जब गुलाबो से जगत रानी ने सभी को पेड़े लाकर देने के लिए और खुद के लिए पानी लाने को बोला तो ना चाहते हुए भी उसे वहां से जाना पड़ा। उसे अपनी उस खास चीज की चिंता थी की कही अम्मा न देख ले। पर थोड़ी तसल्ली थी की उसने उसे अखबार के नीचे छुपा कर रक्खा है। अपनी आदत अनुसार वो चिढ़ती हुई वहां से पानी और पेड़े लाने चली गई।
इधर जगत रानी को अंदाजा हो ही गया था की बक्से की सतह और अखबार के बीच में अंतर है। गुलाबो के जाते ही झट से अखबार थोड़ा सा उठा कर देखा। जगत रानी को उम्मीद थी की गुलाबो ने अपने लिए कुछ कपड़े चोरी से खरीदे होंगे। वही होगा। पर उनकी आशा के विपरीत हुआ। ये क्या….? ये तो किसी छोटे बच्चे के कपड़े जैसा दिख रहा। फिर ध्यान से देखा तो हां सच में छोटे छोटे बहुत ही सुंदर सुंदर कपड़े थे। कुछ पल के लिए जगत रानी सोच में पड़ गई की, "ये गुलाबो भी न कभी नही सुधरेगी…! अब कोई खेलने की उम्र है इसकी ये इन छोटे कपड़ों का क्या करेगी? जरूर कोई गुड़िया भी छिपा कर लाई होगी। पर गुड़िया तो दिख नही रही।" फिर एक पल को जगत रानी को अपनी सोच पर खीज आई की उसका दिमाग उल्टी दिशा में सोचेगा सीधी दिशा में नही। फिर वो मुस्कुरा उठी। ये पहले क्यों नहीं सोचा…..?
फिर जल्दी से वैसे ही ढक कर रख दिया। और बोली, "गुलाबो इसे उठा ले जा…. अपने कमरे में रख दे।" फिर अपनी ही कही हुई बात तुरंत काटती हुई बोली, अरे….! ना… तू रहने दे…." फिर विजय को आवाज लगती हुई बोली, "वीजू बेटा तुम जरा ये बक्सा अपने कमरे में रख आओ तो। "
विजय आया और "जी अम्मा" कहता हुआ बक्सा उठा कर अंदर कमरे में रखने चला गया।
अम्मा की आवाज सुन कर की "बक्सा रख दे गुलाबो"
गुलाबो ने अभी सोचना शुरू ही किया कि, "लो गुलाबो तुम आई नही की चाकरी करवाना शुरू कर दिया अम्मा ने। अरे…! थोड़ा धीरज धर लेती, अभी अभी तो आई हूं, और अभी से काम पे काम। गुलाबो….. पेड़े दे दे सबको, गुलाबो….. बक्सा रख दे अंदर। जैसे गुलाबो के चार हाथ है। इससे तो अच्छा वहीं था। किसी का हुकुम नहीं बजाना पड़ता था।"
गुलाबो की सभी सोचों पर विराम लग गया। जैसे ही उसने सुना की अम्मा ने विजय से बक्सा रखने को कहा। फिर गुलाबो बुदबुदाई, "है भगवान…! आपने अम्मा की ये सद्बुद्धि कैसे दे दी..? अब जब दी है तो उसे ऐसे ही बनाए रखना।" कह कर जैसे ही हाथ जोड़कर भगवान का शुक्रिया करना चाहा। उसके हाथ से पानी और मिठाई ली थाली गिरते गिरते बची। उसे संभाल कर सबको दिया और लौट पड़ी वापस।
जगत रानी ने देखा तश्तरी खाली है पेड़े खत्म हैं। वो बोली, "गुलाबो पेड़े तो बचे ही जा तू भी खा ले अंदर से दूसरे निकाल कर ।"
गुलाबो ने देखा अम्मा का स्वर बदला हुआ है। वो तो इतने अच्छे से कभी नही कहती कुछ खाने को। फिर ये तो पेड़े थे। गुलाबो को लगा आज भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान है उस पर। उसने जो विनती अभी अभी की थी उसे इतनी जल्दी भगवान ने पूरी कर दी।
"जी अम्मा " कह कर वो गई और तश्तरी में ढेर सारे पेड़े लेकर वो रज्जो के कमर में घुस गई। तश्तरी बिस्तर पे रख पहले तो जिठानी के गले लगी। फिर बोली, दीदी कैसी हो…? मेरी याद नही आती थी? जब से गुलाबो आई थी तब से अभी उसे रज्जो के साथ एकांत मिला था। वो अपना प्यार अपनी दीदी पर व्यक्त करना चाहती थी।
रज्जो भी गुलाबो को सीने से लगा लाड जता रही थी। अब उसे अकेले घर में नही रहना होगा, गुलाबो की चंचलता से घर में रौनक रहेगी। इस बात की खुशी रज्जो को भी थी।
गले मिल दोनो ने एक एक पेड़ा एक दूसरे के मुंह में डाल दिया और खिलखिला कर हंस पड़ी।
क्लिलखिलाने की आवाज बाहर तक गई। जगत रानी बड़बड़ाने हुए विश्वनाथ जी से कहने लगी, "देखो तो… कहते है ना…खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है। बिलकुल सही, अभी तक इस रज्जो को आवाज सुने कई कई घंटे. बीत जाते थे। अब इस गुलाबो के आते रज्जो के भी बोली फूट रही है।"
विश्वनाथ जी पत्नी को समझाते हुए बोले,"जग्गो क्यों गुस्सा करके अपना खून जलाती हो। बच्चियां है इतने महीनों बाद मिली है। उन्हे आपस में हंस बोल लेने दो। गुलाबो तो है ही गुलाब जैसी जहां भी रहती अपनी खुशबू से उसे महका देती है।" आंखो की पलके झपका कर शांत रहने का इशारा किया। विश्वनाथ जी प्यार से जगत रानी को जग्गो कह कर ही बुलाते थे।
जगत रानी से सब्र नही हो रहा था। उसे बक्से में छुपाई गई चीज के बारे में गुलबो से पूछना था। पर गुलाबो जब से आई रज्जो के साथ ही थी । अकेले अभी तक नही मिली थी। जब जगत रानी को लगा की इन दोनो की बातें खत्म ही नही होंगी कभी तो आवाज लगाई, अरी…! गुलाबो अगर तेरी बकर बकर खत्म हो गई हो तो जाकर आराम कर ले। रज्जो ना कही भागी जा रही नही ही तू। शाम का खाना भी बनाना होगा। जा कुछ देर आराम कर ले सफर से थकी होगी। रज्जो को भी आराम करने दे।"
"जी अम्मा ! "गुलाबो जोर से बोली। फिर रज्जो से बोली, "दीदी ये क्या…? हमारी अम्मा और हमें आराम करने को बोलें ..! ऐसा कैसे …? " कह कर हंसती हुई अपने कमरे में जाने लगी।
रज्जो भी धीरे से मुस्कुराती हुई बोली, "छोटी तू भी ना…! अब अम्मा पहले जैसी नहीं रहीं। बदल गई है।"
क्या जगत रानी गुलाबो से पूछ पाई उस चीज के बारे में ? जगत रानी के व्यवहार का ये परिवर्तन कुछ देर के लिए था या हमेशा के लिए? क्या विश्वनाथ जी का बहुओं को छूट देने के लिए जगत रानी को कहना अच्छा लगा ।