मास्टर रामकिशुन की बात ख़त्म होते ही गोपाल ने पहले अपने आसपास नजर दौड़ाई और फिर बड़ी विनम्रता से कहना शुरू किया,"बाबूजी ! मुझे माफ़ कीजियेगा। इतनी देर हो गई आये हुए लेकिन मैं आपसे जो कहना चाहता था, कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका था। मेरा दिल चाहता था कि आपसे बात करके सब साफ़ कर दूँ लेकिन फिर अंतर्मन का चोर दिल पर हावी हो गया। जी हाँ, अंतर्मन का चोर ही मुझे आपसे बात करने के लिए बार बार मना कर रहा था। एक डर सा मन में समाया हुआ था कि 'आपसे बात होगी, पता नहीं कौन से माहौल में बात होगी, आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी और फिर यह भी तो नहीं पता था कि अंत में नतीजे क्या रहेंगे ? लेकिन अब जबकि इतना समय व्यतीत हो चुका है मैं समझता हूँ नतीजे की परवाह किये बिना मुझे अपने दिल की बात कह ही देनी चाहिए। अब और अधिक देर किया जाना मुनासिब नहीं है। गाँव का माहौल और यहाँ के लोगों की मानसिकता अब मुझे कुछ कुछ समझ में आ रही है।" कहते हुए गोपाल की नजर बरगद के पेड़ के नीचे पड़े हुए उस बड़े से पत्थर पर पड़ी जिसपर बैठा जा सकता था।
मास्टर रामकिशुन का हाथ थाम कर उन्हें उस पत्थर पर बैठाते हुए गोपाल ने आगे कहना जारी रखा, "बाबूजी ! सबसे पहले तो मुझे माफ़ कीजियेगा कि मैं आपके सामने वो बात कहने जा रहा हूँ जो मुझे नहीं कहनी चाहिए। हमारा समाज हमारे संस्कार इसकी इजाजत नहीं देते, लेकिन क्या करूँ ? और कोई चारा भी तो नहीं ? मैं आपसे कुछ नहीं छिपाऊँगा। सारी बात आप पहले धैर्य से सुन लीजिये। उसके बाद आपका जो भी फैसला होगा हमें मंजूर होगा। बाबूजी, साधना बहुत अच्छी लड़की है। सीधी , सादी , बड़ी ही नेक दिल और संस्कारी भी। कॉलेज में सैकड़ों लड़कियों की भीड़ में बिलकुल अलग ही नजर आती थी साधना ! कॉलेज की बहुत सी लड़कियाँ और लडके आपस में मित्र थे लेकिन साधना को तो इन सबसे कोई मतलब ही नहीं था और दोस्तों से उसकी यही बेरुखी हमें उसकी ओर खींचती ले गई और हम कब उससे प्यार करने लगे, हम खुद ही समझ नहीं पाए ........" और फिर गोपाल ने उन्हें साधना के साथ परिचय होने से लेकर घर पर अपनी माताजी से मिलाने और उसके बाद शहर से उसके साथ गाँव आने तक की कहानी सिलसिलेवार बता दी।
गोपाल का बयान जारी रहने तक मास्टर रामकिशुन बड़े धैर्य से उसकी हर बात को सुनते रहे और उसके चेहरे की तरफ देखते हुए उसकी कही बातों में सच्चाई का अंदाजा लगाते रहे। जिस तरह से निर्भीक होकर गोपाल ने पूरी कहानी उन्हें सुनाई, मास्टर को उसका यह अंदाज भा गया था।
अपनी बात पूरी करते हुए गोपाल ने कहा, "बाबूजी, यही है छोटी सी कहानी जो अब हमारी कहानी बन गई है...... मेरी और साधना की कहानी .....! ऐसा लगता है हमारा कई जन्मों का साथ हो। हम दिल से एक दुसरे से जुड़ चुके हैं। आपकी स्वीकृति हमें सामाजिक मान्यता दे देगी। आपकी स्वीकृति और आशीर्वाद की चाह में हम आपकी शरण में हैं बाबूजी ! हमें इंतजार है आपकी हाँ का।"
...गोपाल के खामोश होने के पश्चात् मास्टर जी कुछ पल सोचते रहे और फिर उनकी गंभीर आवाज सुनाई दी, "गोपाल ! तुम शहर में पले बढ़े ,नाजों नखरे से और सुख सुविधाओं से युक्त जिंदगी जीने के आदि हो जबकि साधना का इन सबसे दूर दूर तक कहीं कोई वास्ता नहीं है। तुम शहर के एक बड़े रईस परिवार के इकलौते चश्मोचिराग हो ! तुम्हारा समाज धन्नासेठों का समाज है जिनके कुछ अपने ही नियम कायदे हैं और अपने उसूल जबकि यहाँ गाँव में तो देख ही रहे हो। यहाँ के नियम कायदे और उसूल बिलकुल ही अलग हैं। दोनों समाजों में तालमेल कैसे बैठा पाओगे ? माताजी का तो स्पष्ट इंकार है ही ,पिताजी को कैसे मनाओगे इस शादी के लिए ? उन्होंने भारी भरकम दहेज़ पाने के जो सपने देखे होंगे उसका क्या ? पढ़े लिखे हो, समझदार लग रहे हो ,खूबसूरत भी हो और कोई काम मिल गया तो ठीकठाक कमा भी लोगे। कोई भी लड़की तुमसे शादी करके खुश रह सकती है, लेकिन बेटा ! मैं इस शादी की इजाजत तुम्हें नहीं दे सकता।"
तड़प गया था गोपाल। अगले ही पल उसकी पलकों के किनारे भीग गए थे। उसपर तो मानो मास्टर रामकिशुन के शब्द बिजली बनकर टूट पड़े थे। उसकी आवाज बदल गई थी लेकिन फिर भी भर्राए हुए स्वर में उसने अपना प्रयास जारी रखा ,"क्यों ? ....आखिर क्यों बाबूजी, आप इस शादी की इजाजत नहीं दे सकते ? हमें आशीर्वाद नहीं दे सकते ? आपके आशीर्वाद की ही तो चाह की है हमने।"
उसकी बात पूरी होने से पहले ही मास्टर ने कहना शुरू कर दिया , "बात तो तुम ठीक कह रहे हो बेटा,लेकिन हमने ये बाल धूप में नहीं सफ़ेद किये हैं। हम किशोर वय में होनेवाले आकर्षण से अपरिचित नहीं हैं। मास्टर हैं हम और सब समझते हैं.......!"
"जी बाबूजी, हम जानते हैं और इसीलिये हमें आपसे बड़ी उम्मीद है। पढ़े लिखे प्रगतिशील विचारों के लगे थे आप हमें जो बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करता, दकियानूसी विचारों को नहीं मानता और अपने क्रन्तिकारी विचारों से समाज को भी बदलने का माद्दा रखता है।" गोपाल ने मास्टर रामकिशुन की बात बीच में ही काटते हुए कहना शुरू कर दिया, "और हमारा आपके बारे में ऐसा सोचना निरर्थक नहीं था। आपने हमेशा लड़की लड़कों में भेद नहीं करने का ही पाठ गाँव वालों को पढ़ाया है और न सिर्फ पढ़ाया है बल्कि आपने उसे अपने आचरण से साबित भी करके दिखाया है। जहाँ गाँव की लड़कियाँ पाँचवीं की शिक्षा ग्रहण करने पास के गाँव नहीं जातीं आपने साधना को ऊँची तालीम हासील करने के लिए शहर में अकेली रहने के लिए भेज दिया। यह बहुत बड़े मजबूत जिगर के स्वामी का ही फैसला हो सकता है , समाज से डरकर जीनेवाले किसी कमजोर दिल इंसान का नहीं ! बेटे के समान ही बेटियाँ भी आपके भरोसे का हकदार होती हैं। पता नहीं क्यों लोग बेटियों पर भरोसा करने से हिचकते हैं ? कहते हैं बेटियाँ काँच के टुकड़े समान होती हैं, जरा सी लापरवाही हुई और वह इज्जत का टुकड़ा टूट गया तो फिर नहीं जुड़ता। क्यों सोचते हैं ऐसा ? क्या यह सोचना गलत नहीं ? मैं तो कहता हूँ सरासर गलत है यह सोचना। अन्याय है यह लड़कियों के साथ, खिलवाड़ है उनकी आजादी के साथ।" कहने के बाद गोपाल एक पल साँस लेने के लिए रुका।
गम और गुस्से की अधिकता से वह जरुरत से कुछ ज्यादा ही बोल गया था। अभी कुछ और कहना ही चाहता था कि मास्टर की गंभीर आवाज फिर एक बार गूँजी ,"बातें तो तुम बहुत बढ़िया कर रहे हो बरखुरदार, लेकिन बातों से ही पेट भरता तो फिर नालियाँ साफ़ करने कोई गंदे नालों में न उतरता, किसान तपती धूप में खेतों में हल न चलाता , मजदूर मजदूरी नहीं करता। सारी बनी बनाई व्यवस्था गड़बड़ा जाती। पता नहीं कितनी सदियों तक सब कुछ परखने के बाद हमारे पुरखों ने हमें जीने के लिए कुछ नियम कायदे बनाये हैं जिसे समाज के रीति रिवाज के नाम से जाना जाता है, और ये नियम कायदे इतने मजबूत हैं कि आज समाज का हर इंसान, क्या बड़ा क्या छोटा इसके अदृश्य लेकिन मजबूत धागों के बंधन में बुरी तरह जकड़ा हुआ है। इन मजबूत धागों के बंधन से निजात पाना इतना भी आसान नहीं है बेटा !" कहते हुए मास्टर रामकिशुन कुछ पल के लिए रुके। उनकी साँसें तेज चल रही थी। शायद थोड़े उत्तेजित हो गए थे। गोपाल के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं।
क्रमशः