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सपने - (भाग-15)

सपने.........(भाग-15)
 
आस्था और सोफिया ने नाश्ता किया साथ ही बातें करते करते जान पहचान भी हो रही थी।सोफिया अपनी पढाई खत्म करके अपने पापा के साथ फ्लोरिस्ट की शॉप चला रही है। उसकी मॉम और एक छोटा भाई भी है। भाई सैम अभी कॉलेज में पढता है और उसकी मॉम एक स्कूल में म्यूजिक टीचर हैं। आस्था मन में सोच रही थी, कितने एडवांस होते हैं बडे शहरों में रहने वाले लोग.......कल से यहाँ है और घर से एक फोन भी नहीं आया। अगर मैं इलाहाबाद में ऐसे स्नेहा के घर कभी रूक जाती हूँ तो कितने ही फोन आ जाते हैं। आस्था को चुप देख कर सोफिया ने पूछा, What happend? what you are thinking?अब आस्था क्या सोच रही थी, वो तो उसके नहीं बता सकती थी, इसलिए उसके पूछने पर बोली, "Nothing, just missing my family". सोफिया उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दी......कुछ देर बाद दोनो साथ निकली। सोफिया ने टैक्सी वाले को एड्रेस समझा दिया जहाँ आस्था के जाना था.......सोफिया ने बताया कि यहाँ टैक्सी वाले जो नए होते हैं मुबंई में उनको बेकार में इधर उधर घूमा कर छोड़ते हैं जिससे काफी पैसे भाडा देना पड़ जाता है। आस्था अपने टाइम से कुछ देर पहले ही पहुँच गयी थी। मैनेजर को फोन करके पूछा तो उसने बताया कि 5 मिनट में पहुँच रहे हैं, वहीं रूको....... आस्था वहीं साइड में एक जगह पर बैठ गयी।
सबको इक्चठा होने में 2 बज गए। जैसे जैसे सब आ रहे थे, सब एक दूसरे से अपनी जान पहचान करने की कोशिश कर रहे थे। डायरेक्टर नचिकेत दत्ता के आने के बाद जहाँ इतना शोर हो रहा था वहीं उसी हॉल में अब पिन ड्रॉप सायलेंस हो गया......!! नचिकेत दत्ता ने सब को नाटक के बारे में थोड़ा बहुत बताया......."नाटक एक बांग्ला नॉवल का हिंदी रूपामतरण है। एक औरत के विभिन्न किरदार नजर आने वाले हैं इस नाटक में.....सबको बहुत अच्छे तरीके से प्रैक्टिस करनी होगी....जैसा कि आप सब जानते ही हो कि ये ड्रामा है.....मतलब लाइव शो। इसमें रिटेक नहीं होते और न ही एडिटिंग की जाती है, तुमने अपने किरदार के साथ न्याय किया या नहीं,ये ऑडियंस उसी वक्त बता देती है"। सब को बता दिया गया कि कल कितना पार्ट उन्हें याद करके आना है.........सब का पहला दिन था तो नर्वस तो थे ही साथ ही उत्साह भी था। सब से बातचीत करके पता चला कि ज्यादातर लोग मुबंई के ही हैं बस आस्था और दो लड़को को छोड़ कर......वो लोग पूणे से हैं...... सब को चाय पिलायी गयी। अगले दिन से सबको 11 बजे आने को कहा गया और शाम 4:30 -5 बजे तक छोड़ा जाएगा!!
सबको समझा दिया गया कि देर से कोई नहीं आएगा.......!! सब धीरे धीरे जा रहे थे। आस्था जाने लगी तो मैनेजर ने आ कर बोला, "सर बुला रहे हैं"! आस्था तुरंत चली गयी। एक केबिन नुमा ऑफिस बना हुआ था, दीवारों पर सर्टिफिकेट्स लगे थे और एक शेल्फ पर अवार्डस और शील्डस लगी हुई थी। "सर आपने बुलाया", आस्था ने नॉक करके पूछा......"हाँ आओ बैठो", कह कर कुर्सी कि तरफ इशारा किया!! "आस्था, तुमने वे होटल छोड़ दिया, मैनेजर बता रहा था"।" हाँ जी सर, मेरे फ्रैंडस रहते हैं, वहीं शिफ्ट हो गयी हूँ"। "ओ के गुड, किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना"! आस्था की बात सुन कर नचिकेत ने कहा तो आस्था ने थैंक्स बोला और बाहर आ गयी......बाकी 2 ही लड़कियाँ और थी, इस नाटक में....वो दोनों यहीं की थी......आस्था ने उनसे लोकल ट्रेन का रूट पूछा, जिससे रोज टैक्सी या ऑटो से आने में ज्यादा पैसा भी न लगे और टाइम भी बच जाएँ.....टैक्सी और ऑटो तो ट्रेफिक जाममें फँस जाते हैं। वापिस उसने लोकल से जाने का सोच वो स्टेशन की तरफ चल दी। स्टेशन के लिए पहले ऑटो, वहाँ से ट्रेन फिर ऑटो लेना होगा........पर आस्था को ये सफर कुछ ज्यादा ही थकाने वाला लगा। थोड़े पैसे बचाने के चक्कर में रोज की सिरदर्दी लेना अक्लमंदी
वाला काम नहीं लगा........! घर पहुँच कर जल्दी से फ्रेश हो कर उसने सविता से चाय के साथ कुछ खाने के लिए माँगा तो वो उसके लिए ब्रेड बटर और चाय ले आयी........सबसे पहले आदित्य ऑफिस से आया, उसके बाद राजशेखर और फिर श्रीकांत..... सबने एक दूसरे का दिन कैसे बीता पूछा। कुछ देर बातें बातें करके आस्था उठ गयी और किचन में जा कर सविता ताई की हेल्प करने लगी खाना लगाने में........आदित्य और श्रीकांत ने काफी सामान जुटा रखा था.....अपने रूम के लिए बेड, फ्रिज, टी.वी. और माइक्रोवेव वगैरह......सोफा और डायनिंग टेबल इस फ्लैट की मालकिन का था जो आदित्य की फ्रैंड की आँटी थी, तो उन्होंने वहीं छोड़ दिया यूज करने के लिए। आस्था ने पूछा, "कल से मुझे 11 बजे पहुँचना है तो उसे कितने बजे निकलना चाहिए"? आदित्य ने कहा , "वो अगर 9 बजे तक तैयार हो गयी तो आधे रास्ते तक वो छोड़ देगा, तो आगे वो ऑटो से जा सकती है"। आस्था ने झट से हाँ कह दी....!
अगले दिन से आदित्य ने उसे गाड़ी से आधा रास्ता छोड़ना शुरू कर दिया, आगे वो ऑटो से चली जाती। रिहर्सल शुरू हो गयी थी तो कभी आस्था 4 बजे ही फ्री हो जाती तो कई बार लेट भी हो जाती। आदित्य ने कहा था उसको कि, "शाम को एक बार मुझसे पूछ लिया करो कि मैं कब निकल रहा हूँ, अगर हमारा टाइम मैच होता होगा तो वहीं मिल जाया करो जहाँ छोड़ता हूँ, वहाँ से उसका ऑफिस बस 5 मिनट की दूरी पर है"। आस्था ने अपने घर पर नहीं बताया था कि वो लड़को के साथ फ्लैट शेयर कर रही है नहीं तो बवाल हो जाता......! धीरे धीरे सब आपस में अच्छे दोस्त बनते जा रहे थे। आदित्य ने न तो कभी राजशेखर से रेंट लिया न ही श्रीकांत से......तो बाकी ऊपर के खर्च श्रीकांत और राजशेखर कर लेते थे। आस्था तो अभी कमाती नहीं थी, घर से ही पैसे आ रहे थे तो कोई उसे खर्च नहीं करने देता था। फिर भी आस्था कुछ न कुछ ले आती थी.......सब छोटी के दिन खूब मस्ती करते कभी बाहर जाते तो कभी घर पर ही पार्टी कर लेते। सोफिया, राजशेखर, आदित्य, श्रीकांत और आस्था ये दो महीने पहले तक 5 दोस्त थे, पर फिर एक दिन श्रीकांत के साथ एक बाबू मोशाय ने एंट्री ली बिल्कुल आस्था की तरह अचानक........पूछने पर पता चला कि, "बाबू मोशाय का नाम नवीन दास है, वो सिंगर है। काफी ऑडिशन से रिजेक्ट हो कर छोटे मोटे क्लब में कभी कभार गाने का मौका मिल जाता था , दोस्त के एक कमरे में रह कर गुजारा कर रहा था। अब वो शादी करने कोलकत्ता चला गया तो वो रूम छोड़ कर गया है.......शायद 3-4 महीने में वापिस आएगा। नवीन बाबू के पास रेंट देने का पैसा नहीं है तो 3-4 दिन से ऐसे ही बैठे बैठे सो कर काम चला रहा था, आज सुबह वो कैफे के बाहर ही मिल गया था तो श्रीकांत ने उसे परेशान देख कर उससे कारण पूछा तो उसने सब बता दिया। खाना दोनो टाइम कैफे से खिला कर श्रीकांत उसे अपने रूम में रखने के लिए ले आया था"! श्रीकांत अपनी पूरी बात खत्म करके आदित्य की तरफ देखने लगा तो आदित्य बोला, वेलकम नवीन, तुम आराम से रहो......इस तरह पाँच दोस्तों को एक दोस्त और मिल गया और हो गए 6....! श्रीकांत उसको अपने रूम में ले गया, छोटा सा बैग था और एक गिटार.......सीधा साधा सा लड़का अपने शहर में माँ और बहन को छोड़ आया था और बहुत दुखी था," इतने महीनों से उसने घर पैसा नहीं भेजा, पता नहीं वो लोग कैसे गुजारा कर रहे होंगे? बोलते हुए वो रो दिया".......! सब उसकी बात सुन कर दुखी हो गए.......अपने सपनो को पूरा करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। उस रात सबने खाना खाया और चुपचाप सोने चले गए......
क्रमश:
सीमा बी.
स्वरचित

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