रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 8 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 8

मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है।
अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।
तू क्या करता है, कहां जाता है, तुझे मिलने कौन आता है, तेरे दोस्त कौन - कौन हैं और वे कहां रहते हैं, तेरे पास कितनी रकम है... मैं ये सब चुपचाप देखने लगी।
मैं उखड़ी- उखड़ी रहने लगी। हर बात में तुझे डांटती, तेरी उपेक्षा करती।
लेकिन मैं मन ही मन तुझसे डरने भी लगी। मैं चोरी कर रही थी न! अपने मन की बात तुझसे छिपा रही थी।
फ़िर तेरा ज़ुनून देख कर मैंने तुझे प्यार से सब समझाने का मानस बनाया।
मैंने सोचा कि मैं अपना काम तेरी दुश्मन बन कर क्यों करूं? तेरी दोस्त क्यों न बनूं।
मैं सुबह से ही तेरे साथ लग जाती। हर काम में तेरी मदद ऐसे करने लगती जैसे पतंग उड़ाते बच्चों की चरखी थामने के लिए छोटे बच्चे सहायक बन कर आ जाते हैं।
अब मुझे धीरे- धीरे तेरा सारा प्लान समझ में आने लगा। तू एक प्लास्टिक की गेंद जैसी नाव बनाना चाहता था जिसमें बैठ कर तू गिरते हुए पानी से नीचे आ सके।
बेटा मैं दहल जाती थी तेरे मंसूबे देख कर।
मुझे याद आते थे वो दिन कि कहां तो मेरी गोद में नन्हा सा तू, जिसे दूध पिलाते वक्त मैं अपनी ब्रा तक उतार दिया करती थी ताकि उसके हुक या स्ट्रैप से उलझ कर तुझे कोई चोट न लगे। मेरी उघड़ी हुई छातियां देख कर तू दूध पीना छोड़ कर मेरे निपल्स से खेलने लग जाता था, और कहां अब तू मज़बूत प्लास्टिक बॉल में बैठ कर संसार के सबसे ऊंचे जलप्रपात से कूदने का ख़्वाब देख रहा था।
हे ईश्वर मैं क्या करूं?
रात को खाने के बाद जब मुझे थोड़ी फुर्सत मिलती तो मैं प्यार से तुझे समझाने लग जाती थी कि ये काम बहुत झंझट भरा है, खर्चीला है। तू मुझे भरोसा दिलाता कि इसमें कुछ दूसरे लोग मदद कर देंगे और धन की कमी आड़े नहीं आयेगी।
मैं तुझे कैसे समझाती मेरे बच्चे, कि बात धन की नहीं है, धन तो मैं तुझे वो सारा दे सकती हूं जो मेरे पास है, बल्कि कम पड़े तो मैं अपने आप को बेच कर भी तेरे लिए रकम ला सकती हूं, बात तो तेरी जान की है। मैं अपने जिगर के टुकड़े को कैसे उफनते हुए दरिया में फेंक दूं?
फेंकना ही तो था। जब अब तक कोई भी ये काम नहीं कर सका था तो तू कैसे इस पहाड़ से मंसूबे को पूरा करता। सब मर ही तो गए थे ऐसा करने वाले।
तो क्या तू भी ऐसे ही एक दिन आहिस्ता से काल की गोद में समा जाएगा? नहीं मेरे बच्चे, नहीं!
अब तो मेरे पास मेरा जॉनसन भी नहीं है जिसने अपने जिस्म से चंद प्यारी बूंदें मेरे बदन में निचोड़ कर तुझे मेरे गर्भ में डाला था। मैं क्या करूंगी? तू एक ही है मेरा इस दुनिया में!
नहीं... हरगिज़ नहीं!