Phool bana Hathiyar - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

फूल बना हथियार - 7

अध्याय 7

"पुलिस कमिश्नर अंदर आ रहे हैं....!" जल्दी से सेलफोन को बंद कर परशुराम कमरे की तरफ देखकर आवाज दी ।

"मनोज"

दूसरे ही क्षण बनियान और लुंगी में लंबा हट्टा-कट्टा नवयुवक युवक बाहर आया। उसके छाती की चौड़ाई भ्रम पैदा कर रही थी। कंधों पर तेल लगाए जैसे चमक रहा था।

"साहब!"

"इसे पैक करो। आवाज नहीं आनी चाहिए। कमिश्नर अंदर आ रहे हैं ऐसी सूचना है।"

परशुराम के बोलते समय ही दौड़ने का प्रयत्न कर रही यामिनी के ऊपर मनोज ने चीता जैसे झपट्टा मारा। उसके 90 किलो वजन का शरीर यामिनी से टकराते ही वह एकदम अपना होश खो बैठी। चिल्लाने का प्रयत्न करने वाले मुंह को उसके चौड़े सीधे हाथ के अंगुलियों ने बंद किया हुआ था। बाएं हाथ से यामिनी के शरीर को एक फूल के बुके जैसे आराम से उठाकर एक क्षण से भी कम समय में बिजली जैसे गायब हो गया।

उसी समय-बाहर की चौखट के सामने ही अमलतास के पेड़ के नीचे एक पुलिस की जीप धीरे से आकर खड़ी हुई।

50 वर्ष के करीब के कमिश्नर रामामृथम, बिना यूनिफार्म के सफेद शर्ट-पेंट में थे। गंजे होने की वजह से उनका सिर धूप में चमक रहा था। हाथ में एक फाइल लिए हुए उतर कर आ रहे उन्हें परशुराम ने "नमस्कार कमिश्नर सर" कहा।

रामामृथम ना चाहते हुए भी नमस्कार के लिए हाथ हिलाकर स्वीकार करते हुए सीढ़ी चढ़ने लगे।

"आपसे दस मिनट बात करनी है!"

"एंक्वायरी बोलिए ना!"

"इंक्वायरी बोले तो आपको गुस्सा आ जाएगा। इसीलिए ऐसा नहीं बोला।"

दोनों आमने-सामने कुर्सियों पर बैठे। कुछ क्षण के लिए वहां बिना मतलब का एक मौन व्यापा। परशुराम ने उस मौन को तोड़ा।

"खूब गर्मी में आए हो... छाछ लेकर आने को बोलूं...?"

"मैं जहां इंक्वायरी... के लिए जाता हूं वहां कुछ भी नहीं खाता।"

"ओ... सॉरी...! आपने पहले की से कहा हुआ है! मैं ही भूल गया!"

"अब मत भूलना ।"

"कमिश्नर को अब भी मुझ पर नाराजगी है लग रहा है.... गुस्सा स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं कमिश्नर साहब...."

"यह न्याय वाला गुस्सा है। स्वास्थ्य को नुकसान नहीं करेगा।" चिड़चिड़ाहट के साथ कमिश्नर अपने हाथ में जो फाइल थी उसे खोला।

"परशुराम ! पिछले हफ्ते इंक्वायरी के लिए आया था तो मैंने आपसे पूछा 'आप कौन-कौन से देशों में होकर आए हो। उसके लिए आपने सिंगापुर, मलेशिया के अलावा और कोई देश में गया नहीं ऐसा बोला था....' याद है आपको?"

"अच्छी तरह याद है...."

"परंतु आप चाइना गए हैं..."

"अरे..... कब..."

"छ: महीने पहले अर्थात दिसंबर के 1छ: तारीख को दिल्ली से रवाना होकर बीजिंग गए थे गए थे.... उसका एविडेंस यह है फ्लाइट नंबर। आपने जिस एजेंट से टिकट बुक कराया था उसका समय, बीजिंग में आपके ठहरने का होटल, वहां जिन-जिन से आप मिले थे, कहां-कहां गए थे, इन सबके लिए... यह... देखिए फाइल....."

चेहरे पर बिना किसी परेशानी के परशुराम फाइल को पलट कर देखा फिर मौन होकर उसको फिर से कमिश्नर को दे दिया।

"अब क्या कह रहे हो परशुराम?"

"बीजिंग जाने की बात अभी ही याद आई.... सॉरी कमिश्नर सर! उस दिन मैं कहना भूल गया...."

"हां, आप उसे भूले नहीं.... मुझसे छुपाया...…"

"यदि आप ऐसा सोचो तो उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं। बीजिंग जाकर आने की बात मुझे सचमुच में याद नहीं था...."

"विश्वास करने लायक नहीं है?"

"एक मिनट!" कहकर परशुराम उसके हाथ में जो मोबाइल था उसको लगाया।

"मनोज! कोई काम कर रहा है क्या?"

"नहीं जी। आपने थोड़ी देर पहले जो काम दिया उसे भी खत्म कर दिया।"

"ठीक है....! मेरे मेज के ड्रायर में एक लंबा कंवर है उसे लेकर आओ...."

"ठीक है साहब!"

परशुराम सेलफोन को बंद कर रामामृथम की तरफ देखा।

"मैं बीजिंग गया था उसको कंफर्म करने के लिए ही आप इतनी तपती दोपहरी में आए हैं ...कमिश्नर सर?"

"पुलिस वालों के लिए धूप-बारिश सब एक ही है ठीक अब आप यह बताइए कि बीजिंग क्यों गए थे...?"

"वैसे ही ... घूमने फिरने....! चीन के उस बड़े दीवार को देखने की बहुत दिनों से इच्छा थी, जाकर आया!"

"परशुराम ! आप.... जो झूठ बोलते हैं बड़ा सुंदर होता है। परंतु इन झूठ की उम्र कम होती है।"

परशुराम हंसे।

"झूठ को सच और सच को झूठ की कल्पना करने वाला एक ही डिपार्टमेंट है वह आपका पुलिस डिपार्टमेंट है।

"आप हमेशा ही इस तरह चतुराई से बात करते नहीं रह सकते। यह जगह, चैरिटेबल ट्रस्ट कानून के अंदर ना रहकर अपनी इच्छा के अनुसार ही चलाते हैं ऐसी सच्चाई को कोर्ट ने मानकर कोर्ट ने ट्रस्ट को आगे न चलाने के लिए स्टे ऑर्डर दिया है इसे आप भूल मत जाइए परशुराम?"

"स्टे ही तो दिया है.... वह कोई फैसला नहीं है?" परशुराम कहकर हंस रहे थे उसी समय अंदर से मनोज दिखाई दिया। अपने हाथ में रखे हुए सफेद रंग के लिफाफे को दिया। तो उसे लेकर परशुराम, कमिश्नर को देने लगा।

"इस पर एक निगाह डालिए कमिश्नर सर।"

"यह क्या है....?"

"मेरा मेडिकल रिपोर्ट। आज सिटी में जो नंबर वन न्यूरोलॉजिस्ट सर्वेश्वरण है मैं उनके पास पिछले हफ्ते ही गया था। मुझे जो भूलने की बीमारी है उसके बारे में उन्हें बताया। उन्होंने मेरा पूरा चेकअप करके दिमाग का स्कैन करवा कर देखा। मुझे क्या समस्या है यह उन्होंने रिपोर्ट में लिख कर दिया है। रिपोर्ट को पढ़िए। क्या सच है आपके समझ में आ जाएगा।"

कमिश्नर रामामृथम कवर को लेकर उसे खोला। उसमें कंप्यूटर में लिखे हुए कागजात थे । उसको उलटफेर कर उन्होंने देखना शुरु किया। 'डेमिनेशिया' नामक भूलने की बीमारी से परशुराम प्रभावित हैं ऐसा रिपोर्ट के आखिर में पक्का लिखा था। कवर को रामामृथम ने उन्हें वापस किया।

"क्या हुआ कमिश्नर सर! रिपोर्ट को पढ़ा....? कुछ समझ में आया.....? समझ में नहीं आया तो बोलिए..... डॉक्टर को ही आपसे बात करने के लिए कहता हूं।"

"समझ में आ रहा है.... आपको डेमिनेशिया नाम की भूलने की बीमारी हुई है। डॉक्टर ने मेंशन किया है।"

"मैं छ: महीने पहले बीजिंग जाने की बात को आपसे क्यों नहीं कहा इसका कारण आपको पता चल गया होगा......"

रामामृथम उठकर खड़े हुए।

"इट्स ओ.के....! आज आपका दिन अच्छा है। मैं आता हूं..."

"कमिश्नर सर....! इंक्वारी के नाम से यहां पर आपको मुझे देखने आना यह पांचवीं बार है। हर एक बार आते समय मेरे बारे में एक अजीब समाचार लेकर आते हो। परंतु यहां आने के बाद वह समाचार पानी में भीगे हुए पटाखे जैसे हो जाता है..... अगली बार आते समय तो कोई ठीक-ठाक समाचार लेकर आइए…..." परशुराम हंसने लगे।

"अभी हंसने की जरूरत नहीं.... आखिर में जो हंसते हैं वही जीतते हैं...!" कहकर कमिश्नर गुस्से से तेज-तेज चलकर पेड़ की छाया में खड़े हुए जीप में जा कर बैठे।

जीप धुआं छोड़ती हुई कंपाउंड से बाहर जाने तक मौन रहे परशुराम ने सामने खड़े मनोज को ऊपर से नीचे देखा।

"उस पत्रिका वाली को क्या किया?"

"सहाब ! वह साधारण लड़की नहीं है। बचाव के तरीके सब उसने सीख रखा है। मेरा ही सामना करना चाहा। एक बार तो मुझे ऐसा लगा यह बच जाएगी मैं डर गया...."

"फिर....?"

"कोई दूसरा रास्ता नहीं था तो मैंने उसके मुंह पर 'पेपर स्प्रे' किया। चार घंटे अब आंखें नहीं खोलेगी!"

"उसे कहां लिटाया है?"

"सीढ़ियों के नीचे अंडर ग्राउंड रूम के अंदर" कहकर मनोज ने यामिनी के वैनिटी बैग को परशुराम को दिया‌।

"साहब ! इस बैग में सेलफोन, हजार के करीब रुपए और एक एटीएम कार्ड है...!"

"उस ए.टी.एम. कार्ड को जलाकर राख बना दो।

"ठीक है साहब....!"

"और एक बात है, कमिश्नर ने यहां पर अक्सर आना शुरू कर दिया। यहां होने वाले छाया कार्यों को तारमणि में पन्नैय वाले उस मकान में ले जाना पड़ेगा!"

"कब ले जाना है बोलिए साहब..... मैं इंतजाम कर दूंगा!" मनोज के कहते हीं उसी क्षण यामिनी के पर्स का मोबाइल बजने लगा। मोबाइल को उठाकर कौन बुला रहा है देखा। मंगई अर्शी का नाम डिस्प्ले हो रहा था।

मोबाइल में रिंगटोन के लगातार आते, परशुराम के माथे पर पसीने की बूंदे और घबराहट में उसे देखते ही रहे। उनका दिमाग तेजी से सोच रहा था। फोन उठाएं..... नहीं उठाएं...?

बीस सेकंड तक बजने के बाद मोबाइल का मुंह बंद हुआ तो परशुराम ने मनोज की और देखा।

"मनोज !

“हाँ साहब... !”

"उस फोन को निकालकर उस नंबर पर मैसेज करो जिस नंबर से फोन      वआया हैं!"

मनोज ने सिर हिलाया और यामिनी के मोबाइल को उठाया तो परशुराम बोले।

"माफ करना। परशुराम जी से आज मैं मिल ना सकूंगी। क्योंकि मुझे एक जरूरी काम आ गया। भ्रष्टाचार विरोधी डिपार्टमेंट से संबंधित एक अधिकारी के कार के पीछे स्कूटी से उनका पीछा कर रही हूं। एक घंटे के बाद मैं ही मोबाइल पर आपसे बात करूंगी।" यामिनी |

मनोज ने मैसेज ऑप्शन में जाकर क्रिएट मैसेजिंग परशुराम ने जो कहा उसे वैसे ही टाइप करके भेज दिया। कुछ ही क्षण बाद मंगई अर्शी 'इट्स ओके यामिनी। परशुराम को जाकर देखना कोई इंपॉर्टेंट विषय नहीं है। तुम्हें जब समय मिले तब जाकर देख लेना बस....!

उस मैसेज को पढ़कर परशुराम के होठों पर एक मुस्कुराहट फैली।

"मनोज ! यामिनी अब हमारी संपत्ति है। उसके यहां आने के सभी सबूतों पर हमने डामर पोत कर मिटा दिया। इस मोबाइल को उसके सिम कार्ड सहित जला दो....!"

"ठीक है साहब !"

"वैसे ही यामिनी के स्कूटी के स्पेयर पार्टो को बोरी में डाल सिटी से दूर ले जाकर सुनसान जगह जहां कोई आदमी आता-जाता ना हो ऐसी जगह देखकर गहरा खड्डा खोदकर उसके अंदर दबा दो। कहीं कुछ छोटी गलती हो जाए तो हम फंस जाएंगे।"

"कोई गलती नहीं होगी साहब.....!"

"ठीक है.... तुम यादव को आने को बोलो...." मनोज सिर हिला कर तेजी से अंदर गया तो परशुराम वहां के सोफे पर पसर गए। अपने शर्ट के जेब में से मोबाइल को निकाल कर एक नंबर से बात करने लगे। दूसरी तरफ एक लड़की की आवाज थी।

"यस....!"

"डॉक्टर उत्तम रामन प्लीज"

"आप?"

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