ममता की परीक्षा - 53 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 53



गोपाल साधना के साथ गाँव के नुक्कड़ पर पहुँचा, जहाँ डॉक्टर बलराम सिंह की डिस्पेंसरी थी। डॉक्टर बलराम समय के पाबंद थे सो सही समय पर आ गए थे। डिस्पेंसरी के बाहर मरीजों की कतार लगी हुई थी। डॉक्टर बलराम अंदर के हिस्से में किसी मरीज का चेकअप कर रहे थे।

अमूमन उनका सहयोगी भोला राम नंबर के मुताबिक नाम पुकारता और फिर मरीज अपनी बारी आने पर डॉक्टर के कक्ष में प्रवेश पाता। सिरदर्द से बेहाल गोपाल मरीजों की कतार में जाकर खड़ा हो गया। जमनादास भी उसके साथ ही था।

उनके साथ खड़ी साधना काफी परेशान नजर आ रही थी। तभी उसपर नजर पड़ते ही भोला अपनी जगह से उठकर साधना के पास आया और बोला, " क्या हुआ बिटिया ? मास्टर साहब को कोई तकलीफ है क्या ? बहुत परेशान लग रही हो।"

"हाँ काका, बहुत ज्यादा परेशान हूँ। बाबूजी बिलकुल ठीक हैं। उन्हें कोई परेशानी नहीं है। इन्हें साथ लाई हूँ। देखो न इन्हें बहुत तेज बुखार और सिरदर्द है।" साधना ने भोला को बताते हुए गोपाल की तरफ ईशारा किया।

"ओ हो,.. जँवाई बाबू की तबियत खराब है ? तुम चिंता न करो। अभी डॉक्टर साहब देखकर दवाई दे देंगे। भगवन ने चाहा तो दो खुराक दवाई की पेट में जाते ही जँवाई बाबू एकदम भले चंगे हो जायेंगे।" भोला उससे हमदर्दी जताते हुए बोला।

तभी डॉक्टर के कक्ष से मरीज बाहर निकला। कतार में सबसे आगे खड़ा मरीज अंदर घुसने ही वाला था कि भोला फुर्ती से जाकर उसके आगे खड़ा हो गया और साधना को आवाज लगाया, "अरे साधना बिटिया ! वहाँ क्या कर रही हो ? तुम्हारा नंबर आ गया और तुम पीछे खड़ी हो ? चलो जल्दी।"

साधना और गोपाल डॉक्टर के कक्ष में प्रवेश कर गए। कतार में खड़े कुछ युवक कसमसाये "अरे हमारा नंबर था। तुम उसको क्यों घुसाये बिच में ?"
उन्हें लगभग झिडकते हुए भोला ने जवाब दिया, " देखो, ज्यादा होशियार न बनो, समझे ! नंबर हम न लगवाए हैं, इसलिए हमको मालूम है कि किसका नंबर पहले है। ...कि तुम लोग बताएगा कैसे नंबर लगाया जाता है ? दवाई लेना है तो ख़ामोशी से खड़े रहो।" आसपास दूर दूर तक अन्य कोई डॉक्टर नहीं था सो मरीज और क्या करते सिवा ख़ामोशी से खड़े रहने के ?

गोपाल का पूरा शरीर बुखार से तप रहा था और साथ ही सिर में भी बहुत तेज दर्द था। हलकी ठंडी भी लग रही थी। उसका भली भाँति परिक्षण करके डॉक्टर बलराम सिंह ने एक पर्ची पर कुछ लिखा और भोला से दवाई लेने के लिए कहकर दूसरे मरीज को देखने में व्यस्त हो गए।
गोपाल , जमनादास और साधना अभी घर पहुँचे ही थे कि मास्टर रामकिशुन भी आ गए। आते ही उन्होंने गोपाल की सेहत के बारे में पूछा और फिर जमनादास के बारे में पूछा। साधना ने जमनादास का संक्षिप्त परिचय कराते हुए अब तक के सभी घटनाक्रम से उन्हें परिचित कराया।

पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने साधना से पूछा, "तुम क्या कह रही हो इस बारे में ? क्या जँवाई बाबू को वहाँ जाना चाहिए ? क्योंकि मैं तो उन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता। तुम जानती हो, सो सही निर्णय तुम ही कर सकती हो।"

साधना ने अपना नजरिया पेश करते हुए कहा कि माँ की गंभीर बीमारी को देखते हुए गोपाल को अवश्य जाना चाहिए।
दवाई खाकर गोपाल को कुछ राहत महसूस हुई। अब वह आँखें बंद किये दालान में एक खटिये पर लेटा हुआ था।

उससे कुछ दूर हटकर साधना, मास्टर और जमनादास ने लंबी बातचीत के बाद यह तय किया कि गोपाल के अस्वस्थ होने की वजह से जमनादास भले कुछ देर और ठहर जाय लेकिन गोपाल को उसके साथ अवश्य जाना चाहिए।

तभी गोपाल ने करवट बदली। मास्टर रामकिशुन उसके नजदीक जा पहुँचे और उसके माथे पर हाथ रखकर बुखार की तीव्रता का अनुमान लगाया और कहा, "बुखार तो अब अधिक नहीं लग रहा है। दवाई से बड़ी जल्दी फायदा हुआ है। अब सिरदर्द कैसा है ?"

"बड़ी राहत है बाबूजी !" कहकर गोपाल उठ बैठा और खटिये से उतरकर खड़ा होने का प्रयास करने लगा। अब तक वह गाँव के नियम कायदे और तौर तरीके समझने लगा था।
मास्टर ने उसे लेटे रहने का ईशारा किया और दूसरी खटिया खींचकर उसपर बैठते हुए बोले, " तुम्हारी माताजी बीमार हैं और मेरी सलाह है कि ऐसे समय जब उन्हें तुम्हारी सख्त जरुरत है, तुम्हें उनके पास अवश्य जाना चाहिये। अब तबियत गवाही दे रही हो तो उठो और अपने दोस्त के साथ अपने घर जाने के लिए तैयार हो जाओ। मैं तुम्हारी दो दिन की छुट्टी की अर्जी मंजूर कर लूँगा। तुम बस माँ जी से मिलना और वापस आ जाना। चाहो तो साधना को भी साथ ले लो।"

"नहीं बाबूजी, इस समय मेरा जाना सही नहीं होगा। सारे झगड़े की जड़ तो मैं ही हूँ और मुझे देखते ही उनके जख्म और गहरे हो जायेंगे।" कहकर साधना खामोश हो गई।

काफी सोच विचार के बाद गोपाल जमनादास के साथ जाने के लिये तैयार हो गया। दिनभर का थकाहारा सूरज भी अब अस्ताचल के करीब पहुँच चुका था। अब शीघ्र ही धरती पर अँधेरे का साम्राज्य फ़ैलने वाला था। साधना और मास्टर के साथ घर से निकलते हुए गोपाल के मन में तरह तरह की आशंकाएं पैदा हो रही थी लेकिन मास्टर के सीधे आदेश के बाद अब वह क्या कर सकता था ? उसने मन ही मन किसी भी भावुकता में न बहते हुए शहर जाकर शीघ्र ही यहाँ वापसी के लिये प्रस्थान कर लेने का अपना संकल्प दुहराया और फिर यह कहकर अपने मन को दिलासा दिया कि 'अब तू कोई बच्चा थोड़े है जो कोई जबरदस्ती तुझसे अपनी बात मनवा लेगा ? इसी बहाने सबको पता भी चल जाएगा कि तेरी और साधना की शादी हो चुकी है। अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो आकर साधना की विदाई कराकर उसे भी अपने साथ शहर ले जाएगा। सब कुछ ठीक हो जाएगा।' और फिर मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगा कि ' हे भगवान, सबअच्छा ही करना ! साधना का ध्यान रखना।'

उन्हें जाते हुए देखकर गाँव के कुछ अन्य लोग भी उनके साथ जुड़ गए। आगे बढ़कर गाँव के ही एक दूसरे युवक ने गोपाल के हाथों में थमा थैला लेकर अपने कंधे पर टांग लिया और उनके साथ साथ चलने लगा। कुछ ही मिनटों में गोपाल के शहर जाने की खबर पूरे गाँव में फ़ैल गई और एक एक कर जुड़ते जुड़ते बना लोगों का हुजूम उन्हें कार तक पहुँचाने के लिए उनके साथ चलने लगा। लोगों के चेहरे बुझे हुए से थे तो कुछ भावुक किस्म के बुजुर्गों की आँखों से आँसू छलक पड़े थे। कार के नजदीक पहुँचकर गोपाल ने सभी गाँववालों का अभिवादन किया और बुजुर्गों के पैर छुए। कुछ वृद्ध उसे आशीर्वाद देते हुए फफक पड़े थे।

मास्टर रामकिशुन के चरण स्पर्श करके गोपाल कार में बैठने जा ही रहा था कि तभी साधना आगे बढ़ी और गोपाल के चरणों में झुक गई। उसकी आँखें नम थीं। आँखें गोपाल की भी भर आई थीं। गोपाल ने फुर्ती से साधना के दोनों कंधों को पकड़कर उसे खड़ा किया और अपने सीने से लगा लिया। मास्टर पहले ही दूसरी तरफ घूम कर अपने आँसू पोंछ रहे थे। बेमन से साधना से अलग होते हुए गोपाल कार में बैठ गया। जमनादास पहले ही ड्राइविंग सीट पर जमा हुआ था। गोपाल के बैठते ही कार चल पड़ी। थोड़ी देर बाद कार आँखों से ओझल हो चुकी थी और पीछे दिख रहा था धूल का गुबार।

धूल के गुबार के बीच कार जब तक नजर आती रही मास्टर और साधना दोनों उसे डबडबाई आँखों से देखते रहे और फिर मुड़ कर चल पड़े अपने घर की ओर ! गाँववाले भी सजल नेत्रों से उनके साथ वापस चल दिए।

क्रमशः