ममता की परीक्षा - 39 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 39



"बारात आ गई .....बारात आ गई ! अरे मास्टर जी, चलो ! समधी की अगवानी करने नहीं चलोगे ?" चौधरी बन्ने शाह और परबतिया की तेज आवाज सुनकर गोपाल की नींद खुल गई। दोनों हाथों से जल्दी जल्दी आँखों को मसलते हुए गोपाल को अपने आसपास का वातावरण बदला बदला सा लगा जिसे देखकर उसे बड़ी हैरत हुई। शाम गहरा गई थी। रजनी ने अंधेरे का चादर तानना शुरू कर दिया था लेकिन आज वह निष्प्रभावी नजर आ रही थी क्योंकि मास्टर रामकिशुन के दरवाजे पर आज उजाले की विशेष व्यवस्था की गई थी। मिटटी के तेल से जलने वाले कई पेट्रोमैक्स नजदीक नजदीक रखे गए थे जिसकी वजह से शायद वहां अँधेरे की दाल नहीं गलनेवाली थी। भरपूर रोशनी बिखरी हुई थी और उसी रोशनी में गाँव वालों का सम्मिलित स्वर वातावरण को और उत्सवमय बना रहा था। जहाँ लड़कियों का झुंड आपस में हँसी ठिठोली में व्यस्त था तो वहीँ गाँव के अन्य ग्रामीण भी कुछ न कुछ करने के लिए भागदौड़ कर रहे थे। चौधरी बन्ने शाह की आवाज सुनकर मास्टर रामकिशुन घर से बाहर आये। सफ़ेद धोती कुर्ते में आज उनका व्यक्तित्व और निखर आया था। सिर पर विशेष अंदाज में बंधी देहाती पगड़ी की शान और भी निराली लग रही थी।
बाहर आते ही वह तेजी से बन्ने शाह की तरफ बढे और उसके साथ ही खड़ी परबतिया से बोले, "परबतिया भाभी, मैं भाईसाहब के साथ जाकर बारात की अगवानी करता हूँ और उन्हें यहाँ तक लिवा आता हूँ , आप तब तक सभी महिलाओं को सहेज कर दूल्हे के स्वागत की सब तैयारी पूरी कर लेना। जैसे ही दूल्हा यहाँ तक आये , तुरंत द्वारपूजा शुरू हो जाना चाहिए। ठीक है ?"

इतना कहकर मास्टर रामकिशुन बन्ने शाह व कुछ अन्य गाँववालों के साथ गाँव से बाहर की तरफ चल पड़े जहाँ बारात आकर रुकी हुई थी और उनका इंतजार हो रहा था। अधिकांश बारातियों के हाथों में लंबी एवरेडी की टॉर्च थी। मास्टर को बारात की तरफ बढ़ते देखकर कुछ युवक जल रही पेट्रोमैक्स की कुछ बत्तियाँ लेकर मास्टर की दिशा में चल पड़े। शायद बारात को रास्ता दिखाने का उनका मंतव्य रहा हो।

यह सब दृश्य देखकर दो मिनट के अंदर ही गोपाल को सारा माजरा समझ में आ गया। आसपास का सारा माहौल और बातचीत सुनकर तो वह समझ गया था कि आज किसी लड़की की शादी हो रही है और पूरा गाँव एक परिवार की तरह उसी के इंतजाम में लगा हुआ है। अचानक उसका माथा ठनका , लड़की की शादी ? लेकिन किसकी ?
गोपाल की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पास पड़ोस के सभी घरों में समान रूप से ही लोग व्यस्त नजर आ रहे थे। चौधरी बन्ने शाह के घर के सामने खाली पड़े मैदान में कुछ गाँववाले भोजन बनाने में मशगूल थे। सारे गाँववाले कुछ न कुछ कर ही रहे थे। किसी को कुछ बताने की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे यह उनका रोज का काम हो। मास्टर के घर के दायीं तरफ वाले घर के सामने नौ बाँस गड़े हुए थे और उनके सहारे ही फूस की सहायता से छप्पर बनाकर उसे लग्नमंडप का रूप दे दिया गया था।

गोपाल को कुछ न सूझा तो वह अनमने मन से ही उस दिशा की तरफ बढ़ चला जिस तरफ मास्टर और बन्ने शाह गए थे। मास्टर के घर से आगे बढ़कर दो तीन घर गुजरने के बाद बियाबान अँधेरे ने गोपाल का स्वागत किया। आज अँधेरा कुछ ज्यादा ही लग रहा था लेकिन फिर भी धीरे धीरे संभल कर चलते हुए गोपाल उस तरफ बढ़ता रहा जहाँ से शोरगुल के बीच ही बैंड बाजे की भी आवाज आ रही थी।

बैंडबाजे के शोरगुल के बीच ही पेट्रोमैक्स की मद्धिम रोशनी में गोपाल ने देखा, मास्टर रामकिशुन, बन्ने शाह व अन्य ग्रामीणों के साथ कुछ बारातियों के गले मिल रहे थे और फूलों के हार उन्हें पहनाकर उनका स्वागत कर रहे थे। इस कार्यक्रम के निबटते ही बैंड वाले पेट्रोमैक्स की रोशनी में धीमे धीमे मास्टर के घर की तरफ चल दिए। बैंड की धुन वातावरण में गूँज रही थी। बैंड वालों के पीछे कुछ बाराती झक्क सफेद कुर्ते पाजामे में तो अधिकांश धोती कुर्ते में और कुछ नई उम्र के लडके राजकपूर स्टाइल की पतलून पहने हुए सधे कदमों से ख़ामोशी से बैंडवाले के पीछे पीछे चल रहे थे। उन्हीं के बीच एक साइकिल रिक्शा पर दूल्हा बैठा हुआ था।

गोपाल भी बारातियों में शामिल हो उनके साथ साथ चलने लगा। गाँव में हो रही शादी देखने का यह उसका पहला अवसर था। यहाँ के विचित्र रीतिरिवाज उसे खासे मनोरंजक लग रहे थे। गाँव वालों की परस्पर आत्मीयता ,उनका सेवाभाव और उनकी तत्परता देखकर वह हैरत में था। शीघ्र ही बारात मास्टर के घर के सामने पहुँच गई।

वहाँ पहुंचते ही बैंडवालों का जोश जैसे दोगुना हो उठा हो। एक फडकती हुई धुन छेड़कर सभी बड़े मनोयोग से बाजा बजाने लगे। सभी बाराती पीछे हट गए और दूल्हे को आगे कर दिया गया। शीघ्र ही महिलाओं ने उसे घेर लिया और द्वाराचार की रस्म अदा की जाने लगी। लगभग आधे घंटे की रस्म के पूरी होने के बाद दूल्हे को जनवासे ( बरात का विश्रामस्थल ) में भेजने का इंतजाम किया जाने लगा। गोपाल अभी तक अचंभित था कि इतना सारा प्रोग्राम हो गया लेकिन अभी तक वह लड़की सामने नहीं आई थी जिसकी शादी होनी है।
बारातियों के बाद घरातियों द्वारा भी जमकर नाश्ता व भोजन का लुत्फ़ उठाया जाने लगा। घर के लोग विवाह मंडप में आवश्यक वस्तुओं को पहुँचाने में जुट गए। लड़कियों का झुंड भी अपने हमजोलियों के साथ हँसी मजाक में व्यस्त था। सब देखते हुए भी गोपाल की निगाहें साधना को ही तलाश रही थीं। इतने लोगों की भीड़ में वह अब तक उसे कहीं नजर नहीं आई थी। उसकी बेचैनी बढ़ गई थी।

बारातियों के जनवासे में रवाना होने के बाद वह घर के बरामदे में ही खड़ा था कि तभी परबतिया के हाथों में खाली बाल्टी देखकर उनकी तरफ लपका, "क्या हुआ चाची ? पानी चाहिए था क्या ?"

" हाँ बेटा ! आँगन में नल से ख़राब पानी आ रहा है। सामने कुएं से एक बाल्टी पानी ले आते तो लड़की फटाफट नहा लेती। मंडप में जाने में देर हो रही है।" कहते हुए परबतिया ने अपने हाथ में पकड़ी हुई बाल्टी उसको पकड़ा दी।

गोपाल बड़ी फुर्ती से पानी भर लाया लेकिन तब तक परबतिया वहाँ रुकी नहीं थी। बाल्टी का पानी लिए गोपाल ने आँगन में प्रवेश किया और वहाँ साधना को पिली सूती साड़ी में हल्दी पुती अवस्था में देखकर उसका कालेजा मुँह को आ गया। तो क्या यह उसकी साधना का विवाह होने जा रहा था ? उसे अपना दिल बैठता हुआ सा लगा। उसे यकिन नहीं हो रहा था। फिर भी निराश नज़रों से उसने साधना की तरफ देखा।

साधना भी उसका आशय समझ गई थी। आँखों से बहती गंगा जमुना की धार के बीच उसने कहना शुरू किया, "क्या करती गोपाल बाबू ? किसी भी हाल में हमारा मेल मुमकिन था ही नहीं। अगर मुझ पर तरस खाकर या क्षणिक आवेश में आकर आप मेरे लिए गाँव की इस कठिन जिंदगी को अपनाने का प्रयास भी करते तो मुझे पूरा यकीन है कि आप इसमें सफल नहीं हो पाते। कहाँ सुख सुविधाओं से युक्त आपकी जीवनशैली और कहाँ हर तरह के अभावों से जूझती हमारी जिंदगी जीने की जद्दोजहद ! मैंने बहुत सोच विचार कर दिल पर पत्थर रखकर इस शादी के लिए कल ही हामी भरी थी और आज शादी है।"

कहने के बाद साधना ने गोपाल की तरफ देखा। उसके बहते हुए आँसूओं में गोपाल का दिल भी डूब चुका था। पलकों के किनारे तोड़कर उसकी आँखों से भी आँसुओं की बाढ़ बह चली। कुछ ही पलों में दुःख की अधिकता से उसकी हिचकी बंध गई।
तभी किसी के झिंझोड़ने से उसकी नींद खुल गई। आँखें मसलते हुए उसने सामने देखा। सामने ही साधना खड़ी थी। नीले सूट पर सफेद दुपट्टा उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे। उसके चेहरे पर हैरानी के भाव थे।

गोपाल का ध्यान अपने हाथों की तरफ गया जो आँसुओं से भीगा हुआ था जिसे उसने अपने सिर के नीचे तकिये की तरह दबा रखा था। साधना उसकी तरफ हैरानी से देखती हुई बोली, "क्या हुआ गोपाल बाबू ? आप सोये सोये अचानक हिचकियाँ लेकर रोने लगे थे। कोई सपना देख रहे थे क्या ?"

क्रमशः