लारा - 13 - (एक प्रेम कहानी ) रामानुज दरिया द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लारा - 13 - (एक प्रेम कहानी )

(भाग 13)
भाग 12 में आपसे बताया गया था कि किस तरह सोमा राम जी से अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रही है
(अब आगे भाग 13 में)
मैंने जो कुछ भी वादा किया था वह सब मुझसे नहीं हो पाएगा । और राम जी प्लीज हो सके तो मुझे माफ कर देना आज के बाद से हम आपसे कभी बात नहीं करेंगे। रामजी एकदम सन्न रह गए थे कि अरे अभी कल तक तो साथ जीने मरने की कसमें खा रही थी, और आज ऐसा क्या हो गया क्यों ये ऐसा कर रही है। वो भी बेवजह,कोई बात भी नहीं है कोई वजह नहीं है। कितनी पागल लड़की है सोमा इसे समझना मुश्किल नही नामुमकिन है।
राम जी बार-बार यही बोलते रहे कि सोमा हमने प्यार किया है, तो ऐसी बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा । और ऐसे बहुत से लोगों की बातों को भी सुनना पड़ेगा हमें। तुम इतनी जल्दी हार नहीं मान सकती हो, और वो भी मां की एक छोटी सी बात पर। राम जी को सोमा ने पूरा सच नहीं बताया था, क्योंकि मां को और राम जी को एक दूसरे की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी, एक दूसरे की इमेज नहीं खराब करना चाहती थी।
इसीलिए सिर्फ इतना ही बताया था कि माँ गुस्सा हो रही है कि बहुत बात करती है ।
राम ने पहली बार की तरह सोमा को बहुत समझाने की कोशिश की। लेकिन सोमा एक बहुत ही जिद्दी टाइप की लड़की है, उसने एक बार कह दिया तो कह दिया। फिर किसी की भी नहीं सुनती है। सोमा राम जी से बोली कि देखिए मुझसे गलती हो गई, मुझे फिर दोबारा आपसे बात नहीं करनी चाहिए थी। और जो मैंने आपसे इस तरह से बात की, इतना प्यार जगाया, जो इतने लंबे लंबे वादे किये। मुझे नहीं करनी चाहिए। क्युकी मुझे खुद को देखना चाहिए था एक बार, कि मुझसे कभी हो पाएगा भी या नहीं।
लेकिन शायद मैं आपके प्यार में अंधी हो चुकी थी, मुझे कुछ नहीं दिखाई दिया बस मुझे आप और आप की खुशियां ही दिखती थी। मैंने जो भी वादे किए उन सब के लिए मुझे माफ कर देना, शायद मैं उन्हें कभी चाहकर भी ना पूरा कर पाऊं। इसमें गलती आपकी नहीं मेरी ही सारी गलती है।
राम जी बोले की, जान ऐसे क्यों बोल रही हो किस गुनाह की सजा दे रही हो। मैं नहीं जी पाऊंगा तुम्हारे बगैर। मेरी पूरी दुनिया तो तुम ही हो ना, मेरी सारी खुशियां तुम से शुरू होकर तुम पर ही खत्म हो जाती है। तुम्हें पता है ना कि आज मैं जो कुछ भी हूं सब तुम्हारी वजह से हूं। मेरी जिंदगी तो तुम पर ही आकर खड़ी है, अगर जान तुम ही ऐसा करोगे तो मैं कैसे जिऊंगा? तुम्हारे बगैर मेरी जिंदगी में अब कुछ भी नहीं है। तुम्हारी क्या जगह है मेरी जिंदगी में तुम जानती हो ना। साँसे हो तुम मेरी और मैं सांस लिए बगैर कैसे जी सकता हूँ।
मेरी जिंदगी में जब तुम आई थी तो तुमने मुझे देखा था कि मैं कैसा था, कौन था मैं, मुझे तुमने ऐसा बनाया है। मुझे ज़िंदगी जीना सिखाया है। मुझे बदल कर आज फिर ऐसा मत करो तुम्हारे ऐसा करने से मैं फिर टूट जाऊंगा। मेरी पिछली जिंदगी में फिर मुझे वापस जाना पड़ेगा, ऐसा मत करो यार नहीं हो पाएगा मुझसे। मैं तुम्हें नहीं भूल पाऊंगा ।
आज तुम्हारे बात करने का लहजा ही बदल गया है इतनी कड़वाहट कहां से लाई हो। कुछ तो बोलो जान चुप क्यों हो? तुम्हारी खामोशी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही है । तुम्हारी एक हंसी से मैं अपने सारे गम भूल जाता हूँ, तुम्हारी आवाज तो इतनी मीठी लगती हैं मुझे कि सुनकर मेरे पूरे दिन का थकान दूर हो जाता है। और आज तुम इतनी कड़वाहट भरी बातें क्यों बोल रही हो? मेरा दम घुटने लगा ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरी जान निकल जाएगी। प्लीज जान ऐसा मत करो ।
सोमा बोली कि मुझे कुछ नहीं सुनना, और हां यह जान वान मुझे मत बोला कीजिए, मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। राम जी बोले कि अच्छा आज बोल रही हो कि तुम्हें पसंद नहीं है, और कल तक अगर मैं 10 मिनट के अंदर एक बार भी ना बोल दूं तो तुम्हें लगता था कि मैं तुमसे नाराज हूं, कुछ हो गया है, मैं तुमसे गुस्सा हूं, इसीलिए मैंने तुम्हें जान नहीं कहा।
मैं तुम्हें जान ना बोलूं तो तुम्हें लगता था कि मैं तुमसे रूडली बातें कर रहा हूं। और आज इस तरह से बात कर रही हो । ऐसा हुआ क्या है, कुछ तो बताओ क्या बात हो गई। ऐसे मां के एक छोटी सी बात बोल देने पर इतना बड़ा फैसला ले लिया। मेरे बारे में नहीं सोचा कि मुझ पर क्या बीतेगी, मैं कैसे जिऊंगा। सॉरी मुझे कुछ नहीं पता मैं कुछ नहीं जानती हूं, बस मुझे आपसे बात नहीं करनी है। राम जी एक बार फिर बोले कि ऐसा क्या हो गया जान कि कल शाम से तुम बदल गए हो? मुझे बीच मझधार में छोड़ कर मत जाओ, प्लीज जान मैं नहीं जी पाऊंगा।
सोमा की आंखें तो पहले से ही बरस रही थी। क्योंकि जितनी तकलीफ राम जी को इन बातों से हो रही थी, उससे कहीं ज्यादा तकलीफ सोमा को थी।
क्योंकि उसने जो बातें राम जी को नहीं बताई थी, वह सारी बातें सोमा को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। लेकिन वह क्या करती वह चाह कर भी राम को सच नहीं बता सकती थी । क्योंकि दोनों को एक दूसरे की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी।
सोमा अपनी वजह से अपनी माँ और राम जी का रिश्ता खराब नहीं करना चाहती थी। जो रिलेशन इतने दिनों से उसकी माँ इतने प्यार से निभा रही थी। उस रिश्ते की बर्बादी सोमा खुद नहीं बनना चाहती थी।