कजरी - भाग ८ Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कजरी - भाग ८

अभी तक आपने पढ़ा कि ऑफिस में भी नवीन की चेयर पर 'आई विल किल यू' की पर्ची चिपकी हुई मिलने के बाद वह परेशान हो गया। घर पर निशा के साथ बात करने के बाद दोनों ने पुलिस कंप्लेंट करने का निर्णय कर लिया। नवीन ने पुलिस कंप्लेंट करने के लिए अपने सारे काग़ज़ रख लिए तथा निशा का आधार कार्ड ढूँढने लगा। सभी जगह ढूँढने के बाद भी आधार कार्ड नहीं मिला।

एक सफेद पर्स बाकी था, नवीन ने उसे उठाकर इसलिए वापस रख दिया था कि इसे तो निशा कभी यूज ही नहीं करती। फिर सोचा शायद इसी में होगा। नवीन ने सफेद पर्स की चैन खोली कि चलो देख ही लेता हूँ। उसने जैसे ही पर्स की चैन खोली, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा। यह कैसे हो सकता है? यह नहीं हो सकता।

उसे उसकी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने कांपते हुए हाथों से वह सारी पर्चियाँ बाहर निकालीं। जिन पर वैसा ही चाकू का निशान बना हुआ था और लिखा था 'आई विल किल यू '। नवीन को मानो दिन में तारे दिखाई दे रहे थे।

निशा…? निशा…? निशा ऐसा क्यों कर रही है? क्या उसका कोई बॉयफ्रेंड है? नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता। यदि ऐसा होता तो वह मुझे इस तरह मानसिक तनाव क्यों देती। सीधे कह सकती थी, तलाक मांग सकती थी। वह यह सोच ही रहा था कि निशा नहा कर बाहर निकल आई और उसकी नज़र नवीन से जा टकराई।

नवीन इस समय उसकी अलमारी खोलकर वही सफेद पर्स हाथ में लिए खड़ा था। 'आई विल किल यू' लिखी हुई पर्चियाँ नवीन के हाथ में थीं । कमरे का पंखा चल रहा था। नवीन ने निशा को दिखाते हुए अपनी मुट्ठी खोल दी तो वह सारी पर्चियाँ पंखे की हवा के साथ कमरे में उड़ने लगीं। उसकी आँखों में आँसू थे, शब्द मानो वह ढूँढ रहा था, कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। उसने अपने दोनों कंधे उचकाते हुए हाथ से ही इशारा करते हुए पूछा, यह क्या है निशा और क्यों है?

निशा एक टक नवीन की आँखों में आँखें डाल कर देख रही थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में इस समय अग्नि प्रज्वलित हो रही थी। उसकी लाल आँखों में गुस्से और दुःख का मिश्रण था। आँसू रुकने का, थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। तब वह नवीन के पास आई उसे पकड़ कर ज़ोर से चिल्ला कर बोली, " हाँ नवीन वह मैं ही हूँ।"

"लेकिन क्यों निशा? आख़िर क्यों?"

"तुम कारण जानना चाहते हो तो सुनो। मैंने तो कई बार तुम्हें मारने की भी कोशिश की।"

हैरान होते हुए नवीन ने कहा, "तो मार ही दिया होता ना निशा! इस तरह मानसिक तौर पर टॉर्चर क्यों कर रही हो? आख़िर मैंने किया क्या है? क्या तुम्हारा कोई आशिक…?"

तभी तड़ाक से एक थप्पड़ निशा ने नवीन के गाल पर रसीद करते हुए कहा, "यह तुम मुझसे पूछ रहे हो कि तुमने किया ही क्या है या मेरा कोई आशिक… छिः नवीन इतनी घटिया सोच सिर्फ़ तुम्हारी ही हो सकती है। मैं तो सच में तुम्हें मार ही डालना चाहती थी। एक बार मैंने नींद में तुम्हें चाकू मारने की कोशिश की लेकिन मेरे प्यार ने मेरे हाथ तुम्हारे सीने तक पहुँचने ही नहीं दिए। एक बार सोचा तुम्हें ज़हर दे दूँ लेकिन क्या करूँ मैं तुम्हें इस हद तक प्यार करती हूँ कि मैं वह भी ना कर सकी। रेल्वे स्टेशन पर एक दिन जब हम प्लेटफार्म पर थे, तब सोचा सामने से आती ट्रेन के सामने तुम्हें धक्का दे दूँ लेकिन मैं वह भी ना कर सकी नवीन क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ। "

"प्यार करती हो और परेशान करती हो, मार डालना चाहती हो?"

"हां नवीन! मार ही दिया होता तो अच्छा होता, मुझे हर रात भयानक सपने तो नहीं आते…"

"भयानक सपने…?"

"हाँ नवीन भयानक सपने! तुम जानना चाहते हो ना कि मैंने ऐसा क्यों किया तो सुनो नवीन कजरी…!"

कजरी का नाम सुनते ही नवीन के हाथ से वह सफेद पर्स नीचे गिर पड़ा।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः