Secret Admirer - 39 books and stories free download online pdf in Hindi

Secret Admirer - Part 39

"आप यह नहीं कर सकते।" किसी तरह अमायरा ने बात संभाली। वोह कबीर को नही बताना चाह रही थी कबीर की बातों से वोह शर्माने लगी है।

"क्या? तुम्हे किडनैप करना? ओह मैं कर सकता हूं माय डियर वाइफी। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, की मैं तुम्हे आधी रात को ही अपनी गोद में उठा लूंगा और जब तुम सुबह उठोगी तो अपने आप को फॉरेन में पाओगी।" कबीर ने आंख मारी और अपने हाथ उसकी कमर पर और कस दिए। अमायरा ने थोड़ा पीछे अपना सिर कर लिया। "हां, और मैं बहुत ज़िद्दी भी हो सकता हूं।" कबीर ने फुसफुसाते हुए कहा और अमायरा सिहर उठी।

"क्योंकि हम दोनो एक दूसरे के साथ इतने ऑनेस्ट हैं इसलिए मैं भी कुछ कहना चाहती हूं। मैं.... मैं सोफे पर सोना चाहती हूं। वहां बैड पर नही।" अमायरा ने बड़ी मुश्किल से अपने तेज़ धड़कते हुए दिल को शांत कर के कहा।

"सो सकती हो लेकिन उससे पहले तुम्हे मानना होगा की तुम मुझसे प्यार करती हो।"

"मैं ऐसा क्यूं करूं?" अमायरा ने घूर कर देखा और उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश करने लगी।

"क्योंकि तुमने कहा था की तुम वहां तभी सोओगी जब तुम मुझसे उतना प्यार करती होगी। मुझे तुम्हे हर दूसरे दिन तुम्हारी ही बात क्यों याद दिलानी पड़ती है?" कबीर ने शरारत से कहा और अमायरा ने अपना पैर पटक दिया।

"तुम ज़रूर थक गई होगी। आओ, चलो सो जाते हैं।" कबीर ने उसे अपनी बाहों की गिरफ्त से आज़ाद कर दिया था।

"मैं क्यों थक गई होंगी? क्यूं?" अमायरा ने पूछा। उसे समझ नही आ रहा था की कबीर ने ऐसा क्यों कहा।

"क्योंकि तुम मेरे दिमाग में चौबीसों घंटे दौड़ती रहती हो।" कबीर ने अपनी मुस्कुराहट को छुपाने की कोशिश करते हुए कहा और अमायरा असमंजस सी खड़ी अपनी नाक खुजाने लगी।

"ओह प्लीज़ मिस्टर मैहरा। कुछ स्टैंडर्ड तो रखिए। अगर आपको ऐसे जोक्स मारने हैं तोह अपने बराबर वाले से मरिए। यह रोडसाइड रोमियो की तरह चीप लाइंस मेरे सामने मत बोलिए।" अमायरा डर गई थी कबीर के फ्लर्ट से इसलिए जो मन में आया बक गई।

"वोह ऐसा करते हैं? मुझे लगा यह मेरा ओरिजनल है। पर अगर तुम चाहती हो की तुम्हे प्यार करने के लिए मैं एक क्लास मेंटेन करूं तोह ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा। तुम्हारे लिए तोह कुछ भी। वैसे इस तरह की बातें कभी किसी ने तुम्हारे सामने की है?"

"क्यों? आपको क्या पड़ी है?" अमायरा ने इरिटेट होते हुए पूछा।

"ऑफकोर्स मुझे पड़ी है। तुम मेरी वाइफ हो, अगर किसी ने तुम्हारे सामने ऐसी हरकत की तोह, मैं उसके नाक पर एक पंच जड़ दूंगा।" कबीर ने मज़ाक करते हुए कहा और अमायरा एक पल निशब्द हो गई।

"मुझे सोना है। सुमित्रा मॉम ने कहा है की सुबह जल्दी तैयार रहने क्योंकि पंडित जी से मिलने जाना है।" अमायरा ने जल्दी से कहा। वोह और बात आगे बढ़ाना नही चाहती थी।

"तुमने मेरी मॉम को मॉम बोला।" कबीर ने बात का रुख बदला।

"हां। आपको कोई प्राब्लम है।"

"नही। बस थोड़ा सरप्राइज्ड था। कल तक तुम उन्हे आंटी कहती थी। यह अचानक बदलाव कैसे?"

"क्योंकि वोह चाहती हैं की मैं उन्हे मॉम बुलाऊं। कल उन्होंने मुझे बुला कर बोला की मैं उन्हे मॉम बुलाऊं क्योंकि वोह मुझसे प्यार करती हैं आप ही की तरह। और मेरी मदर इन लॉ होने के नाते उनका हक बनता है की मैं उन्हे मॉम बुलाऊं ना की आंटी।" अमायरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"उन्होंने तुमसे कहा की वोह तुम्हारी मदर इन लॉ हैं और तुम आसानी से मान गई। तोह तुम मुझे क्यूं एक्सेप्ट नही करती जो की तुम्हारा हसबैंड इन लॉ है?

"अह्ह्ह्ह..... मुझे सोना है। क्या मैं जा सकती हूं?" अमायरा ने कबीर के सवाल को नजरंदाज करते हुए पूछा। अभी के लिए कबीर चुप रहा।

अमायरा बैड पर अपनी साइड लेट गई और कबीर दूसरी साइड आ कर उसे बाहों में पकड़ कर लेट गया। अमायरा चुप रही, शायद थोड़ी स्वार्थी हो गई थी। उसे भी कबीर की गरमाहट भरी बाहों की आदत पड़ गई थी। पर फिर भी वोह जिद्दी थी, बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं थी की उसे कबीर की आदत लगने लगी है। ना कबीर के सामने मानने को तैयार थी और ना ही खुद के।

****

अगले सुबह जब कबीर नाश्ते के लिए नीचे आया तोह उसने पाया की उसके घर की सभी लेडीज़ लिविंग रूम में एक जगह इक्कठी हो रखी थी। वह सभी नमिता आंटी को किसी चीज के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे। हमारा थोड़ी दूर पर कौने पर खड़ी थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को रुकी हुई है।

"क्या हुआ है?" कबीर ने अमायरा की तरफ देखते हुए पूछा लेकिन जवाब सुमित्रा जी ने अमायरा के बदले दिया।

"नमिता अपने घर वापस जाना चाहती है। अब तोह वोह हार्टअटैक से ठीक हो गई है।" सुमित्रा जी ने अपनी दोस्त की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा।

"क्यों? आपको हमारे घर कोई तकलीफ है आंटी?" कबीर ने प्यार से पूछा।

"नहीं कबीर। लेकिन इतने दिनों तक अपनी बेटी के घर पर रहना ठीक नहीं है। मैं तो यहां इसलिए आई थी क्योंकि मैं बीमार थी और तुमने ज़िद्द भी की थी। पर अब मैं बिल्कुल ठीक हूं तो अब मुझे घर चले जाना चाहिए।" नमिता जी ने अपनी बात रखी।

"कौन कहता है यह सिर्फ आपकी बेटी का घर है। यह आपकी दोस्त का घर भी है। वह रिश्ता जो सबसे पुराना है। आपको पूरा हक है यहां रहने का अगर इशिता और अमायरा इस घर की बहुएं नहीं भी होती तब भी।" कबीर ने जवाब दिया।

"थैंक यू बेटा। पर मुझे अभी भी यहां रहना ठीक नही लगता। मैं जरूरत से ज्यादा दिन यहां रह गई।"

"किसने कहा सही नही है? समाज ने? हम लोग समाज की इतनी परवाह क्यों करते हैं? वोह नही आए थे आपको देखने जब आप बीमार थी। वोह आपकी बेटियां थी जिन्होंने आपका इस घर में ध्यान रखा। अब अगर आप वापिस चली गई तोह वोह दोनो इसी डर में जिएंगी की कहीं फिर से आप बेहोश न हो जाए और उन्हे समय पर इनफॉर्म न कर सकीं तोह। थैंकफुली इस बार आपके साथ अमायरा थी अगर अगली बार आपके साथ कोई न हुआ तोह?" यह बात कहते वक्त वोह अमायरा की तरफ देख रहा था। और दोनो के बीच के समझदारी पास हुई। वोह खुद से यह बात नही कह पाई थी पर कबीर ने उसकी मुश्किल आसान कर दी थी। उसने वोह कह दिया जो वोह अपनी मॉम से कहना चाहती थी।

"कबीर सही कह रहा है नमिता। यह सिर्फ तुम्हारी बेटियों का घर नही है बल्कि तुम्हारा भी है। और तुम्हे उस घर में अकेले क्यूं रहना है जब हम सब यहां रहते हैं। तुम्हे जब भी मन करे तुम उस घर में जा सकती हो लेकिन एक मेहमान की तरह। मैं तोह तुम्हे यही कहूंगी की तुम परमानेंटली यहां शिफ्ट हो जाओ, हमारे साथ।" सुमित्रा जी ने कबीर के बात को आगे बढ़ाया।

"पर मैं कैसे....."

"नमिता, तुम हमेशा मेरे लिए मेरी बहन की तरह ही रही हो। मनमीत के जाने के बाद मैं ने तुम्हे यहां आने के लिए कहा था लेकिन तुमने यह कह कर मना कर दिया था की तुम्हे अपनी दोनो बेटियों की परवरिश करनी है और लोग क्या कहेंगे अगर ऐसे रहूंगी। तुमने बहुत अच्छे से अपनी दोनो बेटियों को बड़ा किया है, पर अब, इस स्टेज में, जब तुमने अपनी सारी जिमेदारियां पूरी कर ली हैं, तुम अब आराम क्यों नही करती? हम सब परिवार हैं, क्या फायदा हुआ ऐसे परिवार का जब तुम्हे अकेले ही रहना पड़ रहा है?" सुमित्रा जी ने प्यार से अपनी दोस्त को डांट लगाई और नमिता जी तोह बस निशब्द सी उन्हे सुनती जा रहीं थी।

"हां मॉम। प्लीज यहीं रुक जाइए। हमे हमेशा आपकी तबियत की चिंता लगी रहेगी अगर आप चली गई। जब आप यहां रहेंगी, तोह हमे भी शांति रहेगी की चलो कम से कम बाकी लोग तोह हैं आपका ध्यान रखने के लिए। और अमायरा और मुझे हमेशा आपकी चिंता नहीं लगी रहेगी।" इशिता कहते हुए अपनी मॉम के गले लग गई थी जबकि अमायरा अभी भी वैसे ही खड़ी थी।

"ओके तोह यह तै रहा की आप आज से यहीं शिफ्ट हो रहीं है। आप इशिता और अमायरा को बता दीजिए वोह घर से आपका जरूरी सामान ले आएंगी। ओके आंटी?" कबीर ने पूछा और नमिता जी ने हां में सिर हिला दिया। अनिच्छा से ही सही लेकिन वोह मान गई।

कबीर ने अमायरा की तरफ देखा और अमायरा उसे देख कर मुस्कुरा दी। अमायरा ने उसे आंखों ही आंखों में दिल से धन्यवाद किया। वोह जानती थी की कबीर ने यह सब इसलिए नही किया क्योंकि वोह अपना प्यार उसके सामने दिखाना चाहता था बल्कि इसलिए किया क्योंकि वोह उसे खुश देखना चाहता था। और इसी विचार से अमायरा के मन में भावनाओ की लहर दौड़ पड़ी। वोह नही जानती थी की इस इमोशन को क्या नाम दूं, लेकिन वोह यह जरूर जानती थी सिर्फ थैंक यू कहना काफी नही है जो आज कबीर ने उसके लिए किया। और यही असल वजह थी की वोह अपनी दोस्ती नही खोना चाहती थी और जिंदगी भर यह दोस्ती का रिश्ता निभाना चाहती थी। वोह इस बात से डर रही थी की अगर उसने कबीर का दिया हुआ ऑफर एक्सेप्ट कर लिया तोह जो यह उनकी दोस्ती में कॉम्प्लफोर्ट है वोह उसे खो देगी। और वोह यह दोस्ती किसी भी कीमत पर खोना नही चाहती थी।

"ग्रेट, ठीक है फिर। अब आप यहीं रहने वाली हैं तोह फिर मुझे लगता है की हमे यह फॉर्मेलिटी भी छोड़ देनी चाहिए। तोह अब से मैं आपको मॉम बुलाऊंगा जैसे अमायरा बुलाती है, और उसका पति होने के नाते यह मेरा भी हक है की मैं आपकी मॉम बुलाऊं।" कबीर यह कहते हुए देख तोह नमिता जी की तरफ रहा था लेकिन उसका ध्यान अमायरा और उसके रिएक्शन पर था।

अमायरा शर्म से लाल हो गई कबीर के आखरी की लाइन सुन कर जबकि बाकी लेडीज खुश हो गई कबीर के खुल कर बात करने से। सुमित्रा जी अपने बेटे पर गर्व महसूस करने लगी जबकि इशिता और नमिता जी दोनो खुश हो गई की कबीर खुल कर सबके सामने अमायरा को अपनी पत्नी मान रहा है।

"ऑफकोर्स बेटा। तुम और ईशान दोनो ही मेरे लिए दामाद नही बल्कि मेरे बेटे के समान हो। मुझे बहुत खुशी होगी अगर तुम मुझे मॉम ही बुलाओ।" नमिता जी ने कहा और कबीर अमायरा की तरफ देखने लगा। अमायरा को अब सबके सामने अब जरूरत से ज्यादा शर्म महसूस होने लगी।

"ठीक है फिर। अब मैं ऑफिस एक लिए निकलता हूं। आप अपना ध्यान रखिएगा। अमायरा, क्या तुम एक मिनट के लिए कमरे में आ सकती हो, प्लीज।" कबीर ने अमायरा की तरफ देखते हुए कहा और अमायरा खुद से ही जंग लड़ने लगी। या तो यहीं खड़ी रहे और सबकी शरारती नज़रे सहती रही और सब उसे कबीर का नाम लेकर चिढ़ाए या फिर वोह चुप चाप यहां से कबीर के साथ अकेले अपने कमरे में चली जाए और कबीर का फ्लर्ट करना और प्यार जताना सहे।

उसने बाद वाला चुना और चुपचाप अपने कमरे में चली गई।








_______________________
कहानी अभी जारी है..
रेटिंग करना ना भूले...
कहानी पर कोई टिप्पणी करनी हो या कहानी से रिलेटेड कोई सवाल हो तोह कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट कर सकते हैं..
अब तक पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED