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मेरी पहली दौड़

मेरा वास्ता ग्रामीण परिवेश से है। हालांकि गांव का मज़ा शहरों में कहां?
सुबह - सुबह जैसे ही न्यूज़ पेपर खोला तो मेरी नज़र एक ऐसी ख़बर पर पड़ी जो मेरे लिए तो कम परंतु मेरी बेहना के लिए बहुत ही रोचक थी ।
ख़बर यह थी कि 17 जुलाई 2018 को हमारे जिले में "वोट मैराथन" थी । मुझे तो दौड़ने का कम ही शौक था परन्तु मेरी दीदी को बचपन से ही दौड़ पसंद थीं ।
उस दिन मैंने पापा को बोला को दीदी को दौड़ में शामिल होना चाहिए तो पापा ने भी मना नहीं किया ।
फिर हम दोनों बहने 16 जुलाई को ही अपनी भुआ जी के वहा चले गए थे , ताकि सुबह हमें जल्दी गाड़ी लेकर नहीं लेना पड़े । सुबह हम दोनों बहनें 5 बजे उठे और फिर 5:45 बजे चल पड़े अपने सफ़र पर , वो भी बिना कुछ खाए पिये । वहा पहुंच कर मैंने देखा कि जितनी लड़कियां वहा होनी चाहिए थीं उतनी वहा नहीं पहुंची लगभग 30-35।
मेंरे साथ मेरे गांव कि और भी दो लड़कियां थी... जिनको मैंने यह सब बात बता रखी थी।
हमें वहां पर हमारे स्कूल के शारीरिक शिक्षक के दर्शन हो गए उनको वहा देख मुझे इतनी खुशी हुई जितनी मुझे स्कूल में भी नहीं होती थी ।
उन्हें भी हमें वहा पर देख कर जो खुशी अंदर ही अंदर हो रही थी वो उनके चेहरे पर साफ़ साफ़ झलक रही थी। हमने अपने अपने नंबर लिए वहा से और फिर दौड़ कुछ ही पलों में शुरू होनी वाली थी की मुझे लगा कि मुझे अपने चप्पल की बजाय मेरी फ्रेंड के जूते ले लेने चाहिए ताकि मुझे दौड़ने में आसानी हो । हुआ यह था कि मेरी बहन बिना चप्पल पहने ही दौड़ने का सोच रही थी और मेरी फ्रेंड भी बिना चप्पल के दौड़ने का मन बना लिया।
अब जैसे ही मै मेरी सखी के जूते पहन कर आई तब तक सभी लोग दौड़ने के लिए खड़े हो चुके थे जैस तैसे हमने भी आगे जाने ka रास्ता बना लिया ताकि जैसे ही बेल बजे तो हम निकल पड़े ।
फिर इंतजार कि घड़ियां समाप्त हुई और बेल बजी तो हम सब अपने अपने अंदाज में निकल पड़े और वहा पर जाने से पहले मुझे मेरे पापा ने भी यह बोला था कि बेटा शुरुआत में थोड़ा धीरे- धीरे दौड़ते हैं पर मुझे कहा उनकी बात माननी थीं मैंने तो अपना जोश दिखाया और शुरुआत से दम लगाकर दौड़ने लग गई । लगभग एक ही किलोमीटर मै गई होगी और मेरी सांस फूलने लगी और मेरे जूते इतने भारी भरकम लग रहे थे मानो पूरी दुनिया का बोझ मेरे ही पैरो पर पड़ा हो ।
मेरी यह हालत देख दीदी ने बोला कि तू आराम से दौड़ अभी ज्यादा तेज़ दौड़ेगी तो मैराथन पूरी नहीं कर पायेगी । यह बात दीदी ने मेरे साथ साथ दौड़ते हुए मुझे बोली और फिर दीदी चली गई ।
मुझे मेरे दूसरी सखियों का इंतजार था जो मेरे गांव से मेरे साथ आई थी उसके लिए मै बार- बार पीछे देख रही थी ।
कुछ देर में चली और मुझे वो दोनो सखियां मिल गई और फिर मुझे पीछे छोड़ कर चली गई मैंने अपने दौड़ने कि गति पूरी कम कर दी और मन ही मन सोचने लगी कि यही तो सच्चाई है पूरे जीवन की कि लोग आते रहेंगे और जाते रहेंगे परंतु हमें खुद ही अपने जीवन रूपी नैया के मालिक हैं जिसको हमें ही भव पर लगाना हैं । और जीवन वैसे ही चलेगा जैसा हम चलाना चाहेगे ।
मैंने उस दिन महसूस किया की "अगर आप सब के साथ चलते हो तो हम हमेशा आगे ही बढ़ते रहेंगे और अगर पीछे रहेंगे तो कोई नहीं आयेगा हमें उठाने के लिए। "
यह सब विचार मेरे छोटे से मन में चल रहे थे कि अचानक मेरे कानो में एक आवाज़ पड़ी की - 'दौड़ने आए हो या चलने के लिए।' मैंने देखा कि आवाज़ कहा से आई तब पता चला कि किसी दुकानदार ने यह बोला था । मै उस दिन अपने मन में इतना मग्न हो चुकी थी कि मै कहां पहुंची यह तक पता नहीं .... अच्छा हुआ उस दुकानदार ने मेरे सोए हुये दिमाग़ को जगा
दिया । और मैंने जैसे तैसे करके पांच किलोमीटर कि मैराथन पूरी कि । वहा जाकर मुझे पता चला कि मेरी दीदी ने लड़कियों में पांचवां स्थान हासिल किया है सुन कर ख़ुशी हुई ।
मेरे साथ जो हुआ मै उसे भुला नहीं पाऊंगी ।🤩

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