Gyarah Amavas - 46 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 46



(46)

वह आदमी रंजन सिंह था। उसने टॉर्च की रौशनी कान्हा के चेहरे पर मारी। कान्हा रंजन सिंह को देखकर थर थर कांप रहा था। उसे इस हालत में देखकर रंजन सिंह के मन में आया कि अब वह कुछ ही घंटों का मेहमान है। आज अमावस है। आधी रात के बाद यहाँ ज़ेबूल के पुजारी जमा हो जाएंगे। ज़ेबूल की पूजा करेंगे। उसे खुश करने के लिए इसकी बलि देंगे। उसने कान्हा से कहा,
"तुम्हारे लिए खाना लेकर आया हूँ। खा लो।"
यह कहकर उसने हाथ में पकड़े हुए पैकेट से खाना निकाल कर एक प्लास्टिक की प्लेट में डालकर उसके सामने रख दिया। उसके बाद उसके हाथ खोल दिए। कान्हा ने प्लेट की तरफ देखा भी नहीं। वह उसी तरह बैठा सिसक रहा था। रंजन सिंह जानता था कि उसके लिए खाना ज़रूरी है। बलि देने से पहले उसे खाली पेट नहीं रहना है। कल शाम जब उसने उसका अपहरण किया था तब उसे खाना खिलाया था। उसने कहा,
"खाना खाओ..."
कान्हा ने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में अब डर की जगह नफरत थी। उसने कहा,
"मुझे यहाँ क्यों लेकर आए हो ?"
रंजन सिंह उससे इस सवाल की उम्मीद नहीं कर रहा था। उसकी बात का जवाब देने की जगह उसने डांटते हुए कहा,
"चुपचाप खाना खाओ...."
उसके डांटने से कान्हा डरा नहीं। उसने रंजन सिंह को देखा। उसकी आँखों में पहले की तरह ही नफरत थी। कान्हा ने कुछ कहा नहीं। अपना मुंह घुमाकर बैठ गया। उसे इस बात का अंदेशा हो गया था कि उसकी जान को खतरा है। रंजन सिंह को सामने देखकर वह घबरा गया था। इंसान के पास जब तक बचने का रास्ता होता है वह डरता है और बचने की कोशिश करता है। लेकिन जब उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ता है तो कभी कभी वह विपरीत व्यवहार करता है। स्थिति से डरने की जगह उसके सामने खड़ा हो जाता है। कान्हा के साथ भी यही हुआ। उसे लग गया कि वह बचेगा नहीं।
अब तक उसने ज़िंदगी में सिर्फ संघर्षों का सामना किया था। बाप का कोई पता नहीं था। माँ उसे लेकर सड़कों पर भीख मांगती थी। घर क्या होता है उसने जाना ही नहीं था। किसी मंदिर की सीढ़ियां या सड़क का फुटपाथ उसका बसेरा रहे थे। उन सबके बीच उसने जीने के लिए जद्दोजहद करना सीखा था। इधर बहुत समय से तो माँ का साथ भी नहीं था। उसने अब तक जीवन की कठिनाइयों का सामना किया था। मृत्यु का आभास होने पर भी उसने डरने की जगह सामना करने का मन बनाया था। इसलिए रंजन सिंह की बात को अनसुनी कर दिया था।
रंजन सिंह सोच रहा था कि अभी तक जो डरकर कांप रहा था उसकी आँखों में अचानक गुस्सा और नफरत कैसे आ गई ? उससे डरने की जगह वह उसकी बात को मानने से इंकार क्यों कर रहा है ? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कुछ देर के लिए उसे अकेला छोड़ देने का विचार किया। उसने एकबार फिर कहा,
"मैं बाहर हूँ। चुपचाप खाना खा लो।"
यह कहकर रंजन सिंह बाहर चला गया। बाहर निकलने पर एक गलियारा था। उसके अंत में सीढ़ियां थीं जो नीचे आहते में जा रही थीं। रंजन सिंह ने ऊपर से देखा एक रस्सी पर ग्यारह काले चोंगे लटके थे। एक बड़ी सी हौज बनी थी। उसमें पानी भरा था। यह सारी व्यवस्था काबूर ने रात के अनुष्ठान के लिए की थी। रंजन सीढ़ियां उतर कर आहते में आया। उस आहते के एक कोने में एक कमरा था। वह उसके अंदर चला गया। यह कमरा बहुत बड़ा तो नहीं था फिर भी अनुष्ठान की प्रक्रिया हो सकती थी। कमरे में ज़ेबूल की प्रतिमा स्थापित थी। उसके पास ही जांबूर के लिए आसन बना हुआ था। रंजन ने कमरे में मौजूद काबूर से कहा,
"इतनी जल्दी सारी तैयारी कर दी।"
काबूर ने उसकी तरफ देखा। वह बोला,
"मैंने तो वही किया जो मेरा काम है। सही मायने में व्यवस्था तो जांबूर ने की है। मुझे तो लग रहा था कि इस बार अनुष्ठान होना मुश्किल है।"
"मुझे भी यही लग रहा था। पर जांबूर ने सारी व्यवस्था कर दी। उसका अपना तरीका है। कल दोपहर मुझे बुलवाया और कहा कि रानीगंज के देवी मंदिर में बलि की व्यवस्था हो गई है। तुम जाओ और उसे ले आओ। मुझे उस लड़के के बारे में सारी बात बताई। उसने मुझे बलि को इस जगह पहुँचाने को कहा। मैं उसे यहाँ ले आया।"
रंजन सिंह की बात सुनकर काबूर ने पूछा,
"उस लड़के ने खाना खा लिया ?"
"अभी नहीं....पर मैं कहकर आया हूँ। खा लेगा।"
रंजन सिंह ने उसकी बात का जवाब दिया। फिर कुछ सोचकर बोला,
"सब यहाँ तक कैसे आएंगे ?"
काबूर ने जवाब दिया,
"सबको ग्रुप में संदेश भेज दिया गया है। जांबूर ने कहा है कि सावधानी बरतते हुए सब एक साथ नहीं आएंगे। पहले मैं और तुम आ गए। अब तीन लोगों का एक दल कुछ ही देर में आएगा। उसके कुछ देर बाद तीन और लोग आएंगे। फिर रात नौ बजे तीसरा दल आएगा। सबसे अंत में जांबूर गगन और उसके साथियों के साथ आएगा। सारे दल यहाँ आने के लिए अलग अलग रास्ते का चुनाव करेंगे।"
रंजन सिंह के मन में एक बात घूम रही थी। इस जगह की जानकारी जांबूर ने दी थी। तो क्या उसको पहले से ही इस जगह के बारे में पता था। उसने अपने मन की बात काबूर को बताई। उसकी बात सुनकर काबूर ने कहा,
"हो सकता है कि उसे पहले से ही इस जगह के बारे में पता हो।"
"तो फिर इतने समय तक बताया क्यों नहीं ? आखिरी वक्त तक चुप क्यों रहा ?"
"इस बार जांबूर पूरी सावधानी बरतना चाह रहा है। शायद इसीलिए ना बताया हो। बलि की व्यवस्था हो जाने पर उसने इस जगह के बारे में बताया। बाकी कोई और बात है तो जांबूर जाने।"
यह कहकर काबूर उठते हुए बोला,
"अभी कुछ और काम बाकी हैं। मैं उन्हें निपटा लेता हूँ।"
काबूर चला गया। रंजन सिंह वहाँ बैठकर उस समय को याद करने लगा जब वह जांबूर के दल में शामिल हुआ था।
रंजन सिंह महिपाल सिंह का छोटा भाई था। उन दोनों भाइयों ने बहुत बुरा समय देखा था। उनके माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उनके पिता ने अपने बड़े भाई से कुछ उधार लिया था। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके ताऊ ने अपने कर्ज़ के ऐवज में उनकी हर एक चीज़ पर कब्ज़ा कर लिया था। वो दोनों भाई इस बात का विरोध करने की स्थिति में नहीं थे। अपनी ज़रूरतों के लिए उन्हें अपने ताऊ के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता था। रंजन सिंह अपने भाई महिपाल सिंह से पाँच साल छोटा था। उसने कई बार महिपाल सिंह को घुट घुटकर रोते देखा था।
महिपाल ने जैसे तैसे अपनी पढ़ाई पूरी की और एक कंपनी में क्लर्क की नौकरी करने लगा। उसने अपने छोटे भाई रंजन सिंह की ज़िम्मेदारी उठा ली। पढ़ने में होशियार रंजन सिंह पुलिस में भर्ती हो गया। वैसे तो सब ठीक हो गया था पर इस बात का मलाल था कि जिस संपत्ति पर उनका हक था वह किसी और के कब्ज़े में है। इस बात का दुख सबसे अधिक महिपाल को था। पुलिस में भर्ती होने के बाद रंजन सिंह ने आश्वासन दिया कि वह कानून की मदद से वो सब वापस लेगा जिस पर उन दोनों भाइयों का हक है।
लेकिन उसके ताऊ बहुत शातिर थे। उन्होंने पहले से ही उन सभी कागज़ातों की व्यवस्था कर ली थी जिनसे साबित हो सके कि उस सारी संपत्ति को रंजन सिंह के पिता कर्ज़ के बदले में उनके नाम कर गए थे। बल्कि उन्होंने तो दोनों भाइयों की परवरिश पर अपनी तरफ से खर्च किया है। यह साबित हो गया कि संपत्ति पर उनका कानूनी अधिकार है। इस बात से महिपाल सिंह और भी अधिक टूट गया। रंजन सिंह को संपत्ति के जाने से अधिक दुख अपने भाई की हालत पर था। कुछ समय के बाद महिपाल सिंह अचानक खुश रहने लगा। रंजन सिंह यह सोचकर संतुष्ट हो गया कि उसका भाई अपने दुख से बाहर निकल कर आगे बढ़ गया है।
एक दिन महिपाल सिंह ने उसे अपने पास बुलाकर कहा कि वह उसे बहुत ज़रूरी बात बताना चाहता है। उसने रंजन सिंह को ज़ेबूल के बारे में बताकर कहा कि वह शैतानी शक्तियों का स्वामी है। उसकी आराधना करने वाले को वह प्रसन्न होकर वरदान स्वरूप अपनी शक्तियां प्रदान करता है। उन शक्तियों को प्राप्त कर व्यक्ति अपने मन मुताबिक जीवन जी सकता है। किसी के साथ कुछ भी कर सकता है। वह भी ज़ेबूल का पुजारी बन गया है। अब उनके सारे दुख दूर हो जाएंगे। उसने ब्लैक नाइट नाम का ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप का मुखिया जांबूर है। कुछ दिनों से उनका अनुष्ठान आरंभ होगा। अनुष्ठान के बारे में जानकर रंजन सिंह घबरा गया। उसने अपने भाई को समझाया कि यह ठीक नहीं है। वह जो करने की सोच रहा है वो कानून की ही नहीं समाज की निगाह में भी अपराध है। उसकी दलील के जवाब में महिपाल ने कहा कि उनके साथ जो कुछ हुआ वह भी ना तो कानून की नज़र में ठीक था और ना ही समाज की नज़र में। लेकिन उस अन्याय का विरोध समाज के किसी व्यक्ति ने नहीं किया। उनके अपने संबंधी भी चुप रहे। जब उन्होंने कानून के रास्ते इंसाफ लेना चाहा तो कानून ने भी उनकी कोई मदद नहीं की। इसलिए वह जो कर रहा है उसे गलत नहीं मानता है। रंजन सिंह को भी उसका साथ देना चाहिए।
रंजन सिंह दुविधा में पड़ गया था। एक तरफ उसका बड़ा भाई था जो अपने साथ हुए अन्याय के लिए ख़तरनाक राह पर चलने को तैयार था। दूसरी तरफ उसका पुलिस के रूप में फर्ज़ उसे अपने भाई को रोकने के लिए प्रेरित कर रहा था।
वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।



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