6---------
भानुमति का मस्तिष्क काम नहीं कर रहा था, क्या करे ? क्या कर सकती है ? उसको छोड़ सकती है किन्तु इतना आसान भी तो नहीं| जिन माँ-बाबा के लाख मना करने पर भी वह अपने आपको राजेश के प्रेम में डूबने से रोक नहीं सकी थी, यदि अभी वापिस लौट गई तो माँ-बाबा उसे देखकर ही मर जाएँगे | सोचने-समझने की शक्ति क्षीण होती जा रही थी उसकी ! मानो बदन पर लकुआ पड़ गया हो जो उसे उठने ही नहीं दे रहा था | उसे क्रांतिकारी, झाँसी की रानी के नाम से पुकारा जाता था, आज उसे क्या हो रहा था ? क्यों वह एक छोटा सा कदम नहीं उठा पा रही थी | यह कैसी अपंगता थी ?
न जाने वह कितनी देर तक सोफ़े पर लुढ़की सी पड़ी रही, उसकी गर्दन सोफ़ा-बैक पर जैसे टूटी हुई सी टिक गई थी | वह न जाने कितनी देर तक दीवार पर लटकी उस एब्स्ट्रेक्ट पेन्टिंग को घूरती रही जिसका उसे कभी सिर-पैर ही समझ नहीं आया था |बेजान सी । पथराई सी आँखों में रिचार्ड के घर की पार्टी उसके सामने घूमती रही, ऐसी ही होगी न जैसी हमेशा होती है, क्या नए पर लगे होंगे | उसका लिखना –पढ़ना भी बंद सा हो गया था जिसके कारण उसे लगता कि वह ऐसी प्रसव-वेदना से गुज़र रही थी जो शायद कभी भी उसका पीछा न छोड़े !
दरवाज़ा खोलकर अचानक ही राजेश उसके सामने आ खड़ा हुआ :
“ओ ! माय गुड़नैस स्टिल ?” उसके आँखों में जैसे चिंगारियाँ भरने लगीं | क्या बंदा है? भानु ने सोचा उसका मन हुआ राजेश की आँखें नोच ले ! लेकिन वह चुपचाप अपने बैड-रूम में प्रवेश कर गई |जाने के लिए उसे तैयार तो होना ही था | मरती, क्या न करती !
क्षण भर में ही वह सीटी बजता हुआ रेफ्रीजेटर की ओर चल दिया, उसमें से बीयर का चिल्ड टिन निकालकर डाइनिंग-टेबल पर बैठकर सिप करने लगा | उसके चेहरे पर जीत का एक झूठा अहं था, वह जीत रहा था | अपने अनुसार जीवन जीने का उसका सपना पूरा हो रहा था | वह, यह नहीं समझ पा रहा था कि किन शर्तों पर वह अपने सपने को झूला झुला रहा था ?स्वाभिमान जैसी कोई चीज़ ही नहीं थी जैसे !
हर मोड़ पर चैलेंज है, वह सोचता और उसे किसी न किसी के कंधे का सहारा लेकर पूरा करने का प्रयास करता | वह खुद क्या कर रह था ? इसका उसे कोई ख़्याल न था | बीयर की हर चुस्की के साथ उसका अहं बढ़ता जा रहा था | बीयर का ग्लास ख़त्म करके उसने बेचैनी से बैड-रूम का दरवाज़ा नॉक कर दिया |
भानु ने कुछ उत्तर नहीं दिया तो एक बार उसने फिर नॉक किया | मिनट भर बाद ही भानु सादी, क्रीम सिल्क की साड़ी में दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई |
“फिर तुमने ----?” पत्नी के सादे से कपड़े देखकर उसने आँखें तरेरने की कोशिश की |
“तुम अकेले ही चले जाओ, मेरा वैसे मी मन नहीं है ---“ भानु ने कहा तो वह ढीला पड़ गया |
वह जानता था कि उसका बॉस रिचार्ड उसकी पत्नी से प्रभावित है, वह हर बार भानु को निमंत्रित करता और भानु ऐसी पार्टियों में बहुत बोर होती | वह जानती थी कि रिचार्ड उसकी ओर आकर्षित है इसलिए वह और भी असहज हो जाती |
राजेश ने उसे घूरा ज़रूर लेकिन चुप ही रहा और गाड़ी में जाकर बैठ गया | अपार्टमेंट लॉक करके भानु उसकी बगल में जाकर बैठ गई | मन ही मन वह सोच रही थी कि ऐसे कितने दिन चलेगा ? इसी सोच में न जाने कब रिचार्ड का ‘हाउस’ आ गया | जहाँ लाइन से गाड़ियाँ लगीं थीं | वह चुपचाप गाड़ी से नीच उतर गई |
गाड़ी पार्क करके राजेश ने आकर उसके हाथों में हाथ ड़ाल ले लिया| एक मुस्कान ओढ़ते हुए बोला;
“स्माइल –डार्लिंग स्माइल ----“ जैसे न जाने कितनी मुहब्बत वाला कपल हो, कुछ ऐसे अंदाज़ में वह उसे लेकर रिचार्ड के काँच के दरवाज़ों की ओर बढ़ा जिसके अंदर श्वेत–धवल जालीदार पर्दे पड़े थे जिनके थोड़ा हटने से भीतर की पार्टी की हलचल का अनुमान लगाया जा सकता था |
भानु लगभग घिसटती हुई सी उसके साथ आगे बढ़ने का प्रयास कर रही थी | जैसे ही उन्होंने अंदर प्रवेश किया | रिचार्ड अपने मेहमानों के साथ व्यस्त था, उन्हें देखते ही वह सबको छोड़कर उनकी ओर बढ़ आया |
“हलो ! मिसेज़ भानुमति ! मोस्ट वैलकम---“ न जाने कब और कैसे उसका हाथ राजेश के हाथ से छुट गया और रिचार्ड के हाथ में आ गया | वह आँखें घुमाकर देखती ही रह गई |
‘कमाल का पति है—नपुंसक !’उसके मुख से भड़ास निकलने को हुई लेकिन समय और स्थान देखकर उसे चुप रह जाना पड़ा |
रिचार्ड ने उसका हाथ बड़े ही आदर से पकड़ा था और बड़े सम्मान से उसे सोफ़े पर ले जाकर बैठा दिया था |न जाने अचानक ही राजेश कहाँ गायब हो गया था जैसे उससे छुटकारा पाने का मौका ही तलाश कर रहा हो |
ऐसा नहीं था कि भानु को रिचार्ड बहुत बुरा लगता था | वह एक सभ्य इंसान था | अपनी कल्चर के हिसाब से वह बहुत भला था | वह अपनी फ़र्म के कर्मचारियों से दबाकर काम लेता लेकिन उन्हें अपने परिवार के सदस्यों की भाँति रखता था | माह में कम से कम एक बार वह अपने घर पर सबको बुलाकर उनको एंटरटेन भी खुले दिल से करता |
लगभग चालीस वर्ष के कुंवारे रिचार्ड के बीसियों स्त्रियों से संबंध रह चुके थे जिसमें हर देश की स्त्रियाँ थीं किन्तु न जाने क्यों वह भारतीय स्त्री से सबसे अधिक प्रभावित हुआ था |भानुमति के व्यवहार, उसकी सादगी और शिक्षा, गुणों से वह बेहद प्रभावित था |
उसकी एक बात से भानुमति को बहुत क्रोध आ गया था | उसने एक बार राजेश से कहा था कि यदि उनमें कभी तलाक की नौबत आ गई या वे दोनों अलग होने लगे तो वह भानुमति से शादी करेगा |और राजेश ने खी-खी करके दाँत फाड़ दिए थे |
क्या वह कोई कठपुतली थी जो किसीके भी इशारों पर नाच सकती थी ।कोई गुड़िया थी या कोई खिलौना थी ---अथवा बाज़ार में बिकने वाली कोई वस्तु जिसे कोई भी खरीद सकता था ?
अपनी ऐसी स्थिति पर उसकी आँखों में से आँसू ढुलक आए थे |