काली रात Darshita Babubhai Shah द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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काली रात

एक रात जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।

रात हर दिन की तरह थी लेकिन आज भयानक साबित हुई। भगवान को  भी आज गुस्से में महसूस किया। बार-बार माफी मांग रहा था। इसमें मेरा कोई दोष नहीं था। निशा ने मुझे कभी नहीं समझा। वह मेरी स्थिति और जीवन से अवगत थी। मैं उसे कभी अपना नहीं सका। वह जानती थी कि मैं शादीशुदा हूँ और मेरी तीन बेटियाँ हैं लेकिन उसे मेरे जैसे आदमी से प्यार हो गया मैंने कोई झूठा वायदा नहीं दिया। वह बस अपने दिल की सुनती रही और जीती रही। रात के एक बजे निशा के भाई का फोन आया कि निशा इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी है, उसे कैंसर है। आपने पिछले दो साल से इसके बारे में बात भी नहीं की, इसलिए मैंने आपको नहीं बताया। जब वह मर रही थी तब उसने तुम्हें याद किया और आह भरी और मर गई। उसके भाई ने फोन काट दिया और
मैंने भगवान से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और भगवान से क्षमा मांगी।

निशा अपने छोटे भाई के साथ मेरे सामने वाले मकान में रह रही थी। दोनों भाई बहन अविवाहित थे। वह काम कर रही थी और उसका भाई कोई काम नहीं कर रहा था। एक सुबह वो सोसाइटी के बाहिर ऑफिस जाने के लिए रिक्शा का इंतजार कर रही थी। मैंने कहा कि तुम कहाँ जा रहे हो मैं तुम्हें छोड़ जाऊँगा। वह नारनपुरा  जा रही थी। मैं भी उस तरफ जा रहा था। मैंने उसे स्कूटर पर बैठने के लिए कहा। वह ऑफिस के सामने स्कूटर से उतर गई और मुझे धन्यवाद दिया।उसने अपना नाम निशा बटाया और मेरा नाम पूछा मैंने कहा सुरेश। तभी से दोनों के दिलों में प्यार की कलियां फूट पड़ी हैं. मेरी आत्मा चुभ रही थी। मैं तीन बेटियों का पिता था। लेकिन उसे प्यार हो गया।

घर के सामने निशा रहती थी इसलिए उस्ने मेरी घरवाली के साथ दोस्ती करली थी । उसने मेरी पत्नी को सहेली बना लिया। मेरे घर उसका आना जाना शुरू हो गया था। मेरी पत्नी बहोत भोली थी , वह नही जानती थी के निशा उसके पति से प्यार कर बेठी थी और वो सहेली से मिलने नही आती थी, अपने प्यार को देखने आती थी । वो सुबह सोसायटी के बहिर सुरेश का इन्तजार करती और उसके स्कुटर पर बेठ कर ओफिस जाना पसंद करती । कभी कभी तो सुरेश निशा से पीछा छुडाने के लिए घर से जल्दी निकल जाता था । तो शाम को घर आ जाती थी और इशारो में सुरेश को डाट देती थी ।

कई कई दिन शाम को वो सुरेश घर ही खाना खा लेती  क्योंकि सुरेश की पत्नी निशा की

दानत नही जानती थी, वो तो भोली थी । कई बार सुरेश अपनी पत्नी को डाटता था, के इतना भोला नही होना चाहिए, और निशा के आने से में तेरे साथ बात भी नही कर पाता । तब उसकी पत्नी हसती थी, अपने काम में मशगूल हो जाती थी ।

दिन बीतते जाते थे । निशा की हिम्मत भी बढ्ती जाती थी । अब उसने मेरी बेटियों के साथ भी दोस्ती कर ली । वैसे तो निशा में और कोई खराबी नही थी, लेकिन उसका यूं हमारे घर में रहेना सोसायटी में रहनेवाले और रहीशों को आंखो में खटकने लगा । वो तरह तरह की बातें करने लगे । सुरेश की पत्नी का लोग कान भरने लगे । सुरेश ने अपनी पत्नी को कहां के निशा को बोल दे के हमारे घर ना आया करे । लोग बातें बनाने लगे है । उसकी पत्नी बोली लोग कुछ भी कहे मुजे आप पे भरोसा है और निशा एसी महिला नही है । सुरेश की बेटियां तो निशा के पास ही अपना होमवर्क करती और निशा  सुरेश को इतना ज्यादा प्यार करती थी के उसकी बटियों को अपनी संतान मानती थी । उन लोगो के लिए कपडे और खिलोने लाती थी । निशा अपना जन्मदिन सुरेश के साथ ही मनाती । त्योंहारो में वो सुरेश की पत्नी से चीपकी रहती । जब जब सुरेश का परिवार घर से बाहर घूमने, सीनेमा देखने, पीकनीक में या कई बहारगांव जाते तो निशा उन लोगो के साथ चली जाती । निशा अपनी सहेली के लिए तोहफा लाती रहती । इसतरह से वो सुरेश के घर की सदस्य बन गई थी । पर सुरेश के भाई बहेनो को निशा का इसतरह का सुरेश के घर पडे रहना पसंद नही था । वो लोग सुरेश को बहोत डाटते थे, और उसे समझाते थे के तेरे गर में तीन बेटियां है, कोई तेरी बेटियों को नही ब्याह कर ले जाएगा । तब सुरेश निशा पे बहोत गुस्स हुआ, औए उसे मना कर दिया मेरे घर ना आया करो । अपनी पत्नी को भी समजा दिया के निशा के साथ कोई ताल्लुक न रखे ।

उसकी पत्नी ने सुरेश को बोला ये गलत है, निशा और तुम पर मुजे पूरा भरोसा है आप निशा से रिस्ता ना खत्म करो । पर सुरेश समाज से डर गया था।

पांच साल बीत चुके हैं। मैंने निशा को समझाया कि मेरी बेटियां बड़ी हो रही है, हमारा अभी मिलना उचित नहीं है लेकिन उसने मेरी बात पर विश्वास नहीं किया। इसलिए मैं मणिनगर इलाके में रहने चला  था। उसने मुझे बुलाया लेकिन मैं उससे दूर चला गया। वह मुझसे फोन पर मिलने के लिए कहती थी और अगर मैं मना नहीं करती तो वह मुझे शाप देती। और मैंने आह भरती । मेरी पत्नी मर गई।

बेटियों के लिए भले ही इसे अच्छी शिक्षा दी , लेकिन बेटियों के ससुराल वालों को यह बेतुका लगा। तीनों में से कोई भी खुश नहीं था। सबसे बड़ी बेटी और एक बेटी बस हमारा ऐसा ही परिवार है।
बेटी भी बड़ी होकर खुश नहीं हो पाई। निशा की आह ने मेरा मुस्कुराता हुआ घर चकनाचूर कर दिया।

एक आदमी की गलती ने पूरा घर तबाह कर दिया। मैंने उस दिन निशा को स्कूटर पर लिफ्ट नहीं दी होती। काश वो काली रात न आती होती ?