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शायरी

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खुदा तेरी रहमतो के किस्से केसे बयां करु।
बेहिसाब दिया तुने,इसका क्या हिसाब करु।
किसी की नजर से मुझको क्या वास्ता ऐ खुदा।
बस तेरी नज़र में रहूं,ये अरज बार बार करु।


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जिंदगी जख्म देती नहीं,हम ले लेते है।
खुशियों के दामन को हम ही छोड़ देते है।
गमों में ही अपने आप से रूबरू होते है।
जब हर कोई हमारा साथ छोड़ देते है।.

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रहमत तेरी ए खुदा की हम जी रहे है।
मरहम तू बना हैं इसलिए सब सह रहे है।
वरना यहां कहा कोई कसर छोड़ता है डुबाने में।
पतवार है तेरे हाथोमें इसलिए अभी तेर रहे है।



*************************************************** कयामत तक साथ देने वाले,आगे मोड़ पर ही साथ छोड़ जाते है।
ये दुनिया मतलबी है जनाब,फायदा न दिखे तो पहेचानने से भी इनकार कर जाते हैं।
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मत पूछो खैरियत मेरी।
में जूठ ना कह पाऊंगा।
हजारों गम छुपाके बैठा हूं।
ठीक हूं,केसे बोल पाऊंगा।
चुप रहा तो आंखे बगावत कर ही लेगी।
पर बोल पड़ा तो फिर न रुक पाऊंगा।
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जो प्यार करते है उसपे ही मरना सीखो।
जो साथ देते है उस संग ही चलना सीखो।
कितने टकराएंगे, कुछ ही रह जायेंगे।
मर मर के क्या जीना,जी जी के मरना सीखो।
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सूना हे आंखे हर राज बयां करती है।
कोई भी जज़्बात हो सरेआम बयां करती हैं।
यही सोचकर हमने उनसे आंखे मिलाली।
वो मुस्कुराते रहे और हमारी रूह को बेपर्दा करते रहे।
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कभी किसी की वफ़ा के मोहताज मत रहना।
बस इतना खयाल रखना की कभी खुद बेवफा मत बनना।
कोई हमसे प्यार करे न करे ये उनकी मर्जी रहे।
पर हम जिसे प्यार करे वो हमारी बंदगी रहे।

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तेरे एहसास ने इतना पागल कर दिया।
दूर रहकर भी हमको बैचेन कर दीया।
लोग लबों से छूते हैं जिस्म को।
तूने तो लब्जो से रूह को छू लिया।

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थोड़े नासमझ ही अच्छे है,इस विद्वानों की दुनियां मे।
बेचारा समझकर अपनी समझदारी में सामिल नही करते।

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थोड़े नासमझ ही अच्छे है,इस विद्वानों की दुनियां मे।
बेचारा समझकर अपनी समझदारी में सामिल नही करते।
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हंसरते है, कहां कभी कम होती है।
बस,जिंदगी ही कम पड जाती है।
उम्मीद का दामन तो कस के पकड़े हुवे है।
बस हौंसले ही है जो दम छोड़ जाते है।
किसी के सहारे तो कही भी निकल जाए।
बस अकेले पड़ते हैं तो हार जाते है।
समझते है कोई हरदम साथ नही रहता।
ये दिल ही है जो नादान बन जाता है।


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कस्ती में बैठे है।
पतवार का ठिकाना नहीं।
मंजिल से बेखबर है।
किनारा तो दिखा ही नहीं।
असमंजस में है किस और जाए हम।
बस में हमारे कुछ भी नही।
अब हवा के सिवा हमारा कोई सहारा भी नहीं।

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जहां फर्क ना पड़ता हो वहा जाहिर कैसे हो।
अपने ही जनाजे में सामिल कैसे हो।
किसी को सिद्दत से चाहना हमारी मरजी थी।
पर जहा रब की मर्जी ना हो वहा सब हासिल कैसे हो।


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हर ख्याल में उनका ही जिक्र था।
उस बात की उनको कहा फिक्र थी।
हर लम्हा उनकी याद में जाता था।
उनको कहा हमें याद करने की फिक्र थी।
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कोई शिकवा भी नही है...
कोई शिकायत भी नही है...
क्योंकि उनको तो हमसे जज्बात ही नहीं है...
रहते है हरपल साथ आरजू बनकर...
हम परवाने बने बैठे है, पर वो समा ही नहीं...

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एक नजर प्यार से देख लेना हरबार...
हम जिंदगी फना कर देंगे हरबार...
बस एक ही बात का ख्याल रखना...
तुम अपनी नजर न बदलना...
हम अपना इरादा नहीं बदलेंगे...

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है खुदा,थोड़े गमों को आसपास ही रहने देना हमारे...
गमों में ही तो हम रूबरू होते है उनसे भी और अपने आप से भी...
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एकबार कहदो हमसे क्या जस्बात है तुम्हारे।
पसंद क्या है, और क्या ख्यालात है तुम्हारे।
वादा है कभी ख्यालों में भी ना आयेंगे।
अपने दिल के जख्म ना तुमको दिखलाएंगे।
मुड़के भी नहीं देखेंगे तुम्हारे आयने में।
ख़ामोश हो जायेगे दिल के मामलों में।


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बहोत खुश रहा करते थे,उनके आहोस में।
पर उन्हें तो हमारे उदास चहेरे पर ही प्यार आता था।
खुश देखकर आगे निकल जाते थे रास्ते पर।
उदास देख लिया तो पास ठहर जाते थे।
इसलिए ए खुदा गमों का बाज़ार सिर्फ हमारे लिए ही लगाना।
उन्हें हमारे लिए हमदर्दी दिखाने का मौका
तू देना।
थोड़ी देर के लिए तो सही पास तो बैठेंगे।
इन्हीं लम्हे के सहारे हम सारी उम्र काट लेंगे।

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हम कितना भी अपने आप को जाहिर करें।
उन्हें नजरअंदाज करने का हुनर खूब आता है।
हम दर्दे दिल बया करते रहे बड़ी सीदत्त से।
उन्हें इर्शाद इर्शाद करने का हुनर खूब आता है।

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इलज़ाम क्या लगाए उनपर।
सारा कसूर तो हमारा था।
वो जस्बात से खेलने बैठे थे।
हमने दिल ही उनको थमा दिया था।

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रिश्ता कोई भी हो अगर प्यार है तो वो कभी बदलता नहीं और नाहि कम होता है।
पर अगर सामनेवाला उसका सम्मान न करे तो चुप जरूर हो जाता है।


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-Trupti.R.Rami(Tru....)

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