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पहाड़िन - 4

पहाड़िन-४

इश्क़ और मुश्क कभी छुपते नहीं और जब वो सर पे चढ़ छाए तो अच्छे अच्छे को नाच नचाते है। सूरज चलती ट्रक से उत्तर कर वापिस चंदा को मिलने आ गया। सूरज यार की यारी में फिर से पहाड़ो का सफर करने आ गया। एक स्थान पर जब थक कर सूरज खड़ा रहा था की उसने देखा कुछ काळा कपडे वाले लोग एक बंदी को उठा के लेजा रहे थे। देखने में वो लड़की भोली भली लगती थी और काले कपडे वाले लोग अपना चहेरा छुपाने की कोशिश कर रहे थे। सूरज न जाने क्यों उन के पीछे पीछे छुपता हुआ चलने लगा। वो लोग रुक गए लड़की को निचे उतारा उनमे से एक गुर्राया " हम तुजे एक शर्त पर छोड़ शकते है अगर तू चुप रहे और किसी को कुछ न बताये "
लड़की ने सर हिलाकर हां कहा।
उसका मुँह खोला गया। उन जो चार में से एक सबसे नाटा था वो बोला "अगर यु ही छोड़ दिया तो एक दिन किसी को बता देगी की हम लोग कौन है ? क्यों न बारी बारी मजा लूटते है और कही दफन कर देते हे ?या पहाड़ी से गिरा देते है।
पहला था वो फिर बोला "नहीं, किसी की आबरू के साथ नहीं खेल शकते हमें मना किया है। है इसका हाथ पैर बांध के यहाँ छोड़ देते है। भालू या कोई और जंगली प्राणी आएगा खा के चला जायेगा।
सब ने सहमति में सर हिलाया। लड़की को फिर से बांध दिया और फेक के चले गए। उनके जाने के बाद थोड़ी देर रुक जाने के बाद झाड़ी के पीछे से सूरज निकला और लड़की के पास गया। लड़की उनको देख के थोड़ी भयभीत हुइ। सूरज ने इशारे से समजा दिया की गभराने की जरूरत नहीं है। सूरज ने लड़की को खोल दिया। लड़की आजाद हो गई। वो सूरज को कृतज्ञ भाव से देख रही थी।
"तुम कौन हो ?ये पहाड़ी इलाका है। जंगल है तुम कहा से आये हो ?" लड़की एक श्वास में ही सब बोल गयी।
"मेरा नाम सूरज है। में अपनी चंदा के लिए आया हु। तुम्हे इस हाल में देखा की लोग तुम्हे ले जा रहे थे इसलिए में तुम्हारे पीछे यहाँ आ गया और तुम्हे छुड़ा दिया।
" तुम ने अच्छा किया ,वर्ना अभी रात को यहाँ भेड़िये ,भालू और न जाने कैसे कैसे जानवर आते है। अभी तुम भी मेरे साथ चलो। वहा थोड़ी दूर २ ढलान के बाद एक बरगद का पेड़ है उसके पीछे एक खुला भाग (मैदान जैसा) है। छोटी सी खोली है। में मेरी माँ और बापू है। हम छोटी जाती के लोग है। इसलिए गांव से दूर रहते है। "
" में तुम्हारे साथ नहीं आ शकता। मुझे कही और जाना है। वो मेरा इंतज़ार कर रही होगी मेरी याद में मर रही होगी।
" देखो, तुमने मेरी जान बचाई है। में तुम्हे मदद करुँगी । यहाँ पहाड़ के रास्ते ,पहाड़ी लोग ,यहाँ की रस्मे तुम्हारे लिए अनजान है दो तीन दिन आराम से रहो में तुम्हे सब बताउंगी उसके बाद पूर्णमासी के पहले तुम चंदा को लेके यहाँ से दूर चले जाना।
नजाने क्यों सूरज को उसकी बात सच्ची और भरोसे लायक लगी। वो लड़की के पीछे पीछे चलने लगा। रास्ते में सूरज ने कहा
" क्या में मेरी बहन का नाम जान शकता हु ?"
"लाची" -तुमने मुझे बहन बोला ऐसा रिश्ता की नाम सुनते ही आँखों में आंसू आ गए। मेरा भाई मेरे लिए फरिस्ता बनके आया है। फिर दोनों कुछ नहीं बोले कुछ देर चलते रहे,एक ढलान ,दूसरी ढलान ,बरगद का पेड़ तक आ गया। सूरज बोला " अरी,रुक तो जरा ,बापू से क्या कहेगी मेरे बारे में ?
" जब तुम मेरे भाई हुए तो उनके तो बेटे हुए अब तुम्ही बात कर लेना। लेकिन वो काले लोग और काले कपडे वाली बात मत बताना "
"क्यों न बताऊ ,और एक बात कहदू मेने आज तक कभी भी जुठ नहीं बोला ,इसलिए अगर मुझे पूछेंगे तो में सब सच बोल दूंगा "
"ठीक है "
दोनों खुला मैदान में आके खोली के अंदर आ गए। बहार से ज्यादा अंदर अँधेरा था। एक लकड़ी का कटा हुआ टिम्बा था जिसपे एक बूढ़े बाबा बैठे थे। एक कोने में लकड़ी जल रही थी जैसे खाना पक रहा हो। पेड़ पोंधो और लकड़ी ,वांस सब मिलाके एक दो रूम जैसी खोली थी। देखने में एक कच्चे लकड़ी और धागो की बड़ी झोपड़ी लगती थी। हाथ में फानूस लिए लाची जब आयी तो अंदर का अँधेरा थोड़ा कम हुआ।
लाची सूरज को अपने बाबा के पास ले गयी। कुछ चलम जैसा पि रहे थे। लाची ने बोला " बापू ये शहरी बाबू है पहाड़ पर रास्ता भटक गए थे। में उन्हें यहाँ ले आयी हु।
"अच्छा ,तुम इसे कहा मिल गए?" सवाल उसने सूरज से किया
" जब मेने देखा की लाची की जान जोखिम में है। तो में
" तो ये मुझे बचाने की लिए मेरे पीछे आ गए और भालू के हमले मुझे बचा लिया "
"भालू अपने इलाके में कहा है वो तो यहाँ से दो टेकरी के पार है। "
" कभी कभी यहाँ भी आ जाते है। "
"ठीक है ,तुम्हे जो अच्छा लगे वो करो " फिर अचानक से खांसने लगे । लाची अपने पिता के पास गयी और उनको सहलाने लगी ताकि खांसी बैठ जाए "
"अब ये गुड़ गुड़ बंद करो इसकी वजह से तुम ठीक नहीं होते "चूले के पास से माँ की आवाज आयी।
" ये तो मेरे साथ ही जायेगी कहके वो उदास हो गए।
सूरज समज गया की उन्हें पैसे की जरूरत है ,बुढ़ापे में लाठी भी चाहिए और इनका इलाज भी करना चाहिए। अगर मेरे रहते इस परिवार की कुछ तकलीफ दूर हो जाए तो उस लड़की की कितनी शांति होगी वैसेभी मुँह बोली ही सही ,बहन हे मेरी। जितने दिन रहूँगा कुछ मदद में भी कर दूंगा।
वो प्रत्यक्ष लाची से बोला " देख बहन, अब तेरा भाई आया है तो कुछ सेवा का मौका इसे भी दे। में बापू की सेवा भी करूँगा ,लकड़ी भी काट लाऊंगा और तुम्हे थोड़ी मदद करूँगा।
"हम छोटी जाती से है। हमारे घर में कोई आता नहीं। हम अछूत है हमारा छूना भी पाप है तुम एक दो दिन में चले जाव। हमारी गरीबी रोज की है। हम यहाँ जन्म लेते है और ऐसी ही मर जाते है। "
" में ऐसा कुछ नहीं मानता मेरे लिए हर इंसान हर रिस्ता पवित्र है। में यहाँ आया तो चंदा के लिए था लेकिन अब माँ बाप और एक बहन भी मिल गयी।
ये सुनके बूढ़े लोगो की आँख में ख़ुशी के आंसू थे।
लाची ने वो बात अभी भी छुपा के रखी की वो काले कपडे वाले कोन थे ?
(क्रमश:)

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