।
मैं घर मे घुसा थोड़ी देर बैठा तो मेरे अंदर एक अकेलेपन का तूफान घूमने लगा ।
भले जंग खत्म हो गई सिम्मी अपने परिवार के साथ चली गई,मेरे शरीर के शायद जो जख्म थे वो ठीक हो गए थे पर अब जो अकेले पन का दर्द था वह इतना कि बयान नाही किया जा रहा था ।
सोचने समझने के चक्कर मे शाम हो गई और एक बार फिर मुझे शराब याद आ गई। हालांकि अब मोटरसाइकिल नही थी ।
मेने अपने एक पहचान वाले को फोन लगाया उसकी मोटर सायकिल मांगी ,और निकल गया बियर बार की तरफ ।
दो से तीन पैक खत्म करने के बाद अब मुझे याद आया कि इतने दिन मेरे साथ रही एक अच्छे दोस्त की तरह ,मेरी जान बचाई पर मै बेवकूफ उसका कोई कॉन्टेक्ट नंबर तक नही लिया ।
हर पैक पाइन के बाद नजर मोबाइल पर जाती रही कि अभी किसी नंबर से फोन आएगा सिम्मी का पर रात होने को हे 8 बजने को हे कोई फोन नही आया था ।
कई दिन यू ही बिताने लगे एक महीने तक यही सिलसिला लगातार अब मुझे सिम्मी से शायद प्यार हो गया और मेरा हमेशा का ही पीने के बाद
जबरदस्त शराब के नशे में मैं मोटरसाइकिल को तेजी से दौड़ाते हुए अपने किराये के कमरे की तरफ जा रहा था मेरा नशा अपने चरम पर था सर झन्ना रहा था ।
हाथ पैर भी झन्नाहट में और में मदहोश पर इतना होश था ।
कि घर पहुँच जाऊ ,तभी अचानक ही सामने एक बम्मपर आया नशे में टुन्न मै मोटरसाइकिल उछली ,मै भी उछला पता नही कब जमीन पर गिरा और आँखे बंद हो गई ।
कानो में ट्रफिक लगने का आवाज सुनाई दे रहा था, गाड़ियों के कई हार्न जो मिक्स हो गए थे ।
अब कानो से भी धीरे धीरे सुनाई देना कम हो रहा था ।कि बस एक छोटी सी दूर से सिम्मी की आवाज कानो में गूँजने लगी मानो वो मुझे आवाज दे रही थी ।
" ऋषि…...।ऋषि…….ऋषि……
पर अब इतनी सकूँन की नीद आ गई थी कि उठना मुश्किल हो गया था ।
अचानक ही शरीर मे ठंड का जोरदार असर होने लगा मेरी आँखें बंद थी ,मैं उसी जंग के पल में सपनो में खोया था ,,जहां सिम्मी मुझे मिली थी ,पर इस सपने को यह जबरदस्त ठंड बिगाड़ रही थी मुझे गुस्सा आ रहा था।
सपने में सिम्मी अपने घर जा रही थी ,यह सपना मै खत्म होने नही देना चाहता था पर किसी ने खूब जोर से हिलाया मेरी आँख खुली और मेरे मुह से निकला ।
"सिम्मी……...।
सामने यह क्या वही थी जो मुझे अब डॉक्टर के कपड़ो में दिखाई दे रही थी ।
गजब हो रहा था मुझे वो अब इस डॉक्टर में दिखाई दे रही थी।
या मेरी रम अभी भी नही उतरी थी समझ के बाहर हो गया था ।
मैंने गौर से डॉक्टर को देखा फिर सिम्मी । ओहहो मेने आँखे बंद कर ली और डॉक्टर को बोला ।
"" सोरी डॉक्टर ...आजकल मै कुछ ज्यादा ही बड़बड़ करने लगा हु ।...सोररी...।
डॉक्टर की आवाज कानो में आई ।
" अरे यार फटीचर हो गए हो तुम….ऋषि….बेवकूफ...।में ही हूं सिम्मी।
बस इतना सुनते ही आँखे तुरन्त खुल गई नशा गायब हो गया मुझे उठना था पर हाय कमर पर चोट ।
मेरी हालत देख सिम्मी मुस्कुराई और मेरे पास आकर खड़ी हो गई ।
उसके हाथ को मैने अपने हाथ मे पकड़ा और उसे जरा नजदीक बुलाया ।
जब नजदीक आ गई तो धीरे से कहना चाहा।
"सिम्मी...यार मै तुमसे ...आउच मेरी पीठ...।
यह क्या आईलवयू की जगह पीठ आ गई।
सिम्मी ने हाथ को सहलाते हुए मुझे देखकर कहा ।
" हं हं ..प्यार करता हूँ..ऐसा कुछ बोलना था क्या ?..
और वह हसने लगी ।मुझे जरा अजीब लगा पर फिर उसने कहा ।
" जल्दी ठीक हो जाओ में अब घर पर ही रहने आ रही हूं..तुम्हारे ...फिर ठीक नही रहोगे तो ...प्यार कैसे करोगे...।
हाश आखिर मेरे जान में जान आई उसका हाथ मानो मेरे लिए सभी दवाइयों का नुस्खा था जिसे मैं अब छोड़ने वाला नही था ।
पर अब यह नया आया सामने सिम्मी डॉक्टर है ?