Pal Pal Dil ke Paas - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 21

भाग 21

अभी तक आपने पिछले भाग में आपने पढ़ा की नीना देवी केस का रुख बदलने के लिए नियति और मेरे ऊपर लांछन लगाती है। वो अपनी उंगली हमारे संबंध पर उठाती हैं। पर जज साहब बिना सबूत आरोप लगाने से सख्ती से मना करते है। साथ ही वो नीना के मन में भरी नफरत को भी भांप जाते है। नियति को घर से निकालने और मिनी को उससे दूर रखने का कोई भी ठोस कारण खुराना और संतोष साल्वे नही दे पाते है। जज साहब अब सब कुछ मिनी के ऊपर छोड़ते है। नीना मिनी को फोर्स कर मंद मंद स्वर में सिखाने लगती है की, मिनी बेटा जब जज साहब तुमसे पूछे तो तुम बोल देना की मुझे दादी के साथ रहना है। मेरी प्यारी मिनी अपनी दादी के साथ रहेगी।" ( फिर नीना देवी मिनी को डराती है, ) "मिनी बेटा तुम उस औरत के साथ रहोगी तो वो तुम्हे बहुत मारेगी.. प्यार भी नही करेगी.. कुछ दिलाएगी भी नही। वो ...बहुत गंदी है। उसी ने तुम्हारे पापा को हम सबसे दूर कर दिया।" मिनी बिचारी नन्ही सी जान ये सब सुनकर घबरा जाती है और सुबुकने लगती है। एक बच्चा कितना भी छोटा हो वो भले ही बोल पाए या नहीं, पर वो प्यार की भाषा बखूबी समझता है। ऐसा ही मिनी के साथ भी था। वो भले ही छोटी बच्ची थी पर प्यार की भाषा भली भांति समझती थी। दादी की कही बातें उसे सच नही लग रही थी। जब भी उसकी मम्मा उससे मिली थी मिनी उस प्यार की ऊष्मा अच्छे से महसूस करती थी। मां की भरी आंखे दिल में उमड़ता प्यार... दिखावा नही हो सकता। मां के बारे में बुरी बाते सुनकर मिनी को अच्छा नही लग रहा था। इस लिए वो रोने लगी। मिनी को रोता हुआ देख जज साहब अनुमान लगा लेते है कि नीना देवी उसे सीखा पढ़ा रही है। जज साहब नीना देवी पर एक बार फिर नाराज होते है। नीना झुंझला कर शांत हो जाती है। वो खुद से मिनी को और सटा लेती है। जज साहब उठ कर अपने चैंबर में चले जाते है। कुछ देर बाद अर्दली से उन्हे लेकर बारी बारी से आने को कहते है। पहले नीना और मिनी को बुलाया जाता है। गोद में मिनी को लिए नीना देवी चैंबर में प्रवेश करती है। खुद को बेहद सभ्य साबित करने के लिए वो दो बार उनका अभिवादन करती है। एक बार दरवाजे खोलते ही दूसरी बार कुर्सी पर बैठने से पहले जज साहब का अभिवादन करती है। जज साहब सर हिला कर अभिवादन स्वीकार करते है "बैठिए" कहते है। इसके बाद वो मिनी से मुख्तिब होते है। "अरे!!! ये तो बड़ी ही प्यारी बच्ची है। क्या नाम है आपका? इधर आओ आप।" और मिनी को अपने पास आने का इशारा करते है। नीना अपनी गोद से मिनी को उतार देती है। और जज साहब के पास जाने की कहती है। अपने नन्हे नन्हे पांव को धीरे धीरे आगे कर संकोच के साथ मिनी जज साहब की ओर जाती है। जज साहब उसे अपने पास रखी कुर्सी पर बिठाते है। उसके हाथो में एक चॉकलेट देते है। मिनी उसे ले लेती है। फिर उससे दोस्ती करने के अंदाज में उसका नाम, स्कूल का नाम, आदि पूछते है। फिर पूछते है ये सामने कौन है। मिनी मद्धिम स्वर में बताती है "दादी।"

फिर पूछते है, "दादी अच्छी है?"

मिनी "हां" में सर हिलाती है।

फिर नीना देवी से बाहर जाने को कहते है।

नीना देवी चली जाती हैं तो फिर नियति को बुलाते है।

मैं अब खुद को असहाय महसूस कर रहा था। ना मैं नियति को हौसला दे पा रहा था ना ही कुछ कह पा रहा था। मुझे नियति की और देखते हुए भी संकोच हो रहा था कि कही नीना देवी की बातों को वहां मौजूद लोग सच ना समझ बैठे। मैं सच्चा था… मेरी भावनाएं सच्ची थी। मैं पवित्र था… मेरे दिल की भावनाएं पवित्र थी…।

पर मैं इस समाज का क्या करता? उनके मन के मैल का क्या करता…? मां जो इतने उमंग से नियति को मिलने आई थी उनके भावनाओं को मैं कैसे समझाता?

बड़ा ही मुश्किल था नियति को सपोर्ट ना देना।

नियति मेरी ओर एक नज़र देखती है और जज साहब के चैंबर की ओर जाने लगती है। उसके निःकलुष चेहरे की मायूसी मेरी मां को अंदर तक भेद गई। वो किसी की भी परवाह किए बगैर उठी और नियति के पास पहुंच कर नियति का हाथ अपने हाथों में ले कर उससे कहा, "नियति...मैं प्रणय की मां हूं.. बेटा तुम हिम्मत रखो मुझे यकीन है मिनी से तुम और दूर नही रहोगी। आज से मिनी तुम्हारे पास ही रहेगी। तुम बिलकुल भी परेशान मत हो।" नियति ने अपना दूसरा हाथ उनके हाथों पर रक्खा और हां में सर हिलाया। बोली, "मैं जाऊं?"

मेरी मां ने सहमति दी। फिर नियति अंदर चली गई।

अंदर जाने पर जज साहब में नियति की घबराहट भांप ली। उसे रिलैक्स महसूस कराने को नम्र स्वर में बोले, "नियति जी बैठ जाइए। और बिल्कुल भी घबराइए मत।" नियति बैठ गई।

जज साहब ने मिनी को नियति की और इशारा करके दिखाया और पूछा, "बेटा ये कौन हैं जानती हो?"

मिनी जो जज साहब की बातों से अब तक उनसे घुलमिल सी गई थी, जोर से "हां" में सर हिलाया और बोली, "मेरी मम्मा।"

इतना कह कर जज साहब से अपना हाथ छुड़ा कर नियति के पास भाग गई और उसके गले लग गई। नियति की आंखे बरसने लगी। वो कभी कभी ही मिनी से मिल पाती थी, वो भी बस कुछ देर के लिए। पर मां के प्यार को वो उन्ही पलों में ही महसूस कर लेती थी।

नियति को रोते देख मिनी उसके आंखो से आंसू पोछने लगी।

मां के लिए एक छोटी बच्ची का ऐसा प्यार देख जज साहब भी भावुक हो गए। वो समझ गए थे की बच्ची क्या चाहती है पर उन्हें अपनी कार्यवाही तो पूरी ही करनी थी। वापस उन्होंने मिनी को अपने पास बुलाया और पूछा, "बेटा मिनी आप बताओ मुझे कौन आपको ज्यादा प्यार करता है? आपकी दादी या आपकी मम्मा? आप किसके साथ रहना पसंद करोगी?"

मिनी बोली, "अंकल दादी बोलती है मम्मा गंदी है, मुझे प्यार नही करती। पर मैं बताऊं आपको मेरी मम्मा बहुत अच्छी है। वो मुझे बहुत प्यार करती है। मैं अपनी मम्मा के साथ रहूंगी। दादी के साथ नही रहूंगी।"

अब सब कुछ साफ हो गया था। जज साहब ने मिनी और नियति को बाहर भेज दिया। जैसे ही मिनी बाहर आई प्रतीक्षा करती नीना देवी ने लपक कर उसे गोद में लेने की कोशिश की। पर मिनी उनके पास न जाकर नियति से ही लिपटी रही।

वापस कोर्ट मे आ कर जज साहब ने फैसला सुनाना शुरू किया। "बच्ची की इच्छा अनुसार बच्ची की कस्टडी नियति जी को दी जाती है। नीता जी अपने वादे के अनुसार उन्हें अपने साथ अपने घर में रखेंगी जब तक नियति जी खुद का घर न लें ले या खुद अपनी इच्छा से जाना ना चाहे। मिनी की पढ़ाई और सारा खर्च पूर्व अनुसार ही हो। हां नीना जी की भावनाओ को ध्यान में रखते हुए। महीने में एक दिन मिलने दिया जाए।"

इतना कह कर जज साहब चले गए।

मैने रस्तोगी को केस जीतने पर बधाई दी। वो भी बेहद खुश था। क्योंकि उसके सामने ऐसे ऐसे धुरंधर वकील थे जिन्हे हराना असंभव समझा जाता था। उनके सामने रस्तोगी कुछ नही था। पर इस एक केस को ही जीत कर रस्तोगी का नाम एक छा जाने वाला था।

एक तरफ जीत की खुशी थी तो दूसरी तरफ हार की खीज थी।

नीना देवी फैसला सुनते ही आपे से बाहर हो गई। ज्वलित आंखो से खुराना को घूरते हुए कोर्ट के बाहर तेज तेज कदम रखते हुए चली गई।

पढ़े अगले भाग में क्या नियति और प्रणय उस दिन के बाद मिले या नही? क्या मिनी को पकर नियति के जीवन से सारी समस्याएं खत्म हो गई?

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