ममता की परीक्षा - 24 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 24



जमनादास को उसके बंगले के सामने उतारकर गोपाल ने कार अपने बंगले की तरफ बढ़ा दिया।

कार बंगले के मुख्य दरवाजे के सामने खड़ी करके गोपाल ने फुर्ती से उतरकर पिछला दरवाजा खोला।
उसने मुस्कुराते हुए साधना का दायाँ हाथ थाम लिया और फिर बड़ी अदा से झुकते हुए उसका स्वागत किया, "वेलकम डिअर ..एट माय होम !"

लजाती सकुचाती साधना ने धीरे से अपना एक पग बाहर निकाला और फिर कार से उतरकर सामने स्थित विशाल हवेली नुमा बंगले को देखने लगी।
यह एक बहुत बड़ा और आलिशान बंगला था जिसपर एक तरफ अंग्रेजी के अक्षरों से बड़े ही कलात्मक तरीके से ' अग्रवाल विला ' लिखा हुआ था। बंगले के सामने बहुत बड़ा लॉन था जिसके किनारे पर सुन्दर फूल के पौधे और लॉन में दूब इस तरह लग रही थी मानो हरी मखमली चादर बिछाई गई हो। लॉन के बायीं तरफ एक गेराज बना हुआ था, जिसमें कई गाड़ियां खड़ी करने जितनी जगह थी। अभी फिलहाल एक काले रंग की शानदार मर्सिडीज गेराज की शोभा बढ़ा रही थी।
साधना के हाथों को थामे हुए गोपाल ने बंगले में प्रवेश किया।
दरवाजे से अंदर दाखिल होते ही हॉल की शोभा देखकर साधना दंग रह गई। ऐसा हॉल उसने सिर्फ सिनेमा के परदों पर ही देखा था। हॉल के बीचोबीच करीने से रखे गए कई बेशकीमती सोफे और उनके ठीक ऊपर एक बहुत बड़ा खूबसूरत कीमती झूमर शोभायमान था। पैरों के नीचे बेशकीमती गलीचे एक अलग ही अहसास दिला रहे थे। हॉल में खुलते कई कमरों के खूबसूरत दरवाजों के ऊपर दो तरफ से घूमकर ऊपर की ओर जाती चौड़ी सीढ़ी बनी हुई थी जिसके दोनों तरफ खूबसूरत नक्काशी वाली लकड़ी की रेलिंग सीढ़ी को बहुत ही खास बना रही थी।

अभी साधना अपनी आँखें फाडे हॉल का जायजा ले ही रही थी कि तभी सीढ़ियों पर से उतरती हुई एक अधेड़ महिला उसे दिखीं। उम्र यही कोई पैंतालीस वर्ष के लगभग होगी। करीने से पहने बेशकीमती साड़ी व आभूषणों के साथ ही आँखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा उनके रौब की कहानी कह रहे थे।
उन्हें देखकर साधना ने सहज ही अंदाजा लगा लिया था कि यही गोपाल की माताजी हैं। उसने सुन रखा था ' first impression is the last impression ' सो उसने दुपट्टे से अपने माथे को ढंकते हुए उसे अच्छी तरह से ओढ़ भी लिया।
उनके नीचे उतरते ही साधना ने उनके चरण स्पर्श किये साथ ही गोपाल ने उन्हें बताया, " माँ ! यह साधना है ! मेरे साथ ही पढ़ती है !"

" तो ? " गोपाल की माँ बृंदा का यह दो टूक सवाल सुनकर साधना का दिल जोरों से धड़क उठा।

" माँ ! साधना बहुत अच्छी लड़की है !" गोपाल ने बात आगे बढ़ाना चाहा।

" तो मैं क्या करूँ ?" बृंदा का फिर वही दो टूक सवाल।

" तो आशीर्वाद दीजिये !" गोपाल भी अब उसी रौ में बात करने लगा।

" क्यों आशीर्वाद दूँ ? मेरा आशीर्वाद क्या हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे के लिए है ? " बृंदा ने बुरा सा मुंह बनाया।

" साधना कोई ऐरी गैरी नहीं माँ ? " अब गोपाल खीझ गया था।

" तो ? ......तो क्या वैजयंती माला है , नरगिस है , नूतन है कि मीना कुमारी है ? " बृंदा की कठोर आवाज एक बार और गूंजी थी।

गोपाल का जी चाहा कि अपने बाल नोंच ले। बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी उसे साधना के सामने।
साधना से नजरें चुराते हुए वह बृंदा से उलझ पड़ा ," माँ ! ये क्या अनाप शनाप बके जा रही हो तुम ? मैं साधना को तुमसे मिलवाने लाया था कि इसे देख लो , परख लो ! मैं इससे शादी करना चाहता हूँ !"
" क्या ? " बुरी तरह चौंकते हुए बृंदा ने जलती नज़रों से गोपाल की तरफ देखा, " शादी करने के लिए क्या तुझे यही लड़की मिली थी ? अरे तू सेठ शोभनाथ अग्रवाल का इकलौता सुपुत्र है। अरबों डॉलर की संपत्ति वाली अग्रवाल ग्रुप ऑफ कंपनीज का वारिस यानि भविष्य का होनेवाला मालिक !"

पल भर खामोश रहकर बृंदा ने आगे कहना शुरू किया, " तू बहुत भोला है मेरे बेटे ! तुझे नहीं पता ऐसी लड़कियों की फितरत ! ऐसी लड़कियाँ कॉलेज पढ़ने कम तेरे जैसे रईस लड़कों को फंसाने ज्यादा आती हैं। पढ़लिख कर इन्हें क्या हासिल हो जाएगा ? एक अदद सरकारी नौकरी या फिर कोई और बढ़िया नौकरी, लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि हमारी कंपनी में भी कई मुलाजिमों का वेतन चार अंकों में है। इनके पास क्या है ? इनके बाप के पास न तो वह रकम होगी जो कोई भी सेठ तुझे दहेज़ के नाम पर देगा और न ही किसी बड़े खानदान का नाम होगा जो हमें समाज में एक नया रुतबा दिलायेगा। ले जा बेटा ! इस लड़की को इसके घर छोड़ आ ! यह हमारी बहू कभी भी नहीं बन सकती।"

" माँ ! एक बार देखो तो इसकी तरफ ! माना कि इनके पास देने के लिए कोई धन दौलत नहीं, किसी बड़े खानदान का नाम नहीं, लेकिन माँ ! हमें किस चीज की कमी है ? क्या हमारे पास धन दौलत की कमी है जो किसी के देने से पूरी हो जायेगी ?क्या हमारा मान सम्मान कम है जो किसी बड़े नाम वाले से जुड़कर बढ़ जायेगा ? और फिर क्या पैसे से खुशियां खरीदी जा सकती हैं ? नहीं माँ ! कत्तई नहीं ! पैसे से पूरे दुनिया की सुविधाएँ खरीदी जा सकती हैं लेकिन पैसे से अपने लिए थोड़ी सी ख़ुशी नहीं खरीदी जा सकती ! और जानती हो मेरी ख़ुशी साधना के साथ ही जीवन बिताने में है, करोड़ों के दहेज़ लानेवाली किसी सल्तनत की राजकुमारी के साथ नहीं !" गोपाल ने पूरी दृढ़ता से अपनी बात कही और साधना का हाथ कस कर थाम लिया।

बृंदा के शब्द बाणों से वह खुद को बहुत आहत महसूस कर रही थी लेकिन साथ ही गोपाल का साथ पाकर वह खुद को बहुत भाग्यशाली भी समझ रही थी। गोपाल, जो हर कीमत पर उसे अपनाना चाहता है , उसे प्यार करता है।

तभी बृंदा की आवाज सुनकर उसका ध्यान उनकी तरफ आकृष्ट हो गया जो कह रही थी, "मैं कहती थी न बेटा कि ऐसी लड़कियां कॉलेज में केवल रईस लड़कों को फांसने ही आती हैं। पढ़ना लिखना तो बस एक बहाना होता है। इतना ही नहीं ऐसी लड़कियां काला जादू भी जानती हैं जिससे ये भोले भाले लड़कों को अपने रूप यौवन के जाल में फंसाकर अपना उल्लू सीधा कर लेती हैं। अब प्रमाण तुम्हारे सामने ही है। अगर तुम इसके काले जादू के प्रभाव में न होते तो क्या आज तक कभी अपने माँ की बात टाली थी ? कभी इस तरह बात की थी ? नहीं न ? सोचो ! जो लड़की शादी से पहले माँ बेटे में बहस करा दे वह शादी के बाद क्या नहीं करेगी ? अभी भी समय है बेटा ! जिद्द छोड़ दो और पिताजी जिस लड़की से कहेंगे शादी कर लो ! हमें तुमसे ज्यादा अनुभव है दुनियादारी का।"

" माँ ! आखिर तुम भी पिताजी की तरह ही व्यापारी निकलीं न ! अरे अनुभव और तजुर्बे की दरकार तो व्यापार करने के लिए होती है प्यार करने के लिये नहीं...और माफ़ करना माँ तुम्हारे बेटे ने प्यार किया है व्यापार नहीं ! मेरा फैसला नहीं बदल सकता। अब मैं और बहस नहीं कर सकता। बस आप यह बता दीजिए कि आपको अपने बेटे की खुशियां चाहिए कि नहीं ?"
गोपाल ने साधना का हाथ थामे हुए ही दृढ़ता से कहा।