फूल बना हथियार - 8 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फूल बना हथियार - 8

अध्याय 8

"मैं परशुराम। उनका दोस्त, डॉक्टर से मुझे बात करनी है। आप उनकी पत्नी हैं ?"

"हां... जी वे अभी कार ड्राइव कर रहे हैं। कोई जरूरी बात है क्या ?"

"हां...!"

"एक मिनट!"

परशुराम कान पर मोबाइल को लगाकर इंतजार कर रहे थे, अगले कुछ क्षणों में डॉक्टर उत्तम रामन की आवाज सुनाई दी।

"कहिए परशुराम..... क्यों इस समय फोन...?"

"बिना कारण के फोन करूंगा क्या ?"

"बात को बताइए !"

"फूल बना हथियार"

"अरे.... कब....?"

"थोड़ी देर पहले ही....?"

"कैसे...?"

"आप कार को चला रहे हो। आपकी पत्नी आपके पास बैठी हैं। फूल से बने हथियार के बारे में बता सकते हैं क्या....?"

"ठीक.... रात को 8:00 बजे आऊंगा।"

"इतनी देर लगेगी क्या ?"।

"धर्मनी में एक अपार्टमेंट का कंस्ट्रक्शन हो रहा है... उसी को देखने मैं और मेरी पत्नी जहां रहे हैं। मैं रात 8:00 बजे के करीब आ जाऊंगा..."

"बिना लेट किए आ जाइएगा डॉक्टर..."

"श्योर....श्योर....!"

परशुराम बात को खत्म करके मोबाइल को बंद कर रहे थे उसी समय यादव आकर उनके सामने खड़ा हुआ। वह बीच की उम्र का था । तोंद और गंजा सर होने से हष्ट पुष्ट बड़ी उम्र का लग रहा था।

"साहब....!

"वैन तैयार है ?"

"है साहब..."

"थोड़ी देर पहले यहां क्या हुआ तुम्हें मालूम है यादव ?"

"मालूम है साहब.... मनोज ने बोला।"

"क्या बोलो ?"

"पुलिस कमिश्नर आ कर गए।"

"उसके पहले....?"

"कोई लड़की आई थी, मर गए हरिता को अपने आदमी वैन में डालकर ले जा रहे थे तो उस लड़की ने देख लिया ऐसे बताया।"

"अभी उस लड़की को बेहोश करके अपने कस्टडी में लेकर आ गए। अब वह जिंदा बाहर नहीं जा सकती। वह भी बोला क्या ?"

"बोला साहब !"

"यह देखो यादव...! अब से हरिता के विषय में जो गलती हुई वह दूसरी लड़कियों के साथ नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा हो तो मैं चुप नहीं रहूंगा.... यह कोई उपचार गृह नहीं है। यह एक वैज्ञानिक विधि से एक वैज्ञानिक सच को हम पूरा मालूम करने के लिए डॉक्टर की सहायता से प्रयत्न कर रहे हैं।"

"वह मुझे मालूम है साहब...."

"तुम्हारे अकेले को मालूम होने से क्या फायदा...? औषधि के शोध में उपयोग में आने वाली हरिता कल रात अपने आदमियों में से एक ने शराब के नशे में उसके साथ जबरदस्ती की। वह मर गई... ऐसे गलत प्रयत्न करने वाला कौन हैं तुम्हें पता है यादव....?"

"नहीं पता...! मैंने भी सबसे पूछ कर देखा..... किसी ने भी हरिता से गलत ढंग से पेश आने का प्रयत्न नहीं किया ऐसा बोला।"

"मालूम है साहब....! मैंने भी सबसे पूछ कर देख लिया... कोई भी हरिता से किसी भी गलत ढंग से पेश होने का प्रयत्न नहीं किया।"

"ठीक ! अब तुम्हें कष्ट करने की जरूरत नहीं है.... हरिता के मरने का कारण को मैंने मालूम कर लिया...."

यादव के चेहरे पर हल्का सा अंधकार फैला।

"साहब ! वह कौन हैं मैं जान सकता हूं?"

"उसे बताने ही तो तुमको मैंने बुलाया है ! उस पलंग के नीचे थोड़ा झुक कर देखो..."

यादव हिचकते हुए झुक कर देखा। पैरों और हाथों को फैलाकर खून के भरे पैंट और शर्ट के साथ एक आकृति दिखाई दी।

"साहब!... वह... वह.. कौन..."

"बाहर निकाल कर देखो....!" परशुराम सोफे के पीछे सर लगा कर बोले। यादव डरते हुए जम से गया निगाहों से पलंग के नीचे घुटनों के बल बैठा। उस आकृति के कंधों को अपनी पूरी ताकत के साथ पकड़कर खींचा।

जमे हुए आंखों से आकृति बाहर आई। यादव हड़बड़ा गया और परशुराम को देखा।

"साहब.... ये....ये... आपके बड़े-भाई का लड़का कैलाश....?"

"वही है....! कल रात को मुझे देखने यहां आया। आते समय ही नशे में था। मुझे देखते ही रोने लगा। 'चाचा जी! मेरे और मेरे अप्पा के संपत्ति बंटवारे के बारें में कुछ समस्या है। उनसे लड़ाई करके मैं घर से बाहर आ गया। एक-दो दिन के लिए अप्पा के निगाहों में पड़े बिना यहां रहूंगा। वे मुझे देखे बिना एक दिन भी नहीं रह सकते। दो दिन बिना देखे रहे तो अपने आप रास्ते पर आ जाएंगे।' ऐसा बोला।"

"उसके बोलने में न्याय की बात है समझ कर मेरे कमरे के पास वाले कमरे में ठहरने को बोला। रात में मुझे ठीक से नींद नहीं आती है... कुछ आवाज सुनकर कमरे से बाहर आकर देखा। कैलाश एक चोर बिल्ली जैसे इधर-उधर देखता हुआ निरीक्षण करने की कोशिश कर रहा था‌। मैंने भी उसको फॉलो किया। नीले कमरे में आधी बेहोश पड़ी हरिता को मूर्खता पूर्वक उससे बलात्कार करने का प्रयत्न कर रहा था ‌। मैंने उसे रोकने की कोशिश की। पर मुझसे नहीं हुआ। फिर कोई दूसरा उपाय ना होने के कारण मुझे कैलाश के ऊपर साइलेंसर पिस्तौल चलाना ही पड़ा.... इसके मरने के थोड़े समय बाद की हरिता भी मर गई।'

"सा... सा... साहब!"

"क्यों ऐसा देख रहे हो यादव.…? हम जो कर रहे हैं वह गलत काम है। उस गलत काम को ठीक से करते समय तक हमें कोई समस्या नहीं होगी.... यह किस तरह का बिजनेस है तुम्हें पता है ‌। करोड़ों के हिसाब से मिलने वाला बिजनेस है। इसके रुकावट में कोई भी हो तो ठीक, बीच में कोई भी आए तो ठीक, मेरे साइलेंसर पिस्तौल के गोली को लेना ही पड़ेगा। उसे प्राणों को छोड़ना ही पड़ेगा।"

"यह देखो यादव..... कैलाश के यहां आने वाली बात और उसकी मृत्यु की बात सिर्फ तुमको, मुझको और मनोज को ही पता है। हरिता की बॉडी को डिस्पोज करते समय इसकी भी बॉडी को डिस्पोज़ कर दो। यह बात किसी भी हालत में मेरे बड़े भैया को नहीं मालूम होना चाहिए।"

"साहब ! अभी तक हरिता के साथ, सात बॉडी को डिस्पोज किया है। समस्या ने अपनी तरफ झांक कर भी नहीं देखा है। इस डिस्पोजल में भी ऐसा ही होगा। आप अपने मुख्य बिजनेस पर ध्यान दीजिएगा.... मैं इस छोटे-मोटे चिल्लर विषयों को देख लूंगा।"

परशुराम हंसे। तुम भी ठीक, तुम्हारा मैनेजर भी ठीक दोनों मेरे लिए दो पहाड़ जैसे हो। तुम दोनों के होते हुए मुझे किस बात की फिक्र है....?"

"साहब !"

"क्या बात है बोलो....?"

"एक नई लड़की आई है ऐसा मनोज ने बोला। साहब वह लड़की कौन है ?"

"उसका नाम यामिनी.... पत्रकार लड़की" उनके कहते समय ही उनके मोबाइल की घंटी बजी। उन्होंने कान पर लगाया।

"कौन...?"

"अंकल....! मैं अक्षय बोल रहा हूं...."

"क्या है अक्षय....?"

"मां की तबीयत बहुत ही खराब है अंकल .... अचानक बीपी बहुत बढ़ जाने से अनकॉन्शियस की स्थिति में चली गई। दिमाग के खून की नली फट गई होगी ऐसा डॉक्टर कह रहे हैं। अप्पा भी शहर में नहीं है.... मुझे क्या करना चाहिए कुछ समझ में नहीं आ रहा। आप तुरंत रवाना होकर डॉक्टर उमैयाल के हॉस्पिटल में आ सकते हैं.....?"

"डरो मत अक्षय ! अम्मा को कुछ नहीं होगा। मैं तुरंत रवाना होकर हॉस्पिटल आता हूं। तुम धैर्य से रहो...."

परशुराम मोबाइल को बंद करके उसे हथेली पर रखकर सामने खड़े यादव से बोले।

"यादव...!"

"हां सहाब....!"

"मैं अभी जरूरी काम से रवाना हो रहा हूं। मुझे आने में शाम के 6:00 बज जाएंगे। तुम और मनोज को होशियारी से रहकर सब कुछ देखना पड़ेगा ।"

"हम सब देख लेंगे साहब..... यह सब आपको कहना है क्या...?"

"आज मेरे ऐसे बोलने का कारण है यादव। आज हमारा दिन सही नहीं है। सब कुछ ही गलत हो रहा है। अब कोई गलती नहीं होनी चाहिए।"

"साहब ! इसके पहले भी इस तरह की गलतियां हुई है...... उन सबको हम लोगों ने साफ करके शुद्ध किया है।"

"फिर भी आज हम सब के अंदर एक पत्रकार प्रवेश कर गई है। वह मुझसे मिलने आई थी यह किस-किस को और पता है मालूम नहीं... उसको कोई ढूंढने यहां आ सकता है... ‌ बाहर से ढूंढने आए लोगों का बिना घबराहट के उनका सामना करना पड़ेगा । उनको संदेह ही ना हो ऐसे बात करके वापस भेजना है।"

"इन सब को मैं और मनोज देख लेंगे साहब।"

"फिर.... हरिता, मेरे भाई के लड़के कैलाश को जैसे साफ किया वैसे ही उसे भी कर दो। पुलिस की गंध हमारे रहने के स्थान पर नहीं आना चाहिए। यामिनी को होश आने से पहले दोबारा एक इंजेक्शन लगा देना। उसको भी पड़पई में पन्नैय के घर में सुबह होने के पहले ले जाना पड़ेगा।"

यादव सिर हिलाता, परशुराम बाहर पोर्टिको में खड़ी उस सफेद रंग की एम्बेसडर कार में आकर ड्राइविंग सीट पर बैठकर चल दिए। कार तेजी से चल रही थी। इतनी तेज चल रही थी कि अगले थोड़ी देर में गिंडी की सड़क पर ट्रैफिक के साथ चलने लगी कि एक घंटा यात्रा करने पर डॉक्टर उमैयाल हॉस्पिटल के कंपाउंड में जाकर एक पेड़ की छांव में गाड़ी को खड़ी करके परशुराम बाहर आए। कांच के दीवार से बने रिसेप्शन में बैठा अक्षय, परशुराम जी को देखते ही घबराहट के साथ उन्हें रिसीव किया।

"आइए अंकल !"

"अम्मा कैसी है अक्षय....?"

"अभी तक उनकी बेहोशी खत्म नहीं हुई। वे अनकॉन्शियस ही हैं" दोनों बात करते हुए अंदर गए।

"डॉ उमैयाल क्या कह रही हैं ?"

"मस्तिष्क के किसी नस के फटने से ऐसा होने की संभावना है ऐसा कह रही हैं। बट स्कैन रिपोर्ट अभी तक नहीं आया।"

"डॉक्टर रूम में है क्या ? आओ... बात करते हैं...! तुम डरो मत.... अम्मा को कुछ नहीं होगा .... आजकल के वैज्ञानिकों को ब्लड प्रेशर और शुगर खांसी-जुकाम की तरह ही है। आज रात तक अम्मा नॉर्मल हो जाएगी...."

"सॉरी अंकल !"

"किसके लिए सॉरी ?"

"अप्पा के शहर में ना होने के कारण आपको फोन करना पड़ा। अप्पा इस समय फ्लाइट से दिल्ली जा रहे होंगे।"

"यह देखो अक्षय, मैं और तुम्हारे अप्पा दोनों व्यवसाय में पार्टनर ही नहीं। आपस में प्रेम और अपनत्व का आदान-प्रदान कर पारिवारिक मित्रता भी हमारी कई सालों से है। तुम्हें कोई भी समस्या हो तो तुम बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी समय मुझे कांटेक्ट कर सकते हो।"

"थैंक्यू अंकल...."

"और एक दूसरी भी बात है अक्षय !"

"बोलिए अंकल।"

"तुम्हारा शादी को टालते रहना ठीक नहीं। तुम जल्दी से शादी करके एक पोता या पोती अपने अम्मा के गोदी में रखो तो उनका ब्लड प्रेशर और दूसरी बीमारियां भी चली जाएगी। तुम्हारे अप्पा कोदन्डन का स्वास्थ्य भी पहले जैसे नहीं हैं। वह तुम्हें मालूम है?"

"मालूम है अंकल...."

"मालूम होने के बाद भी तुम देर क्यों कर रहे हो ? तुम्हें तो घर में पूरी स्वतंत्रता दी हुई है....! फिर क्यों? तुम अपनी पसंद की लड़की देखो। मुझे बताओ। शादी कर देंगे...." परशुराम के कहते समय अक्षय के सिर हिलाते हुए सुनते उसी समय ही डॉक्टर उमैयाल का कमरा आ गया।

दोनों ही कमरे के अंदर गए। मोबाइल पर वे किसी से बात कर रही थी ‌।

'परशुराम और अक्षय को देखकर डॉक्टर उमैयाल जल्दी-जल्दी से बात को खत्म कर एक छोटे से मुस्कान के साथ अपने सामने खाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

"प्लीज!"

"बैठिए"

"क्या है अक्षय...! मिस्टर परशुराम को फोन कर दिया है लगता है...!"

"डर लग रहा था आंटी.... अप्पा भी शहर में नहीं हैं। इसीलिए फोन करके बात को बताया। अंकल तुरंत रवाना होकर आ गए।...?"

परशुराम बीच में बोले।

"डॉक्टर ! आप क्या कह रहीं हैं....?"

"कहने के लिए क्या है...? रोहिनी की बी.पी. ठीक नहीं थी मैंने दवाई देकर कंट्रोल में रखा था। अक्षय एक बेकार की बात को रोहिणी को बता कर उसकी बीपी को बढ़ा दिया, जिससे उनकी मस्तिष्क की नस में खून का रिसाव होने से अभी वे इस स्टेट में है। कार्डियोलॉजिस्ट माथे को खुजाते हुए 'आई एम हेल्पलेस' बोल कर गए। रोहिणी आईसीयू में है । उसको देखने में ही बुरा लग रहा है। कब उनको होश आएगा मैं इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पा रही हूं।"

परशुराम की निगाहें अभी अक्षय पर टिकी। "अक्षय यह क्या है डॉक्टर ऐसी बोल रही हैं..... बिना जरूरत की बात को अम्मा को बताकर उन्हें टेंशन में डाल दिया.....?"

"उस बात को मैंने उनको नहीं बोला; अम्मा ने बुला कर मुझसे पूछा, मुझे बोलना पड़ा। मेरे घर से रवाना होते समय अम्मा सो रही थी। काम करने वाले मरियप्पन से बोल कर मैं रवाना हुआ।"

"अम्मा को टेंशन देने वाली वह कौनसी बात थी ?"

"वह कुछ नहीं अंकल" अक्षय उससे बचना चाहा पर उमैयाल ने पकड़ लिया।

"कुछ नहीं है....? इनसे मैं ही कह देती हूं। मिस्टर परशुराम ! आज सुबह इसने एक बेवकूफी का काम किया। इसको क्या है सुंदर नहीं है... रुपए नहीं है.... डिग्री नहीं है क्या.... स्टेटस नहीं है.... इसके पास सब कुछ है। एक पत्रिका की रिपोर्टर लड़की के पास यह घुटना टेककर मुझसे शादी करोगी पूछा। वह घमंडी लड़की 'चल जा रे हट तू और तेरे रुपए' कहकर कालिख हाथ में भरकर उसके मुंह पर पोत कर चली गई... ।"

परशुराम गीले हाथ से बिजली के तार को पकड़े जैसे सीधे होकर बैठे।

"व..वह.. लड़की पत्रिका की रिपोर्टर है?"

"हां…."

"नाम?"

"यामिनी ! नीलकमल पत्रिका में रिपोर्टर का काम करती है। देखने में भी बहुत सुंदर है। मेरा साक्षात्कार लेने जब आई अक्षय ने उसे देखकर शादी करने के इच्छा जाहिर की। अपनी प्रोफाइल के बारे में बोले तब वह लड़की शेरनी जैसे बदल कर अपने बातों से अक्षय का वध कर दिया। मैंने उस लड़की यामिनी से अक्षय के फैमिली बैकग्राउंड के बारे में कन्वींस करना चाहा। मुझे भी उसने सम्मान नहीं दिया।"

परशुराम अपने टोडी को खुजाते हुए सोच में पड़ गए।

"अक्षय जैसे एक लड़के से शादी करने में उसको क्या समस्या है ?"

"उसका जवाब दिया उसने ?"

"क्या बोली ?"

"यह मेरा पर्सनल मैटर है। उसे पिछले हफ्ते जान पहचान हुए आपसे या कुछ देर पहले आपने जिस का परिचय कराया उससे मुझे कहने की कोई जरूरत नहीं है बोल दिया!"

"बड़ी अहंकार वाली है घमंडी भी होगी ऐसा लगता है?" अक्षय का चेहरा गुस्से से बीटरूट जैसे लाल हो गया।

"वह घमंडी नहीं है अंकल ! बड़प्पन, घमंड, अहंकार, गुरुर, अभिमान और आत्मसम्मान ऐसे सब मिलकर एक सुंदर राक्षसी है वह यामिनी। मैंने उससे अपनी शादी के प्रपोजल को कहते समय अपने चेहरे को सामान्य रखते हुए एक सॉरी कहकर जा सकती थी। उसको छोड़ कर अपने गुरुर में मुझे ईट का जवाब पत्थर से देने जैसे बात कर तांडव करके चली गई।"

उमैयाल परशुराम को एक व्यंग्य मुस्कान देते हुए बोली "मिस्टर परशुराम वह यामिनी अक्षय को एक टिशू पेपर जैसे कुचलकर फेंककर चली गई तो भी इसको अभी भी उसके ऊपर एक सॉफ्ट कॉर्नर है।"

अक्षय आवेश के साथ बीच में बोला "नहीं आंटी.... वह सॉफ्ट कार्नर  एक घंटे पहले तक था। इस मिनट से वह मेरे लिए शत्रु है। अम्मा को कोमा की स्थिति में पहुंचाने वाली उसके लिए मेरे मन में अब कोई जगह नहीं है। वह कैसे दूसरे से शादी कर लेती है मैं देख लूंगा। आज से आने वाले सभी दिन उसके लिए खराब दिन ही होंगे। एक क्षण भी उसे मैं शांति से नहीं रहने दूंगा। इन सबसे ऊपर एक बात मैं और बोल देता हूं। मेरी मां को कुछ हो जाए तो वह यामिनी जिंदा नहीं रह सकती।" उसकी गले की नसें बुरी तरह फूलने लगी गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया ऐसा वह जोर-जोर से चिल्लाया। अपने सीधे हाथ की मुट्ठी से अक्षय ने जोर से मेज को मारा.....

इतने में ही उसका मोबाइल जो उसकी शर्ट की जेब में रखा था बजने लगा। चिड़चिड़ाते हुए उसे उठाकर कौन है देखा। डिस्प्ले में नकुल का नाम दिखाई दिया। अपने गुस्से को निगलकर मोबाइल को कानों पर लगाया।

"बोलो नकुल...!"

"अम्मा अभी कैसी है ? कोई समस्या तो नहीं है?"

"थोड़ी समस्या है।"

"क्या बोल रहा है रे ?"

"अम्मा अभी कोमा में हैं।"

"डॉक्टर क्या कह रहे हैं ?"

"नो पॉजिटिव रिप्लाई"

"फिक्र मत करो अक्षय ! अम्मा जल्दी ही अपने होश में आ जाएंगी। तुम्हारे जैसे अच्छे मन वाले के लिए सब कुछ अच्छा ही होगा। आज तुमने अपने कार में मुझे लिफ्ट दिया.... उसका अच्छा योग है मुझे एक अच्छी नौकरी मिल गई। मेरे स्किल के अनुसार का ही काम है....! ज्वाइन करने के लिए, कल के फ्लाइट से पुणे के लिए रवाना हो रहा हूं!"

"कांग्रेचुलेशन !"

"क्यों रे.... तू इतना डल क्यों है...? तुमको अम्मा के बारे में ही फिक्र नहीं है। और भी उसमें कुछ मिक्स हो गया ऐसा मुझे लग रहा है...!"

"ऐसा कुछ नहीं है।"

"नो... नो.. नो.. मैं नहीं मानता.... आज मैं तेरे कार में चढ़ते समय तू बड़ा ही विरक्त भाव में था... किसी लड़की से तुमने मैरिज प्रपोजल रखा तो उसने तुमसे शादी नहीं करूंगी ऐसे बोल दिया था तुमने मुझे बताया था कि नहीं...?"

"हां...!"

"कौन है रे घमंडी ? उसके मोबाइल नंबर को मुझे एस.एम.एस. करो। मैं उसे देख लूंगा!"