निष्कलंक - अंतिम भाग राही द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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निष्कलंक - अंतिम भाग

जब तक चबा कर खा सकते थे। खाई गई। औरफिर घर से बहार फेंक दी गई। काम कि नहीं रही। पेट में बच्चा था। किसका? किसीको नहीं पड़ी थी। अबसे यही मेरी बेटी है कह,, आशा कि माँ से शादी रचाने वाले ने,, ये कहकर आशा को नोचने वाले लड़को के हाथों में उस बच्ची को छोड़ दिया- जाकर गटर में फेंक दो। अब ये हमारे किसी काम कि नहीं है। अबोर्शन करवाया,, पुलिस तुमसे पहले मुझे ही पकड़ेगी,, सवाल करेगी मुझसे। इसके पेट में बच्चा पड़ा कैसे? मुझे नहीं पड़ना इस बेकार के झंझट में,,,

लड़को को शायद दया आई। पुछा कहा जायेगी? किधर रहेगी?
कुछ ना पता होने पर,, आशा को सबसे छुपकर एक कमरा दिलाया गया।
ये दया थी? एहसान था? या खुदको पुलिस से बचाने का एक उपाये। इस बारे में वो चारों लड़के ही अच्छे से बता सकते थे।

दिलासा दिया जाने लगा। बच्चा होते ही उसे हम छुपते छुपाते अनाथ आश्रम छोड़ आयेंगे। कानों कान किसी को खबर नहीं होगी। इसके बाद तू अपने रास्ते,, हम अपने,, तुझे जहाँ जाना हो जाना,, लेकिन याद रखियो,, हमारा नाम भूलकर भी तेरे मुंह पर नहीं आना चाहिए,, वरना अंजाम क्या होगा,, तु खुद समझदार है।

छुपते छुपाते जेब भारी कर डॉक्टरनी को दर्द में तड़पती आशा के पास लाया गया।
जन्म हुआ,, बच्ची का।

जिसे अपनी कोख में नो महीनें पाला,, उसके शरीर के टुकड़े को दुनियाँ में आँखे खोलते ही नाम मिला पाप कि गठरी।
गंदगी।

गंदगी कैसे हुई एक नन्ही सी बच्ची? बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं और इसे तो मांगा भी नहीं गया था ये खुद उपर वाले का प्रसाद है जो चौदह साल कि आशा कि झोली में डाल दिया गया।

लेकिन कौन अपनाता इस प्रसाद को? इसे पाप का नाम दिया गया,, जब आशा जैसी जायज़ लड़की को समाज में इस तरह कुचला गया। उस समाज में अपनाई जाती उसकी बेटी? क्या जो सब आशा के साथ हुआ। वही सब उसकी बच्ची के साथ नहीं होता? जिसका दुसरा नाम ही नाजायज, और गंदा खून रख दिया गया।
खुदका दर्द तो सह गई। इतनी सी उम्र में इंसानों वाला मुखोटा लिए घूमते भेडियो को सामना कर चुकी आशा। अपनी बेटी को इन भेडियो के बीच जिंदा रख उसे भी अपनी तरह धीरे धीरे नोच नोच कर खत्म होते देखने का ख्याल भर आशा को अंदर तक डरा गया।

वो गंदी थी ना,, इसलिए मैने मार दिया उसे। आशा का सुन्य में देखते हुए कहा ये वाक्य। कोट रूम में गूंज गया।

अबतक जो उसपर उंगली उठा रहे थे। उसे ना ना प्रकारों के नाम दे,, उसपर किचड़ उछाल रहे थे। सच्चाई सामने आने पर सब का मुंह सिल गया।
किसी कि कहने कि हिम्मत नहीं हुई,, गंदी वो एक दिन कि बच्ची नहीं थी,, गंदी तो दुनियाँ है,, यहाँ पर बसने वाले वो लोग हैं जिन्हें मिला तो इंसानों का जन्म लेकिन वो उसे भूल दरिंदे बन गये।

पहला गुनहा लड़की जात में जन्म लेकर किया,, उससे बड़ा किसी और के बीज को सींच दुनियाँ में लाई। आखिरी और सबसे बड़ा उसे इस दुनियाँ के हाथों लुटने और मजाक बनने से पहले ही अपने हाथों मार उसे इस दुनियां कि बुरी नजरों से बचा लिया।

नाबालिग थी,, खूनी करार कर फिल्हाल बाल सुधार ग्रह में भेज दी गई।

एक बार फिर बात ने तूल पकड़ी। मिडिया आई, अखबारों में छपा,, बड़े बड़े नेताओं ने बयानबाजी दी। मुद्दा आशा कि जिंदगी से जुड़ा था,, उस आशा कि जो सिर्फ एक मुजरिम नहीं थी,, वो खुद किन्हीं दरिंदों कि दरिंदगी कि शिकार हुई थी।

सरकारों को राजनिति करने का नया बहाना मिला,, विपक्षी दल घेरा गया। जगह जगह आम लोगों के द्वारा केंडल मार्च निकला।

आशा के गुनहगारो को सजा सुनाई गई। उन्हें कारागार में बंदी बना लिया गया।

मगर अफसोसबहुत देर हो चुकी थी।
दुनियाँ छोड़ जा चुकी अपनी बच्ची के बाद खुद भी कभी ना पुरी होने वाली नींद सो चुकी आशा,,, समाज में जिसका एक बार फिर नाम कर्ण किया गया था,, निष्कलंक
वो इस दिन को देख भी ना सकी।

एक घंटा मिडिया में,, एक दिन अखबार में, एक रात घरों में,, पुरे भारत में भारत कि बेटी के जाने का शौक बनाया गया।

नई सुबह,,

""यार,, ये वाली तेरी,, वो वाली मेरी,,, कसम से एक बार मिल जाये। मजा आ जाये,,,""

""भाई उम्र देख बच्ची है""

""अबे किधर से,, देख पुरी तो भरी पुरी है,, और बच्ची है तो भी क्या? हम किसलिए हैं,, एक ही रात में औरत बना देंगे। """

""ही ही ही ये भी सही है""

""अबे दांत मत दिखा,, जाकर पता कर,, कहाँ रहती है नाम क्या है? कैसे टुटेगी""

आधे पोने घंटे बाद

""भाई भाई इसे नहीं।""

""क्यो बे? तेरी बहन लगती है??""

""ऐसा ही समझले भाई। अपनी जात वाली है""

""अरे यार। अपनी जात वाली,,, चल कोई ना। किसी और को ढूंढते हैं।"""

(नोट-- ये कहानी ना तो पुरी तरह से काल्पनिक है,, ना ही सच्ची। जो देखा जाना समझा लिख दिया।
अपनी बातों से किसी का दिल दुखाने का कोई ईरादा नहीं है। कुछ बुरा लगा। या गलत लिख दिया हो,, तो माफी।

मगर इसे लिखने के लिए नहीं। अपने मन में चल रहे सवालों को इसके बिहाफ से आप तक ना पहुँचा पाने के लिए

सवाल ये है,, ये कैसा समाज है,,? बच्चा दुनियाँ में आकर आँख बाद में खोलता है। उसके लिए सपने पहले देखने लग जाते हैं,,,
मैं क्रिकेटर बनना चाहता था,, मैं ना बन सका,, मेरा बेटा बनेगा,,
अरे बेटा क्यों बेटी हुई तो? बेटी हुई तो डॉक्टर बनेगी।

मनोज मुंतशिर से भी अच्छा लेखक बनेगा मेरा बच्चा,, खूब नाम रोशन करेगा मेरा।

मुझपर तो लाख पाबंदी थी,, गाना बजाना पंसद था लेकिन घर वालों ने एक ना सुनी,, शादी करा दी। अब देखना मेरी बेटी को इतनी बड़ी डांसर बनाउंगी। सब देखते रह जायेंगे।

किसी को डॉक्टर बनाना है,, किसी को एडवोकेटकोई बड़ा सेलिब्रिटी बनाना चाहता है,, कोई पोलिटिक्स में भेज,, उनके जरिये खुदपर नोटों कि बारिश करवाना चाहता है।

कोई उस बच्चे को अच्छा इंसान बनाने कि क्यों नहीं सोचता??

जन्म इंसान ने दिया है तो इंसान ही तो हुआ
जी नहीं,, दो पेरो से सीधे चलने वाले हाड मास के इस शरीर को,, जिसे हम आज इंसान मान,, धोका खा बेठते हैं ये इंसान नहीं है,, क्यों नहीं है? क्योंकी कभी इसे एहसास ही नहीं कराया गया,, कि ये इंसान हैं,,,
बड़ा बनाना है नाम कमाना है,, सोहरत पानी है,, इस सब में,, हमने ही उस इंसान को भुलवा दिया,, कुछ भी बनने से पहले वो एक इंसान है।

हर बार गलत लड़का होता है,, बड़ी खुबसुरत गलतफहमी है हमारी,, सोशलमीडिया में चंद लाईक्स के लिए कपड़े उतारते देखा है लड़कियों को।
कभी कॉमेंट में जाकर पढ़ो। सीधा सवाल ""बहन अच्छे घर कि लगती हो। क्यों करती हो ये सब,, माँ बाप कि सोचो वो ये सब देखेंगे तो उन्हें कितना बुरा लगेगा।""

"".... जब मेरे घर वालों को शिकायत नहीं है तुझे क्या परेशानी है? देखनी है देख,, वरना निकल।""

सच में उचे उठने कि चाह में हम कितने हद तक गिर गए हैं।


✍🏻 राही