फूल बना हथियार - 11 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फूल बना हथियार - 11

अध्याय 11

"मैडम"

"क्या बात है नकुल... तुम्हारे पास से कोई फोन नहीं आया। तुम उस ट्रस्ट में गये कि नहीं ?"

"ग..ग.. गया मैडम"

"क्या हुआ.... यामिनी वहां है ?"

"मैडम...आपके कहे अनुसार ही ट्रस्ट ठीक नहीं है। यामिनी ट्रस्ट के अंदर किसी विपत्ति में फंसी है ?"

"कैसे कह रहे हो नकुल.....?"

नकुल आसपास देखकर कुछ मिनटों में सेलफोन से सब बातों को कह दिया। दूसरी तरफ मंगई अर्शी गुस्से से उबल पड़ी।

"वह परशुराम ठीक नहीं है मुझे पहले ही पता था। उसे छोड़ना नहीं। उसी ने यामिनी को कुछ किया होगा।"

"मैडम! अभी मैं ट्रस्ट के पीछे की तरफ से दीवार को फांद कर अंदर जाने वाला हूं।"

"नहीं नकुल..."

"क्यों मैडम...?"

"इस विषय में हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। शांति से सोच कर ही परशुराम की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए...."

"इस विषय को पुलिस में ले जाने की सोच रहे हो क्या ?"

"हां....! पुलिस कमिश्नर रामामृथम अपने अपनापन संस्था के बहुत प्रेमी है। वे जब डिप्टी कमिश्नर थे तभी अपने शरीर को दान दे दिया था। उनके पास जाकर इस बात को कहेंगे। वे यामिनी को छुड़ाने के लिए पुलिस की तरफ से कोई होशियारी भरा कदम उठाएंगे।"

"मैडम! लेट करने से एक-एक मिनिट यामिनी के लिए विपत्ति का कारण हो सकता है।"

"उसके लिए बिना सोचे भावना में बहकर ऐसा कदम उठाकर दीवार फांद कर अंदर जाना ठीक नहीं ऐसा मत करो। वह तुम्हारे लिए भी विपत्ति का कारण बनेगा। इस तरह के विषयों को कैसे हैंडल करना चाहिए पुलिस कमिश्नर को अच्छी तरह मालूम है। तुम वहां से तुरंत रवाना होकर पुलिस कमिश्नर के ऑफिस में आ जाओ। मैं वहां तुम्हारा वेट करूंगी।"

"मैडम...."

"बात मत कर... रवाना हो !"

पुलिस कमिश्नर का ऑफिस।

कमिश्नर रामामृथम अपने सामने परेशान चेहरे लिए बैठे नकुल और मंगई अर्शी को एक दीर्घ श्वास लेकर देखा। फिर मेज पर जो पेपर वेट रखा था उसे घुमाते हुए बोलना शुरू किया।

"मैं आज दोपहर को 3:00 बजे के करीब इदम् ट्रस्ट में जाकर परशुराम से पूछताछ करके आया। वह एक बड़ा फ्रॉड आदमी, नियम विरोधी काम करने वाला आदमी हैं हमारे डिपार्टमेंट को अच्छी तरह पता है। वह चेयरमैन है पर चैरिटेबल ट्रस्ट को कानून के विरुद्ध मन के मुताबिक चलाता है। उसका केस कोर्ट में है।"

"उस कोर्ट के आदेश के अनुसार स्टे आर्डर है। वे अक्सर विदेश जाते रहते हैं। उसका कारण पूछो तो मुझे भूलने की बीमारी है जिसका ट्रीटमेंट विदेश के डॉक्टर ही कर सकते हैं ऐसी बातें करते हैं।"

"उस ट्रस्ट पर छापा डालने के लिए दो बार सर्च वारंट के लिए कोर्ट में जाने पर भी परशुराम स्टे ऑर्डर लेकर आ ही जाते हैं जिससे कुछ नहीं कर पाते।

आंसू भरे आंखों से नकुल ने कमिश्नर को देखा।

"सर! परशुराम के ट्रस्ट चलाते हैं... नहीं चलाते हैं उसकी मुझे कोई फिक्र नहीं है। अभी मेरी यामिनी उनके पास फंस गई है..... उसे छुड़ाना है।"

"यामिनी को छुड़ाना है तो एक बड़ा कदम ही उठाना पड़ेगा।"

"एक बड़ा कदम.... बोले तो सर ?"

"एक पुलिस का बड़ा फोर्स ले जाकर जीप के साथ रवाना होकर ट्रस्ट के अंदर घुस कर बिजली के वेग से कार्यवाही होगी। परंतु उसमें एक खतरा है मिस्टर नकुल।"

"कैसा खतरा सर ?"

"यामिनी की हत्या हो सकती है।"

"स...स... सर....!"

"यह एक केस वर्क है.... रिस्क है यह कह रहा हूं.... दूसरा उसे छुड़ाना भी संभव है.... हमेशा ही इस तरह की कोई कार्यवाही करें तो उसकी सक्सेस रेट 50% ही होती है।"

"नकुल और मंगई अर्शी एक दूसरे को देखकर अपनी घबराहट को दर्शाते हैं। कमिश्नर रामामृथम आगे बोलने लगे।

"अब बोलिए नकुल..... यामिनी को छुड़ाने के लिए एक बड़े कदम की कार्यवाही करें.... या नहीं?"

नकुल, मंगई अर्शी की तरफ मुड़ा।

"मैडम! आप क्या कह रही हो?"

"इसमें सोचने की कोई बात नहीं है नकुल । यामिनी ट्रस्ट के अंदर गई यह पक्का है। इसके बाद अचानक कार्यवाही जरूरी है। फार्मल एंक्वायरी सब परशुराम के सामने नहीं चलेगी।"

नकुल कमिश्नर को देखकर डरता हुआ सिर हिलाया।

"अचानक कार्यवाही शुरू कर देते हैं सर!"

"देन... नो प्रॉब्लम" बोलकर कमिश्नर अपने मेज पर रखे हुए इंटरकॉम से बात की।

बात करने के बाद कमिश्नर रामामृथम रिसीवर को नीचे रखकर मिनरल वाटर की बोतल उठाकर अपने गले को तर कर उसे नीचे रखा। उसके बीच में ही चार लोग पुलिस यूनिफॉर्म में 6 फीट लंबे कमिश्नर के कमरे में घुसे।

एक सीधी लाइन में चारों खड़े होकर सेल्यूट किया। कमिश्नर उनकी तरफ मुड़े।

इदम् चैरिटेबल ट्रस्ट में अचानक रेड ड़ालनी है। वहां पर कैद की हुई यामिनी नाम की लड़की को जिंदा छुड़ाना है। किसी को भी किसी तरह की प्राणों की क्षति नहीं होना चाहिए। गोली मारने की जरूरत पड़ जाए तो घुटने के नीचे मारना। यह मिस्टर नकुल हैं। उस लड़की से शादी करने वाले हैं.... सो ऑपरेशन सक्सेस पूर्ण रूप से होना जरूरी है।"

"यस... सर"

कमिश्नर की निगाहें अब नकुल की तरफ मुड़ी।

"मिस्टर नकुल!"

"सर"

"यह एक फोरमैन कमांडो है। इसमें जो चार लोग हैं उनका नाम वड़ीवेल, वेंकटेश, वशीकर, और वेत्रीसेल्वम। इन चार जनों का नाम ‘वी’ से शुरू होने के कारण इस ऑपरेशन का नाम ‘फोर वी’ है।"

"यह चारों लोग कमांडो एंबेसडर कार में इदम चैरिटेबल ट्रस्ट के लिए रवाना होंगे। इनके साथ आप भी जाओगे। ट्रस्ट के बाहर कार को खड़ी करके इनमें से तीन जने अचानक ट्रस्ट में घुसकर बिल्डिंग में घुसते समय आप और दूसरे कमांडर को देखना पड़ेगा कोई बिल्डिंग से बाहर तो नहीं आ रहा है। कोई विपत्ति हो तो तुरंत कंट्रोल रूम को सूचना देने का कर्तव्य आपका है। इनके साथ आपको जाने की इच्छा ना होने से मैं आपको मजबूर नहीं करूंगा! इसमें रिस्क भी है…."

वह सफेद रंग की एम्बेसडर कार 'इदम् चैरिटेबल ट्रस्ट' के थोडी आगे खड़ी होकर इंजन की आवाज को बंद करते समय ठीक 10:00 बजे थे। बाहर सड़क पर आने जाने वालों की भीड़ कम हो गई थी लोगों ने दुकानों को बंद कर शटर लगा दिया था। अब रोड की दुकानें अंधेरे में डूबी थी।

फोर वी स्क्वाड के आदमी और ड्राइवर के साथ होने पर भी साथ बैठे नकुल, पसीने से भीगे शरीर में उसकी परेशानी साफ नजर आ रही थी। कार के पीछे की तरफ वड़ीवेल, वेंकटेश, वेत्रीसेल्वम तीनों पिचके हुए मुश्किल से बैठे हुए थे। कार में जो निशब्द शांति को वेंकटेश ने तोड़ा।

"वशीकर!"

"सर..."

"मैं, वड़ीवेल और वेत्रीसेल्वम तीनों लोग ट्रस्ट के अंदर जा रहे हैं। तुम और नकुल कार में ही रहो। हम अचानक रेड डालते समय कोई बच कर जाने की सोच में भागने लग सकता है। ऐसे कोई आए तो उन्हें पकड़ना तुम्हारा दोनों का काम है।"

"यस... सर.." वशीकर बोले।

तीनो लोग उतर कर आधे अंधेरे के प्लेटफार्म पर चलने लगे। ग्रे कलर का यूनिफार्म उनके शरीर में बिल्कुल सही और आकर्षित करने वाला लग रहा था। वेंकटेश चलते हुए बात करने लगा।

"सेल्वम?"

"सर..."

"रिवाल्वर को अलर्ट रखो... आप कुछ इमोशनल टाइप के हो। जरूरत पड़े तो ही रिवाल्वर आपके हाथ में होना चाहिए।

"यस सर..."

"वड़ीवेल!"

"सर..."

"आपको भी यही इंस्ट्रक्शंस हैं.... हमारा उद्देश्य परशुराम नहीं है। यामिनी। उस लड़की को जिंदा छुड़ाना ही हमारा उद्देश्य है। हम कमांडो ट्रेनिंग में रहते समय एक बात हमें बताया है। 'बिना छोड़े थपथपाते रहो... दरवाजा खोलने तक नहीं, काम पूरा होने तक.....! याद है....?"

"है सर...."

"वही अब करने वाले हैं... परशुराम एक बड़ा कानून विरोधी काम करता है। उसमें एक विदेशी का भी हिस्सा है। वह क्या है उसको पता लगाने कमिश्नर साहब कितनी बार कोशिश कर चुके पर नहीं हुआ.... आज वह कानून विरोधी काम क्या है हम मालूम करने वाले हैं। यामिनी के इस ट्रस्ट से बाहर आते ही परशुराम की सच्चाई भी बाहर आ जाएगी। इस समय ही अपना ऑपरेशन रेड शुरू होता है।"

तीनों कंपाउंड गेट के पास जाकर एक तरफ जो विकेट गेट को खटखटाया तो सिक्योरिटी नरसिम्मन दरवाजे को धीरे से खोलकर झांका। लोहे के खंबे जैसे खड़े तीनों को देख उसका चेहरा बदला। वेंकटेश उसके कंधे को दबाते हुए उससे पूछा।

"परशुराम अंदर है क्या?"

"नहीं... आप कौन...?"

नरसिम्मन के होंठों की तरफ एक जोरदार चांटा पड़ा तो उसका मुंह नमकीन हो गया। वेंकटेश की आवाज ऊंची हुई।

"परशुराम है... कि नहीं?"

तुरंत नरसिम्मन के बुद्धि में बात आई। 'यह पुलिस....! और लोगों जैसे इन्हें भगा नहीं सकते।"

"जो पूछा... कान में सुनाई नहीं दिया?"

"सर... स स... सर परशुराम साहब अभी बाहर गए हैं। अब वह कल सुबह ही आएंगे।" उसने बोलकर खत्म भी नहीं किया बाएं गाल पर एक जोरदार चांटा पड़ा, नरसिम्हन घबराकर वैसे ही घुटने के बल पर बैठ गया। दोनों हाथों को जोड़कर विनती करने लगा, मुझे मत मारो सर... साहब अंदर ही हैं।"

"और कौन-कौन अंदर है....?"

"और कोई नहीं है सर।"

वेट्री बोले "सेल्वम और वेंकटेश"

"सर! इतनी बड़ी बिल्डिंग में परशुराम कहां है हमें मालूम नहीं। परंतु इसको पता है। इसको भी लेकर अंदर ले जाते हैं। परशुराम को अचानक ही दबा लेंगे..."

नरसिम्मन को धक्का देते हुए चल रहे थे। पेड़ों की छाया वाली जगह बहुत अंधेरा होने से कोई जंगल में जा रहे हैं ऐसा लगा। कुछ दूरी पर एक ट्यूबलाइट की रोशनी आ रही थी वह बिल्डिंग के सामने की तरफ है पता लगा।

"तुम्हारा नाम क्या है |"

"न..न... नरसिम्मन सर"

"कितने सालों से यहां नौकरी करता है?"

"दो साल से"

"आज दोपहर को 3:00 बजे के करीब पिंक रंग के स्कूटी पर एक लड़की यहां आई थी?"

नरसिम्मन के अंदर के पेट में डर से कुछ-कुछ होने लगा। 'वह पुलिस में चला गया!'

"ऐसा कोई नहीं आया सर....'

"झूठ मत बोल...! उस लड़की का नाम यामिनी है। उसे इस ट्रस्ट के बिल्डिंग के अंदर आते किसी ने देखा है...."

"सर.. अभी यह ट्रस्ट नहीं चल रहा है। मैं नाम के लिए ही सिक्योरिटी हूं। कौन अंदर आ रहा है कौन बाहर जा रहा है मैं इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देता।"

"तू झूठ बोल रहा है..... सच बोल रहा है थोड़ी देर में पता चल जाएगा" कहते नरसिम्हन को धक्का देते हुए बिल्डिंग के सामने आकर खड़े हुए।

"तुम्हारे सहाब अब कहां होंगे?"

"पहली मंजिल पर सो रहे होंगे सर..."

"बिल्डिंग के आधे अंधेरे में सीढ़ियां पर चढ़े। एक मिनट की देर में ही ऊपर का बरामदा लंबा आ गया। बरामदे में पहला कमरा। दरवाजा बंद था। वेंकटेश ने नरसिम्मन को आंखें दिखाई।

"हुमा.…खटखटाओ....!

नरसिम्मन पसीने से तरबतर हो दरवाजे को खटखटाया। दो बार खटखटाने के बाद परशुराम जी की आवाज सुनाई दी।

"कौन....?"

"साहब... मैं हूं"

"क्यों रे! इस समय आकर दरवाजा खटखटा रहा है? कोई भी बात हो तो मुझे फोन ही करना चाहिए ना?"

"साहब....! पुलिस आई है। आपसे मिलने..."

अंदर कुछ क्षण मौन। फिर चलने की आवाज आई। फिर दरवाजे को खोलने की आवाज, ‌दरवाजा खुला। परशुराम पैजामा जैसे कोई ड्रेस में ढीलें-ढालें वेश में नजर आए। आंखों में थोडी नींद की खुमारी थी। बाएं हाथ से जम्हाई को रोकते हुए वेंकटेश को देखा।

"दोपहर के समय कमीशनर आ कर गए थे। इस रात के समय आप आए हैं। क्या बात है?"

वेंकटेश ने अपने हाथ में जो कागज था उसे दिया।

"सर्च वारंट!"

परशुराम ऊंची करके सर्च वारंट देखा...?"

"हां"

"किसलिए..…?"

"आज दोपहर को 3:00 बजे के करीब यामिनी एक पत्रिका की रिपोर्टर लड़की आपसे मिलने आई थी। उसके बाद उस लड़की का कोई भी पता नहीं इसलिए...."

परशुराम के चेहरा गुस्से से लाल हुआ।

"उसके लिए.... इस ट्रस्ट बिल्डिंग के अंदर होगी सोचकर सर्च वारंट के साथ आए हो क्या?"

"यस..."

"शौक से जाकर ढूंढो। इस बिल्डिंग के पीछे एक आउटहाउस है वहां दो काम करने वाले रहते हैं। एक का नाम यादव। वह खाना बनाने वाला है। दूसरे का नाम मनोज है। वह मेरे जरूरतों का ध्यान रखने वाला आदमी है। इन दोनों आदमियों के अलावा यहां कोई और आदमी नहीं रहता!"

"अंदर कौन है.... कौन नहीं है इसके बारे में विवरण अभी कुछ समय बाद ही मालूम होगा" ऐसे बोल वेंकटेश, वड़ीवेल और सेल्वम को देखा।

"तुम दोनों में से एक मेरे साथ चलो और एक को इनके पास रहना है। ये इस कमरे से बाहर नहीं जाएंगे। दोनों में से कौन रह रहा है?"

"मैं रहूंगा सर" सेल्वम ने कहा।

"ओ.के....! बी केयरफुल सेल्वम! परशुराम के मोबाइल को लेकर रख लो.... आपका रिवाल्वर अलर्ट होना चाहिए। ये आप पर अटैक करने की कोशिश करें या बचने की कोशिश करें तो बिना संकोच के घुटने के नीचे शूट कर देना।"

"यस... यस सर..." कहकर सेल्वम परशुराम के सामने हाथ फैलाया तो गुस्से से उन्होंने मोबाइल को फेंकने जैसे दिया। वे दोनों ऊंचा करके पकड़े हुए रिवाल्वर के साथ सिक्योरिटी नरसिम्मन को धक्का देकर चल रहे थे।

"इस बंगले के अंदर के एक-एक अंगुल जगह को हमें दिखाना तुम्हारा काम है... हां चल!"

सेल्वम के हाथ में जो रिवाल्वर था उसे देखता रहा वे पलंग पर बिना हिले एक मूर्ति जैसे बैठे थे।

कमरे में शांति थी।

पूरे दो मिनट होने के बाद परशुराम पलंग से उतरे।