श्रापित रंगमहल--भाग(१) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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श्रापित रंगमहल--भाग(१)

मानसरोवर गाँव के बसस्टैंड पर बस रूकी और उसमें से श्रेयांश उतरा,उतरकर इधरउधर देखने लगा तभी उस के पास आकर एक व्यक्ति ने पूछा....
जी!कहीं आप चित्रकार श्रेयांश साहब तो नहीं।।
जी! मैं ही श्रेयांश हूँ और आप! श्रेयांश ने उस व्यक्ति से पूछा....
जी! मैं शम्भू !मुझे गाँव के मुखिया जी ने आपको लेने भेजा है,अन्जान गाँव और वैसे भी शाम ढ़ल चुकी है ऊपर से आप ठहरे शहरी बाबू कहीं रास्ता ना भटक जाएं इसलिए..शम्भू बोला।।
अच्छा....अच्छा....क्या मुखिया साहब तक ख़बर पहुँच गई थी कि मैं आ रहा हूँ?श्रेयांश ने पूछा।।
जी! शहर में उनके कई जानने वाले रहते हैं तो आपके काँलेज के प्रिन्सिपल ने उन तक ख़बर पहुँचा दी थी,शम्भू बोला।।
तब तो बहुत बढ़िया हुआ,श्रेयांश बोला।।
तो आप यहाँ चित्रकारी करने आएं हैं,शम्भू बोला।।
आपको कैसें पता?,श्रेयांश ने पूछा।।
मुखिया जी कह रहे थें ,शम्भू बोला।।
ओह....प्रिन्सिपल सर ने बताया था कि मुखिया जी उनके दूर के साले लगते हैं,उनके गाँव में जो पुराना महल है उसका चित्र तुम प्रतियोगिता के लिए बना सकते हों इसलिए मैं यहाँ आ गया चित्र बनाने,श्रेयांश बोला।।
जी बहुत बढ़िया किया आपने लेकिन....शम्भू कहते कहते रूक गया।।
लेकिन...लेकिन क्या? श्रेयांश ने पूछा।
कुछ नहीं....बाद में बताता हूँ वो देखिए मुखिया जी का घर आ गया,शम्भू बोला।।
श्रेयांश मुखिया जी के घर पहुँचा तो मुखिया जी ने उससे कहा....
तो आप हैं चित्रकार साहब!
जी! बहुत बहुत मेहरबानी जो आपने अपने घर में रूकने की जगह दी....श्रेयांश बोला।।
मेहरबानी किस बात की,पत्नी को गुजरे सालों बीत चुके हैं,बेटी ब्याहकर अपने ससुराल चली गई और बेटा अपने परिवार के साथ कानपुर में रहता है,इस घर में सिर्फ़ मैं और शम्भू रहते हैं,अब आप आ गए तो कुछ रौनक सी हो जाएगी,इसलिए मैने आज ही खाना बनाने के लिए महाराजिन लगा ली है,पहले तो शम्भू बना देता था खाना,कैसा भी कच्चा पक्का खाकर सो रहते थे दोनों लेकिन आपको ऐसा थोड़े ही खिला सकते हैं,चलिए आप सफ़र से आएं हैं हाथ मुँह धो लीजिए जब तक शम्भू चाय बना लेता है,इसके बाद भोजन करेगें,मुखिया जी बोले।
जी! ठीक है और फिर शम्भू श्रेयांश को स्नानघर ले गया ,हाथ मुँह धोने के बाद श्रेयांश मुखिया जी से बातें करने लगा तब तक शम्भू चाय बनाकर ले आया,सबने चाय पी,श्रेयांश को गाँव की शुद्ध दूध की चाय बहुत पसंद आई और कुछ देर बाद दोनों भोजन करने बैठें,जो भोजन महाराजिन श्रेयांश के आने के पहले ही बनाकर चली गई थी।।
शम्भू ने भोजन परोसा खाने में हरे चने का निमोना था,आलू गोभी की सूखी सब्जी,हरीमिर्च धनिए की चटनी,आँवले का अचार और घी में तरबतर चूल्हें की सिकीं रोटियाँ,खाना खाकर श्रेयांश की आत्मा तृप्त हो गई,उसने पहली बार इतना स्वादिष्ट खाना खाया था।।
गुलाबी गुलाबी ठंड थी इसलिए मुखिया जी ने अँगीठी जलवाई और खाना खाने के बाद सब उसके आप पास बैठ गए,कुछ देर बातें करने के बाद मुखिया जी ने शम्भू से कहा .....
शम्भू जरा दूध की बटलोई अँगीठी पर रख दो ताकि दूध गरम हो जाएं और फिर थोड़े से गुड़ के साथ ये गरम दूध श्रेयांश बाबू को दे देना,बहुत अच्छी नींद आएगी।।
तब शम्भू ने दूध से भरी काँसे की बटलोई अँगीठी पर रख दी और कुछ देर बाद दोनों लोगों को गरम दूध और गुड़ दिया,जब श्रेयांश को नींद आने लगी तो मुखिया जी बोलें....
जाइए श्रेयांश बाबू ! अपने कमरें में जाकर आराम कीजिए....
तब शम्भू श्रेयांश को उसके कमरें में पहुँचा आया,साथ में लोटे में पानी ढ़ककर रख दिया और बता दिया कि आँगन में शौचालय स्नानघर के बगल में ही है वहीं हैंडपंप भी लगा है अगर पानी की जरूरत पड़े,वैसे मैने दो बाल्टी पानी भरकर रख दिया है।।
फिर शम्भू चला आया और श्रेयांश दिनभर का थका होने की वजह से लालटेन धीमी करके सो गया,आधी रात के वक्त अचानक ही श्रेयांश की आँख खुली और उसे ऐसा लगा कि कहीं से घुँघरू बजने की आवाज आ रही है लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया और फिर से आँखें बंद कर लीं,लेकिन अब उसे लगा कि वो घुँघरू उसके बिस्तर के आसपास ही बज रहें हैं,उसने लालटेन तेज की लेकिन उसे वहाँ कोई ना दिखा,उसने लालटेन फिर से धीमी करनी चाही तभी उसे दीवार पर एक लड़की की परछाई दिखाई दी...
श्रेयांश ये देखकर डर गया और उसने लालटेन फिर से तेज की और बिस्तर से उठकर उस लड़की को ढ़ूढ़ने लगा लेकिन वो लड़की उसे कहीं भी दिखाई ना दी,वो बाहर आँगन में भी आया लेकिन उसे कहीं कोई भी नज़र नहीं आया और फिर बिस्तर पर आकर उसने अपने चेहरें को रजाई से ढ़क लिया,वो बहुत डर गया था...
श्रेयांश इतना डर गया था कि उसने अपना चेहरा रजाई के भीतर ही छुपा ही लिया,जिसकी वजह से वो पसीने पसीने हो गया,एक बार तो उसका मन हुआ कि वो जाकर शम्भू काका को जगा लें और उनसे कहें कि उसने एक लड़की की परछाईं को देखा,लेकिन ऐसा करने की उसकी हिम्मत ना हुई.....
वो यूँ ही रजाई के भीतर अपना चेहरा छुपाएं रहा,उसका बदन पसीने से एकदम भीग चुका था,उसे अब रजाई के भीतर उलझन होने लगी थी इसलिए उसने अपना चेहरा रजाई के बाहर निकालने का सोचा...
वो धीरे धीरे अपना चेहरा रजाई से बाहर निकालने लगा और जैसे ही उसने अपना चेहरा रजाई से बाहर निकाला तो उसके सामने कोई नहीं था लेकिन दीवार पर नृत्य की मुद्रा में उसे फिर से लड़की की परछाईं दिखी और उसे देखकर वो चीख पड़ा,तब तक शम्भू काका श्रेयांश के कमरें के पास आकर किवाड़ पर थपकी देकर पूछ रहे थे कि ....
क्या हुआ बाबूसाहब? आप चीखें क्यों?
शम्भू काका की आवाज़ सुनकर श्रेयांश की जान में जान आई और उसने फौरन बिस्तर से उठकर दरवाजा खोल दिया और बोला.....
काका! यहाँ कोई लड़की थी।।
लड़की...और इस घर में,ये कैसे हो सकता है? शम्भू काका बोले।।
मैनें दो बार उसकी परछाई देखी,मेरी बात पर यकीन कीजिए,श्रेयांश बोला।।
लेकिन आपकी बात पर कैसे यकीन कर लूँ?शम्भू बोला।।
पहले मुझे उस दीवार पर दिखी फिर नृत्य करती हुई इस दीवार पर दिखी,साथ में घुँघरुओं की आवाज़ भी सुनाई दी,श्रेयांश बोला।।
लगता है आपको कोई भ्रम हुआ है,आपने सोते हुए कोई सपना देखा और उसे सच मान लिया,अभी आप सो जाइए,इस बारें में सुबह बात करते हैं,शम्भू काका बोले।।
मैं सच कहता हूँ वो सपना नहीं था,आप मुझे छोड़कर कहीं मत जाइए,श्रेयांश बोला।।
तो ठीक है मैं आपके कमरें में ही सो रहता हूँ,मैं अभी यहाँ अपना बिस्तर लेकर आता हूँ,शम्भू काका बोले।।
नहीं! आप मुझे छोड़कर कहीं मत जाइएं,मुझे बहुत डर लग रहा है,श्रेयांश बोला....
डरिए मत मैं बिस्तर लेकर अभी आता हूँ,शम्भू काका बोले।।
तो फिर मैं भी आपके साथ चलता हूँ और फिर इतना कहकर श्रेयांश भी शम्भू काका के पीछे पीछे चल पड़ा,कुछ ही देर में दोनों बिस्तर लेकर कमरें में वापस आ गए,फिर उस रात शम्मू काका श्रेयांश के कमरें में ही सोए.....
सुबह हुई तो सबसे पहले शम्भू काका जागे,कुछ ही देर में श्रेयांश भी जाग उठा,रात की घटना से उसका मन कुछ विचलित सा था,उसे ऐसे गुमसुम सा देखकर मुखिया जी ने श्रेयांश से पूछा...
क्या हुआ चित्रकार बाबू? आप कुछ परेशान से लग रहे हैं।।
जी! परेशान तो हूँ लेकिन आपसे कैसे कहूँ?श्रेयांश बोला....
क्यों ?मुझसे कैसी झिझक जो कहना है कह दीजिए,मुखिया जी बोले।।
वो कल रात मुझे कमरें की दीवार पर किसी लड़की की परछाईं दिखी और घुँघरुओं की आवाज़ भी सुनाई दी,श्रेयांश बोला....
अरे! आपने कोई डरावना सपना देखा होगा,मुखिया जी बोले।।
वो कोई सपना नहीं था,हकीकत थी,श्रेयांश बोला।।
लेकिन आज तक मुझे तो ऐसा कुछ नहीं दिखा इस घर में,मुखिया जी बोले।।
मैं बहुत डर गया था रात को इसलिए चीख पड़ा,मेरी चींख सुनकर शम्भू काका कमरें में आएं फिर वो वहीं मेरे कमरे में ही सो गए,श्रेयांश बोला।।
ठीक है, अगर ऐसी बात है तो आज भी आप शम्भू को ही अपने कमरें में सुला लेना,मुखिया जी बोले।।
जी धन्यवाद!श्रेयांश बोला।।
तो फिर आप जल्दी से तैयार हो जाइए और नाश्ता करके शम्भू के साथ वो पुराना महल देख आइए जिसका आपको अपनी चित्रकारी प्रतियोगिता के लिए चित्र बनाना है,मुखिया जी बोले।।
जी! बस मैं अभी तैयार होकर आया और फिर इतना कहकर श्रेयांश तैयार होने चला गया,कुछ ही देर में नाश्ता करके श्रेयांश और शम्भू उस पुराने महल को देखने चल पड़े,पुराना महल गाँव से काफी दूर था,शम्भू को तो पथरीले रास्तों पर चलने की आदत थी लेकिन श्रेयांश को पथरीले रास्ते पर चलने में परेशानी हो रही थी,लेकिन फिर भी कुछ ही देर में दोनों उस महल तक पहुँच ही गए.....
महल की ओर इशारा करते हुए शम्भू बोला......
चित्रकार बाबू! ये रहा रंगमहल,यहाँ पर राजा रहा करते थे,पुराने लोंग कहते हैं कि उनकी बहुत सी रानियाँ थी,ना जाने इस महल में क्या हुआ था कि उस रात कि राजपरिवार के सभी सदस्यों की लाशें मिलीं,कोई भी जिन्दा ना बचा था,कहते हैं कि यहाँ किसी की आत्मा भी भटकती हुई दिखाई देती है,कई लोगों को वो आत्मा दिखाई भी दी है,
ये सुनकर श्रेयांश को कुछ अजीब सा लगा लेकिन उसे लगा कि ये सब सुनी सुनाईं बातें हैं अक्सर लोंग राजमहलों के बारें में ऐसा कहते रहते हैं,

क्रमशः....
सरोज वर्मा....