यहां... वहाँ... कहाँ ? - 2 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

यहां... वहाँ... कहाँ ? - 2

अध्याय 2

  
रूपला चाय भरी हुई प्यालियो को रसोई से बाहर लेकर आई।

"क्या बात है जी......! विष्णु का 2 हफ्ते से कुछ पता नहीं। किसी केस के सिलसिले में बाहर गया है क्या?"

"हां... मंगलूर गया था। कल रात को वापस आ गया। अभी थोड़ी देर में आएगा देखो....."

"क्यों मैंगलोर गया?"

"प्रजानंदा एक स्वामीजी है। वह अच्छे हैं, क्या खराब हैं ऐसा दिल्ली के सी.बी.आई. को संदेह है। उनके बारे में मालूम करने के लिए उसे योगा सीखने के लिए एक भक्त बना कर भेजा हैं । जाकर आ जाएगा।"

"उसका रिजल्ट क्या है? प्रजानंदा अच्छे हैं.... नहीं तो और हमेशा की तरह स्वामी जी।?"

"बहुत बहुत अच्छे हैं। अपने से बड़ी उम्र की लड़कियां यदि आश्रम में आए... उनके पैरों को छूकर पूजा करते हैं। एक आश्रम को जैसे होना चाहिए वैसा ही है। 2 हफ्ते रहने के बावजूद..... एक भी गलती पकड़ नहीं सका।"

"यह विष्णु का रिपोर्ट है क्या?"

"हां.."

"उस आश्रम में.... उस आश्रम में शिष्या लड़कियां भी हो तो उसने ढंग से ड्यूटी नहीं की होगी?"

"रूबी! तुम्हें एक सच्चाई को जानना चाहिए। विष्णु एक जोल्लू पार्टी  नहीं है। वह जीनियस है।"

रूपल हंसी।

"मुझे नहीं मालूम क्या? ड्यूटी हो तो.... वह कांक्शस रहता है।"

"बहुत धन्यवाद मैडम.."

दरवाजे के पास से आवाज सुनकर दोनों ने मुड़कर देखा। छाती पर दोनों हाथों को बांधे हुए विष्णु खड़ा था।

हल्की सी दाढ़ी बढ़ी हुई। माथे पर भभूति लगी हुई। पजामा जैसे एक ड्रेस में था।

"आओ... विष्णु!"-विवेक खुश हो गया।

विष्णु बड़े ही भव्यता के साथ आकर विवेक के सामने वाले कुर्सी में बैठा... रूपला बोली।

"तुम्हारे बारे में ही बात कर रहे थे।"

"मैं सो नहीं रहा था मैडम! मैं जोल्लू नहीं हूं। मैं जीनीयसू आपने मान लिया मुझे तो ऐ मुझे भारत रत्न मिलने के समान है। फिर भी यह प्रशंसा, रुपए, यह पद सब माया है। सबकुछ माया... माया... माया.. छाया... छाया...!

"क्या है जी.... यह ऐसी बातें कर रहा है?"

"2 हफ्ते के लिए प्रजानंदा आश्रम में रहकर आया है। उस बात से छुटकारा पाने में दो-तीन दिन लगेंगे। इसके लिए चाय लेकर आओ.....!"

"विष्णु! चाय पियोगे?"

"दोगी तो खुशी है। नहीं दोगी तो भी खुशी है! वह मिले.... तो हम खुश हो गए सोचते हैं.... वह नहीं मिले फिर...... वह खुशी नहीं रहती। यही तो जीवन है।"

रूपल विवेक की तरफ मुड़ी। "यह देखो! यह हिमालय पर्वत पर जाकर तपस्या करके आए तो भी इसके पास जोलोल्लू नहीं जाएगा। चाय चाहिए पूछा तो... चाहिए बोलो। नहीं तो नहीं चाहिए बोलो। यह क्या तुम बात करने लगते हो। आज से इसको इस घर में चाय नहीं मिलेगी। छाछ भी नहीं मिलेगी। एक गिलास पानी भी नहीं मिलेगा।"

"यो आय्यों मैडम! यह क्या कर रही हो आप? उस मैंगलोर प्रजानंदा आश्रम 2 हफ्ते रहकर रहने का यह फल है। मुंह खोल के बात करना शुरू करो तो तत्व ही निकलता है। मैं क्या कर सकता हूं? सॉरी मैडम! मुझे चाय दीजिएगा।"

"अभी ही.... तुम पुराने रूट पर आए हो.... तुम अपने बॉस से बात करो। मैं चाय लेकर आती हूं।"

रूपल के अंदर  जाते ही..... विष्णु को विवेक ने घूर के देखा।

"यह क्या वेषभूषा है रे?"

"वह?"

"नई दाढ़ी, माथे पर भभूति, पैजामा।"

"क्यों बॉस.... अच्छा नहीं है क्या?"

"एकदम बकवास है....! पहले सब को बदलो।"

"बॉस! कल रात को मंगलूर से वापस आते समय रात के 11:00 बज गए। बहुत थका था पड़ते ही सो गया। सुबह सो के उठते ही ऐसे ही आ गया। सेव करने के लिए समय नहीं था। दो लोटा डाल के सामने जो गणेश जी का मंदिर था वहां जाकर.... उनको सुबह एक नमस्कार करके सीधा आपको देखने आ गया।"

"इस दुनिया में वाकिंग जाने के पहले नहा कर आने वाला एक तू ही आदमी है रे....."

"मेरा ऐसे नहा के आने के दो कारण है बॉस..."

"दो कारण?"

"हां... पहला कारण... नहाकर नहीं आऊं तो मेरी नींद पूरी तरह से जाएगी नहीं, बॉस वाकिंग जाते समय चलते समय सो जाऊंगा.... छुटपन से ऐसी एक आदत है...."

रूपल चाय के कप के साथ रसोई से बाहर आई।

"ठीक है दूसरा कारण?

"उसे रहने दो मैडम...."

"क्यों रे?"

"नहीं बोलें तो छोड़ो मैडम ...."

"ठीक...... तुम उस कारण को मत बताओ! मैं बताती हूं।"

"क्या है रूबी! तुम्हें वह कारण पता है?"

"अच्छी तरह से पता है। मैंने दो बार प्रत्यक्ष देखा है....."

"देखा है?"

"हां"..

"कहां...?।

"मईलापुर में जो साईं बाबा मंदिर है...!"

"हो.. ! बाबा के मंदिर में जाता है! अच्छा तो "

"वह मंदिर जो जाता है दर्शन करने के लिए नहीं....!"

"फिर?"

"मंदिर में ठीक 8:00 बजे पोंगल प्रसादम देना शुरू करते हैं। प्रसाद बोले तो.... कोई थोड़ा सा देंगे ऐसा मत सोचो। एक बड़े दोने में खूब सारा घी डालकर खुशबू के साथ... खूब-खूब काजू डालकर पोंगल प्रसादम होता है।"

"एक बार उस पोंगल को खा लो तो बस। दोपहर को 2:00 बजे तक भूख झांकेगी भी नहीं। मैंने दो बार इसे उस प्रसाद के क्यू में देखा। है कि नहीं पूछो इससे..."- रूपल के बोलते.... विवेक हंसा।

"यह तो मुझे पहले से ही पता है रूबी!" बोलकर विवेक कुर्सी को पीछे धकेल.... वाकिंग जाने के लिए उठा उसी-क्षण उसका मोबाइल बजा। किसका फोन है उसने देखा।

पुलिस कमिश्नर उपेंद्र का था।

विवेक ने कहा "गुड मॉर्निंग सर!"

"गुड मॉर्निंग मिस्टर विवेक!... आर यू इन वाकिंग?"

"नो ...सर! अभी मैं घर से रवाना हो रहा हूं। एनीथिंग इंपॉर्टेंट सर?"

"यस! आज आपका शेड्यूल क्या है?"

"पिछले हफ्ते चेन्नई के सेंट्रल जेल में एक कैदी रहस्यमय ढंग से मरा हुआ मिला। मेरे लिए एक केस आया है साहब! उसके बारे में... एंक्वायरी करने के लिए केंद्रीय जेल में मुझे जाना है।"

"उसकी पूछताछ आप कल के लिए रख सकते हैं क्या ?"

"नो प्रॉब्लम सर! देर आए नो अर्जेंसी....! आज मेरे लिए कुछ दूसरा अपॉइंटमेंट है क्या सर?"

"यस...! चेन्नई कल छोड़कर दूसरे दिन 11:00 बजे के करीब.... नासा से एक एस्ट्रोनिक... रिसर्च ग्रुप यहां आ रहा है। उस ग्रुप में कुल 12 लोग हैं। वे 12 लोग अलग-अलग देश के हैं। उसमें अपने देश के वैज्ञानिक अग्निहोत्री भी एक हैं।"

"फॉर व्हाट पर्पस दे आर कमिंग सर?"

" 'हिक्स पोषाण' एक अणुशक्ति के शोध..... के बारे में आ रहे हैं। एक हफ्ते यहां पर रुकेंगे। कारेकुड़ी के पास एक छोटा महल पूतुंर एक गांव है। उस गांव से एक पुराना जमींदार का बंगला है वह अभी एक म्यूजियम में बदल गया है। उस म्यूजियम में बहुत सारे पुराने जमाने की वस्तुएं हैं।"

"उसमें एक पुराने जमाने की नटराज की मूर्ति है। 11 फीट की उसकी ऊंचाई उसकी नजरें बड़ी तेज उग्र और नाचने वाले शिवजी की मूर्ति भी है। उस मूर्ति को ही देखने आ रहे हैं। फिर वहां से... पुराने जमाने के शिव मंदिरों को देखने जाएंगे। करीब-करीब एक हफ्ते रहकर आने वाले 30 तारीख को अमेरिका लौट जाएंगे....."

"सर! इसमें मेरी क्या भागीदारी होगी ?"

"यह 12 लोग नासा ग्रुप.... उनकी एक हफ्ते देखभाल करके उन्हें सुरक्षित अमेरिका भेजने की जिम्मेदारी भारत के विदेश मंत्रालय ने चेन्नई पुलिस को दी है। चेन्नई पुलिस एक सिक्योरिटी विंग बनाकर.... उसने आपको और विष्णु को भी सम्मिलित किया है.... मैं आपको अभी फोन कर रहा हूं।"

"साहब.... मुझे एक संदेह!"

"प्लीज!"

"नासा से आने वाले एस्ट्रोनिक रिसर्च संस्था का आतंकवादी से कोई डर है क्या?"

"आतंकवादी से डर नहीं..."

"फिर?"

"यह उनकी रहस्यात्मक यात्रा है। प्रेस और टीवी मीडिया के लोगों को नासा के यात्रा के बारे में मालूम नहीं होना चाहिए ऐसा अमेरिका चाहता है। उस रहस्य की रक्षा करना अपने सिक्योरिटी विंग का कर्तव्य है। उस कर्तव्य को पालन करने के लिए आपके जिम्मेदारी है.... ।"

विवेक बीच में बोला।

"साहब एक बात मेरी समझ में नहीं आई!"

"क्या?"

"नासा से एक ग्रुप इंडिया को आ रहा है तो हो मीडिया वालों को क्यों नहीं मालूम होना चाहिए ऐसा अमेरिका क्यों सोच रहा है?"

"सॉरी मिस्टर विवेक! मुझे इसके बारे में विवरण  का पता नहीं। हिक्स पोषण एक संस्था अणुबम के शोध का विषय एक और 12 फीट ऊंचा नटराज की मूर्ति है.... उसके बारे में सारे विवरण इकट्ठा कर ले जाने के लिए एक नासा ग्रुप आ रहा है। यह एक शुद्ध शोध है। मानव के लिए लाभदायक शोध है इस एक ही कारण से अपने इंडिया सरकार ने अनुमति दी है।"

"परंतु.... इस शोध के विपक्ष में कुछ संस्थाएं भारत में  हैं। वह संस्थाओं को पता चलते ही... आंदोलन, उनके विरोध में उतर जाएंगे ऐसा हमारे विदेश मंत्रालय डर रहे है।"

"इसीलिए यह नासा रिसर्च ग्रुप टूरिस्ट के नाम से दिल्ली में आकर रुकी..... फिर वहां से रवाना होकर कल, परसों सुबह चेन्नई आकर पहुंचेगी।"

"ठीक 11:00 बजे दिल्ली के फ्लाइट से आ जाएंगे। उसके बाद वे आपकी सिक्योरिटी में और देखभाल में आ जाएंगे। इस विषय में डी.जी.पी. ऑफिस में आज 10:00 बजे सुबह मीटिंग रखा है। आप और विष्णु दोनों ठीक 10 बजे वहां पहुंच जाइए....."

"यस सर!"

"एनी क्वेश्चन ?"

"नो सर !"

"व्हेल वी वल मीट!"-दूसरी तरफ से कमिश्नर के सेल फोन बंद करते ही... उसने कसे हुए चेहरे से.... अपने सेलफन को भी

बंद किया।

"क्या हुआ बॉस?"

"हिक्स ओजान!"

"ऐसा बोलो तो!"

"अमेरिका से संबंधित वह एक अणु है। भारतीय के अनुसार.....

रूपल, अपनी बड़ी-बड़ी आंखों को चौड़ा कर पूछी।

"बोलिए! इंडिया के अनुसार?"

"वह एक समस्या!"