कजरी- अंतिम भाग Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कजरी- अंतिम भाग

अभी तक आपने पढ़ा निशा की अलमारी में सफेद पर्स से निकली 'आई विल किल यू' की पर्चियाँ देख कर नवीन के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। निशा के मुँह से कजरी का नाम सुनते ही नवीन समझ गया कि यह सब कुछ निशा ने क्यों किया है।

निशा ने गुस्से में कहा,“कजरी की माँ का हम पर विश्वास था नवीन। भगवान की तरह मानती थी हमें। इसलिए उसने कजरी को हमारे घर पर छोड़ा था लेकिन तुमने तो एक का नहीं सबके विश्वास का गला घोंट दिया । वह विश्वास मेरा था, पारो का था, कजरी का था। हम दोनों के लिए सोलह साल की कजरी हमारी बच्ची जैसी होनी चाहिए थी। लेकिन वह तुम्हारी हवस का शिकार हो गई। तुम्हारा चरित्र तो उसी दिन मैला हो गया था लेकिन कजरी बात को छुपा गई शायद तुम से डर कर। वह बदल गई थी, गुमसुम हो गई थी इसलिए मुझे शक़ हो गया। तब मैंने उससे बहुत पूछा, उसे बहुत समझाया कि क्या किसी ने तुम्हारे साथ…तब कजरी ने रोते हुए मुझे सब सच-सच बता दिया।”

नवीन पत्थर के बुत की तरह शांत खड़ा था, उसके पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं।

निशा बोलती ही जा रही थी, अपनी काँपती आवाज़ और बहते हुए आँसुओं के साथ उसने कहा, "एक छोटी सी बच्ची ऐसी कच्ची उम्र में तुम्हारी हवस का शिकार होकर प्रेगनेंट हो गई। इससे ज़्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है। तुम ने बलात्कार किया है नवीन। हमारे इस मंदिर को, हमारे घर को, अपवित्र कर दिया है। नवीन तुम बलात्कारी हो और ऐसे इंसान के साथ मैं अपना जीवन नहीं बिता सकती। उस बच्चे को तो कजरी का शरीर संभाल ही नहीं पाया। कच्ची उम्र और कच्चा शरीर था उसका, वह तो यूँ ही गिर गया। मैं कजरी को उसके घर छोड़ कर आना चाहती थी लेकिन इसी बीच उसकी माँ यह दुनिया छोड़ कर चली गई। अच्छा हुआ उसे कुछ पता ही नहीं चला। जाते वक़्त भी उसने कजरी का हाथ मेरे हाथों में यह कह कर थमा दिया कि अब आप दोनों ही इसके सब कुछ हो। मेरी बच्ची का आप लोग ख़्याल रखना। मेरे अलावा अब उसका कोई नहीं, वरना समाज के भेड़िये ऐसे ही उसे नोच-नोच कर खा जाएँगे। कजरी की माँ के मुँह से यह सब सुनकर मेरी रूह काँप गई। मेरी आँखों से आग के गोले आँसू बनकर निकल रहे थे नवीन कि वह भेड़िया तो मेरे ही घर पर है जो तुम्हारी कजरी को नोच-नोच कर खा चुका है। मैं तुम्हारी कजरी को नहीं बचा सकी पारो।"

यह सब सुनकर नवीन निढाल होकर घुटनों के बल बैठ गया और कहने लगा, "निशा मुझे पता नहीं क्या हो गया था। मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। मेरी ग़लती माफ़ी के काबिल नहीं लेकिन फिर भी मुझे माफ़ कर दो।"

"नहीं नवीन 'माफ़ कर दो' यह दो-चार शब्द इतनी बड़ी ग़लती के लिए काफी नहीं हैं। यह सब पता चलने के बाद मुझे रातों में भयानक सपने आते थे कि तुम कजरी के साथ फिर से . . .। इसके बाद तुम्हें 'आई विल किल यू' की पर्चियाँ कभी नहीं मिलेंगी। मैंने उन पर जो लिखा था, काश वह मैं कर पाती।"

निशा कमरे से बाहर निकली और उसने देखा कजरी दरवाज़े पर खड़ी सब कुछ सुन रही थी और मोबाइल फ़ोन पर सब कुछ रिकॉर्ड भी कर रही थी। उसने कजरी का हाथ पकड़ा उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। उसे लेकर निशा घर से बाहर निकल गई।

जाते-जाते निशा ने कहा, "नवीन मैंने तो सोचा था तो क्या हुआ जो भगवान ने हमें औलाद का सुख नहीं दिया लेकिन इतनी प्यारी कजरी हमें मिल गई उसे हम हमेशा अपने साथ रखेंगे। लेकिन तुमने तो वह सुख भी मुझसे छीन लिया। मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करुँगी नवीन, कभी माफ़ नहीं करुँगी। तुम्हें तुम्हारा यह घर मुबारक हो। मैं कजरी को लेकर हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे जीवन से दूर जा रही हूँ।"

नवीन निढाल बैठा अपने किए पर पछता रहा था। तभी घर में पुलिस ने प्रवेश किया और नवीन को गिरफ़्तार करके ले गई। वह चंद पलों के सुख के पीछे जीवन भर का दुःख मोल ले चुका था। अब उसके पास पछतावे और शर्मिंदगी के सिवा कुछ भी नहीं था।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त