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वामांगी

वामांगी

२१ फरवरी,१९९२ की बात है, इस दिन और वर्ष को कैसे भूल सकती हूँ| इसी दिन तो उनके घर में एक हादसा हुआ था | वह मेरे पड़ोस में ही तो रहते थे, भूषण जी, उनकी पत्नी वामांगी एवं उनकी इकलौती बेटी शोभा जिसका विवाह हो चुका था| उस दिन हमारे फ्लेट की घंटी बजी थी, घर की घंटी बजना कोई ख़ास बात नहीं, परन्तु उस दिन घंटी के साथ-साथ बाहर से किसी महिला की आवाज़ आ रही थी| वह आवाज़ जानी-पहचानी थी, मैं दरवाज़े की ओर लपकी और जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, देखा तो सामने वामांगी औंटी थीं| उनकी आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे, वह ज्यादा कुछ नहीं बोल पायीं बस इतना ही तो कह पायी थीं, “मोना! तुम्हारे अंकल...!” और वह धड़ाम करके वहीँ गिर पड़ी थीं| अपने घर की रसोई से मैं थोडा पानी लेकर आयी और कुछ छींटे उनके चेहरे पर डाले| उनके आंसूओं ने मुझे किसी अनहोनी दे रहे थे सो मैं उनको थामे उनके घर गयी, देखा तो भूषण अंकल जी ज़मीन पर पड़े थे, और उनका शरीर जड़वत हो चुका था और नीला पड़ता जा रहा था| समय न गँवाते हुए मैंने एम्बुलेंस बुलवाई और दोनों को अस्पताल भेज दिया| इस बीच वामांगी औंटी ने मुझसे कहा, “बेटा! शोभा को भी खबर कर देना|” मैंने हामी भरते हुए अपनी गर्दन हिला दी पर अभी तो मेरा उनके साथ जाना जरूरी था, सो अपनी गाड़ी को एम्बुलेंस के पीछे-पीछे दौड़ा दिया | एक छोटा-सा अस्पताल ही था, वहाँ इमरजेंसी में डॉक्टर ने तुरंत भूषण अंकल को आई.सी.यू. में ले गए, वामांगी आंटी भी हार्ट-पेशंट थीं, मुझे घबराहट तो हो रही थीं उनके लिए भी परन्तु लग रहा था जैसे उन्होंने अपने को संभाल लिया था| कुछ ही देर में डॉक्टर ने हमलोगों को सूचित किया, “लूक हियर! योर पेशंट हेज़ बीन पेरेलायिज़ड, हिज बॉडी ऑक्सिजन टू इस गोइंग लो...|” वामांगी आंटी चूँकि इंग्लिश नहीं जानती थी वह कभी डॉक्टर को तो कभी मुझको देखे जा रही थीं| उनका हाथ पकड़ कर मैंने उनको तसल्ली दिला दी और फिर डॉक्टर से अंकल के बारे में बातें की... डॉक्टर ने यह कह दिया था कि उनको तुरंत ही किसी बड़े अस्पताल में शिफ्ट करना होगा, क्योंकि उनके जान को ख़तरा है | उन्होंने सब इंतज़ाम करवा देने की बात करी, मैंने वामांगी आंटी को डॉक्टर की सब बातें समझा दी| और हम दूसरी एम्बुलेंस का इंतज़ार करने लगे| कुछ ही पलों में भूषण अंकल को लेकर हम जे.जे.अस्पताल के लिए रवाना हो गए क्योंकि डॉक्टर ने उसी अस्पताल में केस को रेफेर कर दिया था |

अस्पताल में पहुँचते ही उनका इलाज शुरू हो गया| आंटी तो वहीँ रुक गयीं परन्तु उन्होंने मुझको घर भेज दिया था | घर आकर मैंने शोभा को कॉल कर उसको स्थिति से अवगत करवा दिया था | शोभा ने जल्द-से-जल्द आने की बात की थी | मैं घर आ तो गयी थी, परन्तु मेरा मन अशांत और चिंतित था, खैर.... अगले दिन ही शोभा आ गयी थी| उसने अपने घर की चाबी मुझसे ली क्योंकि उसको मैंने यह बता दिया था कि वो मेरे पास है, आंटी ने दी थी| शोभा के साथ जब मैं अस्पताल गयी तब आंटी ने बताया कि अंकल के दिमाग में करीब ८० क्लॉट आये हैं ऐसा डॉक्टर ने सूचित किया है| मेरे पूछने पर शोभा ने बताया कि उसके बड़े मामा जी ने अस्पताल का बिल भर दिया था और वह रोज़ अस्पताल आ रहे थे| जब १५-२० दिन बाद उनको घर लाये तब भूषण अंकल की हालत देखकर मन दुखी हुआ था| वह एक दम से दूध-पीते बच्चे जैसे हो गए थे, उनका सब कुछ बिस्तर पर होता था, मुझे याद है आंटी ने दिन-रात एक कर दिए थे, वह अंकल की खूब सेवा करती थीं| शोभा तो खैर कुछ दिनों में अपने घर को चली गयी थी परन्तु आंटी अंकल का पूरा ध्यान रखती थीं| मैंने देखा था कि अंकल जी के लिए एक फ़िसिओथेरेपिस्ट भी आ रहा था| यह सिलसिला काफी सालों तक यूँ ही चलता रहा था|

फिर करीब २००२ की बात है जब मुझे पता चला कि अंकल जी बाथरूम में गिर गए और पुनः उनको अस्पताल ले जाया गया था जहाँ डॉक्टर ने जाँच के उपरान्त यह बताया कि उनके कुल्हे की हड्डी टूट गयी थी जिसका ओपरेशन करना पड़ गया था, पर शायद वो असफल रहा क्योंकि अंकल के घर आते ही उनके टाँकों से रस्सी का रिसाव फूट पडा था, आंटी क्योंकि अकेली थी सो वह मुझको अपने पास बुला लेती थीं, और मैं भी तो अकेली थी सो उनके बुलाने पर उनके पास चली जाती थी| आंटी मेरे लिए प्रेरणा बन चुकी थीं| अंकल के घाव को पुनः खोला गया, और उनकी ड्रेसिंग होती रही, पर इस क्रिया को भी काफी माह लग गए थे| घाव रूज़ तो रहा था परन्तु अंकल अब व्हील-चेयर पर आ गए थे| उनके इलाज में कहीं कोई कमी नज़र नहीं आती थी| शोभा भी बीच-बीच में अपने माता-पिता के पास आ जाती थी | ऐसा भी कई बार होता था कि अंकल और आंटी दोनों ही अस्पताल में भर्ती हो जाते थे क्योंकि आंटी भी तो हार्ट पेशंट थीं, उनकी तबियत भी बिगड़ जाती थी परन्तु ठीक होते ही वह पुनः अंकल की सेवा करने के लिए कमर कस लेती थी और लगता था जैसे अंकल के लिए वह हर लडाई को लड़ने के लिए सदैव तत्पर हैं और आखिर तक भी उन्होंने ऐसा ही किया और यह लड़ाई २० जून, २०१५ तक चली | इस दिन अंकल जी ने अस्पताल में दम तोड़ दिया था |

हुआ यूँ था कि वर्ष २०१२ में अंकल जी बाथरूम में पुनः गिर गए थे और जो कृतिम कुल्हे का हिस्सा उनको लगाया गया था वो अपनी जगह से खिसक गया था और पैर की दूसरी हड्डी भी टूट गयी थी नतीजा यह हुआ था कि इस के बाद जब अस्पताल से वह घर आये थे तब उनके लिए अस्पताल जैसा ही बेड खरीदा था आंटी ने क्योंकि अब दुबारा उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था और इस बार तो शायद हमेंशा के लिए... पर आंटी थी कि मैंने उनके चेहरे पर कभी कोई तनाव नहीं देखा, हमेंशा हँसते हुए ही उन्होंने अपना फ़र्ज़ निभाया | आखिर तक आते-आते पता चला था कि अंकल को डायबिटीज भी हो गयी थी जिस कारण पैरों में गेंग्रिन डेवेलप हो गया था | जिसके चलते वह इतनी लम्बी जंग में हार गए और वामांगी आंटी....शोभा कुछ माह से यहीं आ गयी थी... उसके पति और बच्चे भी आ गए थे... सब क्रिया होने के उपरान्त उसका परिवार तो चला गया था परन्तु वह अपनी माँ के पास रुक गयी थी... और इसके बाद आंटी अकेले अपना घर संभालती और बीमार होने पर शोभा उनकी देखभाल करने आ जाती थी| वर्ष २०२० के लॉक-डाउन के पहले शोभा अपनी माँ को लेकर अपने घर चली गयी थी, तब से वामांगी आंटी वहीँ रहती हैं, उनसे मेरी बात अक्सर मोबाइल पर हो जाती है|

पर आप सोच रहे होंगे, यह सब बातें मुझे कैसे याद रह गयीं? और यह सब मैं आपको क्यों बता रही हूँ? अब इसका निर्णय तो ...


कल्पना भट्ट

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