ममता की परीक्षा - 7 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 7



बिरजू तैरते हुए बड़ी तेजी से सुधीर की तरफ बढ़ रहा था कि तभी रजनी को पता नहीं क्या सुझा, वह भागती हुई पुनः नीचे झील के किनारे पहुँच गई और बिरजू की तरफ हाथ उठा उठा कर चिल्लाने लगी, "भैया ! उसके करीब नहीं जाना ! ...उसके करीब नहीं जाना !"
इसी के साथ उसने अपने दुपट्टे के एक कोने में वहीं पड़े कुछ कंकर बाँधे और फिर उसे लपेटकर पूरी शक्ति से बिरजू की तरफ फेंक दिया।

रजनी की आवाज सुनकर बिरजू एक पल के लिए थम गया और फिर अगले ही पल रजनी को अपना दुपट्टा फेंकते हुए देखकर वह सारा माजरा समझ गया। मन ही मन रजनी के समझ की तारीफ करते हुए बिरजू ने लपक कर दुपट्टे को पकड़ लिया जो कि बिल्कुल उसके नजदीक ही गिरा था। सुधीर भी अब उसके नजदीक ही था। दुपट्टे का एक सीरा सुधीर की तरफ फेंकते हुए बिरजू चिल्लाया, "सुधीर ! मेरे भाई ! घबरा मत ! पकड़ ले इसका एक सीरा !...मजबूती से पकड़ ले और पैर चला !"

सुधीर जो कि अब हाथ पाँव मारकर काफी थक चुका था डूबते डूबते भी उसने पानी पर तैर रहे दुपट्टे के एक सीरे को कस कर पकड़ लिया। इधर बिरजू ने अपने हाथ में पकड़े दुपट्टे पर झटका महसूस किया और यह अंदाजा लगाकर कि शायद सुधीर ने दुपट्टे को पकड़ लिया है उसका दूसरा सीरा मजबूती से अपने दाँतों में दबाकर वह किनारे की तरफ तैरने लगा। इस बीच सुधीर का सिर एक बार फिर सतह पर आ गया था। मुँह से पानी बाहर थूकते हुए सुधीर ने पूरी ताकत से दुपट्टे का एक सीरा थाम रखा था और बिरजू दुपट्टे को दाँतों से दबाए किनारे की तरफ तैर रहा था। थोड़ी ही देर में वह दोनों झील के उथले पानी में खड़े थे।

दरअसल पानी की गहराई कम होने का अंदाजा लगते ही बिरजू उथले पानी में खड़ा हो गया था और फिर अगले ही पल उसने पूरी शक्ति से दुपट्टे को अपनी तरफ खींच लिया। दुपट्टे के साथ ही सुधीर भी खींचा चला आया। आगे बढ़कर बिरजू ने उसका हाथ थाम लिया और उसे पकड़कर किनारे की तरफ बढ़ने लगा।

उधर ऊपर किनारे पर खड़ी रजनी यह पूरा दृश्य देखकर किसी अबोध बालक की तरह ताली बजाकर हँसते हुए बिरजू का हौसलाअफजाई कर रही थी। वह वाकई बहुत खुश थी और मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद अदा कर रही थी कि उसके सामने एक जिंदगी असमय ही काल के गाल में समाने से बच गई थी। राधे और मन्नू की भी खुशी का ठिकाना न था और अब इत्मीनान का भाव उनके चेहरे पर नृत्य कर रहा था। ★★★★★★★

अपने कैबिन में बैठा अमर मन ही मन कल से घट रहे पूरे घटनाक्रम का आकलन कर रहा था। अचानक उसकी किस्मत ने ये कैसा मोड़ ला दिया था उसकी जिंदगी में ? कल तक बेफिक्र आशिक बना अपनी प्रेयसी रजनी के साथ मीठे सुनहरे सपनों में खोए सुखद भविष्य की कामना करनेवाला वह आज कहाँ खड़ा था ? वक्त और समाज के बेरहम हाथों ने उसका आशियाना बसने से पहले ही उजाड़ दिया था। आज वह एक बेरोजगार असफल और शायद बेवफा भी बनकर रह गया था। बेवफा ? तभी उसके मन में ख्याल आया ..हाँ ! शायद यही वह रास्ता है जिसपर चलकर वह रजनी के मन में अपने लिए नफरत पैदा कर सकता है। लेकिन कैसे ? क्या वह उसकी आँखों में आँखें डालकर कह पायेगा कि 'जाओ रजनी ! अब मैं तुमसे प्यार नहीं करता ! मुझे भूल जाओ ! वगैरा वगैरा ! '
काफी सोच विचार के बाद उसने एक फैसला किया और मोबाइल निकालकर उसपर कुछ टाइप करने लगा।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

पानी में सुधीर को सहारा दे रहा बिरजू झील के किनारे पर पहुँचते ही एकाएक उग्र हो उठा। क्रोध के मारे उसकी आँखें लाल हुई थीं या पानी में अधिक देर रहने की वजह से लाल थीं यह कहना मुश्किल था लेकिन उसकी आँखें खून जैसी सुर्ख हो गई थीं। किनारे पर पहुँच कर बिरजू अचानक सुधीर के पीछे हो गया और दोनों हाथों को मिलाकर एक जोरदार वार उसने सुधीर की पीठ पर कर दिया। सँभल नहीं सका था सुधीर बिरजू के इस अप्रत्याशित हमले से और किसी कटे पेड़ की तरह वह किनारे की तरफ झील के पानी में भहरा गया। गिरते हुए उसका धड़ पानी के बाहर और कमर के नीचे का हिस्सा अभी भी पानी में डूबा हुआ था।
लगभग कूदते हुए बिरजू सुधीर के सीने पर सवार हो गया। दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकडकर झिंझोड़ते हुए बिरजू क्रोध की अधिकता से पागल हो गया था और फिर कुछ न कर पाने की विवशता के चलते उसकी आँखों से बेबसी के आँसू बह निकले। सुधीर ने कोई प्रतिरोध नहीं किया था। वह शांत पड़ा हुआ था।

अब तक रजनी नीचे उतरकर उनके पास आ गई थी। बिरजू को उसके सीने पर सवार होते देखकर उसने बताया, "भैया ..! इसका पेट दबाओ जोर जोर से। इसने ज्यादा पानी पी लिया है। जल्दी !" उसकी समझदारी से पहले ही प्रभावित हो चुके बिरजू ने उसके निर्देश का पालन करते हुए सुधीर के बगल में बैठकर उसके पेट को दबाना शुरू कर दिया। कुछ देर के प्रयासों से ही उसे आशातीत सफलता भी मिली। पेट दबाने से ढेर सारा पानी सुधीर के मुँह के रास्ते बाहर आ चुका था और अब वह बेहतर महसूस कर रहा था।

अपनी आँखें खोले सुधीर अब कृतज्ञ नजरों से बिरजू की तरफ देखे जा रहा था। उसके नजरों की भाषा समझते हुए बिरजू ने हौले से एक तमाचा उसके गाल पर रसीद करते हुए उसे लगभग झिंझोड़ते हुए कहा, " अरे ! आज तो तेरा बुलावा आ ही गया था यमराज के दरबार से लेकिन भला हो इस बहन का जिसकी इज्जत लूटने की तुम कोशिश कर रहे थे। आज ये नहीं होतीं तो तुम्हारे साथ ही शायद मुझे भी जलसमाधि लेनी पड़ती। तुम्हें डूबता देखकर मैं भी घबरा गया था और निकल पड़ा था वही बेवकूफी करने जो बेवकूफी अक्सर लोग करते हैं और किसी की जान बचाने के चक्कर में अक्सर अपनी जान भी गंवा बैठते हैं।"
थोड़ी देर के लिए बिरजू रुका और फिर गहरी साँस लेते हुए आगे बोलने लगा, " तुम सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या बके जा रहा हूँ लेकिन ध्यान से सुनो। आज इन बहनजी की मेहरबानी से ही हम दोनों जिंदा हैं। अगर इन्होंने अपना दुपट्टा मेरी तरफ नहीं फेंका होता तो मैं तो आ ही रहा था तुम्हारी तरफ, तुम्हें बचाने की खातिर, लेकिन यदि मैं तुम्हारे नजदीक आ गया होता तो जानते हो क्या होता ? तुम सब कुछ भूल कर अपनी जान बचाने के लिए मुझे जकड़ लेते और मैं चाहकर भी तुम्हारी मदद नहीं कर पाता। तुम खुद तो डूबते ही मुझे भी ले डूबते। अक्सर खबरों में हम पढ़ते हैं कि डूबते हुए को बचाने वाला भी डूब गया, लेकिन यह नहीं सोचते कि ऐसा क्यों होता है ? यह मनोविज्ञान है। जब मौत सामने दिख रही हो तो किसी की भी सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। इतना समय भी नहीं होता उनके पास कि वह सही गलत को समझ सकें। बचने की आस में डूबने वाला बचानेवाले को ही कस कर जकड़ लेता है और फिर वही होता है जो नहीं होना चाहिए। बचाने के लिए गया व्यक्ति या तो असहाय होकर खुद डूब जाता है या फिर किसी तरह अगर उसकी पकड़ से आजाद हो गया तो अपनी जान बचा लेता है और फिर प्रयास भी नहीं करता डूबने वाले को बचाने की। ऐसे में सूझबूझ से दूर से ही डूबनेवाले की मदद करनी चाहिए। इस बहन की मेहरबानी से मैंने अभी ऐसा ही किया और देखो हम सुरक्षित हैं।"

पश्चात्ताप के आँसू लिए सुधीर धीरे से उठकर बैठ गया और अचानक पास ही खड़ी रजनी के पैरों पर अपना माथा रख दिया।

क्रमशः