लबसना वाला प्यार - 1 Manisha Agarwal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लबसना वाला प्यार - 1

अंशिका के घर का सीन

इतनी चिंता क्यों कर रही हो जो भी होगा अच्छा ही होगा मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम्हारा बेस्ट रिजल्ट आएगा। मां लगातार बोले जा रही है, पर अंशिका की नजर अपने लैपटॉप स्क्रीन पर अटकी हुई है।

मां-क्यों इतनी चिंता कर रही हो बेटा एक काम करती हूं गरम-गरम चाय ले आती हूं तुम्हारा भी दिमाग हल्का हो जाएगा और हमारी टेंशन भी थोड़ी कम हो जाएगी।

अंशिका-मैं कब आप लोगों को टेंशन दे रही हूं मम्मी! मैं तो सिर्फ खुद को समझा रही हूं।

मां किचन से चाय लेकर आते हुए...

अंशिका जोर से चिल्लाई, मां के हाथ से चाय का कप छूट गया और मां और पापा दोनों उसके पास आ गए....

पापा-क्या हुआ है बेटा, तुम इस तरह चिल्लाई क्यों? देखो अगर तुम फेल भी हो गई हो तो भी चिंता मत करो अगली बार डेफिनेटली पास हो जाओगी.....

अंशिका अपने पापा का ऐसा जवाब सुनकर ना में अपनी गर्दन हिलाती रही....

उसके पापा ने कहा-तुम इस तरह गर्दन क्यों हिला रही हो! क्या तुम अगला अटेंप्ट नहीं देने वाली हो।

अंशिका ने फिर से ना मे गर्दन हिला दी।

मम्मी-बेटा इस तरह डिमोटिवेट नहीं होते तुम परेशान क्यों हो रही हो मैं जाने कितने बच्चों ने अटेंड किया था और कितनों का सिलेक्शन नहीं हूंआ और तुम भी उनमें से एक हों देखा जाए तो तुम्हारी मेजोरिटी ज्यादा है।(मम्मी ने हंसते हुए कहा)

अंशिका ( अपना मुंह बना कर बोली)-आप जल्दी से जाकर फ्रिज में से चॉकलेट ले कर आइए!

मम्मी पापा ( हैरान होकर)-बेटा सुबह से दो चॉकलेट खा चुकी हो इतनी ज्यादा चॉकलेट खाओगी तो शुगर हो जाएगा। प्लीज बेटा, समझो तुम।

अंशिका-प्यार से अपने मम्मी पापा को देखती हैं और कहती है कि प्लीज बाबा आप समझीए.......

जब एक लड़की आईएएस में सेलेक्ट ही नहीं होती (उदास सा मुंह बनाकर) बल्कि, टॉप 10 में सिलेक्ट भी होती है, तो चॉकलेट खानी तो बनती है(खुशी से चला कर कहती है).......

मम्मी पापा भी बहुत ज्यादा हैरान और एक्साइटिड हो गए... और उन्होंने कहा कि प्लीज एक बार और बोलो हम जो सुन रहे हैं क्या वह सच है!

अंशिका-धीरे से अपने पापा के पास जाती है और उनके कानों में कहती है कि पापा ये सच में सच है।

और फिर अंशिका अपनी मम्मी को गले लगा लेती है और फिर इतनी ही देर में उसके बहन भाई भी आ जाते हैं और यह सीन देखकर वह दोनों समझ जाते है कि अंशिका का सिलेक्शन हो गया है और दोनों आकर अपनी बहन को गले लगा लेते हैं।।

उसी वक्त अंशिका की बहन निहारिका, इतरा कर कुर्सी पर बैठती है और अपना एक पैर दूसरे पैर पर रखती है, और डाइनिंग टेबल पर रखा हुआ अपने भाई का चश्मा अपनी आंखों पर रखकर डायलॉग मारते हुए कहती है कि(साउथ इंडियन एक्सेंट में)

पापा! उठाइए फोन, लगाइए सारे रिश्तेदारों को, और बताइए उन्हें (अभी तक आवाज कड़क और डायलॉग वाली थी),(आवाज में अब मिठास और प्यार है) आपकी बेटी का आईएएस में सिलेक्शन हो गया है ।

और उसके बाद निहारिका अपने भाई और बहन का हाथ पकड़ कर उनके साथ डांस करने लगती है और सभी लोग हंसते हुए इस खुशी में शामिल होने लगते हैं।

हर कोई चाहता है कि वह जो सोचता है उसे उसकी मंजिल मिल जाए।वो भूल जाता है कि सफर तय करते-करते पूरी जिंदगी निकल जाती है और जिस मंजिल को पाने के लिए इंसान मेहनत करता है वह मंजिल भी एक समय के बाद बदल जाती है यह सुनकर आपको अचंभा हो रहा होगा या मेरी बात आपको अजीब लगी होगी पर सच तो यही है कि जब हम एक सफर शुरू करते हैं और इच्छा करते हैं कि कि मंजिल हमें मिल जाए और जब मिल जाती है तब एक नए सफर की ओर कदम बढ़ा लेते हैं।

मेरी कहानी की एक खूबसूरत सी किरदार अंशिका जो हमेशा से एक आइएएस अफसर बनना चाहती थीं। 3 साल तक उसने काफी मेहनत की और फिर जिस मंजिल को वह पाना चाहती थी उसे पा ही लिया। उसने यूपीएससी की परीक्षा में टॉप टेन में रैंक हासिल की और फिर 3 महीने तक उसने अपने सफलता के मंत्र उनके किससे कहानियां और अपनी मेहनत की काफी बातें बाकी दुनिया को बताई। यह तो सच है कि मंजिल भले ही कुछ को मिले पर सफर की कहानियां हर खिलाड़ी के पास होती है वैसे ही अंशिका के पास भी सफर और मंजिल दोनों की कहानियां और किससे थे।

अंशिका की बहन निहारिका एक राइटर है, और वह अपनी बहन की इस कहानी को पन्नों पर उतार रही है चलीए जानते हैं अंशिका और उसके प्यार का सफर किस तरह से तय होता है....

लबसना का दृश्य........

3 महीने बाद वह दिन भी आ गया जिसका इंतजार हर सफल विद्यार्थी को होता है उसकी ट्रेनिंग का दिन। उत्तराखंड की वादियों में न जाने कितने गांव कितने ही शहर बसे हुए हैं । उन्ही में से एक है मसूरी। जिसके बीचोबीच बसा है लबसना। प्रकृति, पहाड़ बर्फ और सफलता की खुशी के बीच अमन के बीच बसा हुआ यह सेंटर भी किसी मेंशन से कम नहीं था इसे देखते ही लगभग हर कैंडिडेट की आंखें खुली की खुली रह गई थी। अप्रैल के तिसरे सप्ताह में आया रिजल्ट और 8 सितंबर को आया जॉइनिंग लेटर यह दो दिन ऐसे थे मानो जैसे हर कैंडिडेट बस इन्हीं 2 दिनों का इंतजार करने के लिए इस रास्ते इस सफर की शुरुआत करता हो।

सभी कैंडिडेट को 11 सितंबर को वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी थी और 9 तारीख तक वहां हर हालत में पहुंचना था। हर कैंडिडेट बताइ गई तारीख तक वहां पहुंच चुका था उपस्थिति से पहले वहां एक गेट टुगेदर का आयोजन किया गया जहां हर कैंडिडेट एक दूसरे से मिल जुल रहे थे। आयोजन करना भी जरूरी था क्योंकि यूपीएससी केंद्रीय परीक्षा है यहां पूरे भारत के लोग या कहूं कि भारत के हर कोने से लोग या अभ्यार्थी इस परीक्षा का हिस्सा बनते हैं।

भारत एक विभिनता वाला देश है जहां विभिन्न धर्म संस्कृति के लोग निवास करते हैं अपने अपने विभिन्न भाषाओं के कारण इस देश की खूबसूरती और बढ़ जाती है।

वहां गेट टूगेदर हो रहा था उस वक्त भारत के हर कोने से सफल अभ्यर्थी वहां मौजूद थे कोई उत्तर भारत से था, तो कोई दक्षिण भारत से, कोई पूर्व भारत से था, तो कोई पश्चिम भारत से। अधिकतर लोग एक दूसरे की भाषाओं से अनजान थे। हर कोई वहां एक दूसरे से मिल रहा था बातें कर रहा था एक दूसरे के बारे में जानने की कोशिश कर रहा था।

लबसना के इन शुरुआती 3 महीनों में फाउंडेशन कोर्स होता है जिसमें परीक्षा में चयनित सभी विद्यार्थी एक साथ ही ट्रेनिंग लेते हैं चाहे वह आईएएस हो आईपीएस हो या आईएफएस।

चलिए अब हम मिलते हैं हमारे दूसरे किरदार ध्रुव से। धु्रव और उसके 5 दोस्त इशिका, रणबीर, अभिषेक, गौतम, रंजीत। यह पांचों दोस्त और धु्र्व काफी अच्छी दोस्त है । यह पांचू ही साउथ इंडिया से बिलॉन्ग करते थे। इसलिए इन लोगों की दोस्ती भी काफी गहरी थी।

एक तरफ अंशिका थी तू जो बाकी कैंडिडेट के साथ दोस्ती बढ़ाने की कोशिश कर रही थी दूसरी तरफ धु्व और उसके दोस्त है जो बाकी लोगों से बात कर रहे थे।

यह मीटिंग क्या कहूं कि यह जान पहचान का सिलसिला 2_3 घंटे तक चला। और फिर सब लोग अपने अपने कमरों में चले गए।

अगली सुबह सभी कैंडीडेट्स वहां बने एक बड़े से एडिटोरियम में इकट्ठा हुए वहां के एक बड़े आईपीएस अफसर जो कि वहां उसी लबसना के ट्रेनिंग सेंटर में कैंडिडेट्स को ट्रेनिंग देते थे ।उन्होंने इस परीक्षा में उत्तीर्ण और प्रथम रैंक पाने वाले विद्यार्थी का नाम अनाउंस किया यह कोई और नहीं बल्कि धु्रव ही था। पहली बार सभी कैंडिडेट धु्रव को देख रहे थे जिनमें अंशिका भी शामिल थी। पूरे ऑडिटोरियम में तालियों की गूंज थी हर कोई उस विनर को देख रहा था। अगले 3 महीने उन सभी को एक साथ गुजारने थे। उस दिन मीटिंग के बाद सभी लोग एक दूसरे से मिलने जुलने लगे। सुबह 9:00 से 5:00 बजे तक उन सभी की क्लासेस चलती थी हर दिन मीटिंग प्रोजेक्ट, ग्रुप डिस्कशन, न्यू टास्क परजनटेसन, यही सब चलता था। 5:00 बजे के बाद वह लोग फ्री होते थे, और सोशली गेदर होने की कोशिश करते थे। कुछ ही दिनों में बहुत से अन्फोरमल ग्रुप बन चुके थे।

अंशिका भी अब इस माहौल में ढल चुकी थी उसने भी काफी दोस्त बना लिए थे दूसरी तरफ ध्रुव और उसके दोस्त भी बाकी लोगों के साथ अनफॉर्मल हो चुके थे। मेरे किरदार की खूबसूरती यह थी की यह लोग 15 से 20 दिन गुजर जाने के बाद भी एक दूसरे के संपर्क में अभी तक नहीं आए थे। पर कहते हैं ना कि अगर दो लोगों को मिलना हो तो शुरुआत खुद ऊपर वाला कर देता है। यहां भी ऐसा ही हुआ एक महीने तक वो दोनों अक्सर बर्थडे पार्टी, क्लब पार्टी, नाइट पार्टी आदि में मिला करते थे जोकि उन्हीं में से किसी ऑफिसर द्वारा किसी मौके पर ऑर्गेनाइज करवाई जाती थी और कई बार लबसना खुद भी ऐसी पार्टी ऑर्गेनाइज करवाता था। पर कभी भी उन दोनों में ऐसी कोई बात नहीं हुई। हां कभी कबार ग्रुप में खड़े रहने की वजह से एक दूसरे को सभी लोग हाय हेलो कर दिया करते थे पर इससे ज्यादा बातें कभी नहीं हुई।

तभी एक दिन, एक ग्रुप टास्क के दौरान ध्रुव और उसके पांचों दोस्त और अंशिका इन सातों को एक ही टीम में रखा गया जिससे इन लोगों के बीच बातचीत का दौर शुरू हो गया था। यहीं से शुरुआत हुई इनके प्यार की दास्तां की। इन्हें एक टास्क के दौरान उत्तराखंड के किसी गांव में लाइव फील्ड पर भेजा गया जो कि उनकी ट्रेनिंग का ही एक भाग था इसी दौरान इन सब की बातचीत का दौर शुरू हो गया सफर काफी लंबा था करीब 3:00 से 4 घंटे का इस दौरान इशिका और अंशिका साथ में बैठे थे उन दोनों ने एक दूसरे का परिचय किया और उसके बाद इशिका ने अपने बाकी दोस्तों को अंशिका से परिचित कराया। इन 4 घंटों के सफर में यह सातों एक दूसरे के काफी करीब आ चुके थे खासकर अंशिका और इशिका। वैसे भी यह तो कहावत है कि जहां दो लड़कियां साथ साथ होती है वहां क्या तो झगड़े होते हैं क्या दोस्ती होती है इनके केस में दोस्ती हुई थी। 4 घंटे बाद वह सब फील्ड पर पहुंच चुके थे सभी लोग अपनी इस पहली लाइव फील्ड ट्रेनिंग को काफी इंजॉय कर रहे थे इसी दौरान उन लोगों ने वहां के आम लोगों से बातचीत की, उनके जीवन स्तर, उनकी दिनचर्या और वहां की प्रकृति का आनंद लेने का उन्हें मौका मिला। इस दौरान वहां के सरकारी मुलाजिमों ने भी उनकी इस कार्य में सहायता की।

शाम हो चली थी सभी लोग काफी थक गए थे और उन्हें भूख भी लग रही थी। तभी रणवीर ने बोला कि क्यों ना पास के ढाबे में जाकर कुछ खा ले और कैसा होगा अगर मक्के की रोटी और सरसों का साग मिल जाए रणबीर पंजाबी था और उसका परिवार काफी सालों से वही साउथ इंडिया में रह रहा था उसके मक्के की रोटी और सरसों के साग की बात सुनकर अंशिका भी हंस दी और उसे हंसता देख बाकी सब भी हंसने लगे। इसी दौरान पहली बार ध्रुव ने अंशिका पर ध्यान दिया उसकी हंसी जैसे उसे कोई अलग ही खुशी दे रही थी वह चाहता था कि वो ऐसे ही हंसते जाए। उसकी हंसी देखकर जैसे ध्रुव की सारी थकान ही उतर गई थी । पर जैसे ही वेटर आया और उसने ऑर्डर पूछा तब जाकर कहीं ध्रुव अपने सपने से बाहर आया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह कहां खो गया था उसे क्या हो गया था। खैर, कुछ देर बाद सभी लोग अपने आर्डर लिखवाने लगे रणबीर को छोड़कर सभी ने अपनी साउथ इंडियन डिशेज ही ऑर्डर की पर अंशिका ने उस गांव की सबसे स्पेशल डिशऑर्डर की । इशिका ने उससे पूछा क्या तुम्हें इतने टाइम बाद अपने घर अपने स्टेट किं डिस् खाने का मन नहीं कर रहा हम कितने टाइम से अपने स्टेट से दूर रहे हैं और लबसना का खाना खा खा कर तो हम वैसे भी पक चुके हैं ऐसे में इसके बाहर आज हमें जब इस ढाबे में कुछ नया कुछ अपना खाने का मौका मिल रहा है तो क्या हमें इस मौके को छोड़ देना चाहिए । तब अंशिका ने कहा कि ऐसा नहीं है मुझे भी अपने घर जैसे खाने की याद आ रही है पर यहां मुझे इस गांव की स्पेशल डिश खाने का मौका मिल रहा है जिसे मैं छोड़ना नहीं चाहती इसलिए मैंने आर्डर कर दिया।

अंशिका और ध्रुवा की दोस्ती का सफर शायद उनकी अनोखी सोच और बाकी सभी का अंशिका की सोच के लिए सम्मान रखने से शुरू हुई....

देखना यह है कि किसे पहले अपने प्यार का एहसास होता है और कौन उसे पहले इजहार करेगा.......

चलिए जानते हैं हमारे अगले भाग में