रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 14 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 14

नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं।
वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही साहस तो लुभाता है कि वो छोटी सी उम्र में दुनिया जीतने का ख़्वाब देखता है। ज़िन्दगी जान बचाने में नहीं है आंटी, बल्कि जान की बाज़ी लगा देने में है। वो ज़रूर कामयाब होगा। आपने देखा नहीं उसका जज़्बा? सब उसे हेल्प कर रहे हैं। और आप मां होकर भी उसका रास्ता रोक रही हैं।"
लो, ये तो उल्टे मुझे ही अपराधी ठहराने लगी। मैंने तड़प कर कहा- बेटी मैं उसकी मां हूं न, इसीलिए मैं उसे खोने से डरती हूं। तुम सब लोग उसकी शहादत पर गर्व कर सकते हो पर मैं तो तभी बचूंगी न जब वो बचेगा। ज़िंदा रहेगा। मेरी जीत तो उसकी ज़िन्दगी में ही है। मैंने मुश्किल से तो उसका ध्यान सेना में जाने से हटाया है। इसके पिता को मैं पहले ही फ़ौज में देकर खो चुकी हूं। अब मुझसे दोबारा ऐसी दिलेरी की आशा तो मत रखो तुम लोग!
मैं लगभग रो ही तो पड़ी थी।
लेकिन लड़की चली गई। बोली थी- सॉरी आंटी, मैं अपने दोस्त को अपने सपने से दूर होने के लिए नहीं कह सकती।
मैं मायूस होने लगी। मुझे लगा कि अब तो पानी सिर के ऊपर से गुजरता जा रहा है। हार कर मैंने अपने भाई, तेरे मामा की सहायता लेने का विचार बनाया। मेरा भाई उन दिनों लेबनॉन में था। लेकिन मैं जानती थी कि मेरे बुलाने पर वो ज़रूर आएगा।
मैंने उसे बुला लिया। इतना ही नहीं, बल्कि तुझे कोई शक न हो इसलिए मैंने उससे घोड़ा खरीदने की पेशकश की। तू उसे जानता कहां था। कभी पहले तू उससे मिला भी तो नहीं था।
मैंने तुझे उसकी असलियत बताए बिना उसे घर आने का न्यौता दे दिया।
मुझे लगता था कि उसके यहां रहने से मुझे कुछ हिम्मत रहेगी। वह एक उम्दा नस्ल का सफ़ेद खूबसूरत सा घोड़ा ले आया।
मैं पगली न जाने क्या - क्या सोचती रहती थी। मुझे लगता था कि जब तू अपनी नाव लेकर नदी में जाएगा और झरने के साथ- साथ ऊपर से नीचे आयेगा तो मैं भी घोड़े पर सवार होकर तेरे साथ -साथ तेरा पीछा करूंगी। और जिस क्षण तुझे विफल होते देखूंगी या किसी खतरे में आया जानूंगी तभी मैं भी प्राण त्याग दूंगी।
मैं सुबह के समय भाई के साथ जाकर घुड़सवारी करने भी लगी। मैं अपनी जवानी के दिनों में शादी से पहले भी कभी - कभी घोड़ा चलाना सीखती रही थी बेटा। तेरे पिता से मिलने के बाद तो मुझमें और भी हिम्मत आ गई थी। मैं उनसे कहा करती थी कि जब आप सेना में जान से खेल कर दुश्मन से युद्ध करते हो तो मैं किस बात से डरूं!
मेरा भाई कभी - कभी फ़ौज में घोड़े सप्लाई करने पहले भी आया करता था। पानी के जहाज से कई दिनों का सफर करके वो और उसके साथी आया करते थे।
मैं कभी- कभी तेरी मुहिम से तेरा ध्यान हटाने के लिए तुझे भी लालच देती थी कि चल, छोड़ झरने और नाव का चक्कर, हम लोग रेसकोर्स के लिए अपने घोड़े तैयार करेंगे।
पर तू भी तो तू था। मेरी एक न सुनता।