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सिवन अपना घर छोड़ने के बाद वापस कोटागिरी गया। वह वहाँ रहकर ज़ेबूल की आराधना करने लगा। वहीं उसकी मुलाकात शुबेंदु से हुई। शुबेंदु वहीं एक आश्रम में रह रहा था। उसके गुरु का निधन हो गया था और वह उनके आश्रम की व्यवस्था देख रहा था। लेकिन वह शैतान का पुजारी था। वह अक्सर समुदाय द्वारा की गई ज़ेबूल की आराधना में शामिल होता था। सिवन और उसके बीच अच्छी दोस्ती हो गई।
समुदाय के एक वरिष्ठ सदस्य से सिवन को ग्यारह अमावस के अनुष्ठान के बारे में पता चला। यह एक कठिन अनुष्ठान था। इसमें आरंभ की सात अमावस तक लगातार किशोर उम्र के लड़कों की बलि चढ़ाई जानी थी। उसके बाद उन वयस्कों की बलि चढ़नी थी जो आराधना का हिस्सा रहे हों। उनका मानना था कि अनुष्ठान की समाप्ति पर ज़ेबूल प्रसन्न होकर कई शक्तियां प्रदान करेगा। इतना बड़ा अनुष्ठान करने के लिए लोगों को एकत्र करना था। उसने शुबेंदु से बात की वह मान गया। शुबेंदु के मन में भी शक्तियां प्राप्त करने का लालच था।
सिवन अपने अनुष्ठान की तैयारी शुरू करता उसी समय वहाँ कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिनके कारण अब तक गुप्त रूप से काम करने वाला उनका समुदाय चर्चा में आ गया। समुदाय के लोग इधर उधर हो गए। वहाँ रहकर अनुष्ठान करना संभव नहीं रह गया। उसने एक बार फिर शुबेंदु से बात की। शुबेंदु ने उसे अपने गुरु की बसरपुर की संपत्ति के बारे में बताया। उसके गुरु ने अपना सबकुछ उसके नाम कर दिया था। उसने अपने गुरु से सुना था कि बसरपुर चारों तरफ पहाड़ से घिरा एक शांत कस्बा है। शुबेंदु ने सुझाव दिया कि बसरपुर अनुष्ठान के लिए अच्छी जगह हो सकती है। सिवन को उसका सुझाव पसंद आया। तय हुआ कि सिवन और शुबेंदु मिलकर अनुष्ठान करेंगे। सिवन सारी व्यवस्था देखेगा। शुबेंदु के पास अपने गुरु के पैसे थे। वह पैसों से मदद करने वाला था।
सिवन जगह का अंदाजा लेने के लिए थोड़ा पहले बसरपुर के पास पालमगढ़ में आकर रहने लगा। उसने अनुष्ठान के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी। इसी संबंध में उसकी मुलाकात महिपाल सिंह से हुई। उसने महिपाल सिंह को अपने साथ मिला लिया। महिपाल सिंह ने उन ग्यारह लोगों को एकत्र किया जो वयस्क थे और जिनकी बलि अंत में चढ़ाई जानी थी। अपनी मदद के लिए दो आदमी रखे। शुबेंदु भी कुछ ही दिनों के बाद दीपांकर दास के साथ बसरपुर आ गया। उसने यहाँ शांति कुटीर की स्थापना की। उनके बीच तय हुआ था कि दीपांकर दास जो पूरी तरह से शुबेंदु के कब्ज़े में है मोहरे की तरह इस्तेमाल होगा। इसलिए उसे शांति कुटीर का प्रमुख चेहरा बनाया गया।
महिपाल सिंह की मृत्यु हो जाने पर उसका छोटा भाई सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह उसका साथी बन गया। उनका अनुष्ठान शुरू हो गया। सब ठीक चल रहा था तभी बसरपुर के जंगलों में सरकटी लाशें मिलनी शुरू हुईं। एक हड़कंप मच गया। सिवन को लगा शायद मामला दब जाएगा। पर केस की तफ्तीश के लिए एसपी गुरुनूर कौर को भेजा गया। उसने आते ही केस की छानबीन शुरू कर दी। वह दक्षिणी पहाड़ पर बने उस खंडहर तक पहुँच गई जहाँ हर अमावस को अनुष्ठान की प्रक्रिया होती थी। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह उस समय साथ ही था। उसने गुरुनूर को यह कहकर वहाँ जाने से रोकने की कोशिश की कि वह महज़ एक पुरानी इमारत का खंडहर है। वहाँ और कुछ नहीं मिलेगा। लेकिन एसपी गुरुनूर कौर मानी नहीं। हालांकि एसपी गुरुनूर कौर को उस समय वहाँ कुछ नहीं मिला। लेकिन सिवन कोई खतरा नहीं लेना चाहता था इसलिए उसने छठी और अहम अमावस के लिए उत्तर के पहाड़ पर स्थित पुराने घर को चुना।
एसपी गुरुनूर कौर पूरी तरह पीछे पड़ गई थी। उसे शांति कुटीर पर शक था। उसने शिवराम हेगड़े नामक पुलिस वाले को जासूसी के लिए भेजा। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने इसकी सूचना दे दी। शांति कुटीर में कुछ करना ठीक नहीं था। सिवन ने अपनी अगली चाल चली। उसने शुंबेंदु को दीपांकर दास के साथ बसरपुर के एक मकान में आने के लिए कहा। उसने कहा कि इस तरह आए कि शिवराम हेगड़े भी सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को लेकर उसके पीछे आए। उसकी चाल कामयाब हो गई। शिवराम हेगड़े उनकी कैद में आ गया।
एसपी गुरुनूर कौर ने दक्षिण और उत्तर वाले पहाड़ के खंडहर से बलि के सबूत प्राप्त कर लिए। वह एक एक करके आगे बढ़ने लगी। सिवन को उसकी हर सफलता चुभ रही थी। वह उसे रोकना चाहता था। उसने थाने में कैद अपने आदमी राजेंद्र की हत्या करवा दी। जिससे वह पुलिस को कुछ ना बता सके। उसकी किस्मत ने भी उसका साथ दिया। गगन और उसके साथी संजीव ने भानुप्रताप के साथ मिलकर एसपी गुरुनूर कौर का अपहरण कर लिया। उसे सिवन के पास पहुँचा दिया। सिवन अब एसपी गुरुनूर कौर की बलि चढ़ाना चाहता था।
सिवन एक साधरण शख्स के रूप में लोगों के बीच रहता था। पर अपने साथियों के बीच जांबूर के नाम से जाना जाता था। शुबेंदु को छोड़कर किसी ने उसका चेहरा नहीं देखा था। उनके बीच वह शैतान वाला मुखौटा पहन कर जाता था।
सिवन वर्तमान में लौट आया। वह अब अपने अनुष्ठान के अंतिम दौर की तैयारी कर रहा था। वर्तमान में वह जिस जगह पर था वह रानीगंज से दस किलोमीटर दूर थी। बहुत तलाशने पर उसे यह मकान मिला था। यह मकान बस्ती से दूर था। इसका मालिक एक वृद्ध पुरुष था। जिसका इस दुनिया में कोई नहीं था। सिवन ने उससे इस मकान का एक हिस्सा किराए पर लिया था। पर कुछ दिनों में जब उसे यकीन हो गया कि वृद्ध के बारे में पूछने वाला कोई नहीं है उसने उस वृद्ध की हत्या कर दी। अब वह इस मकान का मालिक था।
इस समय इस मकान में वह, शुबेंदु, गगन और उसके साथी थे। इसी मकान के पिछले हिस्से में बनी कोठरी में एसपी गुरुनूर कौर कैद थी।
इससे पहले उसने पालमगढ़ के उस मकान में एसपी गुरुनूर कौर को कैद करके रखा था जहाँ शुरुआती दौर में उसने ब्लैक नाइट ग्रुप की मीटिंग रखी थीं। लेकिन उसे लगा कि अगर वह यहाँ रहा तो पुलिस उस तक पहुँच सकती है। इसलिए उसने यह नई जगह चुनी थी। यहाँ से कोई तीन किलोमीटर जंगल के अंदर उसे वह जगह मिल गई थी जहाँ अगला अनुष्ठान हो सकता था।
गगन, संजीव और भानुप्रताप उसके साथ थे। शुबेंदु ने उन पर प्रभाव डालकर आत्म बलि के लिए तैयार कर लिया था। अब अगला कदम आने वाली चार अमावस के लिए उन आठ लोगों को भी इसी जगह लाकर रखना था। उसके लिए उसने तय किया था कि पहले चार लोगों को पर्सनल मैसेज करके मीटिंग के लिए बुलवाएगा। उन्हें बलि के लिए खुद को समर्पित करने के लिए तैयार करेगा। उसके बाद बाकी के बचे चार लोगों को।
शुबेंदु अपने कमरे में इधर से उधर टहल रहा था। वह बहुत अशांत था। उसके मन में कुछ गलत होने की आशंका थी। अपनी यही आशंका जताने वह सिवन के पास गया था। पर उसने इस बार भी उसकी बात को खारिज कर दिया था। दरअसल डर तो उसके मन में तबसे पैदा हो गया था जब बसरपुर में सरकटी लाशें मिलने से हड़कंप मच गया था। लेकिन गलती उसकी थी। उसने लाशों को ठिकाने लगाने में लापरवाही बरती थी। केस को सॉल्व करने के लिए बसरपुर आई एसपी गुरुनूर कौर जब पहली बार शांति कुटीर में उससे मिली थी, तो उसे ऐसा लगा था कि यह मामूली ऑफिसर नहीं है। उसका डर सही निकला था। एसपी गुरुनूर कौर केस सॉल्व करने के लिए गड़े मुर्दे उखाड़ने लगी। जब वह उनके कब्ज़े में आ गई तो उसे कुछ तसल्ली हुई थी। पर सिवन ने अब तक उसे जीवित रखा था। यह उसके लिए डराने वाली बात थी।
टहलते हुए जब वह थक गया तो जमीन में बिछी चटाई पर बैठ गया। वह पिछली बातों को याद करने लगा।
दीपांकर दास से कुछ दिनों की छुट्टी लेकर वह अपने गांव गया था। वहाँ उसकी मुलाकात अपने गुरु बिप्लव बर्मन से हुई। वह अपनी प्रेमिका की मृत्यु के बाद से बहुत दुखी रहता था। हालांकि उसने इस बारे में अपने दोस्त दीपांकर दास को भी कुछ नहीं बताया था। बिप्लव बर्मन की बातों ने उसे सुकून पहुँचाया। वह अपने गुरु के कहने पर उनके साथ कोटागिरी उनके आश्रम चला गया। वहाँ उसने ध्यान की तकनीक सीखी। उसे वहाँ अच्छा लगने लगा। वह वहीं ठहर गया। अपने गुरु की सेवा करके उनका दिल जीत लिया। गुरु ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उनके बाद हर एक चीज़ का स्वामी बना दिया।
शुबेंदु अक्सर रात में आश्रम से निकल कर टहलने चला जाता था। एक दिन वह जंगल में अंदर तक चला गया। वहाँ उसने कुछ लोगों को शैतानों के देवता ज़ेबूल की पूजा करते हुए देखा। उसे कौतुहल हुआ। पर उन लोगों की नज़र उस पर पड़ गई। उन्होंने उसे कब्ज़े में ले लिया। शुबेंदु ने उन्हें यकीन दिलाया कि वह इस आराधना के बारे में जानने को उत्सुक है। उस पर यकीन करके उन लोगों ने उसे ज़ेबूल और उसकी शक्तियों के बारे में बताया। चार दिन तक शुबेंदु उनके साथ रहकर ज़ेबूल की आराधना करता रहा।
आश्रम लौटने पर उसके गुरु ने इतने दिनों तक गायब रहने का कारण पूछा। उसने झूठ बोल दिया कि वह जंगल में गहन ध्यान साधना कर रहा था। उसके बाद अक्सर वह कई कई दिनों के लिए आश्रम से गायब रहने लगा। वह शैतान की पूजा करने वाले समूह के पास जाता था। एक बार जब वह लौटकर आश्रम आया तो उसके गुरु बहुत नाराज़ हुए। उन्हें सब पता चल गया था। उन्होंने धमकी दी कि अगर वह सही राह पर नहीं आया तो उसे अपने उत्तराधिकारी के पद से बेदखल कर देंगे।
शुबेंदु खुद को मिली ताकत खोना नहीं चाहता था। आश्रम में उसके अतिरिक्त पाँच और शिष्य थे। उसने उन्हें अपने प्रभाव में कर लिया था। सही मौका देखकर उसने अपने गुरु को राह से हटा दिया।