"अमायरा।" कबीर ने अपनी पत्नी को पुकारा अपनी सीट पर बैठने के बाद ताकि सब का ध्यान इस ओर जाए।
"हां।" अमायरा ने किचन से बाहर आते हुए कहा।
"तुम सब के साथ ब्रेकफास्ट क्यों नही कर रही हो?" कबीर के पूछते ही सब की आंखें हैरानी से फैल गई, कबीर का कंसर्न देख कर। और अमायरा वोह ऑकवर्ड फील करने लगी।
"मैं.... मैं थोड़ी देर में कर लूंगी। मैं अभी परांठा बना रही थी।"
"उसके लिए हमारे पास कुक है। तुम यहां आओ और बैठो। और सबके साथ ही ब्रेकफास्ट करो।"
"पर मैं...."
"अपना ब्रेकफास्ट करो अमायरा। मेरे पास पूरा दिन नही है। जल्दी से तैयार हो जाओ और फिर हम निकालना है।"
"निकालना है? कहां?" अमायरा कन्फ्यूज्ड हो गई कबीर के अचानक इस बिहेवियर से।
"तुम्हारे अनाथ आश्रम। तुम्हे याद नही हमने पहले ही यह डिस्कस कर लिया था?" कबीर ने अपनी आंखे छोटी कर उसे घूर कर देखा और अमायरा को तोह कुछ समझ ही नही आ रहा था।
"हमने किया था? कब?" अमायरा ने मासूमियत से पूछा। और वहां मजूद बाकी लोग फुसफुसाने लगे।
"कल रात, जब तुम अपने ड्रीम लैंड में थी। अगर तुम थोड़ा सा ध्यान बाकी की चीजों पर भी दोगी, तुम्हारी नींद के अलावा, तोह तुम्हे याद रहेगा।" बिना किसी की परवाह किए कबीर बेधड़क बोला। अमायरा को अपमानित सा महसूस होने लगा।
"ओह। ओके। मुझे याद आ गया। हां। हमने किया था डिस्कस कल रात।" अमायरा ने जल्दी से कहा।
"ग्रेट। चलो जल्दी से नाश्ता कर लो। फिर हम निकालना है।" कबीर ने सबकी मुस्कुराती आंखों को अनदेखा करते हुए फिर उसे इंसिस्ट करते हुए कहा। अमायरा सोचने लगी की 'इन्हे तोह बाद में देख लूंगी' और अपना नाश्ता करना शुरू कर दिया। क्योंकि उसे पता था की अगर वोह कुछ भी कहेगी अभी तोह कबीर उससे यूहीं बहस करता ही रहेगा और अपनी बात मनवा कर रहेगा।
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"यह क्या कर रहे थे आप?" अमायरा गुस्से से भड़क उठी जैसे ही वोह कबीर के साथ उसकी कार में बैठी।
"क्या?"
"आपने मुझे पूरी फैमिली के सामने क्यों बुलाया? वोह क्या सोचेंगे?"
"उन्हे जो सोचना है वोह वही सोचेंगे। हम शादी शुदा है, उनके लिए, इतना काफी है।"
"आपका कहने का क्या मतलब है? और यह ड्रामा वोह किस लिए था? मुझे अच्छे से याद है की आपने मुझे बिल्कुल नही कहा था की अचानक आपका आज मुझे मेरे अनाथ आश्रम छोड़ने का मन है।"
"मैं काफी दिन से इसके बारे में सोच रहा था। आज मेरे पास थोड़ा समय था तोह मैने सोचा क्यों न आज ही तुम्हारे साथ चलूं। इसमें क्या गलत है?"
"में अनाथ आश्रम शाम के वक्त जाति हूं। यह मेरा इंटर्नशिप का टाइम है। मैं आपको नही बता पाई क्योंकि आप उस वक्त सबके सामने बड़े खतरनाक तरीके से अपनी बात पर अड़े हुए थे।" अमायरा गुस्से से बोली और कबीर अपने आप को मूर्ख महसूस करने लगा।
"ओके। आई एम सॉरी। मैं उस वक्त किसी बात से थोड़ा डिस्टर्ब था। चलो तुम्हारा मूड नही खराब करते। मुझे यह तक नही पता की तुम क्या करती हो।" कबीर ने उसे मनाने की कोशिश की और अमायरा वोह ज्यादा देर गुस्सा नही रही और तुरंत मान गई। "वैसे तुम्हे मुझे रास्ता बताना पड़ेगा, मुझे नही पता की तुम कहां काम करती हो।"
"डेट्स ओके। मेरे काम का क्या पूछ रहें हैं? यहां से दूसरा राइट ले लीजिए।"
"तोह तुम इस इंटर्नशिप में सुबह जाति हो और शाम को अनाथ आश्रम। क्या वोह तुम ठीक सैलरी देते है? क्योंकि मुझे नही लगता की अनाथ आश्रम वालों के पास इतना फंड्स होता होगा।" कबीर ने सावधानी बरतते हुए उससे पूछा। वोह नही चाहता था की उसके किसी सवाल से अमायरा को बुरा लग जाए।
"नहीं। वोह नही देते। मेरा मतलब है की वोह मुझे और दूसरे वॉलंटियर(स्वेमसेवक) को तब पे करते हैं जब उन्हे किसी दूसरे आर्गेनाइजेशन से डोनेशन और गवर्मेंट से सहायता मिलती है। पर ज्यादातर डोनेशन और हेल्प बच्चों के वेलफेयर में चली जाती है। महीने के आखरी में सारे एक्सपेंस पूरे होने के बाद अगर कुछ बचता है तोह वहां के फाउंडर मिस्टर बैनर्जी हम में बराबर बाट देते हैं। इस महीने हम ने एक हेल्थ कैंप ऑर्गनाइज किया था तोह डॉक्टर्स को पे करने में और दवाइयों में सब पैसे खर्च हो गए इसलिए हमारे लिए पैसे नहीं बचे। नही तोह हमे मिल जाया करते थे कुछ। मेरी इंटर्नशिप एक एनजीओ के साथ है जहां हम छोटी छोटी जगह जाते हैं, जैसे की स्लम एरिया और ऐसी जगह जहां बेसिक सुविधाएं नही पहुंचती। वहां हम उन्हे बेसिक मेडिकल फैसिलिटीज प्रोवाइड कराते हैं और उन्हें हाइजीन और दूसरी मेडिकल चीजों के बारे में जागरूक कराते हैं।"
"और इशिता ने एक बार कहा था की तुम्हारी ये इंटर्नशिप तुम्हे स्टाइपेंड भी नही देती। तोह तुम अपने खर्चे कैसे मैनेज करती हो जब अनाथाश्रम भी तुम्हे पे नही करता?"
"मैं मैनेज कर लेती हूं। मैं बहुत कंजूस हूं जब पैसे खर्च करने की बात आती है। मैने यह सब करना सीख लिया था जब पापा की डेथ का बाद मॉम ही अकेले कमाने वाली थी। तोह मुझे कभी कोई इश्यू ही नही रहा काम पैसे में मैनेज करने में। और अब मुझे दी देती हैं जब से उन्होंने जॉब करना शुरू किया है।" अमायरा ने खुशी से चहकते हुए कहा। उसने इस बात पर बिलकुल ध्यान ही नही दिया की यह बातचीत कहां से कहां पहुंच रही है।
"तुम इन दो जगह पर एक साथ काम करने के बजाय किसी और आर्गेनाइजेशन में क्यों नही काम करती जो तुम्हे अच्छी सैलरी दे?"
"मैं पैसों के लिए काम नही करती। मैं अनाथ आश्रम में तब से काम कर रही हूं जब से मुझे उन बच्चों के साथ काम करना अच्छा लग रहा है। ज्यादा वॉलंटियर नही है जो उन बच्चों को बिना सैलरी लिए सिखाए। और मुझे यह अनफेयर लगता है। उन्हे भी पढ़ने का हक है। मुझे बस उन बच्चों के साथ अच्छा लगता है। और एनजीओ के साथ भी मेरी फीलिंग्स ऐसी ही है। मैं वहां बहुत एंजॉय करती हूं।"
"पर तुम्हे कुछ नही मिलता। और फिर तुम्हे इशिता से पैसे मांगने पड़ते हैं। तुम्हे बुरा नही लगता?"
"नही। मुझे क्यों लगेगा?" अमायरा ने यूहीं कहा। "क्या जीजू को बुरा लगा था जब उनके हनीमून का सारा खर्च आपने पे किया था? सिबलिंग्स एक दूसरे के लिए करते हैं। और मुझे हर समय मशीन की तरह काम करना नही पसंद, वोह भी ऑफिस में बैठे बैठे। इससे मुझे कभी खुशी नही मिलेगी।"
"पर आज कल तोह हर लड़की अपने दम पर कुछ हासिल करने की इच्छा रखती है। तुम्हे ऐसा नहीं लगता? क्या करियर कॉन्शियस होना गलत है? क्या खुद के पैरों पर खड़ा होना गलत है?"
"नही। बिलकुल गलत नही है। पर क्या करियर ओरिएंटेड रहना जरूरी है? मैं नही हूं। मुझसे ये पॉलिटिक्स हैंडल नही होती जो करियर बनाने में जरूर आड़े आती हैं। जो ऐसे हैं मैं उनके अगेंस्ट नही हूं। मेरी मॉम और दी दोनो वर्किंग हैं और मैं दोनो की रिस्पेक्ट करती हूं। बस मुझे ऐसा लगता है की आज कल हर लड़की प्रेशराइज रहती है काम करने के लिए क्योंकि उन्हें लगता है इससे हम आगे भी बढ़ेंगे और हमे आज़ादी भी मिलेगी। और अगर आप नौकरी नही करते हो तोह आप को पिछड़ा हुआ, बेकार, मंदबुद्धि समझा जाता है। मेरा मतलब है क्यों? मुझे देखिए। क्या मैं आपको मंदबुद्धि लगती हूं जिसे अपने आपको प्रूफ करने के लिए फुल टाइम नौकरी की जरूरत है या फिर हाई पे की जरूरत है।"
"उह्ह्ह्ह....नही। नही। मुझे तो तुम बहुत बुद्धिमान लगती हो। मेरा मतलब, कोई मुझे हर बार एक करारा जवाब देती है जब भी हमारे बीच आर्गुमेंट होता है, वोह इंसान मंदबुद्धि कैसे हो सकता है।" कबीर ने जल्दी से कहा और अमायरा मुस्कुराने लगी।
"अचानक मेरे काम में इतना इंटरेस्ट क्यों? मैं एक दिन यह सब छोड़ दूंगी, बिना किसी वजह के। मैं बहुत लेज़ी टाइप की लड़की हूं। मैं एक चीज़ पर लंबे समय तक फोकस नही कर सकती।"
"डेट्स योर चॉइस। तुम वोही करो जिससे तुम्हे खुशी मिलती है। ना की दूसरे क्या उम्मीद करते हैं तुमसे। तुमने दूसरों के लिए काफी कर लिया।" कबीर ने सच्चाई से कहा और अमायरा खिड़की के बाहर देखने लगी। वोह नही चाहती थी की इस वक्त कबीर उसकी आंखों में देखे की वोह इस वक्त क्या महसूस कर रही थी।
"इस तरह से दुबार मत करना जैसा की आज सुबह आपने किया था?" अमायरा ने बात बदलते हुए अचानक कहा।
"क्यों?"
"क्योंकि मैं कह रही हूं। मुझे नही पसंद।"
"तुम्हे वोह सब पसंद नही जो भी मैं कहता हूं और करता हूं। वैसे यह कोई हैरानी वाली बात नही है। क्योंकि तुम्हे मुझसे हमेशा ही लड़ना पसंद है।" कबीर ने कहा।
"यह गलत है। मैं आपसे नही लड़ती। आप मुझसे लड़ते है।"
"देखी कौन कह रहा है। जो भी मैं कहता हूं या करता हूं उससे तुम्हे प्रॉब्लम होती है। पर तुम्हे उससे कोई प्रॉब्लम नही होती जो बाकी के लोग तुमसे कहते हैं और करते हैं।" कबीर हल्का गुस्सा होने लगा था।
"आपका कहने का क्या मतलब है? आप किसके बारे में बात कर रहे हैं? अमायरा ने अपनी एक आईब्रो ऊपर उठाते हुए पूछा।
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