भाग 30
अभी तक पिछले भाग में आपने पढ़ा की चंचल और मदन के नीना देवी की सारी प्रॉपर्टी बेच कर चले जाने पर नीना देवी के इलाज के भुगतान के लिए शांता मजबूर हो कर नीता को फोन करती है। नीता शांता का फोन आते ही तुरंत हॉस्पिटल जाकर नीना देवी को अपने घर के कर आती है। साथ ही हॉस्पिटल का पूरा बिल चुकाती है। नीता अपनी बहन को असहाय देख उन्हे न्याय दिलाने के लिए प्रणय के पास मदद के लिए आती है। प्रणय उन्हे आश्वस्त करता है की को कुछ भी बन पड़ेगा वो जरूर करेगा। अब आगे पढ़े।
अगले संडे मैं नीना देवी को देखने के लिए नीता मासी के घर जाने लगा तो मां ने भी साथ चलने को कहा। मैं मां के साथ नीना देवी को देखने जाने के लिए नीता मासी के घर के लिए निकल पड़ा। पर उसके पहले इस बीच के समय में मैने पता किया की सारी प्रॉपर्टी नीना देवी के नाम थी। जब सारी प्रॉपर्टी उनके नाम थी और उन्होंने किसी को भी अपनी पॉवर ऑफ अटॉर्नी नही दी थी। नही किसी के नाम अपनी किसी भी प्रॉपर्टी को किया था तो किसी को भी उसे बेचने का अधिकार नही था। ऐसे में उसे कोई बेच नही सकता था। अगर कोई जल साजी करके उसे बेचता है तो, उसे वापस पाने में कोर्ट मदद कर सकता है। और ये एक अपराध है। ये बिलकुल साफ था की मदन और चंचल ने फर्जी वाड़ा करके नीना देवी की प्रॉपर्टी को बेचा है। पर और कोई कुछ नही कर सकता था, जब तक नीना देवी खुद कोर्ट में इसकी शिकायत नहीं करतीं। क्योंकि संपत्ति उनकी थी और ये अधिकार भी सिर्फ उनको या उनके वारिस को था। वारिस उन्होंने किसी को बनाया नही था। मिनी अभी बहुत छोटी थी।
नीना देवी की संपत्ति का किसी को लालच नही था। पर धोखा देने वाले, नीना देवी को इस हालत में बेसहारा छोड़ने वाले उनके भाई और भाभी को नीता मासी ही नही हम सब भी सबक सिखाना चाहते थे। अगर शांता ना होती नीना देवी के बारे में किसी को कुछ पता भीं नही चलता।
मैं मां के साथ नीता मासी के घर पहुंचा। नीता मासी ने बड़ी गर्मजोशी से मां का और मेरा स्वागत किया। मिनी इतने लंबे समय बाद मुझे देख कर दौड़ती हुई आई और मेरी गोद में चढ़ गई। मैने भी उसे उठा कर सीने से लगा लिया। बड़ी सुखद अनुभूति हुई मिनी को सीने से लगा कर। नीता मासी ने लंच की तैयारी करवा रखी थी। वो बहुत सारी चीजे अपने हाथो से बना कर हमारा स्वागत करना चाहती थी।
चाय नाश्ते के बाद हम नीना देवी के कमरे में उनसे मिलने के लिए गए। बिलकुल साफ सुथरा कमरा चमक रहा था। साफ बिस्तर पर नीना देवी लेटी हुई थी। उनके शरीर में कोई हरकत नहीं थी। हम सभी उनके कमरे में आए। मैने सुन रक्खा था, कई रिसर्चों में भी ये साबित हो चुका था की कोमा के मरीज को जो कुछ भी उसके पास बैठ कर स्पर्श कर के बोलो वो सुन सकता है, समझ सकता है। मैने इस थ्योरी को आजमाने की सोची। आहिस्ता से उनके बेड के पास गया और उनके पास कुर्सी खिसका कर उस पर बैठ गया। फिर उनका हाथ अपने हाथों में ले कर धीरे धीरे सहलाता रहा और मिनी की बात उन्हे बताता रहा। कैसे मिनी ने नई पोएम याद की है। वो बहुत ही अच्छे से पढ़ाई कर रही है। मिनी के हाथों से भी उनके हाथों और चेहरे पर फिरवाता रहा। और किसी का तो छोड़िए खुद मुझे भी उम्मीद नहीं थी की सिर्फ इतने भर से नीना देवी कोई में आश्चर्यजनक रूप से कोई फर्क दिखेगा। उनके निश्चल चेहरे पर हल्की सी स्मित फैल गई गई। ये देख सभी के दिलों में हैरत के साथ खशी की लहर दौड़ गई। फिर बार बार मैं मिनी से वैसे ही करवाने लगा। फिर मैने उनसे बात की कोशिश की और कहा, "आप जल्दी ठीक होइए आपको ठीक होना ही होगा मिनी, नियति, नीता मासी, शांता जी, मैं सभी को आपके ठीक होने का इंतजार है। आपके जिन अपनो ने आपको धोखा दिया है, उन्हे आपको सबक भी तो सिखाना है। इस कारण आपको जल्दी ठीक होना ही होगा।"
इसके बाद लंच कर मां के साथ वापस घर आ गया। वापस आने से पहले मैंने अपनी विवशता जाहिर की कि मैं रोज तो आ नही सकता। साथ ही नियति और नीता मासी को समझा भी दिया की बिना गैप के रोज दोनो समय मिनी के साथ कोई न कोई नीना देवी से पूरे दिन और आस पास की उनसे जुड़ी बातें रोज बताए। मैं भी जब भी समय मिलेगा आ जाया करूंगा।
इस बात का असर धीरे धीरे नीना देवी पर होने लगा। कुछ दिन बाद वो आंखे खोल कर देखने लगी। फिर कुछ दिन बाद वो इशारे से अपनी बात बताने लगीं। फिर एक दिन ऐसा भी आया की व्हील चेयर के सहारे पूरे घर में घूमने लगी और अटक अटक कर बोलने भी लगीं। जो नीना देवी कोमा में गई थी वो दूसरी थी। इस नीना देवी का कोमा से बाहर आने पर एक नया जन्म भी हुआ था। अब जो नीना देवी ठीक हो रही थी वो पहले वाली नीना देवी से बिलकुल उलट थी। वो नीना नियति की शक्ल तक नही देखना चाहती थी थी। ये नीना देवी जब तक नियति ऑफिस से न आ जाए किसी के हाथ से चाय तक नही पीती थी। जब तक नियति घर में रहती नीना अपना सारा काम उसी से करवाती। नियति अब उन्हें मयंक जितनी ही प्यारी हो गई थी।
आज फिर सन्डे था मैने नीता मासी के घर जाने का प्रोग्राम बनाया। अब मेरी छुट्टी का इंतजार मुझसे ज्यादा नियति के घर वालों को रहता। कब छुट्टी हो और कब मैं उनके घर पहुंच जाऊं..? इसका सभी इंतजार करते।
मुझे जाते देख मां भी साथ हो ली। बोली, "तू चला जायेगा तो मैं अकेले क्या करूंगी? मैं भी साथ चलती हूं।"
और नियति उसकी मैं क्या बताऊं? मुझे तो उससे कुछ भी नही चाहिए था। बस एक बार बार नजर देख लूं वही मेरे लिए काफी था। पर अब मुझे लगने लगा था की उसे भी मेरा इंतजार रहता था। वो जब मेरे सामने होती तो एक अजीब सी चमक उसके चेहरे पर होती। पर वो एक मां थी, एक बड़े खंडन की बहू थी। उसे अपनी मर्यादा का सदैव खयाल रहता था। और ये सही भी था।
मैं और मां नीता मासी के घर पहुंचे। नीना देवी व्हील चेयर पर बैठी थी। मैने झुक कर उनके पांव छुए और, पूछा, "आज तो बहुत फ्रेश लग रही है, क्या बात है?"
नीना देवी भी अटकते अटकते बोली, "मुझे आज ऐसा लग रहा था की तुम आओगे इसी लिए फ्रेश लग रही हूं। अपने बेटे की आने की खुशी में।
बेहद खुशनुमा माहौल में हमने लंच किया। अब फिर जाने की बारी थी। जाना कौन कमबख्त चाहता था। पर जाना तो पड़ेगा ही। मैं सोच रहा था। नियति मिनी के बिखरे खिलौने समेत रही थी। और मैं … मैं ये पल समेट रहा था।
हमे जाते देख कर नीना देवी ने इशारे से बुला कर मां को अपने पास बिठाया और हाथ जोड़ कर अटकते अटकते बोली, "मैं अपनी बेटी नियति के लिए आपके बेटे प्रणय का रिश्ता मांगती हूं, क्या आपको नियति स्वीकार है? मेरी बेटी आपको बहुत खुश रखेगी। ये मेरा वादा है।"
मां तो जैसे जाने कब से इस क्षण की प्रतीक्षा में ही जी रही थी। खुशी से पागल सी हो गई। उनके होठ हंस रहे थे। आंखे नम थी खुशी के आंसुओ से। वो बोली, "मैं तो कब से इस घड़ी का ही इंतजार कर रही थी। नियति जैसी बहू मिले ये मेरा सौभाग्य होगा। आप जब आदेश देंगी मैं बारात ले कर आ जाऊंगी।"
नीना देवी ने मेरी ओर देखा और मजाकिया अंदाज में पूछा, "क्यों वकील साहब कब बारात लानी है, या कोर्ट मैरेज ही करवा दूं आपकी? ज्यादा जल्दी हो तो।"
मैं शरमाते हुए बोला, "नही! अभी नहीं! जब तक आपसे आपका जो कुछ भी छीना गया है धोखे से, उसे वापस न करवा दूं तब तक नही। बारात तो आएगी पर आपके उसी घर पे। ये मेरा मुझसे वादा है।"
नीना देवी उदास हो गई। बोली, "बेटा अब मेरे वो दिन वापस नहीं आ सकते! और मैं चाहती भी नही। मैं पहले की जिंदगी जिसमे दौलत तो थी पर परिवार नही था ऐसा वक्त अब नही चाहती। मेरे बच्चे मेरे साथ है।अब मुझे वो प्रॉपर्टी नही चाहिए। बस तुम और नियति खुश रहो। जिसके पास तुम जैसा बेटा हो उसे तो वैसे ही सब कुछ मिल गया।"
मैं नीना देवी के चेयर के पास गया। आज मेरा दिल उन्हे नीना मैम कहने का नही कर रहा था। मेरा मन उन्हे अंदर से मां पुकारने को आतुर था। मैं घुटने के बल बैठ कर उनके हाथों को अपने हाथो में ले कर बोला, मैं आपको मां कह सकता हूं क्या??"
जवाब में नीना देवी की आंखों से दो बूंद आंसू गालों पर लुढ़क आए। उन्होंने "हां" में सर हिलाया।
मैं बोला "मां…! मैं जब तक आपका खोया हुआ सम्मान वापस न दिला कर दोषी को सजा न दिला दूं तो आपका बेटा कैसा? एक बेटे के रहते मां को कोई धोखा नहीं दे सकता आपको सताने वालो को सजा दिला कर रहूंगा मां..!"
मां के संबोधन को सुनकर नीना देवी ने मुझे गले से लगा लिया। वो आज बहुत खुश थी। नियति इन बातों के शुरू होते ही वहां से अंदर चली गई। मेरी मां बोल उठी, "देखा ! यही तो है संस्कारी लड़की के गुण।" और मुस्कुरा उठी। आज तो जैसे सारा वातावरण ही मुस्कुरा रहा था।
नीना देवी से पेपर साइन करवा कर उसी दिन मैने रख लिया और दूसरे दिन कोर्ट में केस फाइल करवा दिया। कुछ समय लगा। पर जैसा की सब जानते है झूठ के पांव नहीं होता, वो ज्यादा देर तक नही भाग सकता। थोड़ा वक्त लगा पर जाली पेपर से बेचा गया घर का मालिकाना हक वापस नीना देवी को मिल गया। वैसे ही बिजनेस भी बिना उनके सिग्नेचर के हैंड ओवर किया गया था । मदन ने सिर्फ पैसे लेकर पूरी कंपनी किसी को चलाने को दे दी थी। वो भी उन्हें वापस मिल गया।
आज नीना देवी का बंगला दुल्हन की तरह सजा हुआ था। मैं अपने कुछ खास दोस्त और मां के साथ बारात ले कर उनके बंगले पर पहुंचा। कुछ ही लोगो की उपस्थिति में मैने और नियति ने फेरे लिए। मिनी चहकती हुई सुंदर सा लहंगा पहने इतरा रही थी। वो और नीता मासी हम पर फूल बरसा रही थी।
इस शादी में अनोखी बात ये थी की दुल्हन की विदाई नही होनी थी। नीना देवी ने यही एक मात्र शर्त रखी थी।
मुझे अपनी मां के साथ उनके बंगले में ही रहना होगा। पहले तो मैंने इनकार किया। पर जब वो उदास हो कर बोली, "बेटा..! मां मानने में और वास्तव में मां होने में यही तो अंतर है। तुम मुझे मां मानते हो। मैं तुम्हारी मां थोड़े ही ना हूं..? अगर मैं सच मुच तुम्हारी मां होती तो क्या तब भी तुम अलग रहते..?"
उनके इस एक सवाल ने मुझ जैसे वकील को भी निरुत्तर कर दिया। मैं राजी हो गया उनके साथ उनके बंगले में रहने को।
शादी के बाद नीना मां ने मेरे और नियति के लिए स्वीटजरलैंड की टिकट बुक थी। वो जानती थी की हमें यहां रह कर एक दूसरे को समझने का अवसर नहीं मिलेगा। हमें वो वक्त कही दूर जाकर ही मिल सकता था। एयर पोर्ट के लिए निकलते वक्त मिनी को भी मैं और नियति साथ ले जाना चाहते थे। वो भी हमारे साथ घूम लेती। पर नीना मां ने सख्ती से मुझे और नियति को मना कर दिया। वो बोली, "हनी मून पति पत्नी एक साथ जाते है, बेटी के साथ नही। फिर इसके बाद तुम दोनों कही जाना तो मिनी को साथ ले कर जाना पर इस बार नहीं। फिर इसकी तो यहां तीन तीन दादियां है इसका ख्याल रखने को। तुम दोनो तो बस अपने जीवन के इस अनमोल पल को इंजॉय करो।"
शादी के बाद तुरंत हमें भेज दिया उन्होंने पन्द्रह दिनों के लिए।
मैं नियति के साथ उस सफर के बाद शायद पहली बार अकेला सफर कर रहा था। वो घर से टैक्सी में मेरे साथ
एयरटपोर्ट के लिए निकली। नीना मां ने उसे जिद्द करके एक हल्के वर्क वाली ब्लू कलर की साड़ी पहना दी। डीप कलर में नियति का गोरा रंग निखर उठा था। मेरी नजरें उसके चेहरे से हट नही रही थी। पर इस तरह मेरे देखने से वो असहज ना महसूस करे। इस कारण खुद को कंट्रोल कर नियति की और निगाह जाने से रोक रहा था।
हमारी फ्लाइट ने टाइम से उड़ान भरी और बिल्कुल टाइम से लैंड भी हुई। नियति की ये पहली हवाई यात्रा थी वो काफी असहज महसूस कर रही थी। पूरी फ्लाइट में सिर्फ वही ऐसी थी जिसने साड़ी पहनी हुई थी। पर इतने चाव से नीना मां ने उसे पहनाया था की मेरे कहने पर भी उसने चेंज नहीं किया। हमने ज्यूरिक एयरपोर्ट पर लैंड किया और पहले से बुक अपनी टैक्सी से बेसल शहर के लिए रवाना हो गए।
ज्यादा लंबा सफर नही था। हम लगभग सवा घंटे में अपने होटल पहुंच गए जहां हमे ठहरना था। एक रोमांच का एहसास मुझे हो रहा था। मैं और नियति पहली बार अकेले थे इस तरह।
हमारा प्यार बड़ा ही अजीब था। मैने आज तक ऐसा प्यार कही भी देखा या पढ़ा नहीं था। ये ऐसा प्यार था जिसमे कोई वादा नही था, कोई इकरार नही था। किसी डेट पर हम नहीं मिले थे, कभी एक दूसरे को छुआ नहीं था। हमारा प्यार एक अलौकिक प्यार था, हमारा प्यार एक दिव्य प्यार था, जिसकी लौ दोनो दिलों में जल रही थी। जिसे हम महसूस करते थे एके दूसरे के दिल में।
आज हमारा प्यार पूर्ण हो रहा था। ये ईश्वर की असीम अनुकम्पा थी की आज हम एक साथ थे। टैक्सी रुकने पर मैं अपने ख्यालों से बाहर आया। खुद बाहर आकर मैंने नियति के साइड का दरवाजा खोला और नियति बाहर उतरने लगी। मैने बड़े ही प्यार से उसकी आंखो मे देखा और अपना हाथ आगे कर दिया उसका हाथ थामने को। नियति ने भी अपनी झुकी नजरे मेरी ओर डाली। हमारी नजरें मिनी वहां मुझे उसकी आंखो में अथाह प्यार हिलोरें मारता दिखा। नियति ने स्माइल के साथ अपना हाथ मेरे हाथों में दे दिया। मैं उसका हाथ थामे होटल के अंदर चल पड़ा। मेरे कदम खुशी से इस जमीन पर नही पड़ रहे थे। हम एक नए राह में चल पड़े एक दूसरे का हाथ थामें।
मेरे स्वीटजरलैंड जाने के बाद मेरी मां को अकेले मेरे फ्लैट में नही जाने दिया नीना मां ने और नीता मासी ने। हमारे वापस आने से पहले मेरा फ्लैट खाली करवा कर सारा सामान अपने बंगले में सेट करवा दिया। नीना मां ने एक कमरा मेरी मां के सुविधानुसार सेट करवा दिया। मेरे और नियति के लिए मयंक के ही कमरे को नए रूप से डेकोरेट करवा दिया।
दुखो से घबरा कर कभी हार ना मानो,
आयेगी खुशियां जरूर दिल से अगर ठानो।
प्यार अगर है सच्चा तो ना तुमसे दूर रहेगा,
हर हाल में एक दिन हर तूफानों से लड़ कर,
एक दिन तुमसे आ कर मिलेगा।
आपको ये कहानी कैसी? लगी जरूर बताएं।
समाप्त