Pahadin - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

पहाडिन - 1

                                                                                      पहला खंड

 

निवाड़ी, नंदादेवी पर्वत के निचले इलाके में बसा एक छोटा सा गांव। गांव के चारो और छोटीछोटी  पहाड़िया,-घने पेड़ो के झुरमुट थे।  गांव के पास में अलकनंदा नदी अपना निर्मल ओर पवित्र जल बहाती है।  ज्यादातर गांव की औरते यहाँ सुबह और शाम को पिने का पानी लेने आती है। ये पहाड़ी इलाका अपनी खूबसूरती के वजह  से ही   जाना जाता है।सूरज की किरणे जब नदी की जल से अठखेलिया करती है तब सारा इलाका सोने की चमक सा दिप उठता है।  जैसे पहाड़ के टोच से पिगला हुआ सोना  गांव  को  नहलाकर कर और नदी  में  विलीन हो  जाता है।  चारो ओर एक अजीब सा सुकून था।  मन को प्रफुल्लित करने वाली ताज़ी हवाएं ,मासूम चिडियों की ची ची की आवाजे। नदी के पानी का कलशोर एक संगीत , जैसे निंरतर हवा में गूंजता रहता है।

कुदरत ने यहाँ अपनी सुंदरता को यु बिखेरा है जैसे कोई रंगबाज अपने रंग कागज़ पे बिखेरता है।  यहाँ का नज़ारा इतना हसीन ओर मन मोहक है की कई प्रकृति प्रेमी शीत काल में यहाँ घंटो बैठे रहते है।

 

राम मनोहर गांव के मुखिया थे ,गांव में उनकी इज्जत किसी राजा से कम न थी।  उनकी बेटी चंदा वो भी एक राजकुमारी सी थी। कमसिन थी ,बचपना गया न था ,यौवन आने को था। घटा से भी काली जुल्फे थी, नीली आंखे, पतले ओर गुलाबी होठ, सुराहीदार गर्दन,शरीर का रंग  जैसे किसी ने मक्खन में सिंदूर मिलाया हो। मासूमियत इतनी की पंखी चहचहाना भूलजाये,लहरों का संगीत ज्यादा मीठा है या उसकी हँसी ये तय करना मुश्किल हो जाता है।

आज भी सभी सहेलिया अलकनंदा नदी की ओर जा रही थी ,सभी अपनी पहाड़ी वेश भूषा में बहोत ही खूबसूरत लग रहीथी। चंदा ने माथे पे छोटे छोटे गोल तमगे पहने थे जिसपे तेज धुप पड़ने से चमक रहे थे।  किसी बात पर उसकी हसी निकल गई। एक पल ऐसे लगा जैसे ये हसी वादियां खिल खिला उठी। सच में छोटे बच्चे जैसे दिखने वाली मासूम चंदा किसी पवित्र देवी का आशीर्वाद लगती थी।

दूर से कोई दो अजनबी पैदल आ रहे थे ,दोनों कोई टूरिस्ट लगते थे  पास में आये तो पता चला वो दोनों घाटी में रास्ता भूल ने कारण यहाँ आ गए थे।

एक MBA का स्टूडेंट  आकाश था ,दूसरा पेड़ पोधो पे रिसर्च करने वाला सूरज था।  आकाश बेहद मॉर्डन ख़याल वाला था ,सूरज वक्त को देख,समज ने वाला ,मितभाषी ,थोड़ा शर्मीला  दूसरे के अहसास ,दर्द को अपना समझने वाला ,कुदरत के नज़ारे में जीने की ख्वाइश वाला एक ईमानदार नेक बंदा था।

चंदा मुखिया की बैठी थी ,और थोड़ी मस्ती के मूड में भी थी इसलिए वो उन लड़को के करीब गई ,और डाट ने के अंदाज में बोली

"यहाँ लड़किया है ,दिखाई नहीं देता ,मुँह उठाके चले आये हो ?"

" जी हम भी यहाँ आपसे मिलने नहीं आये ,रास्ता भूले  तो यहाँ आ पधारे।  आकाश ने भी उसी टोन में जवाब दिया।

"ऐसा नहीं है , हम अपने मित्रो से अलग होगये है , पहाड़ी रास्ते से अनजान है ,थोड़ी हमारी मदद कर देते तो आप का अहसान होगा।

ये जवाब सुनके तो अकेली चंदा ही नहीं सब सहेली नरम हो गई। बोली "ठीक है, हमारे पीछे पीछे आओ ,बापू को पूछना पड़ेगा।

आगे लड़किया ,पीछे दो थके हुए लड़के चल रहे थे। उनका जुलुस घर तक पहोच गया।

राम मनोहर चार पाई पर बैठे हुए कोई मसले पे बहस कर रहे थे ,उनकी नज़र आगंतुक दो नवजवान पे ठहरी। उन्होंने सवालिया निगाह से चंदा की ओर देखा ,

चंदा  तपाक   से बोली "ये नदी के किनारे से मिले ,अपना रस्ता भूल गए है। मदद के लिए आये है "

" ठीक है , उसे सामने वाली खोली में आराम करने को बोलो ,में यहाँ निपटाके उनसे  मिलता हु। "

टूटी फूटी घास पत्तो की खोली थी ,अजीब सा सुकून मिला ,थकन तो फुर्र हो गयी पर भूख का क्या करे ?

आकाश बोलो " देवियो ,एक मेहरबानी ओर कर दीजिये ,कुछ रुखा सूखा खाने को भी ले आइये "

जिस अंदाज में आकाश ने कहा था वहां जितने भी मौजूद थे सब की हसी निकल गई।

वहां मुखिया ने आते ही कह दिया ,"ये हमारे महेमान है ,हमारी मदद के लिए आये है। इन्हे खाने को कुछ देदो बेटा। "

चंदा आकाश को घूरती हुई अंदर गई, थोड़ी देर बाद हाथ में दो पतीले लेके आयी.

उनके सामने परोस दिया, सच में पहाड़ी खाना बहोत ही अच्छा लगा ,थोड़ा तीखा था लेकिन स्वादिष्ट था , गेहू और खमीर की देशी घी में बनाई रोटी -जिसे ये लोग सिद्दू कहते है ,दाल ,राजमा चावल दही से बनाया "धाम" ,मांढरा - चने की सब्ज़ी,और सबसे अच्छा था "तुदक़िया  भात"

ये सब सूरज ने बातो बातो में पता लगा दिया था। खाना ख़तम होते ही दोनों ने मुखिया जी को मिलने गए।

"आप ने हमें खाना खिलाया ,आराम करने को जगह दी, आप का शुक्रिया कैसे करे वो समज नहीं प् रहा हु " सूरज ने अपनी शालीन आवाज में कहा।

"बेटे ,हम पहाड़ी मेहमान को बड़े चाव से रखते है ,हमारे यहाँ ऐसा रिवाज है की जो भी आपके यहाँ आये उसे भगवन का आशीर्वाद समजे। उसकी खूब सेवा करे ,यहाँ पे क्षेत्रपाल हमारे भगवन है , हम उनका कहा ,उनके नियमो से चलते है तो वो हमें ,तूफान ,बारिश ,अकाल ,और भूकं जैसी आपदा से बचाते है, हमारे घर और खेत की रक्षा करते है , "

" अच्छा , हम शहरी  लोग यहाँ की सभ्यता को समज ने की जगह ,पहाड़ पे बसे  भोले  लोगो को "गवार और अनपढ़" कहते है "

" क्या नाम तुम्हारा ,सूरज ,याद आया , अपनी उम्र से भी बढ़ी बाते करते हो , अच्छी समज और संस्कार है "

" अब हमें ये बतायेगे की हम चमोली कैसे पहोचे ? बिच में आकाश टपका

"ये इलाका टिहरी गढ़वाल के अंतिम छोर पर है , यहाँ से २-३ माइल पैदल और घुड़सवारी ,दोनों में से एक  तरीका आजमा लो"

सेक्री पहाड़ से दूर , मनसा पहाड़ी के टेकरी से आगे चलते जाओ ,तुम्हारा चमोली आ जायेगा "

" हम अनजान है। थोड़े दूर कोई अगर छोड़ने आये तो ,,,"

" ठीक है ,में तो बूढ़ा होगया , किसी को भेजता हु।  तुम अपना सामान साथ में रखो।

इधर चंदा ये सब खड़ी खड़ी दूसरे  कमरे से सुन  रही थी ,न जाने क्यों उसके दिल की धड़कन तेज हो गयी ,उनका मन उसको अपने काबू से बहार लगा , मन के अंदर से एक आवाज आती थी 'ये सूरज तेरे लिए ही रास्ता भूल के इधर आया है ,उसे रोक ले , फिर खुद ही पहाड़ो के देवता से माफ़ी मांगती है। मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए ,वो हमारे मेहमान है। भगवान है।छी छी,,कह के अजीब सी शक्ल बनके खड़ी रही।

कुछ ऐसा ही हाल सूरज का था ,उसने जान बुजके कोई रास्ता दिखाने आये , ऐसा सुझाव किया। वो सिर्फ एकबार चंदा से मिलके उसका सुक्रिया अदा करना चाहता था।ख़ास तोर से उस खाने के लिए।

 

दोनों ओर एक दूसरे से मिलने की तड़प थी ,अगर ये तड़प  इश्क़ ,चाहत ,मुहोबत ,आशिकी  या प्रेम ,प्रीत ओर प्यार में तब्दील हुआ तो ?

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