ममता की परीक्षा - 43 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 43



मास्टर को गमगीन अवस्था में बैठे देखकर गोपाल भी अधीर हो उठा था। क्या करे ? इस पंडित ने तो पूरा खेल ही ख़राब कर दिया था लेकिन गोपाल ने गजब की जीवटता का प्रदर्शन करते हुए कहा, "बाबूजी ! कहाँ पंडितों के चक्कर में पड़े हो ? जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और आप हैं कि अभी तक इन ज्योतिषीय गुणा भाग में ही उलझे हैं। अब लोग अंजान नहीं रहे इन सबसे।"

" बेटा, अभी तुम बच्चे हो ! हमने ये बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये है। इन्हीं पंडित जी की बताई हुई सभी भविष्यवाणियों को सही होते देखते हुए ही मेरे बाल काले से सफ़ेद हो गए हैं। एक बात याद रखना बेटा ! इंसान कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, जहाँ आस्था का विषय आता है वहाँ सारे तर्क नगण्य हो जाते हैं। कभी किसी डॉक्टर के यहाँ गए हो ? उसके दरवाजे के पास ही लिखा होता है ' we treat he cures ! क्या मतलब है इसका ?" कहते हुए मास्टरजी खासे उत्तेजित हो गए थे।

झेंपते हुए गोपाल ने उन्हें समझाना चाहा, "बाबूजी, मैंने आस्था पर कहाँ सवाल खड़ा किया ? मैं तो ये पंडित जी के ढकोसले की बात कह रहा हूँ कि अब ये ज्योतिष और ऐसी भविष्यवाणियों पर कोई यकीन नहीं करता। बताइये, आप पढ़े लिखे हैं और उस किताब पर भरोसा कर रहे हैं जिसमें सूरज और चाँद को तुलनात्मक दृष्टि से एक ग्रह कहा जाता है। धरती स्थिर है और सूरज उसकी प्रदक्षिणा करता है यही माना जाता है। जबकि सच्चाई क्या है यह आप जानते भी हैं और बच्चों को पढ़ाते भी हैं। रही बात डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की तो आपका कथन पूरी तरह सत्य है कि इंसान चाहे जितना प्रगतिशील हो जाए, समझदार हो जाए कुदरत हमेशा उसके लिए एक अबूझ पहेली रही है और रहेगी।"

"हाँ ! ये तो तुम ठीक कह रहे हो। विज्ञान ने बहुत सी बातों का पता लगा लिया है। इंसान चाँद सितारों की बातें कर लेता है लेकिन इसी धरती पर ऐसे बहुत से रहस्य हैं जो आज भी उसके लिए अबूझ पहेली ही हैं।" मास्टर ने बेमन से ही सही गोपाल का समर्थन किया था।

मास्टर के समर्थन से उत्साहित गोपाल ने दबाव बनाने का प्रयास जारी रखा, "बाबूजी, पंडित जी ने आखिर किस आधार पर यह भविष्यवाणी की होगी ? आपने नाम ही तो बताया होगा न ? और ये तो आप भी जानते हैं कि एक नाम का कोई भी अकेला इंसान नहीं है। गोपाल नाम के अनगिनत इंसान होंगे अपने देश में तो क्या सभी दुखी रहेंगे ? और फिर इनकी बात का भरोसा करें तो क्या गीता में जो उपदेश दिए गए हैं वो झूठ हैं ? गीता में स्पष्ट कहा गया है ' हे इंसान ! तू सद्कर्म किये जा ! फल की चिंता मत कर ! इंसान को उसके अच्छे बुरे कर्मों के मुताबिक फल अवश्य मिलता है ! बुरे काम का बुरा नतीजा यह दुनिया जानती और मानती है फिर इन बेसिर पैर की बातों को इतनी अहमियत क्यों देना ?"

"कह तो तुम ठीक रहे हो बेटा, लेकिन ये मान्यताएं यूँ ही नहीं बनी हैं और फिर हमने भी अनुभव किया है कि पंडितों द्वारा बताये गए नतीजे लगभग सही होते हैं। कोई अपवाद होता होगा इससे इंकार नहीं।" मास्टर भी इतनी जल्दी हार कहाँ माननेवाले थे।

" जी बाबूजी ! आपने बिलकुल सही कहा है। मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ, लेकिन ईश्वर ने हमें इंसान बनाया और हमें शरीर के सबसे ऊपरी हिस्से में दिमाग नाम की चीज भी दी है। मानता हूँ मान्यताएं और रीतिरिवाज यूँ ही नहीं बन गईं हैं, लेकिन समय समय पर अपनी समझ में इजाफा होने की वजह से हमने कई कुरीतियों से पल्ला झाड़ा है। आज बाल विवाह बहुत कम हो गया है। विधवा विवाह पर अब कोई हायतौबा नहीं मचाता। सती प्रथा अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। अब दहेज़ प्रथा का निर्मूलन और अन्धविश्वास के खिलाफ जागरण हमारा उद्देश्य होना चाहिए।" गोपाल ने अपनी बात को और स्पष्ट किया।

गोपाल के तर्क सुनकर मास्टर साहब मुस्कुराये और बोले, "बेटा ! मैं भी तुम्हारे बात से सहमत हूँ, लेकिन यहाँ पंडित की बात मानने में मुझे कोई अन्धविश्वास नजर नहीं आता। ज्योतिषीय गणना एक शास्त्र है जो गणित पर आधारित होता है। ग्रहों और नक्षत्रों की चाल के मुताबिक गणना किया जाता है और उसके फल तय किये जाते हैं जो लगभग सही होते देखे गए हैं।"
"बाबूजी, मैं यह बात कहना नहीं चाहता था, लेकिन बड़े दुःख के साथ आपको बताना चाहता हूँ कि आप ने हमारे आराध्य भगवान श्री रामचंद्र जी और माता सीता के विवाह के बारे में पढ़ा ही होगा। आप जानते हैं भगवान राम और माता सीता की कुंडलियाँ जब मिलाई गई तब गुरु विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ के मुताबिक बहुत आदर्श स्थिति बताई गई थी। उनके 36 गुण मिले थे जो कि एक दुर्लभ योग माना जाता है। इसके फलादेश के मुताबिक सीता माता को समस्त सुख वैभव का उपभोग करना था, लेकिन क्या हुआ था सभी जानते हैं। मेरा मानना है कि हमें अपने कर्मों पर ही ध्यान देना चाहिए। गणनाओं में गलती भी हो सकती है पंडितों से, फिर उनकी गलती का खामियाजा हम क्यों भुगतें ? ......व्यर्थ की चिंता करके ?" गोपाल ने अपना अंतिम अस्त्र चला दिया था मास्टर को समझाने के लिए। अब वह खामोश हो गया था। वह जानता था कि उसकी जबरदस्ती या अधिक प्रयास बनता हुआ काम भी बिगाड़ सकता है अतः उसने धीरज से काम लिया।

तभी परबतिया चाची खट खट करती नजदीक आ पहुँची। मास्टर के सामने नीचे जमीन पर ही बैठते हुए बोली, "क्या बात हो रही है तुम दोनों में ?"
और फिर गोपाल की तरफ देखते हुए बोली, "ये शहरी बाबू तो गाँव घूमने आए हैं न ? कहाँ गए थे आज घूमने ?"

अब बारी गोपाल की थी, "जी, चाची ! मैं गाँव घूमने ही आया हूँ। गाँव में खेतों के बीच घूमते हुए मैं उस बड़े पोखर तक घूम कर आया। दोपहर भी दूसरी तरफ घूम कर आया। खेतों के बीच घूमना मुझे बहुत अच्छा लगता है।"

" ठीक है बेटा, तुम दोनों बात करो। मैं तो साधना बिटिया से मिलने आई थी।" कहते हुए वह हाथ में पकड़े डंडे के सहारे चलते हुए दालान से अंदर आंगन की तरफ बढ़ गई जहाँ साधना भोजन की तैयारी कर रही थी।

क्रमशः