कविता शिर्षक:"ज्योति कलश छलके"
ज्योति कलश छलके - ४
हुए गुलाबी, लाल सुनहरे
रंग दल बादल के
ज्योति कलश छलके
घर आंगन वन उपवन उपवन
करती ज्योति अमृत के सींचन
मंगल घट ढल के - २
ज्योति कलश छलके
पात पात बिरवा हरियाला
धरती का मुख हुआ उजाला
सच सपने कल के - २
ज्योति कलश छलके
ऊषा ने आँचल फैलाया
फैली सुख की शीतल छाया
नीचे आँचल के - २
ज्योति कलश छलके
ज्योति यशोदा धरती मैय्या
नील गगन गोपाल कन्हैय्या
श्यामल छवि झलके - २
ज्योति कलश छलके
अम्बर कुमकुम कण बरसाये
फूल पँखुडियों पर मुस्काये
बिन्दु तुहिन जल के - २
ज्योति कलश छलके
कलश छलके
चित्रपट : भाभी की चूडीयाँ
संगीतकार सुधीर फडके
गीतकार : पं. नरेंद्र शर्मा
गायिका: लता मंगेशकर
राग: भुपाली
कहानी:गीता (मीना कुमारी) की शादी श्याम (बलराज साहनी) से हुई है, लेकिन वह बच्चे पैदा करने में असमर्थ है। एक युवा के रूप में अनाथ, मोहन (सैलेश कुमार) को उसके बड़े भाई श्याम और उसकी पत्नी गीता ने पाला है, जो लड़के को मातृ प्रेम और भक्ति प्रदान करती है। मोहन प्रभा (सीमा देव) से शादी करता है, प्रभा एक धनी परिवार से है और उसके जीवन पर उसकी हावी माँ (दुर्गा खोटे) का शासन है। मोहन की युवा दुल्हन को उसके परिवार के प्रति उसकी वफादारी से जलन होती है। गलतफहमी इस हद तक पैदा होती है कि प्रभा अपने घर से निकल जाती है, और वापस अपनी माँ के पास चली जाती है। वह एक बच्चे को जन्म देती है, और उसका पति भी उससे मिलने या बच्चे को देखने नहीं आता है। लेकिन जब शिशु बीमार पड़ता है, तो प्रभा को अपनी आशंकाओं को दूर करना चाहिए और भरोसा करना सीखना चाहिए।
जीवन परिचय:पण्डित नरेन्द्र शर्मा
पण्डित नरेन्द्र शर्मा (२८ फरवरी १९१३–११ फरवरी १९८९) हिन्दी के लेखक, कवि तथा गीतकार थे। उन्होने हिन्दी फिल्मो के लिये गीत भी लिखे।
पण्डित नरेन्द्र शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के खुर्जा जिले के जहांगीरपुर नामक गाँव में 28 फरवरी 1913 में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ीमें एम॰ए॰ किया। १९३४ में प्रयाग में 'अभ्युदय' पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया।
कविता का अर्थ :
ज्योति कलश छलके ,
हुए गुलाबी लाल सुनेहरे
रंग दल बादल के
ज्योति कलश छलके
भोर के आगमन पर प्रकाश का कलश(सूर्य) छलक पड़ते ही घने एवं गहरे उमडते हुए बादलों के झुंड के रंग गुलाबी, लाल और सुनहरे हो जाते है।
घर आंगन वन उपवन उपवन
करती ज्योति अमृत के सींचन
मंगल घट ढल के
ज्योति कलश छलके
प्रकाश का कलश छलक पड़ता है और घर, आंगन, बाग, बगीचा इन्हें सभी को प्रकाश रुपी अमृत से सींचता है।
पात पात बीरवा हरियाली
धरती का मुख हुआ उजाला
सच सपने कल के
ज्योति कलश छलके
प्रकाश का कलश छलकते ही हरीभरी पत्तियांऔर शाखाओं से आच्छादित धरती प्रकाश से उज्वल हो जाती है। कल के सपने सच होते है।
ऊषा ने आँचल फैलाया
फैली सुख की शीतल छाया
नीचे आँचल के
ज्योति कलश छलके
जैसे ही भोर अपना आंचल फैलाती है इस आंचल के नीचे खुशियों / सुख की ठंडी छाँव बिखर जाती है।
ज्योति यशोदा धरती मैया
नील गगन गोपाल कन्हैया
श्यामल छवि झलके
ज्योति कलश छलके
प्रकाश कलश छलकते ही, पृथ्वी जैसे यशोदा माता हो और नीला आकाश जैसे गोपाल कृष्ण हो यह यशोदा मैया और बालकृष्ण (धरती एवं आकाश) की छवि की हर जगह दीप्तिमान दिखाई देती है।
अम्बर कुमकुम कण बरसाये
फूल पँखुडियों पर मुस्काये
बिन्दु तुहिन जल के
ज्योति कलश छलके
कलश छलके
प्रकाश का कलश छलकते ही आकाश केसर के छींटे बरसाता
है ,फूलों और पंखुड़ियों मुस्काती है और ओस, पानी के बिंदु चमकने लगते है।
कविता एवं अर्थ प्रस्तुतकर्ता: डॉ. भैरवसिंह राओल