सोचा न था Riya Jaiswal द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सोचा न था


ससुराल में श्री का आज चौथा दिन था। सभी नई दुल्हन को उसके दुल्हे के साथ आशिर्वाद दिलाने मंदिर जाने की तैयारी में जुटे थे। शादी के बाद तीन दिनों तक श्री को ऐसा लगा, मानो वो कोई शहजादी हो। क्योंकि, सभी उसकी हर जरूरतों का ख्याल रख रहे थे और उसे कोई काम भी करना नहीं पड़ रहा था। हालांकि, कभी कभी यूं बैठे रहकर श्री को बहुत बुरा फिल होता जब उसकी सास ननद पूछ पूछ कर थाली परोसकर सामने रख, खाने की ज़िद करतीं।
"भाभी, जल्दी उठिए! मंदिर जाना है।" रात करीब ढाई बजे श्री को उसकी ननद ने नींद से जगाते हुए कहा। जैसे ही वो जगी उसकी ननद (पूजा) ने फिर कहा, जाइए! जल्दी नहा लिजिए, चार बजे निकलना है। इतना सुनते ही श्री को मानो एक झटके सा लगा। वो मन ही मन‌ कह रही थी, "अभी तो रात ही है और अभी नहाना है।" इससे पहले उसने कभी ये सोचा न था।
‌ नहाने के दौरान उसे बार-बार उसकी ननद पूजा बाहर से आवाज़ें दे रही थी। "भाभी, जल्दी कीजिए।" जब वो नहाकर निकली तो उसी ने उसे साड़ी पहनाई क्योंकि, श्री को ठीक से साड़ी पहननी नहीं आती थी। जब सारा मेकअप हो गया तब उसने अपनी ननद से कहा, "पूजा दी! मुझे बाथरूम जाना।" पूजा ने कहा, क्या भाभी! अब अगर बाथरूम जाएंगे तो देर हो जायेगी। फिर से नहाना और तैयार होना पड़ेगा। उतना टाईम नहीं है। चलिए अभी, वापस आकर करना। श्री समझ नहीं पा रही थी। उसने कभी ये सोचा न था। वो सोच रही थी, "सिर्फ टॉयलेट जाने पर इतना इशू। इतना जोर का प्रेशर है और वापस आकर करना है। खैर, अब किया क्या जाए।" वो चुपचाप जाकर वैन में (जो दरवाजे पर खड़ी थी), बैठ गई।
वैन स्टार्ट होते ही श्री को डरने लगी। वो सोचने लगी कि "कहीं उसकी साड़ी न गिली हो जाए। सब क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे! ना बाबा ना!" वो मन ही मन हड़बड़ा गई। फिर उसने सोचा कि "मैं जितना इस बारे में सोचूंगी, मेरा ध्यान जितना इस ओर रहेगा परेशानी उतनी ही बढ़ेगी। बेहतर होगा कि इसे इग्नोर कर खिड़की से बाहर का नजारा देखने में खुद को व्यस्त करूं।" और उसने ऐसा ही किया। वो मंदिर पहुंचने तक बाहर खोई रही। फिर वो कब भूली कि उसे टॉयलेट जाना है, पता ही न चला। अब इसे मंदिर वाले भगवान की कृपा समझें या श्री का खुद पर कंट्रोल पाने का हुनर। हालांकि, मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद पूरा मंदिर घूमने के दौरान उसे फिर से याद आया पर, उसने फिर जल्दी से नजरांदाज वाली तरकीब अपनाकर खुद को मंदिर की खुबसूरती में व्यस्त किया।
मंदिर में करीब एक घंटा बिताने के बाद अब समय था घर लौटने का। अब उसे याद भी था कि लगभग दो घंटे पहले उसे बाथरूम जाना था। पर, प्रेशर कम हो गई थी। अब वो गाड़ी में उन नए रिश्तेदारों की बातों में खोई थी। उनकी बातें सुनते-सुनते उसे कब नींद आ गई पता न चला। घर पहुंचकर उसने सबसे पहले बाथरूम का रूख किया और सोचने लगी कि "बाप रे! पूरे तीन घंटे उसने कंट्रोल किया। कभी ऐसा भी होगा, उसने सोचा न था।"