उन्मुक्त बंधन: Let The Birds Twitter Ashok Kalra द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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उन्मुक्त बंधन: Let The Birds Twitter

रवि और पिंकी कई वर्षों से एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे। कविता के प्रति प्रेम उन्हें सोशलमीडिया पर निकट लाया था, और वे एक अदृश्य कच्चे धागे से बंध गये थे। दोनों वास्तव में कभी न मिले थे किंतु शायद ही कोई दिन जाता हो कि दोनों की बात न होती हो, कभी मैसेंजर, कभी फोन। दोनों विवाहित थे, अपने अपने वैवाहिक जीवन में प्रसन्न भी थे।

प्रेम सच्चा था, रवि कह देते थे उसे बेलाग, पिंकी कभी झिझक जाती, कभी स्वीकार करती और कभी मुकर जाती, परंतु उनका आत्मिक प्रेम इतने वर्षों में भी कभी न मुरझाया। रवि उसकी विवशता को समझते थे, और स्वयं के हृदय को होने वाली पीड़ा को सह लेते थे। पिंकी भी कभी मरहम लगाने में पीछे न रहती थी तो उनके प्रेम का पौधा फ़लता फ़ूलता रहा।

रवि की पत्नी लीना, रवि के पिंकी से प्रेम के विषय में जानती थी, वह उनके सम्बंध को एक प्रकार से मान्यता दे चुकी थी, स्वीकार कर चुकी थी उनके आत्मिक प्रेम को। वह अक्सर रवि को प्रेम से चिढ़ाती थी— “प्रेम करने के दिन बच्चों के हैं, प्रेम में बाप डूबा है”। रवि हंस देते और अपनी पत्नी को और अधिक प्रेम देते, जिससे वह संतृप्त रहती थी।

रवि को बहुत बाद में ज्ञात हुआ, जब पिंकी ने स्वीकार किया कि वह अपने वैवाहिक जीवन में प्रसन्न न थी। रवि को बड़ा धक्का लगा था उस दिन। तब से उनका प्रयास रहता था कि वह उसे जितनी भी प्रसन्नता दे सकें, दें। उनकी हर कविता में स्वयं को पाकर पिंकी भी थोड़ी देर के लिए प्रसन्न हो उठती थी।

अब पिंकी लगभग पैंतालिस वर्ष की हो चली थी, और रवि अट्ठावन के। तब एक संयोग हुआ, पिंकी के पति विजय का तबादला रवि के शहर में हो गया। रवि ने अपनी कॉलोनी में ही उन्हें घर दिलवा दिया। और अब वे रोज मिलने लगे। रवि के जीवन में कोई कमी न होने के बावज़ूद बेहद आनंद आ गया, और ऐसा ही कुछ पिंकी के जीवन में भी हुआ। हर समय अप्रसन्न रहने वाली पिंकी खिली-खिली रहने लगी। उसके पति को यह देख कर बहुत अच्छा लगता। उन्हें महसूस होता कि रूढ़िवादी परिवार के दायरे से बाहर आने के कारण ही पिंकी खिली-खिली रहती है। किंतु रवि के सामने होने पर उसके चेहरे से जो खुशी आती, उससे वह सशंकित रहते, किंतु कहने को तो कुछ था नहीं।

एक बार रवि के बेटे के जन्मदिवस पर घर में पार्टी थी। मेहमानों के जाने के बाद भी पिंकी और उसका परिवार वहीं थे। लीना की जिद थी कि वे खाना खा कर ही जाएंगे। पिंकी की बेटी और बेटा रवि के बेटे से गिटार पर गीत सुन रहे थे। रवि और पिंकी किसी कविता पर चर्चा कर रहे थे और आसपास क्या हो रहा था, उन्हें होश नहीं था। विजय के मन में जाने क्या आया वह उठ कर किचन में चले गए लीना के पास, जो बेटी के साथ खाना बनाने में व्यस्त थी।

“भाभी, आपने देखा रवि और पिंकी कितने खुश रहते हैं”।

“हाँ, कितनी खुशी की बात है न भाई साहब। बच्चे भी कितने खुश हैं,” लीना ने काम करते-करते बात बदलनी चाही।

“हाँ वह तो सही है भाभी, पर क्या आपको कुछ अजीब नहीं लगता”।

लीना ने बेटी के सामने बात करना उचित न जान कर, बेटी को कुछ समझा कर विजय को ड्राइंगरूम में ले आई।

“आप किस बात को लेकर परेशान हैं, भाई साहब, बैठिए,” लीना ने विजय को सोफे पर बैठने का इशारा किया।

“आप समझने की कोशिश करें भाभी,” विजय फुसफुसाया।

“मैं तो समझ चुकी हूँ, आप समझने की कोशिश करें। आपको क्या लगता है कि ये आज की बात है? ये दोनों सालों से ऐसे ही हैं”।

“लेकिन तब तो दूर की बात थी भाभी, अब तो एकदम पास हैं”।

“भाई साहब, इस उम्र में क्या आपको उनके बहकने की उम्मीद है? मुझे तो अपने पति पर पूरा भरोसा है। वैसे भी अगर वो दूर रह कर भी मिलना चाहते तो कोई परेशानी न थी। वह मुझसे झूठ बोल कर जा सकते थे। पिंकी भी आपसे झूठ बोल कर रवि से कहीं मिलने जा सकती थी। मगर ऐसा नहीं हुआ, नही न?”

“क्या आपको रवि जी पूरा प्यार देते हैं?” विजय ने कुछ झेंपते हुए पूछा।

“सच सुनने का हौंसला है आप में?”

सवाल के जवाब में सवाल सुन कर विजय भौंचक रह गया। उसकी समझ में न आया वह क्या कहे। वह चुप रहा।

“अगर आप पिंकी को कुछ न कहें और खफ़ा न हों तो कुछ कहूँ”।

“कहिए भाभी जी”।

“पहले ईश्वर को हाज़िर नाज़िर जान कर कसम खा लीजिए, मुझे लगता नहीं आप समझ पाएंगे। परंतु फिर भी आप अपनी कसम की इज्जत तो करेंगे न”।

“ठीक है भाभी जी, मैं कसम खाता हूँ”।

“तो सुनिए। मुझे मालूम है रवि को पिंकी से प्रेम है, बहुत प्रेम है। रवि के पिंकी से प्रेम के कारण मेरे जीवन में सामान्य से अधिक प्रेम है। मुझे पिंकी से जलन नहीं है, वरन प्रेम ही है। मुझे अच्छा लगता है जब वे पंछियों जैसे चहचहाते हैं, बातें करते हैं, चैट करते हैं। आपको भी चाहिए पिंकी से अधिक प्रेम करें जैसे मैं रवि से करती हूँ। आपकी सभी शंकाओं का समाधान हो जाएगा”।

“शायद आप सही कह रही हैं, अब मुझे लग रहा है मैंने पिंकी को उतना मान, प्रेम नहीं दिया जिसकी वह अधिकारिणी है। शायद वही उसे रवि से मिलता है तो वह प्रसन्न हो उठती है”।

“बेशक, यह बात हो सकती है। इसके अलावा उनकी प्रवृत्तियों में भी मैंने असाधारण समानता देखी है, जो उन्हें एक करती है। यह ईश्वर के वरदान जैसा है, तो हमें इसमें भागी बनना चाहिए ताकि उनके मन से आनंद की वर्षा हो तो हम सभी उसमें भीग जाएं”।

“रवि सचमुच बहुत भाग्यशाली है, भाभी जी, जिसे आप जैसी समझदार और विवेकशील पत्नी मिली, और पिंकी जैसी स्त्री का प्रेम भी, जबकि मैं उसके पास होते हुए भी संतृप्त न हो सका,” कहते हुए विजय की आंखों में अश्रु आ गये।

—Dr📗Ashokalra

Meerut