Nafrat se bandha hua pyaar - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 22

"तुम उन्हे फिर से कैसे खो सकते हो?" सबिता किसी से फोन पर पूछ रही थी।

"हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, मैडम। हमे एक घंटे पहले ही जानकारी मिली थी। जैसे ही हम वहां पहुंचे......."

"हर बार का यही बहाना है तुम्हारा। एक ही बात सुन सुन कर मैं परेशान हो गई हूं। मुझे नतीजा चाहिए, बहाना नहीं।"

"हम समझते हैं, मैडम। मैं......"

सबिता ने उसकी बात पूरी सुने बिना ही, निराशा से, फोन काट दिया और अपने ऑफिस डेस्क पर ज़ोर से पटक दिया।

हर बार अलग अलग एजेंसी हायर की थी उसने कुछ बीते सालों में, पर सबका जवाब एक ही होता था। अब वोह थक चुकी थी, हर बार निराशा ही हाथ लगती थी। वोह सोच सोच कर पागल हो रही थी।

"मैडम..." एक हल्की सी आवाज़ उसे अपने ऑफिस के कमरे के बाहर बंद दरवाज़े से सुनाई पड़ी।

"कम इन", सबिता ने आदेश दिया।

"मैडम, एक और डिलीवरी।" ध्रुव अपने हाथों में एक बड़ा सा गुलदस्ता लेकर खड़ा था। वोह गंभीरता से सबिता की तरफ देख रहा था।

"अगली बार, मुझसे मत पूछना।" सबिता ने कहा। "फेक दो इसे। अच्छा होगा, की उस डिलीवरी मैन से कह दो की उसके हाथ नही बचेंगे फ्यूचर में डिलीवरी करने के लिए अगर दुबारा इस कंट्रक्शंस साइट के आस पास भी दिखा तोह।"

ध्रुव ने अपना सिर हिला दिया और वोह गुलदस्ता लेकर बाहर चला गया।

सबिता ने अपनी कुर्सी पर बैठे ही अपना सिर कुर्सी से टिका दिया। उसने परेशानी से आह भरी। बाहर बहुत अंधेरा हो चुका था और रात के अंधेरे में हल्की हल्की ठंड का एहसास होने लगा था। उसे आज रात ऑफिस में ही रुकना था। उसके लोग यानी प्रजापति के लोग बहुत थक चुके थे और वापिस घर जाने की हालत में नही थे। वोह लोग कल सुबह से ही लगातार काम कर रहे थे और कोई भी ठीक से सो नही पाया था।

इस कैनल प्रोजेक्ट को शुरू हुए लगभग दो महीने बीत चुके थे। काम में अभी तक कोई खास परेशानी या रुकावट नहीं आई थी और ठीक से काम शुरू हो चुका था।
यह बहुत आश्चर्यजनक बात थी सबिता भी देव सिंघम की तरह ही काम को महत्व देती थी और दोनो के काम करने का तरीका भी लगभग एक जैसा था। बिना किसी लड़ाई झगडे और खून खराबे के, वोह दोनो घंटों साथ में रहते हुए काम करते थे। प्रोजेक्ट प्लान पर बात विचार करते थे, कुछ जरूरी चीजों में कुछ बदलाव करना होता तो दोनो शांति से एक दूसरे से बात कर काम करते थे। सबिता को यह भी लगता था की देव सिंघम उससे ज्यादा अनुभवी है प्रोजेक्ट को संभालने में और उसने कई अच्छे सुझाव भी दिए थे।

पहले दिन जब देव ने उसे अनपढ़ कहा था उसके बाद कभी भी उसके सामने उसका यह मज़ाक नहीं उड़ाया की उसे पढ़ना नहीं आता। सबिता को लगता था कभी न कभी किसी बहाने वोह उस पर तंज कस देगा पर ऐसा कुछ नही हुआ जब ध्रुव बीच मीटिंग में पेपरवर्क करने और पढ़ने में सबिता की मदद करता था।

सबिता अनिच्छा से ही सही लेकिन मानने लगी थी की देव सिंघम एक अच्छा बॉस है। प्रजापतिस उसे सर कह कर संबोधित करते थे जबकि सिंघम लोग उसे नाम से पुकारते थे। सबिता ने यह भी ध्यान दिया था की देव सिंघम अपना काफी वक्त कर्मचारियों के साथ बिताता था, उनके साथ बैठता था, उनके साथ मज़ाक करता था, हस्ता था, उनके साथ घुलता मिलता था। उनके परेशानियों को सुनता था और तुरंत ही उसका हल भी कर देता था जैसी जरूरत हो।

सबिता के लिए यह आश्चर्यजनक बात थी की देव के उसके कर्मचारियों के प्रति स्वभाव के बदले उसके सभी कर्मचारी उसे हल्के में नही लेते थे। बल्कि उसका आदर करते थे और उसके सभी आदेशों को खुशी खुशी स्वीकार भी करते थे।

जब भी अब सबिता देव से मिलती थी तो देव उसे ऊपर से नीचे तक देखता जरूर था लेकिन कभी भी कोई अपमानित कॉमेंट या आलोचना नही करता था।

अब न जाने क्यों न ही सबिता को लगता था और न ही देव ऐसा कोई मौका देता था जिससे सबिता को उसपर गुस्सा आए या उसका खून करने का मन करे।

वोह बहुत खुश थी की सब काम बहुत आराम से अच्छे से चल रहा है क्योंकि अब वोह अपना ज्यादा से ज्यादा समय साइट पर देने लगी थी और बहुत कम वक्त ही प्रजापति मैंशन में बिताती थी।
खासकर उसकी बुआ नीलांबरी आज कल उसे बहुत गुस्सा दिलाने लगी थी।

सेनानियों ने एक प्रोपोजल भेजा था जिसे नीलांबरी सबिता पर दबाव बनाने लगी थी की एक बार उस प्रोपोजल पर विचार कर ले।

रेवन्थ सेनानी, सबिता से, शादी करना चाहता था।

उसके घर प्रपोजल भेज के और उसके जवाब का इंतजार करने के बजाय वोह बेवकूफ अपने आप का मज़ाक बनाने पर लगा हुआ था। वोह प्रजापति मैंशन में उसके लिए तोहफे भेजता रहता था। जब उसने उसके तोहफों को वापिस भेज दिया एक लिखित मैसेज के साथ तब भी वोह उसके लिए गिफ्ट्स भेजता रहता था।

बीते दो दिनों से वोह फूलों के गुलदस्ते कंस्ट्रक्शन साइट पर डिलीवरी बॉय के जरिए भेजने लगा था। सबिता जानती थी की उसे इस मुसीबत से अगर छुटकारा पाना है तोह उसे थोड़ी सख्ती दिखानी होगी। उसको बस कोई आसान हल निकालना था जिससे किसी को बुरा भी न लगे, कोई खून खराबा या लड़ाई झगड़ा भी न हो और रेवन्थ सेनानी से छुटकारा भी मिल जाए।

एक तेज़ आवाज़ ने सबिता को अपने विचारों से होश में ले आया। उसने नज़रे दरवाज़े की तरफ कर ली। वोह बस आदेश देने ही वाली थी की, 'कम इन', लेकिन उसके बोलने से पहले ही कोई उसके ऑफिस का दरवाज़ा झटके और ज़ोर से खोल कर अंदर आ गया। दरवाज़ा खुला और फिर बंद हो गया सामने खड़ा लंबा चौड़ा शख्स आगे बढ़ने लगा और सबिता के सामने वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया।



















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(पढ़ने के लिए धन्यवाद..
कहानी अभी जारी है.....)
(अगले भाग में बोल्ड सीन्स होंगे, शमा चाहूंगी लेकिन यह कहानी की मांग है तोह अगर किसी को आपत्ति हो तोह अगला भाग न पढ़े)










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