Pal Pal Dil ke Paas - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 29

भाग 29

अभी तक आपने पढ़ा की जब नीना देवी की बदजुबानी से खुराना की सहन शक्ति जवाब दे देती है तो वो उन्हें आईना दिखा देता है। सारी सच्चाई खरी खरी उनके सामने रख देता है। नीना देवी को ये बर्दाश्त नहीं होता की कोई उन्हे सही और गलत का बोध कराए। खुराना की बातें सीधा उनके दिमाग पर असर करती है और वो बेहोश हो जाती हैं।

नीना देवी के गिरने की आवाज सुनकर चंचल भागी भागी आती है। नीना को गिरे देख अपने ही अंदाज में चीखने लगती है, "हाय! ये मेरी जीज्जी को क्या हो गया? हाय ! राम ये क्या हो गया? कोई तो आओ देखो जिज्जी को क्या हो गया?

चंचल की आवाज सुनकर शांता भी आती है वो बिना कोई हल्ला गुल्ला मचाए ड्राइवर को बुलाती है, और बाकी के नौकरों की मदद से उन्हें लेकर हॉस्पिटल में पहुंचती है जहां पहले भी नीना की पूरी फैमिली का इलाज होता था। लाइफ लाइन हॉस्पिटल शहर का फेमस हॉस्पिटल था। वहीं शांता नीना देवी को ले कर गई।

डॉक्टर ने चेकअप किया, कई टेस्ट किया । और दिलासा दिया की नीना देवी जल्दी ही ठीक हो जाएगी। पर समय बीतता रहा। पहले एक दिन, फिर दो दिन और फिर पूरा सप्ताह बीत गया। पर नीना देवी के स्वास्थ्य में कोई सुधार होता हुआ डॉक्टर्स को नहीं दिख रहा था। कुछ और टेस्ट करवाने पर डॉक्टर्स ने चंचल और उसके पति को बताया की नीना देवी किसी सदमे की वजह से कोमा में चली गईं हैं। अगर एक हफ्ते में होश में आई तो ठीक वरना कब तक होश में आयेंगी कहना मुश्किल है। ये सुन कर चंचल परेशान हो गई की कही उसे ही न हॉस्पिटल में रुकना पड़ जाए। अभी तक तो वो इस उम्मीद में हॉस्पिटल में रुकी हुई थी की नीना देवी को होश आयेगा तो जो उनके पास रहेगा उसे ही वो अपना खास समझेगी। पर अब तो वो उम्मीद थी नहीं। इस कारण वो शांता से बोली, "मैं रुक तो जाती जिज्जी के साथ पर घर पर भी तो कोई होना चाहिए।"

शांता बोली, "चंचल भाभी आप परेशान न हो मैं दीदी को ले कर आई हूं अब वापस साथ ले कर हीं लौटूंगी।

आप जाइए घर की देख भाल करिए।"

चंचल की तो जैसे जान छूट गई। बिना एक पल गवांए वो तुरंत घर के लिए निकल गई।

शांता ने ड्राइवर को बोल कर अपना और नीना के जरूरत का सामान घर से मंगवा लिया। शांता नीना देवी को सगी बड़ी बहन से भी ज्यादा मानती थी। वो प्रण कर लेती है की अब नीना के साथ ही घर जायेगी।

एक हफ्ता और बीत गया पर नीना देवी की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ। डॉक्टर ने बोल दिया की आप घर ले जाइए या यही रखिए पर अभी मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा की ये कब तक ठीक होंगी। सालो लग सकते है। एक दिन भी लग सकता है। घर पर शांता को और भी काम होते तो ज्यादा देख भाल न कर पाती इसलिए हॉस्पिटल में रक्खा। पैसे की कोई समस्या थी नही इसलिए शांता ने नीना देवी को बेहतर इलाज के लिए हॉपिटल में ही रखने का निर्णय लिया।

धीरे धीरे समय बीतता रहा। छह महीने होने को आए पर नीना देवी की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ। पूरा बिजनेस चौपट हो रहा था।

नीना देवी के बीमार होते ही इसका पूरा फायदा उनके भाई मदन और भाभी चंचल ने उठाना शुरू कर दिया। नीना देवी का भाई मदन नीना देवी की हर चीज को औने पौने कीमत में बेचना शुरू कर दिया। ऑफिसेज, प्लॉट्स, फैक्ट्री आदि सब जिसे भी समझ में आता बेच देता। वो सब कुछ जल्दी जल्दी बेच कर अपने गांव चले जाना चाहता था। इधर घर में भी चंचल को कोई रोकने टोकने वाला नही था। उसने नीना की सभी चीजों गहने, कपड़े का प्रयोग शुरू कर दिया। चाभी ढूंढ ढूंढ कर सभी कीमती चीजे अपने पास रख ली।

चंचल और उसका पति सब कुछ बेच कर बस पैसा लेना चाहते थे। क्योंकि प्रॉपर्टी रहने पर डर था की अगर किसी दिन नीना देवी ठीक हो गईं तो अपनी प्रॉपर्टी पर हक जता सकती थी। पैसे ले कर वो घर चले जायेंगे तो नीना देवी अगर ठीक भी हो गई तो अपना हक नही जता पाएंगी। उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगी।

अब मदन सगा भाई होते हुए भी इतना स्वार्थी हो गया था की नीना का पैसा ही उस पर खर्च करने में उन्हें तकलीफ होने लगी। हॉस्पिटल का रोज का खर्च ही हजारों में था। ऊपर से महंगी दवा और फल का खर्च उन्हे अखर रहा था। चंचल नीना देवी के ऊपर हुए हर खर्च का हिसाब रखती और मदन से कहती, "तुम भी बौरा गए हो। अब जिज्जी ठीक नही होने वाली। उन पर इतना खर्चा करना बेकार है। उन्हे सरकारी अस्पताल में डालो और ये घर बेच कर अब अपने घर चलो। आखिर हम भी कब तक अपना घर द्वार, बाल बच्चे छोड़ कर यहां बैठे रहेंगे। उनके प्रति भी तो हमारी कुछ जिम्मेदारी है..? या जिंदगी भर इन्ही की सेवा करते बैठे रहेंगे हम।"

दिन रात चंचल के समझाने से मदन की सोच भी चंचल जैसी हो गई। पत्नी के राय से मदन को अब लगने लगा था की नीना दीदी अब ठीक नहीं होंगी तो जो कुछ भी है उसे बेच कर पैसा रुपए ले कर अपने गांव चले जाए। आखिर में उन्होंने बंगले का भी सौदा कर दूसरे को कब्जा दे दिया। और बंगले का सारा कीमती सामान समेट कर अपने गांव चले गए।

जब चंचल और मदन को गए कुछ दिन बीत गए। और फिर हॉस्पिटल में बिल भुगतान नहीं हुआ। जब बार बार बिल भुगतान के लिए शांता को कहा जाने लगा हॉस्पिटल प्रशासन की ओर से तो शांता परेशान हो गई। उस ने वजह जानने के लिए चंचल को फोन किया। पर कई बार फोन किया पर वो हर बार बंद आया।

जब शांता फोन मिला मिला कर परेशान हो गई। फोन नही लगा तो परेशान हो कर शांता सच का पता लगाने नीना देवी के बंगले पर पहुंची।

जब शांता घर पहुंची वो वहां किसी भी पुराने स्टाफ को नही देखा। ना तो वहां पुराना गार्ड था गेट पर। ना ही कोई गाड़ी खड़ी थी नीना देवी। गेट पे नए किसी दूसरे गार्ड को खड़ा देखा।

नए गार्ड से पूछा तो पता चला की पुराने लोग जिनका ये बंगला था वो इसे बेच कर चले गए है यहां से।

सच का पता चलने पर की चंचल और मदन ये बंगला किसी और को बेच कर कहीं चले गए है। चंचल और मदन जैसे थे, शांता को कोई अचरज नही हुआ। वो दोनो तो चिपके ही थे नीना देवी से उनकी प्रॉपर्टी के लिए। शांता परेशान हो गई की अब वो क्या करे? चंचल नीना देवी का बिल भुगतान वो किससे करवाए? हॉस्पिटल वाले बिना बिल का भुगतान किए उसे नीना देवी को लेकर वहां से जाने भी नहीं देंगे।

शांता को कुछ समझ नहीं आ रहा था की अब वो क्या करे।

उसे तभी नीता का ध्यान आया। उसे पूरी उम्मीद थी की नीता उसकी मदद जरूर करेगी।

शांता वापस हॉस्पिटल पहुंची और नीता को फोन मिलाया। और सारी बात दुखी मन से बताया। नीता, नीना दीदी की ऐसी हालत जान कर तड़प उठी। उसके लिए एक पल भी रुकना मुश्किल हो गया। नीता तुरंत भागी भागी हॉस्पिटल आई। अपनी जीजी को इस हालत में देख उसका जी भर आया। नीता ने नीना का पूरा हॉस्पिटल बिल चुकाया। फिर उसे अपने साथ अपने घर ले आई।

शाम को जब नियति ऑफिस से वापस आई तो रोज की तरह मिनी भागी भागी आई और नियति ने उसे गोद में उठा लिया। मिनी नियति की गोद में चढ़ते ही नियति से बोली, "मम्मा .. मम्मा.. जानती हो…? आज ना नीता मासी न दादी को घर ले कर आई है। नियति हैरत में पड़ गई को ये मिनी क्या बोल रही है..?

इसी को समझने की कोशिश करते हुए वो घर में अंदर आ गई।

अंदर आने पर नियति ने देखा नीता मौसी सामने ही बैठी थी। वो नियति से बोली, "आओ नियति बेटा बैठो।" फिर नीता ने सब कुछ नियति को बताया जो कुछ भी आज हुआ था। शांता का फोन आने के साथ ही सब कुछ बता डाला जैसे जैसे हुआ था।

अभी नियति को कुछ समय ही हुआ था। तभी अंदर के कमरे जिसमे नीना देवी को रक्खा गया था, से निकल कर आई। शांता नियति को देख खुद पर काबू नही रख पाई और अपनी भर आई आंखे पोछने लगी।

नियति आगे बढ़ कर शांता के कंधे पर हाथ रख कर दिलासा देती है और कहती है , "आप चिंता ना करो… अब हम सब इक्कठे है ना। मिल कर सेवा करेंगे । मम्मी जी को ठीक होना हीं होगा। आप देखना वो बहुत जल्दी ठीक होकर अपने पैरों पर चलेंगी।"

शांता को साथ ले नियति, नीना देवी के कमरे में उन्हे देखने गई। नियति ने इस हालत में नीना देवी को देखा तो बड़ा दुख हुआ उसे। सुना तो नीता और नियति ने भी था की नीना देवी बीमार है। पर उन्हे इसका यकीन नहीं था की वो सच में इतनी ज्यादा बीमार है, और इस हालत में पहुंच गईं है की उनका हाथ बिलकुल खाली है। जिस संपत्ति का उन्हे इतना घमंड था सब कुछ चला गया उनके हाथ से। इतना असहाय नियति ने कभी नही देखा था नीना देवी यानी अपनी सास को। एक समय उनका क्या रुतबा था..? कितनी ठसक के साथ वो रहती थी। आज इतनी असहाय हो कर बिस्तर पर पड़ी थी। अगर कोई साफ सफाई ना करे, तो अब तक पता नहीं क्या हो गया होता। शांता ने जो नमक खाया था नीना देवी का उसके एक एक कण का कर्ज चुका दिया था उसने। इतनी सेवा कोई भी सदस्य भी नही कर पाता जितना शांता ने एक नौकरानी होते हुए किया था।

नियति ने ठान लिया की वो नीना देवी की इतनी सेवा करेगी की वो स्वस्थ हो जाए।

इधर प्रणय उस दिन फोटो खींचने वाली घटना के बाद से नियति से नही मिला था। कभी नीता ने फोन भी किया तो टालने के अंदाज में बात कर फोन रख दिया था। वो इतना रूखा बोलता की नीता का फोन करने का सारा उत्साह ठंडा हो जाता। इस परिवर्तन का कारण न नीता ही समझ पाई न ही नियति कि प्रणय जो नियति को मिल कर इतना खुश था वो अचानक कैसे बदल गया ! ये किसी के भी समझ नही आ रहा था। आखिर मैने ये दूरी क्यों बना ली ये उनके लिए राज ही था अब तक।

नीता और नियति, शांता की मदद से दवा और खाना पीना नियम से खिलाती। एक फिजियो थेरेपिस्ट को भी नियति ने घर पर रोज नीना देवी की एक्सर साइज के लिए अप्वाइंट कर दिया था।

नियति पिछली सारी कड़वाहट भूल कर सास की सेवा करती। ऑफिस जाने से पहले वो खुद अपने हाथों से सास की साफ सफाई करती। उन्हे जूस वगैरह पिला कर जाती।

पर नीता को अपनी इतनी दीदी का यूं असहाय दिखना अच्छा नही लग रहा था। उसे बार बार अपनी बहन का वही पुराना रोब दाब याद आता। उसने फैसला लिया कि प्रणय फोन पर ठीक से बात नही करता तो वो उसके घर जाकर उससे मिलेंगी और उसके मन में क्या है ये पता करेंगी।

नीता मासी बिना किसी को बताए देर शाम घर से निकलती है और मेरे घर चली आती है। उन्हे पता था की मैं देर शाम ही घर लौटता हूं। मां भी उन्हे देख कर चौक जाती है। पर बिना किसी सवाल के मां बड़े ही प्यार से नीता मासी को बिठाया। कविता दीदी को आवाज दे कर चाय बना कर लाने को कहा। अचानक इस तरह नीता मासी को देख मैं चौक जाता हूं ! आखिर ऐसा क्या हो गया की उन्हे इस समय मेरे घर आना पड़ा..?

नीता मासी बैठती है और औपचारिक बात चीत के बाद मुझसे और मां से नीना देवी के साथ को कुछ भी हुआ उसे बताती है। मैं इस सिलसिले में क्या कुछ उनकी मदद कर सकता हूं वो पूछती है।

इसके बाद वो मेरे नाराज होने की वजह भी पूछती है। वो जानना चाहती हैं की मैने आखिर क्यों उन सब लोगों से दूरी बना ली है..?

मैं नीता मासी को बताता हूं की मैं नाराज नहीं हूं बहुत ही मजबूरी में उन सब से दूर हुआ हूं । मैं अपनी इच्छा से नही बल्कि नियति और मिनी के भले के लिए ही उनसे दूर हो गया हूं। इसके बाद मैने नीता मासी से शॉपिंग के दिन वाली सारी घटना बता डाली। अब भी मैं उनसे कुछ नही बताता, पर अब नीना देवी और उनके किसी भी चमचे के पीछा करने का डर समाप्त हो गया था। अब तो नीना देवी को खुद ही मदद की जरूरत थी। दूर रहने की वजह जानकर उनकी नजरों में मैं और भी ऊंचा उठ गया। नीता मासी मुझे बहुत ही गर्व से देख रही थी। उन्हे खुद पर भरोसा हो गया की उनकी नजरों ने मुझे पहचानने में गलती नही की थी।

मैने वादा किया नीता मासी से की मैं अपने स्तर से पता करता हूं जो भी मुझसे संभव होगा जरूर करूंगा। साथ ही ये भी कहा की संडे को मैं नीना देवी को देखने भी आऊंगा। कुछ देर रुक कर नीता मासी चली गईं। अभी तक मां को कुछ नही पता था की मैने नियति से दूरियां बना ली है। आज वो भी मुझ पर गर्व कर रही थीं। और कहा, "बेटा अपने साथ मुझे भी ले चलना मैं भी नीना देवी को देख लूंगी।"

मैने "हां" कर दिया।

क्या नीना देवी नियति की सेवा से ठीक हो पाईं? क्या उन्हें उनकी संपत्ति वापस मिल पाई? क्या प्रणय कोई मदद कर पाया नीना देवी की संपत्ति वापस पाने में..? क्या नीना देवी ने नियति को अपनाया..? क्या नियति और प्रणय कभी एक हो पाएंगे?

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