ममता की परीक्षा - 56 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 56



गोपाल की तंद्रा टूटी तो उसने अपने आपको अस्पताल के एक बिस्तर पर पड़े पाया। यह कोई स्पेशल वार्ड था जिसमें उसका इकलौता बेड लगा हुआ था और बगल में दवाईयों की मेज भी थी जिनपर कई तरह की दवाइयाँ रखी हुई थीं। नजदीक ही एक नर्स स्टूल पर बैठी किसी फाइल के पन्ने पलट रही थी। उसकी माँ बृन्दादेवी और जमनादास उसके बेड के सामने बिछी कुर्सियों पर बैठे हुए थे। एक डॉक्टर और उसके साथ उसके कुछ सहयोगी उसका परीक्षण करने के बाद हाथ में पकड़ी हुई फाइल को देखकर कुछ गहन विमर्श कर रहे थे।

गोपाल पिछली बातें याद करने की कोशिश कर रहा था और फिर उसे सब कुछ याद आता चला गया। उसे याद आ गया वह भयंकर दर्द जिसे न झेल पाने की सूरत में वह बेहोश हो गया था। सड़क के किनारे बेहोश होकर लुढ़कना तो उसे याद था लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? उसे कुछ पता नहीं था। एक बार फिर से अपनी माँ और गद्दार दोस्त को अपने करीब पाकर उसे बेइंतहा दुःख हुआ। इनसे बचने के लिए ही तो वह बँगले से बाहर भागा था लेकिन ऐन वक्त पर उसकी किस्मत ने भी धोखा दे दिया था। उफ्फ वो जानलेवा सिरदर्द और फिर उसका बेहोश होना। पता नहीं क्या होनेवाला है ?' सोचते हुए गोपाल की आँखों से अश्रु छलक पड़े।

तभी कमरे में सेठ शोभालाल अग्रवाल ने प्रवेश किया। आते ही डॉक्टर से मुखातिब हुए, "डॉक्टर, क्या हुआ है मेरे बेटे को ? ठीक तो है न अब वह ?"

"सब ठीक है सेठ जी, आप आइये मेरे ऑफिस में। आपसे कुछ बातें करनी हैं, ओके !" कहने के बाद डॉक्टर अपने सहयोगियों के साथ कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर बाद सेठ शोभालाल जी डॉक्टर के कक्ष में उनके सामने बैठे हुए थे। बृंदा देवी भी आकर उनकी बगल वाली कुर्सी पर जम चुकी थीं। सेठजी ने पहलू बदलते हुए कहा, " डॉक्टर साहब, आप कुछ कहने वाले थे ?"

"हाँ, मुझे आपसे गोपाल के बारे में बात करनी थी। उसका परीक्षण करने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी लेकिन उसकी ऐसी हालत के बारे में देखकर मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि उसे दिमाग में कोई गंभीर परेशानी है। मसलन दिमाग में कोई गाँठ या घाव भी हो सकता है, जिसकी वजह से उसे इतना अधिक दर्द हो रहा है कि बेहोश होने की नौबत आ जाती है। दिमाग की नसों में मामूली रक्तस्राव जिसे ( आंशिक ब्रेन हेमरेज ) कहते हैं इससे भी असहनीय दर्द होता है और मरीज धीरे धीरे अवचेतन और कोमा में भी जा सकता है। मैं आपको डराना नहीं चाहता बल्कि आपको स्थिति की गंभीरता के बारे में समझाना चाहता हूँ। दुर्भाग्य से अभी हमारे पास यह तकनीक नहीं आई है कि उसके दिमाग का ठीक ठीक परीक्षण किया जा सके और सही निर्णय लिया जा सके।"
कहने के बाद डॉक्टर एक पल को रुका और कलाई में बंधी घड़ी देखने के बाद कुछ सोचते हुए बोला, "समय तो हो गया है। मस्तिष्क का एक्स रे रिपोर्ट अब आता ही होगा।"

तभी अस्पताल का एक कर्मचारी एक बड़े से लिफाफे में डॉक्टर को कुछ दे गया।

डॉक्टर ने लिफाफे में से निकालकर परीक्षण रिपोर्ट पढ़ी और फिर एक्स रे फ़िल्म को आँखों के सामने लेकर देखते हुए सेठ जी से बोला, "मुझे जो आशंका थी वही परीक्षण रिपोर्ट में भी नजर आ रहा है। इसके दिमाग के बायीं तरफ एक ट्यूमर है जो अब काफी बड़ा हो चुका है। यदि शीघ्र ही इसका इलाज न किया गया और अगर यह खुद से फट गया तो स्थिति कंट्रोल से बाहर हो सकती है।"

बृंदा का भावविहीन चेहरा देखकर डॉक्टर को थोड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन शीघ्र ही वह सेठ जी की बात पर ध्यान देने लगे जो कह रहे थे, "..तो डॉक्टर साहब, अब हमें क्या करना चाहिए ? अब तो रिपोर्ट भी आ गई है।"

" हाँ, मैं आपको वही बताने जा रहा हूँ। ऐसी स्थिति में आप हम पर और अपनी किस्मत पर भरोसा करते हुए यहाँ उनका इलाज जारी रख सकते हैं। इसमें भी पचास प्रतिशत सफलता का ही अनुमान है। यदि आप और बेहतर और मुकम्मल इलाज चाहते हैं तो इसे जल्द से जल्द विदेश ले जाइए। देर करना ठीक नहीं होगा। आप लोग बाहर सलाह कर लीजिए और मुझे बताइये क्या करना है। यदि आप हाँ कहते हैं यहाँ इलाज कराने के लिए तो मुझे डॉक्टर पुरंदरे से अपॉइंटमेंट लेना होगा और आपरेशन की तैयारी करनी होगी। फिलहाल डॉक्टर पुरंदरे ही ऐसे आपरेशन के लिए सबसे उपयुक्त हैं। आप लोग जितनी देर करेंगे जवाब देने में, खतरा उतना ही और नजदीक आता जाएगा। अब आप लोग जा सकते हैं।" कहने के बाद डॉक्टर दूसरी फाइल में व्यस्त हो गया।

सेठ शोभालाल की मुखमुद्रा काफी गंभीर थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह काफी गहनता से कुछ विचार कर रहे हों। अस्पताल की लॉबी में बैठे हुए सेठ शोभालाल अचानक किसी नतीजे पर पहुँचते हुए बृन्दादेवी से बोले, "गोपाल की माँ ! कोई खतरा मोल न लेते हुए हमें इसे अमेरिका ही भेजना होगा। यहाँ तो कोई गारंटी नहीं है इसके ठीक होने की।"

उनकी बात सुनकर पास ही बैठे जमनादास के चेहरे का रंग उड़ गया। वह खामोश रहकर उनकी बात सुनता रहा।

"लेकिन आप ये भी तो हिसाब लगा लीजिये कि उसमें पैसा कितना खर्च होगा ? बहुत ज्यादा खर्च होता हो तो रहने दीजिए। यहीं इलाज हो जाएगा। अगर कुछ बात बिगड़ भी गई तो संतोष कर लेंगे यह कहकर कि जीना मरना कोई अपने हाथ में थोड़े न है।" कहते हुए बृन्दादेवी के भावविहीन चेहरे पर कोई बदलाव नहीं आया था।

सेठ शोभालाल कुटिलता से मुस्कराए, "अरे भागवान, यूँ ही नहीं इतना बड़ा साम्राज्य बना कर बैठा हूँ। मैं हर बेकार चीज का भी हिसाब किताब रखता हूँ, फिर यहाँ तो लाखों खर्च होने की बात है। लाखों खर्च करके भी हमें फायदा ही होनेवाला है। सेठ अंबादास जी की करोड़ों की जायदाद आखिर में हमारी ही तो होनेवाली है।"

सब कुछ समझ जाने का भाव चेहरे पर लाते हुए बृन्दादेवी बोलीं, "अब सब कुछ समझ में आ गया। सही कह रहे हो, अगर यहाँ कुछ ऊँच नीच हो गया तो समझो हम तो सेठ अंबादास की करोड़ों की जायदाद से हाथ धो बैठेंगे।"
फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया हो, "...और हाँ, एक बात और ..अगर हम इसे इलाज के बहाने विदेश भेज देते हैं तो उस नालायक लड़की से भी इसका पीछा हमेशा हमेशा के लिए आसानी से छूट जाएगा। यही बढ़िया रहेगा। अब देर न करो आप। फटाफट इसको विदेश भेजने का इंतजाम कर दो और डॉक्टर से बात भी कर लो।"

"सही कह रही हो भागवान ! सच में देर करना मुनासिब नहीं होगा। डॉक्टर को डिस्चार्ज की तैयारी करने के लिए कहकर मैं अभी अपने मैनेजर को गोपाल के विदेश यात्रा की सब तैयारी करने के लिए कह देता हूँ। तुम भी साथ ही चली जाओ। इलाज के नाम पर वीजा आसानी से मिल जाएगा। तुम्हारे सामने सही देखभाल भी हो जाएगी और तुम्हारी विदेश की सैर भी हो जाएगी। इसे कहते हैं आम के आम गुठली के दाम ' .....!." कहते हुए सेठ शोभालाल की आँखें चमक उठी और वो तेज कदमों से डॉक्टर के कक्ष की तरफ बढ़ गए।

जमनादास वहीं बेंच पर बैठा हुआ उन दोनों की बातें सुनकर बड़ी गंभीरता से कुछ सोचने लगा था।

क्रमशः