ममता की परीक्षा - 18 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 18



कार कॉलेज के प्रांगण में निर्धारित पार्किंग में जाकर एक झटके से रुकी और अतीत में खोए जमानदास किसी की आहट से वर्तमान में लौट आए। अस्पताल के बेंच पर बैठे जमनादास अचानक चौंक गए सामने खड़ी डॉक्टर सुमन रस्तोगी को देखकर जिसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।
दरअसल सुमन ने सभी परीक्षण पूर्ण होने व सभी रिपोर्ट्स सामान्य पाए जाने के बाद राहत की साँस ली थी। रजनी को अब कोई खतरा नहीं था। हालांकि उसकी ऐसी अवस्था क्यों हुई वह इस सवाल पर अपनी राय कायम नहीं कर पाईं थीं। जमनादास शायद इस बारे में कुछ बेहतर बता सकें इसी उम्मीद में वह उनसे मिलने बाहर आ गई थीं।

बाहर आकर उन्होंने देखा, जमनादास के चेहरे पे स्मित हास्य के लक्षण थे। सुमन को घोर आश्चर्य हुआ। जिसकी बेटी गंभीर अवस्था में अस्पताल में परीक्षण के दौर से गुजर रही हो उसके मुख पर हास्य के लक्षण आ भी कैसे सकते हैं ? कुछ न समझने की कोशिश करते हुए उन्होंने एक डॉक्टर के तौर पर अपना कर्तव्य निभाने के लिए जमनादास से मिलकर उन्हें उनकी बेटी के बेहतर स्वास्थ्य के बारे में बताना आवश्यक समझा था।

उनके सामने पहुंच कर सुमन खड़ी हो गईं, लेकिन जमनादास के चेहरे पर अभी भी वही भाव थे। जबकि उनकी आँखें खुली हुई थीं और निगाहें कहीं स्थिर टिकी हुई लग रही थीं। उनमें कोई हलचल नहीं पाकर उन्होंने धीरे से उन्हें पुकारा, "जमनादास जी !"
कोई जवाब न पाकर उन्होंने फिर से आवाज दी, "सेठ जी !" और फिर उन्होंने जमनादास को कंधों से पकड़ कर झिंझोड़ दिया। यही वह पल था जब युवा जमनादास ने अपनी कार को जोर से ब्रेक मारा था कॉलेज की पार्किंग में। उन्हें लगा वो कार के झटके से हिल गए हैं लेकिन अगले ही पल उनकी तंद्रा लौटी और अपने सामने खड़ी डॉक्टर सुमन को देखकर वह बुरी तरह चौंक गए थे जो अभी भी उन्हें कंधे से पकड़कर झकझोर रही थीं। झटके से उठकर खड़ा होते हुए जमनादास बोले, "डॉक्टर साहिबा ! अब कैसी है मेरी बेटी ?"

"यही बताने तो मैं आपके पास आई थी कि अब वह बिल्कुल ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन आपकी हालत ने मुझे चिंतित कर दिया था कि अचानक आपको क्या हो गया ? जानते हैं आप मैं कब से आपको पुकार रही थी ?" सुमन ने उन्हें बताया।

सुनते ही खुशी से भावविभोर होते हुए सेठ जमनादास बोले, " बहुत बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहिबा ! आपने बहुत अच्छी खबर सुनाई। मैं तो डर ही गया था। वैसे हुआ क्या है रजनी को ?" जमनादास ने रजनी के बारे में और जानना चाहा।

डॉक्टर सुमन ने अपनी विवशता जताते हुए बताया, "ठीक ठीक तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन जैसी कि उसकी अवस्था मैंने देखी और कुछ परीक्षणों से जो नतीजे आये उन्हें देखकर तो यही कहा जा सकता है कि उसे किसी बात का गहरा सदमा लगा है। कोई ऐसी बात उसके दिल पर गहरे असर कर गई है जिसकी वजह से उसकी सांसें व धड़कनें अमर्यादित हो गई थीं और रक्त चाप बहुत अधिक बढ़ गया था। आप सही समय पर उसे यहाँ ला पाए यह आपकी और उसकी खुशकिस्मती है। बड़ी गंभीर स्थिति थी। कुछ भी हो सकता था। ब्रेन हैमरेज या पैरालिसिस का अटैक भी आ सकता था but thank God now she is out of danger !" कहते हुए सुमन ने गहरी सांस ली।

बात करते हुए दोनों नजदीक ही स्थित डॉक्टर के केबिन में आ चुके थे। अपनी कुर्सी पर बैठते हुए डॉक्टर सुमन ने जमनादास की तरफ देखा जो कि पहले ही इस तरफ पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठ चुके थे।

"मुझे अभी तक यह बात समझ नहीं आ रही कि आखिर यह सब हुआ कैसे ? वजह क्या रही इतनी तबियत खराब होने की ? क्या आप मुझे बेबी से संबंधित कुछ जानकारी दे सकते हैं ? मसलन उसकी दिनचर्या से संबंधित जानकारी !" डॉक्टर सुमन ने जानना चाहा।
विवशता के भाव उभर आए थे सेठ जमनादास के चेहरे पर। जमाने भर का दर्द अपने चेहरे पर समेटे हुए सेठ जमनादास ने कहा, "डॉक्टर साहिबा ! आप तो जानती ही हैं, भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास। गाड़ी, घोड़ा , नौकरों की लंबी फौज , सुख ऐश्वर्य के सभी साधन मगर अगर कुछ नहीं है तो सिर्फ समय नहीं है हमारे पास। हाँ, समय ही नहीं है हमारे पास ! यह समय की कमी की ही मजबूरी है कि हम अपनी बेटी से बहुत दूर हो गए हैं। एक ही घर में एक ही छत के नीचे रहते हुये कभी कभी कई दिन गुजर जाते हैं जब हम अपनी बेटी से बात भी नहीं कर पाते। अब आप समझ सकती हैं कि मैं उसके बारे में आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। माफ़ कीजियेगा डॉक्टर साहिबा ! इस मामले में मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा।" कहने के बाद जमनादास मुँह फेरकर दूसरी तरफ देखने लगे थे, शायद उनके दिल का दर्द पिघलकर आँसुओं के रूप में उनकी आँखों से निकलकर बाहर आने को बेताब हो रहे थे।
उनके दिल का दर्द शायद ताड लिया था डॉक्टर सुमन की अनुभवी नजरों ने और इसीलिए उन्होंने जमनादास को और कुरेदना उचित नहीं समझा और बोलीं, "कोई बात नहीं जमनादास जी ! आप अब बाहर बैठिए और कोई चिंता नहीं कीजिये। बेबी अब बिल्कुल ठीक हैं और हाँ ! बैठने से बेहतर है आप घर जा सकते हैं क्योंकि बेबी को हम आज और शायद कल भी यहीं रखना चाहेंगे।"


"ओके ! कोई बात नहीं डॉक्टर साहिबा, अब मैं समझ गया हूँ कि मुझे किस चीज की जरूरत है और किस चीज की नहीं। मैं बाहर बैठा हूँ, कोई जरूरत हो तो बुला लीजियेगा।" कहते हुए जमनादास उठे और कक्ष का दरवाजा बाहर की तरफ धकेल कर कमरे से बाहर निकल गए।

अपनी कुर्सी पर बैठी डॉक्टर सुमन को दस साल पहले का वह समय याद आ गया, जब वह इस शहर में नई नई आई थी और डॉक्टर नीरज अग्रवाल के साथ उनके सहायक के तौर पर काम करती थी। उन्हीं के निर्देश पर वह सेठ जमनादास के बंगले पर गई थी किसी मरीज को देखने के लिए।

वहाँ जाकर पता चला था कि मरीज कोई और नहीं सेठ जमनादास की धर्मपत्नी संध्या देवी थीं। उनको ब्रेस्ट कैंसर था। शहर के नामीगिरामी अस्पतालों के इलाज के बावजूद कैंसर की कोशिकाएं लगातार फैलती जा रही थीं और अब उनके बचने की उम्मीद सभी छोड़ बैठे थे। उस दिन बहुत ज्यादा दर्द की शिकायत थी संध्या को जब डॉक्टर सुमन उनकी देखरेख करने पहुँची थीं। दर्द से आराम दिलानेवाली दवाई देकर सुमन उनके कक्ष से जैसे ही बाहर आई सेठ जमनादास कहीं बाहर जाने के लिए तैयार हो रहे थे। संध्या की करुण दशा से द्रवित सुमन ने सेठ जमनादास को हरतरह से समझाने का प्रयास किया था कि संध्या को इस मुश्किल घड़ी में आपके साथ की जरूरत है, दवाइयों की नहीं। दवाइयों से ज्यादा उन्हें अपनों के दुआओं की जरूरत है। लेकिन सेठजी टस से मस नहीं हुए थे। एक हिकारत भरी नजर सुमन पर डालते हुए बोले थे ,"तुम अपना काम करो डॉक्टर ! हम जानते हैं हमें क्या करना है। तुम नहीं जानतीं हमारा वक्त कितना कीमती है।" कहकर जमनादास बाहर निकल गए थे।'
और आज ?..........' सोचते हुए सुमन के होठों पर मुस्कान तैर गई यह सोचकर कि ' सचमुच जिसे कोई नहीं सिखा पाता वक्त उसको सब कुछ सिखा देता है। '

क्रमश: