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मेरी कलम से - इन्द्र सभा

इंद्र सभा

इंद्र सभा में आज सभी देव आमंत्रित थे| देवों के मनोरंजन के लिए अप्सराएँ नृत्य कर रही थी| सभी देवगण हर्षित थे और नृत्य और मदिरा का आनंद उठा रहे थे| ब्रह्मा ,विष्णु, महेश भी अपने -अपने आसन पर बिराजमान थे|
सबको आनंदमयी देख इंद्र देव फुले नहीं समा रहे थे, वे अपने आस -पास सभी देवगण को बहुत ही ध्यानपूर्वक देख रहे थे, तभी उनकी निगाह करीब ही बिराजमान ब्रह्म देव पर पड़ी, वे इस भीड़ में सबसे अलग ही नज़र आ रहे थे| उनको यूँ उदासीन देख इन्द्रदेव से रहा नहीं गया और वह ब्रह्मदेव के निकट आकर बोले,"क्या बात है परमपिता,आप इतने उदास क्यों हैं? आपको यह नृत्य पसंद नहीं आ रहा है? गर ऐसा है तो बतायें प्रभु, मैं अभी मेनका से कह देता हूँ|"
ब्रह्म देव की जैसे तुन्द्रा भंग हुई और उन्होंने इन्द्रदेव की तरफ देखते हुए कहा," नहीं! नहीं! ऐसी तो कोई बात नहीं...| "
उनका चेहरा उनकी बातों से भिन्न नज़र आ रहा था, इन्द्रदेव ने पुनः जानने का प्रयास किया," प्रभु, कुछ तो बात अवश्य है, आप चिंतित प्रतीत हो रहें हैं, बताये आर्य! क्या बात है? हम सब आपके साथ हैं...|"
इन्द्रदेव को अपनी तरफ से चिंतित देख ब्रह्म देव ने कहा," वो... अभी कुछ दिनों से मैं परेशान ही हूँ| अपने ठीक पहचाना| "
इन्द्रदेव को अपने सिंहासन से उठते देख सभी अप्सराएँ चकित थी, आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था| पर वे सब मजबूर थी, जब तक उनका आदेश न मिले, नृत्य करना उनका दायित्व था| यहाँ ब्रह्म देव के पास ही बिराजमान विष्णु ने इन दोनों की बातें सुन ली थी| अब तो इंद्र देव ने सभा बर्खास्त करी और सभी नृत्यांगनाओं को वहाँ से जाने को कहा, और दुबारा ब्रह्म देव से जानने की चेष्टा करने लगे| अब तो विष्णु जी, शिव जी तथा अन्य देवगण भी चोकन्ने हो गए थे|
सभी एक-दुसरे से पूछ रहे थे," आखिर हुआ क्या है आज ब्रह्म देव को?"
किसी ने कहा,"उफ़, सारा मज़ा ही किरकिरा कर दिया इस ब्रह्माजी ने तो...|"
इन्द्रदेव को यूँ याचना करते हुए देख ब्रह्म देव ने कहना आरम्भ किया," वो, कुछ दिनों पहले ही मैं पृथ्वी परिक्रमा करने गया था, वहाँ जो भी कुछ देखा, उसे देख मैं बहुत दुखी हूँ और चिंतित भी|"
विष्णु जी जो करीब ही बिराजमान थे ,उन्होंने पूछा," क्यों देव ? ऐसा क्या देख लिया आपने ?"
"प्रियवर, आप तो जानते हो जब सृष्टि का निर्माण किया गया था, तब जल,वायु और पृथ्वी का निर्माण किया था| फिर आपके कहने पर वहां जीवों को भेजा था, जिसमें पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पहाड़-नदी इत्यादि प्रथ्वी पर भेजें गए थे...|"
इंद्र देव और विष्णु जी ने कहा," जी, यह तो सत्य है... तो अब क्या समस्या आई है, सब कुछ तो ठीक-ठाक चल रहा है...|"
"सही चल रहा है! नहीं.........! " ब्रह्म देव के मुँह से चीख निकली |
उनकी चीख सुनकर शिव हँस पड़े|
अब तो सभी देवगणों के चेहरों पर से हवाईयां उड़ रही थीं।
ब्रह्म देव ने अपनी बात पुनः शुरू की," तब से लेकर आज तक मैं यह सोचता रहा कि मेरा पुत्र मनु पृथ्वी पर वरदान सिद्ध होगा, उसके लिए मैंने अपनी बेटी कुदरत को पृथ्वी की देख-भाल करने के लिए भेजा था... पर इस कलयुग में आये इस भूमंडलीकरण की वजह से मनु ने कुदरत का ऐसा विनाश किया है की... वह गुस्से से पलटवार कर रही है...|" यह कहते हुए उन्होंने शिव की तरफ देखा और कहा," और इन देव ने उसको तांडव की शिक्षा दे दी है..."
"तो क्या कुदरत तांडव कर रही है...?" इंद्र ने जिज्ञासा जताई |
"हाँ, मनु ने अपने स्वार्थ के लिए, कुदरत को विनाश की राह दिखा दी.. और चहुँ ओर बस खुद का साम्राज्य स्थापित करता जा रहा है, जिसकी वजह से कुदरत बिटिया नाराज़ हो रही है और उसने तय कर लिया है कि मनु को अब तो वह सबक सिखाकर ही दम लेगी...|"
अब शिव ने अपना बचाव करते हुए कहा," हम त्रि-देवों ने अपने-अपने हिस्से का काम जब बाँट लिया थ ब्रह्मदेव को सृष्टि रचना करना था, विष्णु देव को सृष्टि को सँभालने का कार्य दिया गया था, और मुझे विनाश....|"
" हाँ... तो क्या अपने ही कुदरत के साथ मिलकर ऐसा खेल रचा है?"
"आखिर किया क्या है मैंने..." शिव ने कहा," जो आया है उसको एक दिन तो जाना ही है, फिर मनु के खुद को भगवान् समझने की भूल पर उसको सबक तो सीखना ही पड़ेगा| कितना स्वार्थी है, सिर्फ खुद को देख रहा है, अन्यत्र सब विनाश करता जा रहा है, उसको यह समझाना होगा, कि कलयुग में बहन का भी उतना ही हिस्सा होता है जितना पुरुष का... सो हम दोनों ने अपनी-अपनी उँगलियाँ टेढ़ी कर ली हैं...|"
" तो क्या....मेरा मनु...?" भ्रह्मा जी ने चिंता जताई|
"हाँ! देव, हमें क्षमा करें, कुदरत ने पलटवार करके कई बार चेतावनी देकर मनु को समझाने कि चेष्टा कि है कि कुदरत का भी ख्याल रखे पर शायद वह समझना ही नहीं चाह रहा, सो जब सीधी ऊँगली से घी न निकले तो उसको टेढ़ी करना ही ...|
सब देवगण विस्मित यूँही खड़े थे और ब्रह्मदेव लाचार ...
"आखिर मनु को समीकरण तो समझना ही होगा|" शिव ने अपना निर्णय सुना ही दिया।

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