अपंग - 40 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपंग - 40

40

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एक दिन माँ के पास सदाचारी का गुर्राता सा फ़ोन आया | माँ ने ही रिसीव किया | |'यही है मेरी दयादृष्टि का फल ?"

माँ पता नहीं क्यों उनसे इतनी भयभीत रहती थीं | पंडित जी वो भी सदाचारी ! यदि कहीं श्राप दे देते तो ? कितना अपशकुन था पूरे परिवार के लिए !

"पंडित जी मेरी तो ---" माँ बोलते हुए कैसी लड़खड़ा रही थीं |

"क्या मेरी तो ---क्या लच्छन दिए हैं अपनी लाड़ली को ---आख़िर आप लोगों ने समझ क्या रखा है ? सबको देख लूँगा | ये विद्या है कोई मज़ाक नहीं ? देख लूँगा---देख लूँगा ---" वो पागलों की तरह बड़बड़ कर रहा था और माँ को डरा रहा था | माँ अधीर सी हो उठीं ---

"पंडित जी आख़िर हमारी तरफ़ से क्या गलती हो गई ?"

"क्या बात है माँ, किसका फ़ोन है ?" अचानक भानु माँ के कमरे में पहुँच गई थी |

"कुछ नहीं --कोई नहीं --" कहकर माँ ने फ़ोन बंद कर दिया | वे बहुत परेशां दिखाई दे रही थीं |

"तो --इतना क्यों घबरा रही हो ?"माँ चुप ही थी लेकिन चेहरे पर उदासी व गघबराहट थी |

"बोलो माँ, बताओ --क्या बात है ?"वह बाहर जाती हुई रुक गई |

"हाँ, तो इतना क्यों घबरा रही हो ?"

"ऐसे ही, मन बड़ा बेचैन हो जाता है कभी-कभी ---"

"नहीं माँ, मज़बूत बनो, मन को कमज़ोर क्यों करना ? "उसने माँ के कंधे प्यार से पकडे, उनकी कमर को सहलाया और धीरे से समझने की कोशिश की |

उसकी और दीवान साहब की बातचीत हो चुकी थी | उसने उन्हें सब कुछ समझा दिया था और उन्हें माँ-बाबा का ध्यान रखने के बारे में भी प्रार्थना की |

उसका वापिस जाने का समय जो आ गया था | आखिर कब तक रह सकती थी | माँ लगातार पूछती ही रहतीं, उन्हें राजेश की, अपनी बेटी की गृहस्थी की बहुत चिटा रहती |

बाबा बड़े प्रसन्न रहने लगे थे दुबारा फ़ैक्ट्री जाने से | वैसे तो अब माँ पर चढ़ा सदाचारी का भूत उतर चुका था, वे कुछ निश्चिन्त नज़र आतीं लेकिन कभी-कभी सदाचारी के उस फ़ोन को जब वह याद कर लेतीं तो फिर से उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें बढ़ने लगतीं |

भानुमति ने फिर समझाया ;

'हमारा कोई वास्ता नहीं है उससे, वो और सक्सेना मिले हुए थे, दोनों ने मिलकर बदमाशी की है तो भुगतेंगे भी वो दोनों ही न !"

माँ को बाबा की बहुत चिंता थी, स्वाभाविक था लेकिन बाबा अब भानु का सहारा पाकर बड़े सजग हो गए थे |उनहोंने बार-बार दीवान से माफ़ी माँगी, वे एक सही ईमानदार, स्वामिभक्त इंसान के लिए न्याय नहीं कर पाए थे | मि. दीवान उनके इस प्रकार माफ़ी मांगने से बहुत लज्जित हो जाते |

"आप मुझे लज्जित न करें सेठ जी, उस समय आप कितने अस्वस्थ थे ! "

"हाँ, अस्वस्थ तो था पर बेहोश भी था | सदाचारी जैसे व्यक्ति का इतना विश्वास ---वो तो कितनी बार बिटिया ने समझाया --पर ---" उन्हें वाक़ई बहुत खेद था | "

"जो होना होता है, होकर ही रहता है | बिटिया के आने से कितनी समस्याएँ सुलझ गईं और आपको भी कितने गलत तत्वों के बारे में पता चल गया | यही क्या काम है ?वार्ना मैं तो निराश हो चला था --और बोल सकता नहीं था कुछ --"

"पर अब तो उसे जाना ही होगा --हर दुसरे दिन राजेश का कॉल आता रहता है --वो तो पता नहीं क्या कहती है उससे पर हमें लगता है कि यह उसके प्रति अन्याय है | वह तो अपने बच्चे को जी भरकर अभी देख भी नहीं पाया होगा ---"

"ऐसा क्यों ?"

"अरे! बच्चा एक महीने का ही तो था जब वह वहाँ से चली आई थी |"

"हाँ, यह तो मैं भूल ही गया था | "मि. दीवान ने कहा |

भानुमति भी वहीं बैठी स्टॉक देख रही थी | रजिस्टर से हटकर उसकी नज़र उन दोनों पर पड़ी ;

"हाँ, अंकल, अब तो जाना पड़ेगा ---"

"क्यों ? जल्दी है ? राजेश ने कुछ कहा क्या ?" बाबा बोले |

"कहा तो कुछ नहीं, पुनीत को याद कर रहे थे |"

"हाँ, बच्चे की याद तो आएगी ही न ---" बाबा ने कहा

"बेटा ! अपनी गृहस्थी ध्यान रखना चाहिए, वैसे यहां की चिंता मत करो अब, अब तो सब ठीक हो गया है | आशा करता हूँ अब ठीक ही रहेगा | "

"अंकल आप हैं बाबा के साथ तो चिंता की कोई बात नहीं है | वो तो बस --माँ-बाबा के पास रहने का मन होता है |" भानु की आँखें पनीली हो आईं थीं | कितनी विवश थी वह ? जाना पहाड़ चढ़ना सा लग रहा था उसे और अगर न जाती तो माँ-बाबा को शक होते हुए देर न लगती |

"जाने दो बिटिया, तुम दोनों यहीं रहते तो --पर अब तो ---ख़ैर बाब की चिंता मत करो | मैं तुम्हें यहाँ की इन्फॉर्मेशन लगातार देता रहूंगा ---|" मि. दीवान ने उसे सांत्वना दी |