Gyarah Amavas - 56 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 56



(56)

इस कमरे में बहुत मद्धम रौशनी थी। दीवारों पर गहरा रंग था। जिसके कारण कमरे का माहौल बहुत रहस्यमई लग रहा था। कमरे में एक कबर्ड के अतिरिक्त कोई और सामान नहीं था। कमरे के बीचों बीच फर्श पर एक चटाई बिछी थी। उस चटाई पर एक आदमी पालथी मारकर बैठा था। उसकी आँखें मुंदी हुई थीं। वह उस अवस्था में बिना हिले डुले ऐसे बैठा था जैसे कि कोई बुत हो। पर बाहर से शांत उस व्यक्ति के मन में बहुत कुछ चल रहा था। वह छह साल पहले अपने अतीत में विचरण कर रहा था।

हॉल भरा हुआ था। लोग बहुत ध्यान से प्रोफेसर जॉन माइकल का लेक्चर सुन रहे थे। इनमें छत्तीस साल का सिवन भी था। वह एक कंप्यूटर इंजीनियर था। पर जो लेक्चर वह सुनने आया था वह उसके विषय से विपरीत था। प्रोफेसर जॉन माइकल पराविज्ञान से संबंधित थे।
सिवन बहुत ही विचित्र स्वभाव का था। वह बाकी लोगों से अलग था। उसे घूमना फिरना, फिल्म देखना, पार्टी करना पसंद नहीं था। लोगों से मिलने जुलने की जगह एकांत में रहना पसंद करता था। रौशनी की जगह उसे अंधेरा रास आता था। अक्सर देर रात चुपचाप घर से निकल कर पास बने कब्रिस्तान में जाकर बैठता था। उसे शैतानी शक्तियों पर भरोसा था। इस समय प्रोफेसर जॉन माइकल शैतानी शक्तियों के बारे में बता रहे थे। सिवन बहुत ध्यान से उनकी हर एक बात सुन रहा था।
प्रोफेसर जॉन माइकल बता रहे थे कि संसार में शैतानी शक्तियों का अस्तित्व भी होता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इन शैतानी शक्तियों की तरफ आकर्षित होते हैं। इनकी पूजा करते हैं। शैतानी शक्तियों को खुश करके बहुत से वरदान प्राप्त करते हैं। दुनिया भर में शैतान की पूजा करने वाले बहुत से समुदाय हैं। भारत में भी अब इन समुदायों का प्रभाव बढ़ रहा है।
प्रोफेसर जॉन माइकल बताने लगे कि हमें ऐसे समुदायों से सावधान रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में शैतान की पूजा पाप है। हमें अच्छाई के रास्ते पर चलना चाहिए। लेकिन प्रोफेसर जॉन माइकल की इन बातों में सिवन को कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह उठा और हॉल के बाहर निकल गया।

कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। आँखें मूंदकर बैठा सिवन वर्तमान में लौट आया। उसने अपनी आँखें खोलीं। उनमें एक शैतानी चमक थी। वह उठा और जाकर दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़े पर शुबेंदु था। उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि वह कुछ बात करना चाहता है। सिवन ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"तो अभी तक तुम्हारे मन के सवाल खत्म नहीं हुए।"
शुबेंदु ने कहा,
"मेरे मन के सवाल निराधार नहीं हैं। इसलिए हमें बात करनी चाहिए।"
सिवन ने उसे अंदर बुला कर दरवाज़ा बंद कर दिया।‌ दोनों एक दूसरे के सामने चटाई पर बैठ गए। सिवन ने कहा,
"बताओ क्या कहना है ?"
शुबेंदु ने संकोच के साथ कहा,
"ना जाने क्यों मेरे मन में एक डर आ गया है। ऐसा लगता है कि हम पुलिस के हाथ चढ़ने वाले हैं।"
सिवन कुछ देर तक उसके चेहरे को देखता रहा। शुबेंदु उसके इस तरह देखने से परेशान हो रहा था। उसने कहा,
"तुमको लग रहा होगा कि मैं बेवजह डर रहा हूँ। लेकिन मेरे डर का कारण है। वो कारण है एसपी गुरुनूर कौर। वह जीवित है और कुछ भी कर सकती है।"
सिवन ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी डर है। डर के कारण इंसान कायर हो जाता है। अपने कायरपन को अच्छाई के लबादे में छिपाने की कोशिश करता है। दुनिया में अधिकतर लोग ऐसे ही हैं। पर हम शैतान के पुजारी हैं। हमें डरना नहीं है। मैं आज तक नहीं डरा। इसलिए इतना बड़ा अनुष्ठान कर रहा हूँ। डर को मन से निकाल दो। यही हमारी मुसीबत का कारण बनेगा।"
सिवन ने जो कुछ कहा था उसे सुनकर भी शुबेंदु को तसल्ली नहीं हुई थी। उसकी मनोदशा को समझ कर सिवन ने कहा,
"ये डर कब आ गया तुम्हारे मन में शुबेंदु। जब हम साथ आए थे तब तो यह डर तुम्हारे मन में नहीं था।"
शुबेंदु ने कहा,
"सावधान रहने और डरने में फर्क होता है। मैं डर नहीं रहा हूँ। बस सावधान रहने को कह रहा हूँ।"
सिवन ने एकदम से कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर तक शुबेंदु को देखता रहा। फिर कुछ गुस्से में बोला,
"मैं बता चुका हूँ कि बिना सोचे समझे कुछ नहीं करता हूँ। एसपी गुरुनूर कौर हमारे कब्ज़े में है। उस घुटन भरी तंग कोठरी में उसका सारा हौसला पस्त हो जाएगा। अब वह सिर्फ बलि के रूप में हमारे काम आएगी।‌"
"अगर पुलिस को शक हो गया कि जंगल में मिलने वाली लाश उसकी नहीं है तो ? फिर पुलिस उसे खोजने की कोशिश करेगी।"
"ऐसा नहीं होगा। जिस लड़की को मारकर मैंने उसे एसपी गुरुनूर कौर की वर्दी पहनाई थी वह बहुत हद तक एसपी से मिलती थी। मेरे आदमी ने कई दिनों तक उस पर नज़र रखने के बाद उसका अपहरण किया था। पुलिस को जब जंगल में लाश मिली थी तब उसकी हालत बिगड़ गई थी। इसलिए अधिक कुछ पता नहीं किया जा सकता है।"
"अगर डीएनए टेस्ट....."
शुबेंदु की बात बीच में ही काटते हुए सिवन ने कहा,
"एसपी गुरुनूर कौर को अनाथालय से गोद लिया गया था। कुछ साबित नहीं होगा।"
यह सुनकर शुबेंदु को आश्चर्य हुआ। वह कुछ पूछता उससे पहले सिवन ने कहा,
"तुमको मैंने जो काम दिया था उस पर ध्यान दो। इधर उधर की बात सोचकर परेशान ना हों।"
सिवन ने जिस तरह से कहा था उसका मतलब था कि शुबेंदु अब उसे अकेला छोड़ दे। शुबेंदु चुपचाप चला गया। शुबेंदु के जाने के बाद सिवन एक बार फिर आँखें बंद करके अतीत को याद करने लगा।

प्रोफेसर जॉन माइकल ने ऐसे समुदायों के बारे में बताया था जो शैतान की पूजा करते ‌थे। सिवन ने ऐसे समुदायों के बारे में पता करना शुरू किया। वह लाइब्रेरी में जाकर ऐसी पुस्तकें पढ़ता था जिनमें शैतान के पुजारियों का ज़िक्र होता था। इंटरनेट पर उसे ‌इस विषय में जो सामग्री मिलती थी एकत्र करता था।‌ अपने जॉब के बाद जो समय बचता था वह इसी रीसर्च पर लगाता था।
उसका घर एकांत में पड़ता। आसपास मकान नहीं थे। उसका कमरा मकान की दूसरी मंज़िल पर था। लेकिन वह अपने कमरे में किसी को भी नहीं जाने देता था। अपने कमरे की सफाई खुद ही करता था। बाहर जाते समय कमरा लॉक करके जाता था‌‌। उसके घर पर केवल उसके बूढ़े पिता और बीमार माँ थी। वो चाहते थे कि दूसरों की तरह वह भी शादी करके घर बसाए। उनको उसका अजीब सा व्यवहार पसंद नहीं था। लेकिन वह उनकी कोई बात नहीं सुनता था।
तीन साल पहले अपनी रीसर्च के दौरान सिवन को कर्नाटक के कोटागिरी में एक ऐसे समुदाय का पता लगा जो शैतान की पूजा करते थे। उसने कोटागिरी जाकर उस समुदाय से संपर्क किया। कुछ दिन उनके साथ बिताए। वहाँ उसे पता चला कि शैतानों के देवता का नाम ज़ेबूल है। यदि उसकी आराधना कर उसे प्रसन्न कर लिया जाए तो व्यक्ति कई शक्तियों का स्वामी बन सकता है। उन लोगों से ज़ेबूल की आराधना की विधि सीख कर वह अपने घर वापस आ गया।
जब वह लौटकर आया तो उसके पिता ने उसे इस तरह गायब हो जाने के लिए खूब डांटा। उसकी पीठ के पीछे उन्होंने उसके कमरे की तलाशी ली थी। उस तलाशी में जो कुछ मिला वो उन्हें परेशान करने के लिए पर्याप्त था। उसके पिता ने उससे पूछा कि आखिर उसके मन में चल क्या रहा है। उसने अपने पिता को शैतानों के देवता ज़ेबूल और उसकी आराधना के बारे में सब बता दिया। सब सुनकर उसके पिता के होश उड़ गए। उन्होंने उससे यह फितूर छोड़ देने के लिए कहा।
सिवन ने अपने पिता की बात नहीं सुनी‌। वह हर अमावस को आधी रात के बाद घर के पास कब्रिस्तान वाले जंगल में जाकर ज़ेबूल की आराधना करता था। इस तरह चार अमावस बीत गई थीं। एक अमावस को उसके पिता ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे धमकाया कि यदि वह नहीं माना तो पुलिस में उसकी शिकायत कर देंगे। वह अपनी आराधना में कोई बाधा नहीं चाहता था। उसने अपने पिता की हत्या कर लाश जंगल में फेंक दी। घर आकर उसने अपनी बीमार माँ को भी मार दिया। उनकी लाश घर के बैकयार्ड में दफना दिया। उसे रोकने वाला अब कोई नहीं था। अब वह अपने घर पर ज़ेबूल की आराधना करने लगा।
सिवन के एक चाचा थे। पिछले कुछ सालों से वो दुबई में रह रहे थे। वो अपने भाई भाभी से बात करने के लिए उनका फोन मिला रहे थे‌। फोन स्विचऑफ था। उन्हें चिंता हुई। उन्होंने सिवन को फोन किया। सिवन ने उनसे कहा कि दोनों कुछ दिनों के लिए घूमने गए हैं। उसके चाचा जानते थे कि ‌उनकी भाभी ‌की सेहत ऐसी नहीं है कि कहीं घूमने जा सकें। उन्हें ‌सिवन की हरकतें शुरू से ही अच्छी नहीं लगती थीं। उन्हें कुछ शक हुआ। उन्होंने पूछताछ की कि उसके भाई भाभी कहाँ गए हैं। उनका फोन क्यों स्विचऑफ आ रहा है। सिवन ने गोलमोल जवाब देकर टाल दिया। यही नहीं अपने चाचा का नंबर भी ब्लॉक कर दिया।
एक दिन अचानक उसके चाचा उसके घर आ गए। उस समय सिवन काम पर गया था। उन्हें घर में कोई नहीं मिला। शाम को वो दोबारा लौटकर आए। उन्होंने सिवन से अपने भाई भाभी के बारे में पूछा। वह फिर इधर उधर की बात करने लगा। उसके चाचा को पूरा यकीन हो गया कि वह झूठ बोल रहा है। उन्होंने धमकी दी कि सच बताए नहीं तो पुलिस को सारी बात बताएंगे। सिवन ने गुस्से में उनकी भी हत्या कर दी। वह लाश को भी बैकयार्ड में दफनाने की तैयारी कर रहा था तभी उसके चाचा को उनके स्थानीय दोस्त का वऑट्सएप मैसेज आया। मैसेज में लिखा था कि अपने भाई भाभी से मिलकर जल्दी आओ। मैं खाने पर इंतज़ार कर रहा हूँ।
सिवन के लिए यह एक सावधान करने वाला मैसेज था। उसका अपने घर में रहना उसे मुसीबत में डाल सकता था। उसने लाश को वैसे ही छोड़ दिया। अपना आवश्यक सामान बैग में डाला। शैतानों के देवता ज़ेबूल की मूर्ति उठाई और घर से निकल गया।




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