Pal Pal Dil ke Paas - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 22

भाग 22

जीत

आपने अभी तक पिछले भाग में पढ़ा की नियति को मिनी की कस्टडी मिल जाती है। मिनी को उसकी मां नियति के सुपुर्द कोर्ट कर देता है। इस खबर से नियति के पूरे परिवार में खुशियां छा जाती है। अब आगे पढ़े।

नियति की मां अपनी खुशी को नही समेट पाती है वो मिनी के पास आकर उसको अपने सीने से लगा लेती हैं। पर मिनी उन्हे खुद को गले नही लगाने देती। वो अपनी नानी को अलग कर देती है इसमें उसकी कोई गलती नही थी। क्यों कि मिनी के लिए नानी अपरिचित के समान ही थी। ज्यादा नहीं देखा था उस बच्ची ने उन्हें। मयंक के मृत्यु के समय ही मिनी से उनकी मुलाकात हुई थी। उस वक्त मिनी सिर्फ एक साल की थी। उसे उस वक्त की याद कैसे रहती..? दोनों मामा भी नियति के इस विजय पर बेहद खुश थे। आखिर नियति उनकी इकलौती भांजी थी। उसके छोटे से जीवन में इतना दुख देख कर उनका भी दिल दुखता था। मयंक को तो वो वापस नियति के जीवन में नही ला सकते थे। पर अगर मिनी नियति को मिल जाती तो उसे जीने का आसरा मिल जाता। थोड़ा सा सुकून नियति को भी महसूस होता।

ये केस इतना लंबा खिंच रहा था की उन्हें तो इस बात की आशा ही खत्म हो गई थी कि इस केस का कोई फैसला भी हो पाएगा। उनकी इस नाउम्मीदी में मेरे आने से उन सभी लोगों के मन में मिनी को हासिल करने और इस केस को किसी मुकाम तक पहुंचने की उम्मीद जगी थी। वो इस जीत का सारा श्रेय मुझे दे रहे थे। क्यों की रस्तोगी तो पहले भी उनका केस लड़ रहा था। पर कुछ नही किया था। उसने अगर ये केस जीता था तो सिर्फ मेरी वजह से। उन सब की आखों में मेरे प्रति एक आभार झलक रहा था।

इधर नीना देवी अपनी इस हार को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। वो मिनी को साथ ले कर क्यों आई थी? वो उसे साथ रख कर साबित क्या करना चाहती थी..? और हो क्या गया..? नीना देवी ने ये सपने में भी नही सोचा था की वो घर से ले कर तो साथ मिनी को जाएंगी, पर लौटेंगी खाली हाथ। वापसी में मिनी, उनके जिगर का टुकड़ा साथ नही होगा। वो बार बार बस यही यही शब्द दोहरा रही थी थीं। क्या सोचा था ..? और क्या हो गया!! ये बर्दाश्त करना उनके लिए कठिन हो रहा था। वो मिनी को जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहती थीं। पर खुराना ने उन्हें रोक दिया। ये समझाया की "मैडम जबरदस्ती ले जाने पर आप पर अपहरण का केस हो सकता है। प्लीज मैडम ऐसा कुछ मत करिए जिससे आपको खुद ही नुकसान हो जाए।" नीना देवी को खुराना की बातें समझ आ गईं। वो गुस्से से तेज कदमों से चल कर चली गई। जाते हुए जिस आग्नेय नेत्रों से वो मुझे देख रही थी, जैसे इस दुनिया में मुझसे बड़ा उनका कोई दुश्मन नहीं होगा। उनका सारा गेम प्लान जो खुराना ने रस्तोगी से मिल कर बनाया था, सब मैने फेल जो कर दिया था।

इसमें सबसे बड़ा योगदान नीता जी का भी था। वो सबसे अलग बैठी थी। आज नीता अपने दिल के एक हिस्से में खुशी महसूस कर रही थी, तो दूसरे हिस्से में दुख का आभास हो रहा था। एक आंख खुशी से भरी थी तो दूसरी बहन के अकेलेपन को सोच कर छलक रही थीं। भले ही नीना देवी कितनी भी बुरी हो, कितना भी नीता को भला बुरा कहा हो, पर थीं तो नीता की बड़ी बहन ही। नीता ने भले ही सच का साथ दिया, नियति को न्याय दिलाने में मदद की। पर नीना देवी आज एक बार फिर बहुत अकेली हो गई। इसका मलाल नीता को हो रहा था। उनकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं था।

तभी मिनी नियति की मां से खुद को छुड़ा कर "नीता माछी…. नीता माछी…" कहती हुई नीता की ओर भागी। नीता जो पीछे बैठी सब कुछ देख रही थी। खुद को संयत कर सोच से बाहर निकाली और मिनी की आवाज सुनकर खुद को ना रोक पाई। "मेरा….. ….बच्चा…" कहती हुई मिनी को गोद में उठा कर सीने से लगा लिया। मिनी के लिए दुनिया में अगर कोई सबसे प्यारा था तो वो थी उसकी नीता मासी।

नियति के मामा और मां मिनी को अपने साथ अपने घर ले जाना चाहते थे। वो कुछ समय अपने साथ रख कर नियति और मिनी पर अपना प्यार, दुलार बरसाना चाहते थे। पर रस्तोगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। रस्तोगी ने कहा, "आप सभी बुरा मत मानिएगा। पर आपका घर नीना देवी के अनुसार काफी छोटा है। जिसमे मिनी को रखने की खबर अगर नीना देवी को लग गई तो वो फिर से केस कर सकती है कि मिनी की परवरिश ठीक ढंग से नहीं हो रही है।"

मुझे भी रस्तोगी का विचार सही लगा। उसका अंदेशा सही हो सकता था। जीती हुई बाजी हम एक बार फिर अधर में नहीं लटका सकते थे। अभी हर एहतियात के साथ हम सभी इस खुशी को महसूस करना चाहते थे।

नीता ने खुद का कोर्ट को किया वादा पूरा करने की बात कही और अपने घर चलने को कहा। नीता खुशी से चहकते हुए बोली, "सही मायने में आज मेरा घर घर लगेगा। वरना बिना बच्चे के घर भी कोई घर होता है?"

नियति की मां और दोनो मामा बेहद उदास हो गए इस बात को सुनकर की मिनी तो दूर अब नियति भी चली जायेगी। कहां तो उन्हें आशा थी की मिनी भी इन्ही के साथ रहेगी.. और अब तो नियति भी चली जा रही थी।

नियति के परिवार को उदास देख नीता ने उन्हें तसल्ली दी और बोली, "आप सब बिलकुल भी ये ना सोचिए की नियति आप सब से दूर हो रही है..? है तो वो इसी शहर में। फिर दूरी है ही कितनी हमारे घरों के बीच में। दूरी तो दिलों की होती है। जब दिल करीब हों तो दूरी मायने नहीं रखती। घंटो का सफर मिनटों का हो जाता है। अब देखिए ना जब तक नीना दीदी और मेरे दिल करीब थे मैं रोज पहुंच जाती थी उनके घर। पर अब वही घर जैसे इस शहर में है ही नही। खैर.. जाने दीजिए इस बात को। जब भी आप सब का मन करे, आप सब आइए नियति और मिनी से मिलिए। कुछ दिन उनके साथ रहिए। मेरा भी दिल खुश हो जायेगा। मेरे साथ रहता ही कौन है? पूरा घर तो खाली ही पड़ा रहता है।"

मैने भी उनकी बातों में सहमति जताई। और बोला, "हां ..! नीता मासी ठीक तो कह रही है। इसमें उदास होने की क्या बात है.? आप सब इनके घर जाकर नियति और मिनी से मिल सकते है।

सब अपने अपने घर जाने को तैयार थे। सभी जीत से खुश थे तो अलग होने से उदास थे। अच्छा समय बीत रहा था हमारा।

तभी रस्तोगी ने कहा, "अरे!!! भाई अब तो हद ही हो रही है। सब को पता है कि मैं बिना खाए कोई काम नही करता। पर कोई मुझसे इस बारे में पूछ ही नही रहा।"

मैं भी जनता था की बिना रिश्वत रस्तोगी एक काम भी नही करता। मैने पूछा "अब क्या दोस्त के केस के लिए भी खायेगा? अच्छा चल बता… जो नीना देवी तुझे देती थीं वही मैं भी दे देता हूं। घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या..? अब तू ले ले अपनी फीस ब्याज के साथ।" कह कर मैं अपना पर्स टटोलने लगा, और निकलने के लिए जेब में हाथ डाला।

रस्तोगी ठहाका मार कर हंसा और मेरा jeb की और जाता हाथ पकड़ लिया और बोला, "अरे यार …. मैं तो सच मच के खाने की बात कर रहा हूं। और तू क्या सोचने लगा...? "

"बोल तुझे कहां पार्टी चाहिए? जिस होटल में बोल ले चलता हूं। पार्टी तो सच में होनी ही चाहिए।"

मेरी मां जो अभी तक नियति को देखने में ही व्यस्त थी बोली, "बेटा पार्टी तो होगी पर किसी होटल में नही होगी। पार्टी मेरे घर पर होगी। मैं कविता से बोल देती हूं वो सारी तैयारी कर लेगी हमारे पहुंचने से पहले। वो किसी होटल से भी अच्छा खाना बनाती है।"

थोड़ी सी ना नुकर के बाद आखिर सभी घर चलने को तैयार हो गए। मां ने कविता दीदी को हम सभी लोगों के लिए खाना बनाने को बोल दिया।

मां बेहद खुश थीं की नियति आज उनके घर आ रही थी। नियति के दोनों मामा और मां से मिल कर मां खुश थी। जितनी अच्छी उन्हे नियति लगी उतना ही भला उसका परिवार लगा। मेरी गाड़ी में नियति के दोनों मामा और रस्तोगी बैठे, और नीता जी की गाड़ी में नियति, उसकी मां और मेरी मां मिनी के साथ बैठी। सब पार्टी के मूड में घर चल पड़े। नीता जी की गाड़ी को रास्ते दिखाते हुए मेरी गाड़ी आगे आगे चल रही थी।

घर पहुंचने पर मैने सबसे पहले कविता दीदी को अदरक वाली चाय लाने को बोला। मुझे नियति की पसंद की चाय की याद आ गई। जब मैंने कविता दीदी को चाय के लिए बोला, वो बोल उठी "पर भैया आप तो कॉफी पीते हो रोज बाहर से आकर!"

नियति ने मेरी ओर देखा मैं भी उधर ही देख रहा था। वो समझ गई की मैं उसकी पसंद इतना लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी याद रक्खे हूं। मुझे अपनी ओर देखते देख उसने मिनी से बातें करना शुर कर दिया। मिनी सब के बीच बैठी सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी।

मेरी मां ने जो कुछ खिलौने दीदी के बच्चे के रक्खे थे, लेकर आई और मिनी को खेलने को दे दिया। एक छोटी मोटर बाइक भी थी दीदी के बच्चे की जो यही रह गई थी। मिनी को सबसे अच्छी वो बाइक ही लगी। उसके आते ही वो उस पर बैठ गई। पर वो उसे अच्छे से चला नही पा रही थी। नीता मासी ने जब देखा की मिनी उस बाइक को चला नही पा रही है तो वो उसको मदद करने चली गई।

कुछ देर बाद मैं रस्तोगी और दोनो मामाजी को साथ लेकर अपने कमरे में चला गया। कविता दीदी को बोल दिया की जब खाना तैयार हो जाए तो हमें बुला लें।

कमरे में आकर रस्तोगी बिलकुल रिलैक्स हो गया। अब तक हम चारो आपस में काफी कुछ खुल से गए थे। रस्तोगी शुरू हो गया। अपने एक से बढ़ कर एक खाने वाले किस्से सुनाने लगा। किस क्लाइंट से क्या लिया मजे ले ले कर बताने लगा। वो बोला, " मैने तो अपनी जरूरत की हर चीज के लिए अपना एक एक क्लाइंट फिक्स कर रक्खा है। यहां तक की मैं अपने कपड़े और जूते भी नही खरीदता हूं। एक क्लाइंट कपड़े के शो रूम का मिल गया। वो आज तक मेरे और फैमिली के कपड़े दे रहा है। और एक जूते की कंपनी का केस मिल गया। वो जूते दे रहा है आज तक, और मैं दोनों की बदौलत बन ठन के रहता हूं।" अपना कॉलर उठाते हुए रस्तोगी हंसते हुए बोला।

हम सब हंसने लगे उसके इस बात पर। फिर कुछ देर बाद रस्तोगी लंबी सांस लेते हुए बोला, "पर अब लगता है जितना सुकून किसी क्लाइंट के केस जीतने पर होता है, उतना इन कपड़े और जूते मुफ्त में पाकर नही होता है। सच में यार…! अब मैंने सोच लिया अपना हर केस दिल से लडूंगा। केस खींचने पर मेरा फायदा भले ही होता हो पर क्लाइंट के दुख और परेशानी का अंदाजा मुझे नियति जी के केस से हो गया। मेरा स्वार्थ किसी को दुख और परेशानी दे। अब मैं ऐसा नहीं करूगा। अब इन सब से तौबा!

अब ईमानदारी के साथ अपने हर क्लाइंट के केस को जितनी जल्दी हो सके फैसले तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा।"

कैसी रही हमारी पार्टी उस रात..? जीत का जश्न क्या सफल रहा उस रात..? क्या नीता ने कोर्ट में किया अपना वादा पूरा किया..? क्या नीना देवी ने अपनी हार स्वीकार कर ली..? या फिर कोई जाल बिछाया नियति के रास्ते में..? पढ़े अगले भाग में।

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