निष्कलंक - 1 राही द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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निष्कलंक - 1

खून से सने हाथ,, जिनसे उसने अपना मुंह छुपाया हुआ था,, बाल बिखरे हुए,, घूटनों तक आता सफेद रंग का फ्रोक,, जो खून से लथपथ था,, चौदह साल कि आशा बुरी तरह से कांप रही थी,,

खबर थी,, आशा ने अपने दोनों हाथों से अपने नवजात शिशु कि चाकू से गोद गोद कर उसकी हत्या कर दी।
एक महिला पुलिसकर्मी आशा के पास आई,, कितनी बेरहम है रे तू छोरी? अपनी खुदकी जन्मी बच्ची को मार दिय

जरा सी भी दया ना आई तन्ने अपनी इस एक दिन कि बच्ची पर,, कितनी बेहरमी से मारा है।

दूसरी पुलिसकर्मी ने आगे बढ़ उसके मुंह से उसका हाथ हटाया,, और रोब दार आवाज के साथ पुछा-- ऐ री छोरी अगर चाहिए ही ना थी तो जन्म ही क्यों दिया फेर इसने??

लड़की के मुंह से एक शब्द ना निकल सका,, हुआ यूं उसे कोट ले जाया गया,, बड़ी बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई,, अखबारों में उसका नाम खूब जोर शोर से उछाला गया।
सनसनी बन चुकी थी आशा,, जिंदगी देने वाली ने जिंदगी छिनी थी,, बनती भी कैसे ना?

सब उसपर उंगली उठा रहे थे,, कोई उसे कोस रहा था,, कोई उसपर लांछन लगा रहा था,,
""चौदह साल में गर्ववती? जरूर किसी का पाप है।""
""हाँ बहन पाप ही होगा। तभी तो इतने दिन से यहाँ छुप कर रह रही थी,, पड़ोसी हैं हम तुम,, लेकिन देखो तो,, लड़की ने कानों कान खबर ना पड़ने दी।""

"हमें पता होता बहनजी तो होने थोड़ी देते पापएक दो बार देखा तो था। अलग अलग लड़कों को रात के अंधेरे में इसके घर आते हुए
लेकिन सोचा भाई होंगे। देखने में तो शरिफ लगती थी। कभी इस तरफ ध्यान गया ही नहीं। जरा सी भी भनक पड़ जाती,, इतना सब कांड होने से पहले लड़की को उसके यारों के साथ मौहल्लै से बहार फिकवा देते।""

ऐसे ही कितनो के मुंह से आशा के लिए गलत बातें निकली,,,

लेकिन सच,, सच जब सामने आया सबके मुंह पर ताला।

जिस तरह जन्म से कोई कातिल नहीं होता,, आशा भी कातिल नहीं थी,,, चौदह साल कि आशा,, जिसने खुदकी एक दिन कि बच्ची को मार दिया,, जिस आशा को समाज ने लड़की के नाम पर काला धब्बा करार कर दिया लगा। उसके चरित्र पर ना ना प्राकार के लांछन लगे। वो आशा खुदकी मर्जी से माँ नहीं बनी थी।
अदालत में आशा कि कहानी जब उसके मुंह से वहाँ मौजूद हर किसी शख्स ने सुनी,, सभी कि रूह कांप गई।
दस साल कि थी जब सगे पिता गुजर गये। माँ ने सोचा बेटी के सर पर पिता का साया रहेगा तो समाज कि बुरी नजर से बचेगी।
माँ ने दूसरी शादी करली। अपने सगे पिता कि मोत को भूल अपने सोतेले पिता को अपना पाती,,, माँ ने बीच सफर में हाथ छोड़ दिया। शरीर बिमारी से छल्ली था,, आत्मा गरीबी के सामने झुक गई। माँ जा चुकी थी,, अपनी ग्यारह साल कि बच्ची को इस इतनी बड़ी दुनिया में अकेले। नहीं नहीं अकेले कहाँ उसके सोतेले पिता के सहारे।

ग्यारह साल कि आशा नहीं जानती थी। पिता और सोतेले पिता में अंतर भी करना होता है। अपने पापा कि बाहों में जहाँ वो दिन रात झूला झूलती,, उनके कांधे पर बैठ दूनियां देखती। वो ये सब कुछ अपनी माँ के दूसरे पति के साथ करेगी। तो वो उसके इस बचपने को बेटी और पिता के बीच का प्यार नहीं। बल्कि उसका दिया एक हिंट समझा जायेगा। एक ऐसा हिंट जिसमें वो सामने वाले को खुदसे उसे अपने आपको छूने कि इजाज़त दे रही है।

जबरदस्ती कहो। ज्यादती कहो। या कुछ भी। एक बच्ची से उसका बचपन छीन गया था। रोना,, चिल्लाना किसी का अधिकार नहीं दिया गया उसे,, अपनी ही आबरू के लुटने पर खुलकर आँसू भी ना बहा पाई वो।
क्यों? क्योंकि अगर वो रोती,, उसका बनाया एम एम एससोशल साइट्स पर डाल दिया जाता।

चटकारे ले,, विडियो देखने,, और विडियो देखकर उसके बारे में बात करने का समय सब के पास है। लेकिन एक लड़की खुदकी मर्जी से तो ऐसी विडियो नहीं निकालेगी। वो भी इतनी कम उम्र की। जरूर इसके साथ कुछ गलत हुआ। इतना सब सोचने का फालतू समय भला किसके पास है,, सब बिजी हैं यहाँ।

बात दब गईएक जख्म मिटा नहीं,, सामने से ओफर मिला।
हम जानते हैं तु कितनी शरिफ है अपने खुदके सोतेले बा... के साथ ....ती है तू,, इससे पहले ये बात बहार जाये। हम सब के साथ एक एक बार.. .

भूख किसी और ने मिटाई थी अपनी,, गुनाह उसका था। मगर लड़की होने कि सजा भुगत उसको फिर रोंदा गया। एक बार नहीं कई कई बार रोंदा गया।

शेष अगले भाग में।


राही